Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, July 19, 2013

शंभूनाथ शुक्ला जी, पहले तो ये साफ करिए कि आप क्या चाह रहे हैं!

[LARGE][LINK=/print/13147-2013-07-19-07-44-51.html]शंभूनाथ शुक्ला जी, पहले तो ये साफ करिए कि आप क्या चाह रहे हैं![/LINK] [/LARGE]

[*] [LINK=/print/13147-2013-07-19-07-44-51.html?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/gk_twn2/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK] [/*]
[*] [LINK=/component/mailto/?tmpl=component&template=gk_twn2&link=cbe8dca38bc85c03c66e73452c55b4fb371246bd][IMG]/templates/gk_twn2/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [/*]
Details Category: [LINK=/print.html]प्रिंट-टीवी...[/LINK] Created on Friday, 19 July 2013 13:14 Written by अभिषेक श्रीवास्तव
Abhishek Srivastava : क्‍या किसी पत्रकार के विचार या विश्‍लेषण के निष्‍कर्ष अखबारी लेख लिखते वक्‍त बदल जाते हैं? शंभुनाथ शुक्‍ला का आज अमर उजाला में छपा मोदी स्‍तुति गान देखकर ऐसा ही लगता है। अपनी फेसबुक दीवार पर शुक्‍ला जी लगातार रिटायरमेंट मोड में पत्रकारिता के स्‍वयंभू नमूने पिछले कुछ दिनों से छोड़ रहे थे।

उन्‍होंने कल ही एक पोस्‍ट में लिखा था, ''मुस्लिमों, ब्राह्मणों तथा अन्य सेकुलर लोगों के हित में यही है कि वे मायावती का समर्थन करें। अकेले मायावती ही नरेंद्र मोदी के हिंदू राष्ट्रवादी होने के दंभ को चूर-चूर कर सकती हैं।'' आज जो लेख छपा है, जो ज़ाहिर है कल या उससे पहले का लिखा होगा, उसमें वे कहते हैं, [B]''सामाजिक न्याय के रास्ते से विकास नहीं हो सकता... मोदी ने अपने विकास मॉडल से न सिर्फ सामाजिक न्याय के पैरोकारों की हवा निकाल दी है, बल्कि अल्पसंख्यकों को रिझाने में भी वे पूरी तरह कामयाब रहे हैं। शायद यही मॉडल आज देश चाहता है।''[/B]

''देश क्‍या चाहता है'', इसकी ठेकेदारी छोडि़ए सरजी, पहले तो ये साफ करिए कि आप क्‍या चाह रहे हैं? ऐसी बेईमानियां करने से पहले कुछ तो सोच लिया करिए।

[B]युवा व तेजतर्रार पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.[/B]

[HR]

[B]अमर उजाला में शंभूनाथ शुक्ला का जो लिखा प्रकाशित हुआ है, वह इस प्रकार है...[/B]

[B]समग्र विकास का मोदी मॉडल![/B]

[B]-शंभूनाथ शुक्ल-[/B]

अभी तक एक धारणा चली आ रही है कि देश में बस दो तरह के मॉडल हैं, एक विकास का और दूसरा सामाजिक न्याय का। हालांकि ऐसा नहीं है कि सामाजिक न्याय के रास्ते से विकास नहीं हो सकता। द्रमुक, अन्नाद्रमुक, तेलुगू देशम पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी आदि इसके अनेक उदाहरण हैं, जिनके शासन के दौरान विकास भी हुआ और सामाजिक न्याय के सरोकारों से भी ये सरकारें जुड़ी रहीं, लेकिन ये सभी क्षेत्रीय पार्टियां हैं। अखिल भारतीय स्तर पर विकास का मॉडल सिर्फ कांग्रेस या भाजपा ही दे पाने में सक्षम हैं। लेकिन आज कांग्रेस भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है और उधर भाजपा के उभरते हुए सितारे नरेंद्र मोदी के मॉडल को कॉरपोरेट जगत ने हाथोंहाथ लिया है। मोदी ने विकास के जिस मॉडल को अमली जामा पहनाया है, उसने पूरे गुजरात की तस्वीर बदल दी है।

शायद मोदी अकेले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने विकास किया, पर उसमें भ्रष्टाचार का घुन नहीं लगने दिया। लेकिन क्या पूरे देश के स्तर पर इस मॉडल को इसी रूप में लागू किया जा सकता है? यह एक अनुत्तरित सवाल है। इसकी कई वजहें हैं। मसलन, मीडिया और लोक में मोदी की छवि मुस्लिम विरोधी है, दूसरे उन्हें हार्ड कोर संघ का माना जाता है तथा वह अपने बयानों से कुछ न कुछ फुलझड़ी छोड़ा करते हैं। अगर लोकसभा में भाजपा की 200 सीटें आ जाती हैं, तो यकीनन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से कोई रोक नहीं सकता। पर अगर यह आंकड़ा पौने दो सौ के आसपास जा टिकता है, तो सरकार बनेगी भाजपा की ही, पर शायद मोदी प्रधानमंत्री न बन पाएं।

ऐसे में दो दावेदार खड़े होते हैं। पहले नंबर पर लालकृष्ण आडवाणी हैं, तो दूसरे नंबर पर राजनाथ सिंह। आडवाणी सर्वमान्य नेता हैं, पर उनकी उम्र आड़े आती है। राजनाथ के साथ वे सारी बातें जुड़ी हुई हैं, जो उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रीय नेताओं के साथ जुड़ी हैं। वर्ष 2000 में राजनाथ जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे और उत्तर प्रदेश से ही सांसद थे। वाजपेयी का कद इतना बड़ा था कि किसी भी क्षेत्रीय नेता की हिम्मत नहीं थी कि उनकी अनदेखी कर सके। पर अब वह बात नहीं है।

भाजपा के नए नेताओं में मोदी को छोड़कर किसी के पास सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। इसलिए मोदी के बगैर देश की सरकार चलाना कठिन होगा और उससे भी कठिन होगा गठबंधन के दलों को जोड़े रखना। यानी भाजपा में मोदी के समानांतर कोई है, तो वह हैं आडवाणी। लेकिन 86 साल की उम्र के एक नेता से देश की बागडोर चला लेने की उम्मीद करना बेमानी है। अब न तो 1977 है, न 1989, न ही 1996। अब कांग्रेस के खिलाफ हवा किसी सामाजिक न्याय अथवा लोकतांत्रिक पहल के कारण नहीं चल रही है। अब हमारी 125 करोड़ की आबादी में से लगभग 50 करोड़ आबादी शहरी है, जो कांग्रेस के भ्रष्ट आचरण से आजिज आ चुकी है। नरेंद्र मोदी अगर भाजपा की प्रचार समिति के अध्यक्ष बने हैं, तो उनके दिमाग में भी प्रधानमंत्री का पद है। उनसे यह उम्मीद करना बेमानी होगा कि वह भी आडवाणी की लाइन पकड़ेंगे और पूरी लड़ाई जीतकर गद्दी वाजपेयी को सौंप देंगे।

यह पहली बार हुआ है कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह भी भाजपा से परेशान हैं। उनका परंपरागत वोटर भी मोदी की हवा में बह रहा है। इसकी दो वजहें हैं। एक तो मोदी ओबीसी हैं और दूसरे उनका यूनीक विकास मॉडल। आज विकास की दौड़ में गुजरात आगे निकल चुका है, वह भी तब, जब गुजरात में इंफ्रास्ट्रक्चर मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलूर की तुलना में कमजोर है। अगर वडोदरा-मुंबई का रूट हटा दिया जाए, तो गुजरात में न तो प्रकृति उदार है, न पूर्व में उसका विकास हुआ है। कच्छ और सौराष्ट्र का इलाका बेहद पिछड़ा था, लेकिन मोदी ने इस पिछड़े इलाके को भी गुलजार कर दिया है। नरेंद्र मोदी को मुसलमानों का विरोधी बताया जाता है, पर गुजरात के मुसलमान आज मोदी के मुरीद हैं। मोदी ने अपने विकास मॉडल से न सिर्फ सामाजिक न्याय के पैरोकारों की हवा निकाल दी है, बल्कि अल्पसंख्यकों को रिझाने में भी वे पूरी तरह कामयाब रहे हैं। शायद यही मॉडल आज देश चाहता है।

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...