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Friday, July 19, 2013

हिन्दू राष्ट्रवाद और मोदी

हिन्दू राष्ट्रवाद और मोदी


-इरफान इंजीनियर

इरफान इंजीनियर, लेखक इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज़ एण्ड कंफ्लिक्ट रिसॉल्यूशन (Institute for Peace Studies & Conflict Resolution) के निदेशक हैं।

इरफान इंजीनियर, लेखक इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज़ एण्ड कंफ्लिक्ट रिसॉल्यूशन (Institute for Peace Studies & Conflict Resolution) के निदेशक हैं।

गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी, जिन्हें उम्मीद है कि भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में उन्हें प्रधानमन्त्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित करेगी, शायद विवादों में घिरे रहने में ही आनन्द महसूस करते हैं। नरेन्द्र मोदी अपने शब्द बहुत सोच-समझकर चुनते हैं। उनका प्रचारतन्त्र काफी मेहनत से इन शब्दों को ढूँढता होगा। 'कुत्ते का पिल्ला', 'धर्मनिरपेक्षता के बुर्के के पीछे छुपी कांग्रेस', 'मुझे हिन्दू राष्ट्रवादी होने पर गर्व है' आदि कुछ ऐसे वाक्य हैं, जिनका उद्धेश्य केवल विवाद पैदा करना, आमचुनाव के लिये अघोषित साम्प्रदायिक प्रचार करना और चर्चा के केन्द्र में बने रहना है। मोदी अक्सर मतदाताओं के दिमाग में साम्प्रदायिकता का जहर भरने के लिये अर्धसत्यों, असत्यों और कटु व असंसदीय भाषा का उपयोग करते हैं। अगर वे इन शब्दों का सोच-समझकर उपयोग नहीं कर रहे हैं तो इससे सिर्फ यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उनके शब्दकोष में केवल साम्प्रदायिकता से लबरेज शब्द हैं। दोनों ही स्थितियों में, मतदाताओं को उन्हें सत्ता सौंपने के पहले दस बार सोचना चाहिये। मोदी कहते हैं कि वे हिन्दू राष्ट्रवादी हैं और उन्हें इसपर गर्व है। आईए, हम समझें कि क्यों मोदी न तो राष्ट्रवादी हैं, न हिन्दू हैं और न इस पर गर्वित हैं।

राष्ट्रवादी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसके बल पर मोदी गुजरात के मुख्यमन्त्री बने, ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में कभी कोई हिस्सेदारी नहीं की। संघ ने स्वाधीनता आंदोलन से हमेशा गज भर की दूरी बनाये रखी और हमारे साम्राज्यवादी शासकों का हमेशा साथ दिया। ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ताधारियों की सलाह पर ही खाकी हाफपेन्ट को आरएसएस के गणवेश का हिस्सा बनाया गया। सन् 1942 में, जब सारा देश अँग्रेजों से भारत छोड़ने के लिये कह रहा था, तब आरएसएस और मुस्लिम लीग, द्वितीय विश्वयुद्ध के लिये समर्थन जुटाने में लगे थे। असली राष्ट्रवादी उस समय साम्राज्यवादियों की लाठी-गोलियाँ खा रहे थे, जेल जा रहे थे और वहाँ घोर यंत्रणाएं भोग रहे थे। अपने ब्रिटिश आकाओं की सलाह पर, आरएसएस ने युद्ध के लिये काडर तैयार करने की दृष्टि से, युवाओं को सैनिक प्रशिक्षण देना शुरू किया। संघ के ब्रिटिश आकाओं ने उन्हें सलाह दी कि मैदानों में पीटी करते हुये संघ के कार्यकर्ताओं को कहीं सरकारी सैनिक न समझ लिया जाये इसलिये खाकी फुलपैंट की जगह उन्हें खाकी हाफपैंट पहनना चाहिये। संघ ने अँग्रेजों की बात मानने में तनिक भी देरी नहीं की। संघ के एक भी नेता ने स्वाधीनता संग्राम में भाग नहीं लिया और वे सभी अँग्रेजों की जय-जयकार करते रहे।

आरएसएस के लिये राष्ट्रवाद का अर्थ था अँग्रेजों का समर्थन और दंगों में उत्साहपूर्वक भागीदारी, ताकि अँग्रेज अपनी फूट डालो और राज करो की नीति को बेहतर ढंग से लागू कर सकें। इसके विपरीत, राष्ट्रवादी, सारे देश को एक कर, अँग्रेजों के विरूद्ध लामबन्द हो रहे थे। नाथूराम गोडसे के लिये हिन्दू राष्ट्रवाद या देशभक्ति का अर्थ था गाँधीजी के सीने पर गोलियां दागना क्योंकि उनका उदारवादी और समावेशी हिन्दू धर्महिन्दुत्व की विचारधारा के प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ी बाधा थी। परन्तु स्वाधीनता आंदोलन के समय,आरएसएस ने क्या किया या क्या नहीं, उसके लिये हम मोदी को दोषी क्यों ठहराएं?उनका जन्म तो स्वाधीनता के बाद, सन् 1950 में हुआ था।

स्वाधीनता के बाद राष्ट्रवाद का अर्थ होना चाहिये था देश की स्वाधीनता की रक्षा और ऐसी राष्ट्रीय संस्थाओं का निर्माण, जिनमें सभी नागरिकों की बराबरी की हिस्सेदारी और अधिकार हों। मोदी तो प्रजातन्त्र की उस महान संस्था को ही नष्ट करने पर तुले हुये हैं जिसे हमने स्वाधीनता के बाद खड़ा किया है। उदाहरण के लिये, जितने शीर्ष पुलिस अधिकारी गुजरात की जेलों में बन्द हैं, उतने किसी अन्य राज्य में नहीं हैं। पुलिस तन्त्र का काम था गुजरात के लोगों की रक्षा करना और प्रजातान्त्रिक संस्थाओं को सुरक्षा प्रदान करना। परन्तु वहाँ के पुलिस अधिकारी तो मोदी को प्रसन्न करने में व्यस्त थे। मोदी ने एक लोकायुक्त कानून बनाया है, जिसके अन्तर्गत न तो न्यायपालिका, न राज्यपाल और ना ही किसी अन्य स्वतन्त्र संस्था का गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति में कोई हस्तक्षेप होगा। इसका अर्थ यह है कि गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति वे ही लोग करेंगे, जिनके भ्रष्टाचार के मामले लोकायुक्त के सामने जायेंगे। जिस व्यक्ति का एकमात्र एजेण्डा देश को नहीं, बल्कि स्वयं को आगे बढ़ाना हो और जो राष्ट्र की सेवा करने की बजाये स्वयं का आभामण्डल निर्मित करने में अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर रहा हो, उसे भला राष्ट्रवादी कैसे कहा जा सकता है।

मोदी ने खुलेआम यह घोषित किया है कि उनके लिये हिन्दू राष्ट्रवादी होने का अर्थ है उद्योग जगत का समर्थक होना। मोदी के लिये राष्ट्रवाद का अर्थ है गरीबोंविशेषकर किसानों और मछुआरों, की कीमत पर, पूँजीपतियों को मनमाना लाभ कमाने की छूट देना उनके लिये देशभक्ति का मतलब है साणंद (जिला अहमदाबाद) के किसानों से 1100 एकड़ जमीन छीनकर, रातों-रात टाटा मोटर्स को हस्तान्तरित कर देना और वह भी किसानों को दिये गये मुआवजे से भी कम दर पर। मोदी की देशभक्ति का एक और सबूत यह है कि उन्होंने टाटा मोटर्स को 9570 करोड़ रूपये (गुजरात के वार्षिक बजट का लगभग एक-चैथाई) का सुलभ ऋण दिया है, जिसे टाटा मोटर्स 0.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर पर, अगले बीस वर्षों में चुकाएगी। यद्यपि कम्पनी को जमीन मिट्टी के मोल आवंटित की गयी है परन्तु फिर भी उसे इस राशि को आठ समान वार्षिक किस्तों में चुकाना है। सरकार ने टाटा नैनो की फेक्ट्री और पावर प्लांट तक चार लेन की सड़क बनायी है। कहते हैं कि रॉबिन हुड, अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद करता था। मोदी, गुजरात के गरीब किसानों और मजदूरों को लूटकर, टाटाओं, अदानियों, अंबानियों और करसन भाई पटेलों की भरपूर मदद कर रहे हैं। आमजनों को लूटकर पूँजीपतियों की जेबें भरने की इसी नीति के कारण, गुजरात में गरीबी बढ़ी है। जब गुजरात में कुपोषण की भयावह स्थिति मोदी के सामने आई तो उन्होंने भूखे-नंगे लोगों के घावों पर नमक छिड़कते हुये कहा कि कुपोषण का कारण, गुजरात की महिलाओं की सुऩ्दर दिखने की चाहत है! गुजरात के लोगों-चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान-की बेहतरी शायद मोदी की देशभक्ति की परिभाषा में शामिल नहीं है और इसलिये सरकार, कुपोषण दूर करने के उपायों पर विचार तक नहीं करना चाहती है। गुजरात में राष्ट्रवाद/ देशभक्ति का अर्थ है लोगों में झूठे गर्व का भाव भरना ताकि वे अपनी रोजाना की जिन्दगी की दुःख तकलीफें भूल जायें। यही प्रयास एक और हिन्दू राष्ट्रवादी-आडवाणी ने सन् 2004 के लोकसभा चुनाव के 'इण्डिया शायनिंग' अभियान के जरिए किया था।

क्या मोदी राष्ट्रवादी होने का दावा कर सकते हैं, जबकि उनके राज्य के बचाव दल ने, उत्तराखण्ड के बाढ़ पीड़ितों में से कथित रूप से केवल गुजरातियों को बचाया और अन्य भारतीयों को उनके हाल पर छोड़ दिया।

हिन्दू राष्ट्रवादियों के लिये राष्ट्रवाद का अर्थ है अल्पसंख्यकों के विरूद्ध घृणा फैलाना ताकि करदाताओं के पैसे से उद्योगपतियों और मुनाफाखोरों को फायदा पहुँचाने वाली नीतियों के कारण  बढ़ रही गरीबी पर से जनता का ध्यान हटाया जा सके। हिन्दू राष्ट्रवाद के विमर्श के केन्द्र में है अल्पसंख्यकों का दानवीकरण। अल्पसंख्यकों के दानवीकरण और उनके विरूद्ध हो रही हिंसा को नजरअंदाज करके, सरकार बहुसंख्यक वर्ग के मेहनतकश गरीबों को उनकी कुण्ठाओं से मुक्त करने की कोशिश कर रही है। बहुसंख्यक वर्ग के गरीबों में व्याप्त निराशा और कुण्ठा से जनित ऊर्जा का इस्तेमाल, परिवर्तन लाने के लिये किया जाना चाहिये- एक ऐसे समाज के निर्माण के लिये, जिसमें सभी को आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध हों और समाज के हाशिए पर पटक दिये गये लोगों की बेहतरी के लिये सरकार विशेष प्रयास करे। इसकी जगह, इस ऊर्जा का उपयोग अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिये किया जा रहा है। अतः मोदी किसी भी तरह से राष्ट्रवादी नहीं हैं। वे तो पूँजीपतियों के मित्र हैं और उनके लिये राष्ट्रवाद का अर्थ है बहुसंख्यक समुदाय के मन में अल्पसंख्यकों के प्रति काल्पनिक भय पैदा करना और उन्हें अल्पसंख्यकों पर हमले करने के लिये उकसाना।


हिन्दू?

गाँधी जी के लिये हिन्दू धर्म का अर्थ था सत्य और अहिंसा। ''धर्म का सम्बंध हृदय से है'', गाँधी जी ने कहा, ''कोई भी दुख या परेशानी, किसी के लिये उसके धर्म को त्यागने का कारण नहीं बन सकती।'' एक अन्य स्थान पर गाँधी जी कहते हैं, ''मैं ईश्वर की आराधना केवल सत्य के रूप में करता हूँ। मैंने अब तक उसे पाया नहीं है परन्तु मैं उसे खोज रहा हूँ। इस खोज की खातिर मैं उन सभी चीजों का त्याग करने को तत्पर हूँ जो मुझे प्रिय हैं। अगर इसके लिये मुझे अपना जीवन भी त्यागना पड़े तो मुझे आशा है कि मैं इसके लिये तैयार रहूँगा।'' गाँधी जी के लिये हिन्दू धर्म का अर्थ था सत्य, अहिंसा और त्याग। क्या कोई कल्पना भी कर सकता है कि मोदी केवल और केवल सत्य बोलते हैं? जब अखबारों में यह छपा कि मोदी ने दो दिनों में 80 इनोवा कारों से 15,000 गुजरातियों को उत्तराखंड से निकाल लिया तब मोदी ने इसका खण्डन करने की आवश्यकता महसूस नहीं की। कुछ दिनों बाद, जब यह कहा जाने लगा कि इतने लोगों को केवल दो दिनों में बचाना संभव ही नहीं है तब मोदी के लोगों ने झट यह दावा कर दिया कि मोदी ने ऐसा वक्तव्य दिया ही नहीं था! वे इतनी बार झूठ बोलते हुये पकड़ाये जा चुके हैं कि उन्हें 'फेंकू' कहा जाने लगा है। गुजरात में पिछले कई दशकों में जो भी प्रगति हुयी है, उस सब का श्रेय मोदी स्वयं लेते हैं। यहाँ तक कि उनके सत्ता में आने के पहले भी गुजरात में जो विकास हुआ, उसे वे अपनी उपलब्धि बताते हैं। उनका सरकारी तन्त्र निर्दोष नागरिकों की फर्जी मुठभेड़ों में हत्या कर रहा है।सोहराबुद्दीनकौसर बानो, तुलसीराम प्रजापति और इशरत जहाँ उन लोगों में से हैं जिन्हें ऐसी ही मुठभेड़ों में मारा गया परन्तु जिनका सच लोगों के सामने आ गया। निहत्थे नागरिकों को मारकर और यह दावा कर कि वे उनकी हत्या करने के इरादे से आए आतंकवादी थे, मोदी, 'हिन्दू नायक' बनना चाहते हैं। क्या जो व्यक्ति सच नहीं बोलता, वह सच्चा हिन्दू हो सकता है? गाँधी जी कभी ऐसे व्यक्ति को हिन्दू नहीं मानते। जहाँ तक मोदी की अहिंसा में आस्था का प्रश्न है, उस पर कोई टिप्पणी करना ही बेकार है। गाँधी जी के लिये हिन्दू धर्म के पालन का अर्थ था अपने हितों की कीमत पर दुःखी और जरूरतमन्दों की मदद करना। मोदी अपने हितों के लिये हजारों लोगों की जानें कुर्बान करने से पीछे नहीं हटेंगे। यहाँ तक कि उन्होंने अपने हितों की रक्षा के लिये अपने राजनैतिक गुरू को भी हाशिए पर पटक दिया, जिसने उन्हें गुजरात का मुख्यमन्त्री बनवाया था और सन् 2002 के दंगों के बाद उनकी कुर्सी बचायी थी। गाँधी जी ने हिन्दू कहलाने के लिये जो तीन शर्तें निर्धारित की थीं, मोदी उनमें से एक पर भी खरे नहीं उतरते। गुजरात के 2002 के दंगों को औचित्यपूर्ण सिद्ध करने के लिये मोदी ने जिस क्रिया-प्रतिक्रिया की बात कही थी वह न केवल बहुत बड़ा झूठ थी वरन् अल्पसंख्यकों का दानवीकरण करने का प्रयास भी थी। गाँधी जी, जो सनातन धर्म के अनुयायी थे, ने 19 जनवरी 1928 को ''यंग इंडिया'' में लिखा, ''मैं बहुत पहले इस निष्कर्ष पर पहुँच चुका हूं कि…सभी धर्म सच्चे हैं और सभी में कुछ कमियां भी हैं। और यह, कि मैं अपने धर्म का पालन करते हुये भी दूसरे धर्मों से उतना ही प्रेम कर सकता हूँ, जितना कि हिन्दू धर्म से''।

हिन्दू धर्म के एक और महान अध्येता राधाकृष्णन ने कहा था, ''हिन्दू धर्म किसी पंथ या पुस्तक या पैगम्बर या संस्थापक से बँधा हुआ नहीं है। यह तो नित नवीनीकृत अनुभवों के आधार पर सत्य की खोज है''।  ईश्वर की खोज वही कर सकता है जो सहिष्णु हो। ऋग्वेद के समय से लेकर आज तक, भारत कई धर्मों का देश रहा है और जियो और जीने दो उसकी स्थायी नीति रही है। भारतीय धार्मिक परपंरा ने धर्म के हर उस स्वरूप को स्वीकार किया जो सत्य की खोज में रत था।

विभिन्नता की स्वीकार्यता, ,हिन्दू धर्म का एक अन्य महत्वपूर्ण स्तम्भ है। राधाकृष्णन ने लिखा था, ''हिन्दू धर्म के मूल में है सहयोग का भाव। हिन्दू धर्म यह स्वीकार करता है कि परम सत्य की खोज के कई रास्ते हो सकते हैं। हिन्दू धर्म उस तत्व की खोज करता है, जो सभी प्राणियों में अन्तर्निहित और अविनाशी है।'' उच्चतम न्यायालय ने अपने एक निर्णय में हिन्दू धर्म के बारे में कहा, ''दुनिया के दूसरे धर्मों के विपरीत, हिन्दू धर्म का कोई एक पैगम्बर नहीं है, कोई एक ईश्वर नहीं है, वह किसी एक सिद्धांत को नहीं मानता और ना ही किसी एक दर्शन को। इसके धार्मिक कर्मकाण्डों में एकरूपता नहीं है। सच यह है कि संकीर्ण, पारम्परिक अर्थ में यह धर्म नहीं है। मोटे तौर पर इसे जीवन जीने का एक तरीका कहा जा सकता है, इससे अधिक कुछ नहीं''।  किसी भी हिन्दू के लिये हर धर्म सच्चा है, बशर्ते उसके मानने वाले अपने धर्म का निष्ठा और ईमानदारी से पालन करते हों।

दूसरी ओर, मोदी केवल अल्पसंख्यकों और उनके धर्म को निशाना बनाने और उनका दानवीकरण करने में विश्वास रखते हैं। अपनी गौरव यात्रा के दौरान अपने भाषणों में मोदी ने कई बार दोहराया कि ''हम पाँच हमारे पच्चीस (चार महिलाओं से विवाह करना और बड़ी संख्या में बच्चे पैदा करना) की नीति के कारण मुसलमानों की आबादी दिन दुगनी रात चैगुनी गति से बढ़ रही है''। राधाकृष्णन लिखते हैं कि ''मेरा धर्म मुझे इस बात की इजाजत नहीं देता कि मैं किसी भी ऐसी चीज के बारे में, जिसे कोई भी व्यक्ति पवित्र मानता है या मानता था, एक भी अपमानजनक या ठेस पहुँचाने वाला शब्द कहूं। हिन्दू परंपरा यह सिखाती है कि हमें सभी विचारों और पंथों का सम्मान करना चाहिये''।

गर्व?

मोदी का कहना है कि जिसे वे 'हिन्दू राष्ट्रवाद' कहते हैं, उसके अनुयायी होने में वे गर्व महसूस करते हैं। मोदी ने अपने राजनैतिक हितों की खातिर अपना एजेण्डा इतनी बार बदला है कि उससे यह निष्कर्ष निकालना गलत नहीं होगा कि वे अपने 'हिन्दू राष्ट्रवाद' पर गर्व नहीं करते। अगर उन्हें अपने 'हिन्दू राष्ट्रवाद' पर इतना ही गर्व है तो वे उस समय क्या कर रहे थे जब भाजपा ने, 1998 से लेकर 2004 तक, सत्ता में बने रहने की खातिर,संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने, समान नागरिक संहिता लागू करने और अयोध्या में राममंदिर बनाने के अपने हिन्दुत्ववादी एजेण्डे को ताक पर रख दिया था। कोई व्यक्ति यदि अपने विचारों पर गर्व महसूस करता है तो वह उनकी खातिर अपना सब कुछ त्यागने को तत्पर रहता है। मोदी ने ऐसा कुछ नहीं किया। सन् 2002 से लेकर अब तक वे सत्ता में बने हुये हैं परन्तु उन्होंने कभी उन मुद्दों को लेकर त्यागपत्र देने की पेशकश नहीं की, जिन पर वे अब गर्वित होने का दावा करते हैं। उनका हिन्दू राष्ट्रवाद शायद सिर्फ इस बात पर गर्वित है कि वे उस सरकार के मुखिया थे, जिसके कार्यकाल में सन् 2002 का कत्लेआम हुआ था। क्या वे इस बात पर गर्वित हैं कि जहाँ वे इजारेदारों को हर तरह से फायदा पहुँचा रहे हैं वहीं देश का सबसे पिछड़ा जिला-डांग-न तो बिहार में हैन उत्तर प्रदेश में, न उड़ीसा में और न उत्तर पूर्व में। वह गुजरात में है! क्या वे इस बात पर गर्वित हैं कि पूरे डांग जिले में पीने का पानी पहुँचाने की योजना पर खर्च की जाने वाली राशि, केवल उस गाँव पर खर्च कर दी गयी, जहाँ मक्का मस्जिद धमाकों और अन्य आतंकी हमलों के आरोपी, कुख्यात स्वामी असीमानन्द, शबरी कुंभ मेले का आयोजन कर रहे थे। पूरा डांग आज भी प्यासा है और जिले के निवासियों को पानी उपलब्ध करवाने के लिये आवंटित धनराशि, उन बाहरी व्यक्तियों के लिये एक हफ्ते के पीने के पानी के इंतजाम पर खर्च कर दी गयी, जो वहाँ राजनैतिक हितों की पूर्ति के लिये, शबरी कुंभ नामक नए आयोजन में इकट्ठा हुये थे।

मोदी 'मियां मुशर्रफ', 'कुत्ते के पिल्ले', 'धर्मनिरपेक्षता का बुर्का' जैसी शब्दावलियों का प्रयोग इसलिये करते हैं ताकि वे इस तथ्य को छुपा सकें कि वे हिन्दुत्व के भी सच्चे और ईमानदार अनुयायी नहीं हैं। उनके लिये हिन्दुत्व भी सत्ता हासिल करने और उस पर काबिज रहने का एक हथियार भर है।

(मूल अँग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)

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