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Monday, July 8, 2013

मीडिया में दलितों की "आबादी के अनुसार प्रतिनिधित्व" पर झूठा बहस और विमर्श

मीडिया में दलितों की "आबादी के अनुसार प्रतिनिधित्व" पर झूठा बहस और विमर्श

हमारे देश में एक नये तरह के "हाईपोथेटीकल किस्म" के विचारको का ग्रुप जन्म ले रहा है, जिसका जमीनी हकीकतो से कोई लेना-देना नहीं होता। एक वरिष्ठ पत्रकार है "संजय कुमार", इन्हें कुछ नहीं मिला तो एक लेख लिख दिया ...."मीडिया में दलित आ भी जायें तो करेंगे क्या" ......बहुत ही लम्बा लेख है और येन-केन-प्रकारेण इस लेख में भाई-साहब ने चिंता व्यक्त की है कि  मिडिया में दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर है और मिडिया में उनका उनकी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व  होना चाहिए।

मेरी अभी तक की  जानकारी के अनुसार प्राइवेट मीडिया में नौकरी पाने और तमाम तिकड़मो के बीच "Servive" करने के लिए कड़े संघर्ष की आवश्यकता है, जिसमे निश्चित तौर पर आपकी जाति  का कोई बहुत प्रमुख योगदान नहीं है। कम से कम  यहाँ अभी तक पत्रकार का बेटा  एक सफल पत्रकार बन ही जाये या कोई भाई-भतीजावाद करके पत्रकार बनवा दे इसकी कोई गारंटी नहीं है। प्राइवेट मिडिया की नौकरी "बनियों" की नौकरी है और ये बनिये (बिजनेसमैन) उसी को पगार देंगे जो उनके संस्थान के लिए लाभप्रद होगा और इसके लिए आपको अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी, न कि  जाति-बिरादरी।

दरअसल पिछले बीस-पच्चीस सालो से कुछ "छोटी जातियों" के तथाकथित "झंडाबरदारो" को "प्रतिनिधित्व" के नाम पर नौकरी और सुविधावों की "भिखमंगई" की आदत पड़ चुकी है और चुकी मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों की तुष्टिकरण की नीति से इन विचारको (संजय कुमार जैसे) को लाभ भी हो रहा है इसलिए इन जैसे लोग इस तरह के लेख से "विष-वमन" भी करने लगते है।   इस लेख में उन्होंने यह भी चिंता जाहिर की कि यदि "दलित" मिडिया में नहीं होगा तो दलितों की बात कौन उठाएगा?

अरे प्रबुद्ध विचारक संजय कुमार जी इस देश का वास्तविक प्रबुद्ध वर्ग आज से ही नही बल्कि सदियों से ही मानवीय दृष्टिकोण के अनुसार चलता  है अगर ऐसा नहीं होता तो मुंशी प्रेमचंद, महात्मा गाँधी  जैसे कईयों ने जो साहित्य लिखा, वो क्या कोई दलित सिर्फ दलित होने के नाते लिख सकता है ?? अरे हाईपोथेटीकल-विचारकों  अब तो "मेरिट" को प्राथमिकता दो, कुछ तो सकारात्मक सोचो। अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार और राजनेता होंगे तो उसका लाभ पूरा समाज पायेगा और ऐसा सिर्फ "मेरिट-आधारित" चयन-प्रक्रिया से ही होगा।

शेष आप सब की मर्जी, एक कहावत भी ठीक ही कही गयी है "बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय",........ "योग्यता" को हर चीज का आधार बनावोगे तो समाज में हर तरफ योग्य-योग्य ही पावोगे...... आप लोगो के लिए मैं "संजय कुमार" जी द्वारा लिखित लेख का लिंक भी नीचे टाईप कर दे रहा हूँ, इनके द्वारा दलितों के प्रति कृत्रिम चिंता के तमाम आर्गुमेंट भी आप लोग अवश्य पढ़े और स्वयं भी थोडा मनन करें  ......

संजय कुमार का लेख ये है...

http://bhadas4media.com/article-comment/12839-2013-07-07-08-28-41.html

अजीत कुमार राय

Ajit Kumar Rai

Assistant Manager (Marketing)

Jansandesh Times, Gorakhpur

ajitrai17@gmail.com

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