Wednesday, 24 July 2013 10:40 |
अरविंद कुमार सेन योजना आयोग के उपाध्यक्ष और कॉरपोरेट दुनिया के दुलारे मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने रिलायंस की इस मांग पर मुहर लगाने में देर नहीं लगाई, लेकिन इस मर्तबा एस जयपाल रेड््डी के रूप में छोटा-सा रोड़ा सामने था। मंत्रिमंडल का पुनर्गठन हुआ और रिलायंस की मांग का विरोध करने की जुर्रत करने वाले रेड््डी की पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय से विदाई हो गई। सरकार पर दबाव बनाने के लिए रिलायंस ने केजी बेसिन में गैस का उत्पादन 80 एमएमएससीएमडी रोजाना से घटा कर महज 16 एमएमएससीएमडी कर दिया और इसके लिए तकनीकी खामियों का हवाला दिया। सवाल उठता है कि जब केजी बेसिन में रिलायंस इतनी बड़ी तकनीकी खामियों का सामना कर रही थी तो ब्रिटेन की बीपी कंपनी ने केजी बेसिन के गैस इलाकों में 7.2 अरब डॉलर की भारी-भरकम रकम क्यों झोंक दी? अगर रिलायंस तकनीकी खामी दस साल से भी ज्यादा समय में दूर नहीं कर पाई तो इसने केजी बेसिन की बोली में हिस्सा क्यों लिया था? आखिर सरकारी कंपनियों को किनारे लगा कर रिलायंस को केजी बेसिन का ठेका देने का मकसद ही यह था कि कंपनी अपने वित्तीय संसाधनों से बेहतर तकनीक खरीद कर गैस का उत्पादन करेगी। तय मात्रा में गैस का उत्पादन करने में नाकाम होने पर सरकार ने केजी बेसिन को रिलांयस से लेकर किसी दूसरी कंपनी को क्यों नहीं दिया? रिलायंस पर मेहरबान यूपीए सरकार ने निष्पक्ष होने का दिखावा करने के लिए गैस कीमतों पर रंगराजन समिति का गठन किया। कॉरपोरेट दबदबे की हद देखिए, रंगराजन समिति ने सरकार से कहा कि केजी बेसिन में गैस की कीमत मौजूदा स्तर से दुगुनी करते हुए 8.8 डॉलर प्रति यूनिट कर दी जाए। तर्क यह कि जापान में गैस की कीमत यही है। रंगराजन समिति ने जापान की कीमतों को ही आधार बनाया है। मगर प्राकृतिक गैस के लिहाज से दुनिया के सबसे महंगे देश जापान के फार्मूले को ही क्यों आधार बनाया गया? अमेरिका या दूसरे सस्ती गैस कीमतों वाले बाजारों से भारत की तुलना क्यों नहीं की गई? जापान में प्राकृतिक गैस समुद्री खनन से हासिल होती है जबकि भारत में नदी घाटियों से। ऐसे में जापानी कीमतों से तुलना का पूरा फार्मूला ही असंगत हो जाता है। बहरहाल, तमाम विरोध के बावजूद यूपीए सरकार ने रिलायंस को 8.4 डॉलर प्रति यूनिट के हिसाब से गैस के दाम वसूलने की मंजूरी दे दी है। यह पूरी दुनिया में प्राकृतिक गैस की सबसे ऊंची कीमत है। याद रहे, इस बार सरकार ने रिलायंस की ओर से घरेलू कंपनियों से वसूल किया जाने वाला गैस का भुगतान डॉलर से जोड़ दिया है। मतलब एनटीपीसी अगर रिलायंस से गैस खरीदती है तो उसे डॉलर में भुगतान करना होगा। डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने पर भी, रुपए में कारोबार करने वाली एनटीपीसी को डॉलर में भुगतान करते हुए ज्यादा रकम चुकानी होगी। इस तरह रिलायंस की लूट में और इजाफा होगा। प्राकृतिक गैस की बढ़ी हुई कीमत का खमियाजा देश के हर नागरिक को भुगतना होगा। एनटीपीसी जैसी बिजली कंपनियां गैस का इस्तेमाल करके बिजली पैदा करती हैं, लिहाजा कच्चे माल यानी गैस की कीमत बढ़ने से बिजली के दाम बढ़ जाएंगे। बिजली हरेक कंपनी की लागत का अहम हिस्सा है, इसलिए कंपनियां इस बढ़ी हुई लागत को अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ा कर उपभोक्ताओं पर लाद देंगी। देश की अर्थव्यवस्था के एक ढहते क्षेत्र कृषि में काम आने वाले उर्वरकों की कीमतें बढ़ जाएंगी, क्योंकि उर्वरक-निर्माण में काम आने वाला प्रमुख कच्चा माल गैस है। पहले अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी देश को लूट रही थी, अब कुछ बड़ी कंपनियां देश के संसाधन लूट रही हैं। गुरुदास दासगुप्त ने प्राकृतिक गैस की कीमत में वृद्धि की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। विरोध में कुछ और भी छिटपुट आवाजें उठीं। लेकिन कुल मिला कर राजनीतिक वर्ग ने खामोश रहना ही ठीक समझा है। क्या इसका कारण उन्हें मिलने वाला भारी-भरकम चंदा है? देश की तकदीर बदल डालने का दम भरने वाले भाजपा के नरेंद्र मोदी को मुकेश अंबानी ने देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा जाहिर की है। इसलिए यूपीए सरकार पर हमला बोलने का कोई मौका न चूकने वाले मोदी प्राकृतिक गैस की कीमत के मुद््दे पर मौन धारण किए हुए हैं। महंगाई पर रस्मी चिंता और विरोध जताना हो तो कोई भी पार्टी पीछे नहीं रहती, मगर महंगाई बढ़ाने वाले एक बड़े फैसले का विरोध ये पार्टियां क्यों नहीं कर रही हैं?
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Wednesday, July 24, 2013
गैस की कीमत का खेल
गैस की कीमत का खेल
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