Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Tuesday, July 23, 2013

मरीचझांपी की छवियां

मरीचझांपी की छवियां

पलाश विश्वास


1


?


केदारनाथ की लाशों की लावारिश तस्वीरें देखीं?

देखा न्यूज ब्रेक?


फोटो सेशन?

राहत और बचाओ अभियान?

पहले ,सबसे पहले उसे देख लें

फिर समझें कि कैसे नरभक्षी बाघों का चारा बन जाता आदमी

और क्या होती है मरीचझांपी की रचना प्रक्रिया!


पहले ,अपने आसपास घटित होते मरीचझांपी का नोटिस लें!


फिर समझें मरीचझांपी का सापेक्षिक

चुनावी सौंदर्यशास्त्र

फिर समझें परिवर्तन के बाद भी क्यों

अनसुनी है मरीचझांपी की पुकार!


उत्तराखंड की ५ लोकसभा सीट के लिए कोन इतना समय देगा?केदारनाथ में पड़ी ये लाशें किसी समाचार चैनल के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं हैं क्यूंकि इनमे कुछ मसाला नहीं है न ही कोई ग्लेमर है ।यहाँ कोई तीस्ता नहीं आएगी कोई मेधा अनशन नहीं करेगी, कोई अभिनेता चादर चडाने नहीं जायेगा, कोई फ़िल्मी खान मदत के लिए शो नहीं करेगा और स्वघोषित बुद्धिजीवी ब्लॉग नहीं लिखेंगे!


  Himanshu Bisht
केदारनाथ में पड़ी ये लाशें किसी समाचार चैनल के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं हैं क्यूंकि इनमे कुछ मसाला नहीं है न ही कोई ग्लेमर है ।
न ही किसी मनावाधिकार वालो की नजर इस पर पड़ेगी क्यूँ की ये किसी कश्मीरी आतंकवादीयों या नक्सलीयों के लाशे नहीं हैं …
और ना ही कोई नेता इनके लिए आंसू बहायेगा क्यूँ की ये कोई माईनोरिटी वाले नहीं हैं
यहाँ कोई तीस्ता नहीं आएगी कोई मेधा अनशन नहीं करेगी, कोई अभिनेता चादर चडाने नहीं जायेगा, कोई फ़िल्मी खान मदत के लिए शो नहीं करेगा और स्वघोषित बुद्धिजीवी ब्लॉग नहीं लिखेंगे,
ये मंदिर जा रहे थे तो कुछ दिन बाद कम्युनिस्ट भी देवता को गाली देने के बाद चुप हो जायेंगे।
उत्तराखंड की ५ लोकसभा सीट के लिए कोन इतना समय देगा। विधानसभा में भी परिसीमन के बाद पहाड़ो में कुछ रहा नहीं बाकि चुनाव के समय की कला तो सभी को पता है जैसे हरक सिंह रावत जी ने रुद्रप्रयाग में और निशंख जी ने डोई वाला और कोटद्वार में किया। पहाडियों का क्या फिर सीख जायेगे ये तो जिंदगी का हिस्सा है, गिरते पहाड़ो पर चलने की आदत है । नौकरी के लिए सेना तो है ही। — with Rajiv Nayan Bahuguna and 42 others.

Like ·  · Share · 16 hours ago ·




2


ठीक ऐसी ही हैं

एकदम ऐसी ही हैं हूबहू

मरीचझांपी की छवियां


तभ भी खामोश रहे विद्वतजन

तमाम परिवर्तनपंथी

नंदीग्राम नरसंहार

सिंगुर सेज

और कामदुनि कांड में प्रबल मुखर

नागरिक समाज शरणार्थियों के हक में नहीं बोला



कोई नहीं बोला ,कहीं नहीं उठी आवाज


पेड़ गिरते रहे

धारें लेकिन खामोश रहीं


नदियां बंधती रहीं

किनारे लेकिन खामोश रहे


टूटता रहा हिमालय


जलप्रलय के बाद फिर जलप्रलय

भूकंप के बाद फिर भूकंप

भूस्खलन के बाद फिर भूस्खलन


ग्लेशियर पिघलते रहे

कोई नहीं बोला हिमालय के हक में


पहाड़ के चप्पे चप्पे में फैला मरीचझांपी लावारिश

लाशें लावारिश और लावारिश जिंदगियां भी


तब भी खामोश थी महाश्वेतादी

और अब भी खामोश हैं महाश्वेता दी


तब भी खामोश सत्ता के खेल में थी ममता दीदी

अब भी मुखर सत्ता केकेल में हैं ममता दीदी


न्याय लेकिन नहीं हुआ

न्याय लेकिन होना ही नहीं है


यहां लाशें फिर भी दिख रहीं हैं,खबर नहीं बनी तो क्या

खबरे बनती है राजनीति की

खबरों में होता अपराध

यौन उत्पीड़न भी होता

आगजनी भी दिखती

दिख जाती दिन प्रतिदिन की आत्मघाती अराजक हिंसा


नरसंहार पर लंबे संवाद होते

प्रहसन होता


संसदीय बहस भी होती राजनीतिक सुविधा असुविधा के मद्देनजर

राजनीतिक सौंदर्यशास्त्र और नस्ली भेदभाव

अस्पृश्यता और बहिस्कार के व्याकरण से चलता खबर कारोबार


खबरों में राजनीति है, महज राजनीति

या फिर

राजनीति का अर्थशास्त्र


खबरों में राजनीतिक चेहरे हैं

राजनीतिक बोल हैं,राजनीतिक झोल हैं


है राजनीतिक रैंप शो,

राजनीतिक बाहुबली और रैंबो भी हैं

खबरों में सजा बाजार


खबरों में धर्म हैं, स्वामी हैं और शंकराचार्य भी हैं

उनका योग वियोग है

उनका प्रवचन पलायन है


पर्यटन है

है तीर्थाटन भी

हैं यात्राएं भी


हैं बजबजाती परियोजनाएं विकास छलिया

हैं विशालकाय एटमी बांध भी ,लेकिन डूब नहीं है कहीं


पहाड़ का असली चेहरा कहीं नहीं है

और न है लहूलुहान जख्मी हिमालय

और न मर खप रही हिमालयी जनता


जैसे कहीं नहीं है, कहीं नहीं है ढिमरी ब्लाक का इतिहास

तब भी कोई खबर नहीं बनी थी


जैसे दंडकारण्य, जहां खबरें

शासक सत्ता के हिसाब से बनती बिगड़ती हैं

तय होती है जनता के विरुद्ध युद्ध रणनीति उसी हिसाब से


वैसे ही है मरीचझांपी का इतिहास

और वैसे ही हैं मरीचझांपी की छवियां



3


खून की नदियों में पानी का रंग कभी लाल नहीं होता

बहता हुआ खून नजर भी नहीं आता

वेगमती रक्तनदियां फिरभी बहती हैं

हमारे आसपास

और हम उसके द्वीप

हां, कभी कभीर कगार टूटते भी हैं

अपना कुछ खो लेने के बाद

फिर कहीं नजर आता

पानी का रंग

लाल  चटख लाल


बाघ नरभक्षी हैं ज्यादा

या वे जो आदमी,औरतों और बच्चों को

बेहिचक चारा बना देते हैं बाघों का,

इस पहेली को बूझ नहीं पाया कोई


कितने दिन बीते, बीती कितनी रातें

बीत गये दशक दर दशक

अब तो यह पूरा देश

बाघ अभयारण्य है

जहां बाघ बचाये जाते हैं

और मारे जाते हैं लोग


ठीक से आंखें खोलकर देखो

बाघ नजर आयेंगे मंदाकिनी घाटी में भी

और नजर आयेंगे मनुष्यचारा खिलाते उन्हें


रंग बिरंगी नरभक्षी लोग

केदारनाथ मंदिर के ध्वस्त अहाते में


हो रहा पूजा आयोजन

और वैदिकी कर्मकांड शुरु होने से पहले

पूजा का अधिकार तय होने से पहले


जारी है बाघों का फोटो सेशन


गिरदा,मैंने और शेखर ने कभी

पंतनगर विश्वविद्यालय परिसर में

नरभक्षियों को जिंदा मजूर

चबाते देखा था


अब वहां सिडकुल है चप्पे चप्पे में

नरभक्षी बाघ चबा रहे हैं

ढिमरी ब्लाक के बागियों के

घर द्वार और जमीन जायदाद


अभयारण्य का नाम

जिम कार्बेट पार्क या फिर सुंदरवन या कान्हा या दुधवा या

कुछ और नाम से बेफजूल मशहूर हैं इनदिनों

असली अभयारण्य तो हर राजधानी है

देहरादून हो या दिल्ली या लखनऊ

पटना हो या कोलकाता

गुवाहाटी हो या चंडीगढ़

या बंगलूर,चेन्नई

या फिर वाणिज्यिक राजधानी मुंबई


नरभक्षियों का साम्राज्य हैं वहां हर कहीं

मनुष्य का चारा बनाने का काम

अब लोक गणराज्य का

गणतांत्रिक राजकाज है


बोलें इसके विरुद्ध तो राष्ट्रद्रोह में पकड़ लिये जाओगे

कलम को कंडोम पहनाओ, जुबान सी लो भइये!


सब अपना अपना कर्म फल है

धर्मराज्य में पापा पुण्य के पलड़े पर नियत है नियति


जो मारे जाने को हैं नियतिबद्ध

उनकी मौत पर क्या रोना!


क्या प्रगति पथ से भटक जाना?


अबाध पूंजी प्रवाह के विरुद्ध है यह

राजस्व घाटा बढ़ेका हर प्रतिरोध के साथ

प्रतिरोध से हो जायेगा भुगतान संतुलन!


बाघ गरजकर कहते अक्सर,कठिन समय है

मंदी का दौर है

बहुत कठिन ठौर है


बहुत कड़ी है धूप

लिहाजा छतरी चाहिए वाशिंगटन से

हां, वही छतरी जो कभी आती थी मास्को से


तब भी गरीबी हटाओ का नारा था

अब भी गरीबी हटाओ का नारा है


तब भी चांदमारी थी

अब भी चांद मारी है


निर्बाध घूमते रहेंगे नरभक्षी बाघ

अबाध विचरण उनका और यही है राजनीति


बाघों का चारा बनते रहना

परम नागरिक कर्तव्य है


बाघों का चारा बनाते रहना

राजकाज है,सुशासन है

प्रवचन है , सुवचन है



4


देखो, कितने प्यार से छोटे छोटे पास बढ़ाकर

खेल रहे हैं वे नरमुंडों के साथ

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो,कितनी जमकर लगायी लात

उन्होंने हम सबके पिछवाड़े पर

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, कैसे कृषि की हत्या करके

कितने प्यार से परोस रहे हैं थाली

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, कैसे बोयी तबाही की फसल

और कैसे काट रहे हैं हम बंधुआ

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, कैसी निकलती खून की धार

कैसी गिरती लाशें निरंतर

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, कितने हुए नरसंहार

फिर कैसे जांच बिठायी,हुआ रफा दफा

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, कैसे आग लगायी

जलकर होते खाक घर हमारे

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, कैसे डूब में तब्दील देश हमारा

कैसा ऊर्जा प्रदेश हमारा

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, बलात्कार कितना आसान

और प्रबल कितना रक्षा कवच

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, खबरें कैसे बनती हैं

कि किसी को कोई खबर ही नहीं होती इन दिनों

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो,सुनामी,जलप्रलय और भूस्खलन

आपदाएं रचते कितने कितने

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, कैसे मंदिर बनाते वे कहां कहां

कैसे ढहाते धर्मस्थल कहां कहां

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, युद्धाभ्यास और गृहयुद्ध भी

देख लो रंग बिरंगे सैन्य अभियान

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, नियमागिरि की तमाशा

देखो पास्को का खेल, देखो कुड़नकुलम

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, उनकी बहसें संसदीय मारामारी

संतन के घर झगड़ा है भारी

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, स्वर्णिम राजमार्ग विकास का

और झेलो बेदखली इंतहा

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो,कारपोरेट लाबिंग

और देख लो तमाम आर्थिक सुधार

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो,अपनी बेदखल पहचान

खोजते रहो कंबंध का चेहरा

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो,अपनी बेदखल पुतलियां

देख लो अपनी उंगलियों की छाप

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देख लो, अपने बच्चों के भोजन में

कैसे मिलाते वे जहर कितने प्यार से

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


भोपाल गैस त्रासदी के शिकार लोगों को देखो

देखो, सिखसंहार की विधवाओं को भी

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो,गुजरात का विकास माडल

देख लो,युवराज की शाह सवारी

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, आर्थिक सर्वे, बजट का खेल देखो

देखो,शेयर बाजार की उछाल में किस्मत अपनी

तिकिताका तिकिताका तिकिताका


देखो, कैसे वे बदल रहे हैं हर कानून

और देख लो कानून का राज भी

तिकिताका तिकिताका


देख लो,कश्मीर, मणिपुर और उत्तराखंड से

कैसे खेल रहे हैं वे,कैसे बंगाल झारखंड से

कैसे निर्मम खेलते दंडकारण्य से वे


देख लो उनका खेल जहां मर्जी वहीं

किसी भी गांव, किसी भी खेत में

जहां मरी हुई फसलों की बू बन गयी हरियाली


देखो सौंदर्य प्रसाधन के विज्ञापन तमाम

देखो, कैसे माल बनकर माल बेचते तमाम

खूब राहत की सांस लो खुले बाजार की खुशबू हरियाली


देखो, कितने प्यार से छोटे छोटे पास बढ़ाकर

खेल रहे हैं वे नरमुंडों के साथ

तिकिताका तिकिताका तिकिताका

5


सविता इन दिनों टीवी पर कुछ नहीं देखती

वन्यजीवन और गहरे समुंदर के सिवाय

सभ्यता का भूगोल वहीं है,कहती


वह सीरियल की चर्चा नहीं करती

न फिल्म ही देखती है कभी आजकल

यथार्थ का भूगोल और इतिहास सिरे से गायब हैं,कहती


रात दिन एक ही समाचार

एक ही क्लिपिंग और चीखती बासी सुर्खियां

मरी हुई रजनीगंधा है, सविता कहती


कहती,समाचार देखना है तो नेट पर देख लो

डिजिटल है टीवी इन दिनों, तुम्हारे चैनल ही गायब हैं

हमें वन्य जीवन के सान्निध्य में रहने दो,कहती


पाशविक विशेषण बुहत गलत है, वह कहती

भेड़िये बहुत होते हैं सामाजिक

और भेड़ भी नहीं होते मूर्ख, वह कहती


एक दिन वह बोली,इन सार्डिन मछलियों को देखो

एक एक करोड़ मछलियां साथ रहती हैं

अब उनका सामाजिक जीवन तो देखो


सार्क मछलियों को लेकर इतने किस्से हैं

वे कितने साथ निभाते हैं

फिर इन डाल्फिनों को देखो


वह अक्सर व्यस्त रहती बाघों,सिंहो, हाथियों के घर संसार में

इनके सामाजिक सरोकार देखो

और अपनों के बीच हिंसा का रौरव देखो, वह कहती

पाशविक विशेषण का प्रचलन बंद होना चाहिए

सविता का कहना है, मनुष्य के कारनामों को मानविक

क्यों नहीं कहते,सविता कहती


सविता कहती, खारा पानी पीकर

सुंदरवन के बाघ नरभक्षी हो जाते हैं

बदलते जलवायु का भी उनपर है असर


अभयारण्यों में रिसार्ट बनाओगे तुम

अरण्य से वन्यजीवों को बेदखल करोगे तुम

मनुष्यों को ही बाघों का चारा बनाओगे तुम

तो सोच लो ,असली नरभक्षी हुआ कौन,वह कहती


6


बाघ तो इलाके से बेदखल होने के बाद ही घुसता है

मनुष्यों की आबादी में या फिर उसके इलाकों में घुसपैठ

होने पर करता है हमला आदमी पर


तो सुंदरवन में गांव गांव जो विधवाओं की बस्ती है

जो लोग चारा बनने के लिए मजबूर कर दिये जाते

या चारा बना दिये जाते हैं

उसकी जिम्मेदारी बाघों की कैसी?


मरीचझांपी में राजनीति के खेल में

दंडकारण्य से वोटबैंक बनाने वास्ते बुलाये

शरणार्थियों के उपनिवेश में नरसंहार

फिर बाघों के चारा बना दिये गये शरणार्थी


इसमे खारा पानी से बाघ का स्वभाव बदलने का

सिद्धांत उतना प्रासंगिक नहीं है.मीठा पानी और

मिनरल वाटर के पांच सितारा लोगों का बदलता स्वभाव,

बदलती राजनीति, बदलती विचारधारा का गणित है यह!


लेकिन मरीचझांपी का आखेट खत्म नहीं हुआ है अभी

पंचायत चुनावों में गांव गांव में दिख रहा है मरीचझांपी


घूम रहे हैं सर्वत्र नरभक्षी बाघ निर्बाध

विधवाओं का गांव बस रहा है जहां तहां


हां, अब विधवाओं का एक गांव है केदारनाथ में भी!


आदमी का चेहरा मुखौटा बनाये बाघों का दल हमलावर

सभ्यता की आगजनी कर रहा है सर्वत्र


और राख की खुशबू सर्वत्र एक समान

जहानाबाद से लेकर गुजरात तक

मेरठ से लेकर 1984 में हुए सिख संहार की आगजनी तक


वहीं मारक खुशबू बार बार लौटकर आती

जांच आयोगों और न्यायिक प्रक्रिया के छिड़काव से

खत्म नहीं होती मुठभेड़ संस्कृति कहीं


सत्तर दशक का बंगाल हो या फिर

अस्सी दशक का पंजाब और समूचा आर्यावर्त

या आजादी के बाद से अब तक तमाम दशकों में कश्मीर का चप्पा चप्पा

सर्वत्र मरीचझांपी का ही विस्तार


वहीं सेक्सी खुशबू हमसे कपड़े उतरवाकर

हमें एकदम आदमजाद नंगा कर देती


नरभक्षी बाघों को क्या मालूम कि

भुने हुए इंसानी गोश्त का क्या स्वाद!


गोश्त बाघों का आहार है,सिर्फ आहार

क्योंकि बाघों की कोई राजनीति नहीं होती

न कोई विचारधारा होती है

न बाघों को अल्पमत सरकार चलाने की कोई मजबूरी


न बाघों का धर्मोन्माद कोई और न आस्था का प्रश्न प्रतिप्रश्न


बाघों का कोई दल नहीं होता

कोई झंडा नहीं होता बाघों का


न बाघ गरीबी हटाओ का नारा देते हैं

और न कारपोरेट बेड में रात बिताते हैं


बाघों का कोई वोटबैंक नहीं होता

घोटाले भी नहीं करते बाघ


बेचने लायक देश भी नहीं होता बाघों का

वे भी तो बेदखल हमारी तरह

वे भी ते विस्थापित, शरणार्थी हमारी तरह


फिर खुले बाजार से क्या मतलब बाघों का?


जिंदा और मुर्दा गोश्त के शौकीन तो हुई हमारी आदमखोर सभ्यता

अस्पृश्यता और नस्ली भेदभाव का भी ईजाद किये हमने

तमाम आर्थिक सिद्धांत प्रतिपादित किये हमने


और यह राजनीतिक अर्थशास्त्र नरभक्षी

यह भी हमारी परंपरा है

आत्मघाती हिंसा भी हमारी परंपरा है


मरीचझांपी हो या अयोध्या

इंफाल हो या गुजरात

मुंबई और मालेगांव के धमाके हो

या कश्मीर


या  फिर स्वर्णमंदिर

हाशिमपुरा हो या मलियाना

या फिर केदारनाथ

और समूचा जख्मी हिमालय


जलप्रलय और सुनामी

जख्मी धर्मस्थल, ध्वस्त जनपद,तबाह अरण्य

और तबाह घाटियां, प्रदूषित जलप्रवाह और झीलें


राख में तब्दील फसलें हमारी

खाक हुआ लोक संसार

यह सब तो हमारी विरासत है


यह लोक गणराज्य और उसके सीने पर

यह अनंत वधस्थल

नरमेध अभियान


और यह खुल्ला बाजार

हमारी ही तो विरासत है

भावी पीढ़ियों को समर्पित!



No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...