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Wednesday, July 24, 2013

इससे पहले कि गांव के साथ लोग दफन हो जायें, लड़कर मरना ठीक है

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Details Parent Category: [LINK=/state.html]State[/LINK] Category: [LINK=/state/uk.html]उत्तराखंड[/LINK] Created on Wednesday, 24 July 2013 16:47 Written by अतुल सती
जोशीमठ ब्लाक का गणाई गांव पाताल गंगा के बांये छोर पर पहाड़ी ढलान पर बसा है। 120 परिवारों का गांव ऊपजाऊ जमीन, घने जंगल से घिरा व पानी की पर्याप्तता के चलते खेती किसानी व बसावत के लिहाज से उपयुक्त ही लगता है। तीन हिस्सों में बसा मुख्य गांव व उसके बाएं छोर पर गणाई ग्राम सभा का ही हिस्सा दाड़मी गांव, हो सकता है कभी यहां दाड़िम फलता रहा हो इसलिये दाड़मी।

किन्तु सन् 1998 से गांव में भूस्खलन शुरू हुआ और आज इस स्थिति में है कि अब गिरा तब गिरा। मुख्य गांव तीन तरफ से भू-कटाव का शिकार हो रहा है और गांव के ऊपरी तरफ से मल्ला गणाई के ऊपर जंगल की तरफ से चट्टान दरक कर पत्थरों के रूप में गांव पर आफत बरसा रहे हैं। गांव के दायें हिस्से का कटान (भूस्खलन) अन्तिम छोर पर रहने वाले गिरीश खण्डूड़ी के घर तक पंहुच गया है। अवतार सिंह नेगी जी को घर का एक हिस्सा जो कि गांव के सबसे किनारे पर है इसकी जद में आ गया है। उसके बाद बाकी गांव भी उसकी जद में आ जायेगा। गांव के बांई ओर एक हिस्सा कट चुका है। गधेरा नीचे की तरफ से इस कटाव को और तेजी से नीचे से काट रहा है।

सबसे नीचे गांव की एक बस्ती, जहां सभी दलित परिवार रहते हैं। उसके नीचे से जमीन का एक हिस्सा दरक कर पाताल गंगा तक चला गया है और बाकी का हिस्सा जाने की तैयारी में है। ग्राम सभा का एक दूसरा टुकड़ा, दाड़मी, को जोड़ने वाला रास्ता गायब है। गणाई से नीचे उतरने वाला रास्ता नाले से पटा है। नीचे उतरना ही मुश्किल है। नीचे गांव के दो घराट हैं इनको चलाने वाला गधेरा जो कि आजकल अपने उफान पर है, घाटी को और चौड़ा काट रहा है। इस गधेरे को बड़ी मुश्किल से पार कर ही ऊपर दाड़मी जाना सम्भव है। लेकिन गधेरे के पार कोई रास्ता नहीं है। गधेरे द्वारा लाया गया मलबा कीचड़ का ढेर है इसी पर चढ़कर ऊपर जाना है।

इस कीचड़ मलबे के साथ कुछ दिन पहले गधेरा अपने साथ बड़े-बड़े बोल्डर चट्टाने भी लाया है। इसके ऊपर देवदार का जंगल जगह-जगह उजड़ गया है और हल्की सी बरसात में कभी भी नीचे आने को तैयार है। इसी कीचड़-मलबे भरे रास्ते से दाड़मी के छोटे-छोटे बच्चे स्कूल पढ़ने रोज गणाई आते हैं। रास्ता ऐसा कि पैर फिसला और गधेरे में समाये, पिछली बरसात में एक बच्ची इसी गधेरे को पार करती हुई फिसल गई और बह गयी। हमारे साथ चलते हुए मनोहरी भाई बताते है कि 2010 में इसी रास्ते पर गेहूं पिसाने घराट पर आते हुए शाम को उनकी भिड़न्त भालू और उसके दो बच्चों से हो गई। कई देर तक गुत्थम गुत्था के बाद भालू ने उनके सिर की हड्डी और बांई आख घायल कर उन्हें छोड़ दिया। किसी तरह वह गांव पंहुचे।

कई महीने श्रीनगर, देहरादून में ईलाज करवाने पर जान बच पाई। अब एक ऑख खराब हो गयी है। शाम के बाद यह रास्ता असुरक्षित है पर मजबूरी है। आजकल दाड़मी गांव में परिवार का जब एक सदस्य जागता है तब दूसरा सोता है। सबने घरों में बड़े वाले टार्च रखे हैं। क्या पता कब गांव सरक कर नीचे चला जाय। कम से कम जान बचाकर भाग तो सकेंगे। गॉव की महिला मंगल दल अध्यक्षा कहती हैं। दूर से देखने पर यह गांव नीचे अपनी रफ्तार में जाता हुआ लगता है। जैसे पीसा की मीनार की तरह सरकता हुआ गांव, 40-50 परिवार का गांव जैसे जवालामुखी के मुहाने पर बैठा हो। ऊपर से पत्थर, चट्टाने टूटकर गांव की तरफ आ रही हैं और नीचे से तो गांव नीचे जा ही रहा है।

गणाई का 2002 में जिला भूगर्भ विभाग द्वारा सर्वे किया गया जिसमें गांव को असुरक्षित माना गया है। 2010-11 में पुनः गांव का सर्वे हुआ जिसमें गणाई मुख्य गांव के नीचे झील का होना पाया गया। बरसात में गांव में पानी ही पानी भर जा रहा है जिससे घर कमजोर हो गये हैं। अधिकांश घरों में दरारें हैं कुछ घर तो बस खड़े हैं। कभी भी गिर पड़ने के इन्तजार में। हर आदमी मुझसे एक बार अपना घर देख लेने की विनती करता है जैसे बस मेरे देख लेने भर से सब ठक हो जाएगा परन्तु प्रशासनिक अधिकारियों की नजर में सब ठीक ठाक है। जब हम एसडीएम जोशीमठ से मिले तो उनका यही वाक्य था मैं गया तो हूं वहां मतलब मैंने तो ऐसा नहीं देखा।

गांव के लोग बताते हैं कि 1999 में हम लोग गांव के विस्थापन के सवाल पर एक महीने नीचे पातला गंगा में सड़क के किनारे धरने पर बैठे, फिर एक दिन तहसीलदार साहब आये और टेन्ट-तिरपाल देने का आश्वासन देकर चले गये। कुछ तिरपाल इत्यादि मिला भी पर जब सारा गांव धंसाव का शिकार है ऐसे में तिरपाल ओढ़ कर क्या होगा। अपनी उपेक्षा से गांव के लोग नाराज हैं। कई बार तहसील में गुहार लगा चुके, लिखित में दे चुके पर सुनवाई के नाम पर वही तिरपाल ले जाओ। गांव में, भालू, बन्दर, और सूअर का आतंक अलग से है। कुछ बोयें भी तो क्यों। गांव का प्राइमरी स्कूल खस्ताहाल है। छत टपक रही है, सारी दीवारें पानी की लीकेज से गीली हैं। हेड मास्टर अंसारी कहते हैं कई बार लिखित दे चुके कि बच्चों की जान को खतरा है। कभी भी छत गिर सकती है। व्यंग्य भरी मुस्कान छोड़ते हुए कहते हैं साहब कुछ दिन पहले तक तो हमारा गांव वी0आई0पी0 गांव था। (यानी जि0 पं0 अध्यक्ष का गांव), गांव की महिला मंगल दल अध्यक्ष का कहना है कि हम तो परेशान हो गये हैं, तीन बैटरी वाली टार्च रखी है, जब लाईट जाती है तो डर लगता है कि इस बरसात में जाने कब घर छोड़कर भागना पड़े।

गांव की उप प्रधान गीता देवी और रमेश चन्द्र का कहना है कि अब तो लड़ना ही एक मात्र विकल्प है। इससे पहले कि गांव के साथ लोग दफन हो जायें, लड़कर मरना ठीक है। इसी को लेकर गांव में मीटिंग हुई है। अब गांव वाले आर-पार की लड़ाई की तैयारी में हैं। परन्तु आपदा के इतने बड़े फैलाव और उस पर सरकार के लापरवाह प्रबन्धन व लचर प्रशासनिक व्यवस्था ने जिस तरह विभीषिका को और दर्दनाक बना दिया है, उसमें गणाई जैसे सैकड़ों गांवों के विस्थापन के सवाल का व सरकार का असंवेदनशील रवैये का जबाव जनता के आन्दोलन ही देंगे और यह मुकम्मल जबाब भी बनेंगे।

[B]अतुल सती[/B]

जोशीमठ

[B]भाकपा (माले) के गढ़वाल कमेटी के सदस्य [/B][B]लेखक अतुल सती हाल में ही जोशीमठ ब्लॉक के आपदा प्रभावित गांव गणाई  का दौरा करके लौटे हैं.[/B]

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