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Tuesday, July 23, 2013

जिम्मेवारी टालने के खेल में न जाने यह रक्तपात कब थमेगा!

जिम्मेवारी टालने के खेल में  न जाने यह रक्तपात कब थमेगा!


2003 के पंचायत चुनावों में 53 जाने गयी थीं। उस लिहाज से इस चुनाव में हिंसा में मारे जाने वालों की संख्या कोई चौंकाने वाली नहीं है। लेकिन बाहुबलियों और आपराधिक वर्चस्व में दिशाहीन होती जा रही बंगाल की राजनीति अवश्य ही चिंता का कारण है।सबसे चिंता जनक है सुरक्षा बलों की मौजूदगी में सीमाक्षेत्रों में तस्करों का वर्चस्व।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


जिम्मेवारी टालने के खेल में  न जाने यह रक्तपात कब थमेगा!


इस हिंसा की अराजकता का निकटभविष्य में कोई अंत नजर नहीं आ रहा है। हिंसा और प्रतिहिंसा के महाविस्पोट से आज लहूलुहान है बंगाल का कोना कोना।न्यायिक हस्तक्षेप और केंद्रीय वाहिनी की मौजूदगी से हिंसा पर अंकुश नहीं पाया जा सकता,अगर रानीतिक चेतना की जगह ले ले राजनीतिक उन्माद।जहां मतदान हो गये, वहां से सुरक्षाबलों की तैनाती खत्म होते न होते हिसाब बराबर करने का खेल चालू हो गया है।न जाने यह रक्तपात कब थमेगा!पश्चिम बंगाल में सोमवार को हुआ पंचायत चुनाव का चौथा चरण बम विस्फोट, गोलीबारी तथा हिंसक झड़पों की कई घटनाओं से बुरी तरह प्रभावित रहा। इसके अलावा चौथे चरण के पंचायत चुनाव में बड़े पैमाने पर मतदान में धांधली के आरोप लग रहे हैं।


2003 के पंचायत चुनावों में 53 जाने गयी थीं। उस लिहाज से इस चुनाव में हिंसा में मारे जाने वालों की संख्या कोई चौंकाने वाली नहीं है। लेकिन बाहुबलियों और आपराधिक वर्चस्व में दिशाहीन होती जा रही बंगाल की राजनीति अवश्य ही चिंता का कारण है।


भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता। लेकिन राजनीतिक दलों की पहचान होती है। किसी किसी दल की विचारधारा होती है। विचारधारा न हो तो आदर्श और मूल्य होते हैं। अगर राजनीतिक दल अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को संयमित करने का अहम कार्यभार टालकर प्रतिपक्ष को कटघरे में खड़ा करके इस हिंसा को रोकने की कतवायद में लगी है, तो अमन चैन की यह कोई वैज्ञानिक तकनीक नहीं हो सकती।


पंचायत चुनाव उपलक्ष्य मात्र है। असल में हिंसा की स्स्कृति जो बन रही है ,वह सबसे खतरनाक है। बाहुबलि निर्भर सत्ता के खेल में मतदाताओं और नागरिकों की कोई भूमिका होती ही नहीं है।माफिया और तस्करों के भरोसे अगर राजनीति हो तो वहीं नजारे स्वाभाविक है जो शिल्पांचल,कोयलांचल और सारे के सारे सीमावर्ती इलाकों में नजर आ रहे हैं। कोलकाता से सटे जिलों उत्तर और दक्षिण 24 परगना और हावड़ा में प्रोमोटरों औरर बिल्डरों की बड़ी भूमिका हो गयी है। नागरिक समाज के बदले उनके हित प्रधान हो गये हैं। राज्य के दूसरे बड़े शहरों मालदा,मुर्शिदाबाद, आसनसोल,दुर्गापुर और सिलीगुड़ी से सटे ग्रामीण इलाकों में इन सभी अलोकतांत्रिक तत्वों की नेतृत्वकारी आपराधिक भूमिका बन गयी है राजनीतिक दूरदर्शिता के अभाव में।ऐसे ही तत्व जिलों में हर स्तर पर राजनीतिक दलों की कमान थामे हुए हैं। इलाका दखल में उनकी प्रश्नातीत दक्षता के मद्देनजर कोई भी पार्टी उनपर अंकुश लगाना नहीं चाहती।क्योंकि पंचायत चुनाव तो ड्रेस रिहर्सल है, असली खेल को लोकसभा चुनाव का है, उसके लिए अभी से जमीन जोती जा रही है। बीज डाले जा रहे हैं।


राजनीति अप्रासंगिक हो जाने से परंपरा भी अप्रासंगिक हो जाती है। इसका ज्वलंत उदाहरण मालदह में खान चौदरी परिवार की राजनीतिक साख का अवसान है।बाहुबलियों के आधारक्षेत्रों में राजनीतिक आस्था बदली है। रंग भी बदल गया। लेकिन नेतृत्वकारी आपराधिक,माफिया, बिल्डर, प्रोमोटर,तस्कर तत्वों का वर्चस्ऴ बढ़ा ही है ,घटा नहीं है। लेकिन विशुद्ध राजनीति करने वालों के नियंत्रण से बाहर जा रही हैं तेजी से । यह बहुत तेज हो रहा है। खानचौधरी परिवार का मिथ पूरे बंगाल में काम करता है,खासकर उत्तर बंगाल में । वहां कांग्रेस की मजबूती के पीछे इस परिवार का वरदहस्त रहा हैष लेकिन इस चुनाव में देखा गया, पूरे राज्य तो क्या, पूरे उत्तरी बंगाल में भी नहीं, खास मालदह के कालियाचक इलाके में डालू मियां की हालत खस्ती हो गयी है। मौसम का पता ही नहीं चला। दूसरे इलाकों की तरह मालदह भी अनियंत्रित हिंसा की चपेट में है।


सकारात्मक बस यही है कि राजनीतिक दलों की खूब कोशिश के बावजूद राज्य में अभी धार्मिक ध्रूवीकरण नहीं हुआ है। चाहे अल्पसंख्यक किसी का भी समर्थन करते रहे। राजनीतिक समीकरण कुछ भी हो, राजनीतिक उन्माद अभी धर्मोन्माद में तब्दील नहीं हुआ है। लेकिन इस अराजक हिंसा का अगला पड़ाव वही है।


हिंसा से ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि सुरक्षाबलों की मौजूदगी के बावजूद सीमा के आरपार से तस्कर तत्वों ने पंचायत चुनावों में खासकर हासनाबाद,बशीरहाट, भांगड़, वनगांव, बारासात, दत्तफूलिया, मुर्शिदाबाद,मालदा और उत्तरी बंगाल में निर्मायक भूमिका अपनायी। उनकी सीमा के आरपार अबाध आवाजाही रही चुनाव प्रक्रिया को दौरान। मादक द्रव्यों, पशुओं और मनुष्यों की तस्करी से अर्जित पैसे से इलाके दखल कर लिये गये। शराब माफिया के सौजन्य से शराब की नदियां बहती रहीं!


पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के चौथे चरण में जबरदस्त मतदान के बीच हुई हिंसा में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई और 28 से अधिक लोग घायल हो गए। चौथे चरण के चुनाव में जबरदस्त हिंसा हुई। मतदान के दौरान कई जगह से मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने, झीना झपटी और जोर जबरदस्ती की खबरें हैं। मतदान के दौरान कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष होने के साथ ही सीआरपीएफ के जवानों ने भी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए गोलियां चलाई।


राज्य निर्वाचन आयोग के सूत्रों ने बताया कि राज्य में पांच चरणों में होने वाले पंचायत चुनाव के चौथे चरण में सोमवार को बीरभूम, माल्दा, मुर्शिदाबाद तथा नदिया जिलों में मतदान हुआ और कम से कम 75 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। उन्होंने बताया कि माल्दा जिले के रातुआ ग्राम पंचायत में चुनाव के दौरान बूथ पर कब्जा रोकने की कोशिश सीआईएसफ के जवान द्वारा गोली चलाए जाने से एक मतदाता की मौत हो गई।


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पंचायत चुनावों के दौरान हुई हिंसा का ठीकरा राज्य निर्वाचन आयोग के सिर फोड़ दिया। ममता ने कहा कि पंचायत चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग ने कराए और सरकार ने आयोग को जरूरी पुलिसकर्मी मुहैया कराए थे।


चुनावी हिंसा में जान गंवाने वाले लोगों के प्रति दुख जाहिर करते हुए ममता ने तृणमूल कांग्रेस की वेबसाइट पर अपने एक लेख में कहा, 'हर मौत एक त्रासदी है, जहां यह मायने नहीं रखता कि मरने वाला किस पार्टी से ताल्लुक रखता था। एक परिवार अपने एक बहुमूल्य सदस्य को खो देता है जिसे फिर कभी वापस नहीं लाया जा सकता। चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से कराए जाते हैं, सरकार द्वारा नहीं। राज्य निर्वाचन आयोग की जरूरत के मुताबिक उसे पर्याप्त पुलिस बल मुहैया कराया गया था।'


पंचायत चुनाव कराने के मुद्दे पर राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग के बीच ठनी हुई थी। दोनों ने इस सिलसिले में अदालत का भी रुख किया था।




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