उन्हें चार दशक में दो बार उजाड़ा पहाड़ों ने! -फिर भी उन्हें प्यार है हिमालय से!!
उन्हें चार दशक में दो बार उजाड़ा पहाड़ों ने!
-फिर भी उन्हें प्यार है हिमालय से!!
विजेन्द्र रावत-
देहरादून,
पहाड़ के प्यार में डूबी लेखनी से कविता व कहानी लिखने वाले पद्मश्री व साहित्य अकादमी जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित प्रसिद्ध कवि लीलाधर जगूड़ी के परिवार को पहाड़ों ने दो बार उजाड़ा है फिर भी उन्हें हिमालय से कोई गिला नहीं है। 13 सितम्बर 1970 को आई ऐसी ही एक आसमानी आपदा में गेंवाला गाँव (उत्तरकाशी) में उनके भरे पूरे परिवार को एक वर्षाती नाला निगल गया था। इस हादसे में उनके बड़े बेटे सहित परिवार के कुल 6 लोगों की मौत हो गयी थी।
-------चार दशक बाद फिर बिखरे--------
वे बताते है कि उनका 6 माह का बेटा किसी तरह इस हादसे के बाद भी बच गया था,इस मासूम जान को ऐसी भीषण आपदा के बीच ज़िंदा देखकर जगूड़ी जी के कवि ह्रदय से निकल पड़ा कि यह तो "विशेष" है और तभी से बालक का नाम विशेष पड़ गया।उत्तरकाशी की काली कमली धर्मशाला में सिर छुपाने की जगह मिली और 40 साल के अनवरत संषर्ष के बाद उत्तरकाशी में 80 कमरों वाला एक होटल और रहने के लिए घर आ गया।
सब कुछ पटरी पर चल रहा था कि 15-16 जून को आई भागीरथी की बाढ़ एक बार फिर उनके दशकों की मेहनत से बना आशियाना तास के पत्तों की तरह बिखरकर भागीरथी की लहरों में गया।
सुकून, बस इतना रहा कि परिवार के किसी सदस्य की जान नहीं गई! बेटे विशेष ने जो कुछ कमाया था सब कुछ नदी में समा गया।
------------दूसरी बार सरकारी आपदा थी!-----------------
जगूड़ी जी कहते हैं कि 1970 को मेरे परिवार पर टूटी आपदा प्राकृतिक थी पर इस बार उत्तरकाशी में मेरे जैसे सैकड़ों परिवारों पर टूटी आपदा सरकारी थी! पिछले साल भी भागीरथी में ऐसी ही बाढ़ आई थी तब केंद्र सरकार ने उत्तरकाशी में भागीरथी के तटबंधों के लिए निर्माण के लिए काफी धन जारी किया था पर राज्य सरकार के कारिंदों ने समय पर काम शुरू नहीं किया जिस कारण इस बार भी भागीरथी ने फिर से अपने किनारे पर बसे सैकड़ों लोगों को बेघर कर दिया यदि नदी के तटबंध बन जाते तो इस आपदा से आसानी से बचा जा सकता था।
----------अवैज्ञानिक विकास ने बरपाई तबाही--------------
हिमालय में छोटे बांधों के समर्थक जगूड़ी का कहना है कि उत्तराखंड की अधिकांश परियोजनाएं अवैज्ञानिक ढंग से निर्मित हो रही हैं इसके पीछे ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा कमाना मकसद है जिसके कारण सुरंगों का मलवा नदियों के किनारे पर ही छोड़ दिया गया है। सुरंगों में विस्फोटकों का जमकर प्रयोग हुआ है जिससे हिमालय की नई व कमजोर पहाड़ियां दरक गई और उससे भूस्खलन की गति औरतेज हो गई।
यदि जिस तरह के मजबूत तटबंध अंग्रेजों द्वारा हरिद्वार और बनारस में बनाए गए थे वैसे ही पहाड़ों की नदियों में भी बनाए जाते तो नुकसान काफी कम होता। योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के घुन भी हिमालय को और खोखला कर रहे हैं।
---------सैकड़ों युवक कर्ज में डूबे-----------------------------------
उनका कहना है कि इस आपदा में हजारों होटल बह गए है जिनके लिए स्थानीय युवकों ने बैंकों से ऋण लिया था अब वे बेरोजगार हो गए हैं इसलिए सरकार को इनके बारे में कुछ ठोस रणनीति बनानी होगी जिससे वे अपना रोजगार फिर से खडा कर सकें वरना पहाड़ों में बेरोजगारों की फ़ौज में बड़ा इजाफा होगा।
फोटो -- पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ------
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