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Monday, July 15, 2013

कोल इंडिया की छह अरब डालर नकदी दांव पर!

कोल इंडिया की छह  अरब डालर नकदी दांव पर!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कोल इंडिया की छह अरब डालर नकदी दांव पर है। भारत सरकार चाहती है कि इस नकदी का इस्तेमाल विदेशों में कोयलाक्षेत्र के अधिग्रहण के लिए किया जाये। देश के कोयलाक्षेत्रों के विकास या देश में ही कोयला उत्पादन में कोल इंडिया की भूमिका हर संभव तरीके से सीमाबद्ध करना चाहती है सरकार। पूरे कोयला स्केटरे के ही निजीकरण की योजना है। कोल बेस मीथेन गैस के उत्पादन में जिसतरह कोल इंडिया की कोई भूमिका नहीं रह गयी है और ओएनजीसी ने भी हाथ खड़े कर दिये हैं, उसीतरह कोयला उद्योग का हाल होने वाला है। सीबीएम उत्पादन अब पूरी तरह निजी क्षेत्र के हवाले है।अगर आप पेट्रोल, डीज़ल और सिलेंडर के बढ़े दामों से तिलमिलाए हुए हैं, तो  इसी कड़ी में अब आगे बिजली का बिल भी काफी बढ़ने वाला है।आयातित कोयले की उच्च लागत का जो भार भारतीय उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, उसकी वजह से उन्हें बिजली की प्रति यूनिट के लिए 3 फीसदी और भुगतान करना पड़ेगा। औसतन, भारत में मोटे तौर पर बिजली की लागत प्रति यूनिट 6 रूपए है।


जबकि देश में कोयला की मांग ऊर्जा जरुरतों के हिसाब से बेतहाशा शहरीकरण और औद्योगीकरण के साथ साथ लगातार बढ़ती जा रही है। परमाणु बिजली को लेकर अभी विवाद थमा नहीं है। सारे के सारे परमाणु बिजली घर पूरी क्षमता के साथ चालू हो जाये तो भी वे ताप बिजला घरों का विकल्प नही बन सकते। सीबीएम से प्राकृतिक गैस का विकल्प निकालना भी टेड़ी खीर है। बिजली घरों के अलावा इस्पात उद्योग को भी कोयला चाहिए। बिना कोयला इस्पात संयंत्रों का काम चल नहीं सकता ।भारत के आधे से ज्यादा बिजली स्टेशन कोयले से चलते हैं। घटती आपूर्ति की वजह से पिछले तीन सालों से घरेलू ईंधन उत्पादन में कमी का अर्थ हुआ, देश ऊर्जा हेतु लालायित भारतीय बाज़ार में आपूर्ति के लिए आयात पर ज्यादा आश्रित हो रहा है। सरकारी बिजली वितरण कंपनियां उच्च उत्पादन लागत को वहन नहीं कर पाएगीं क्योंकि उन पर पिछले बिलियन डॉलर नुकसानों का बोझ है।


"आयातित कोयले की उच्च लागत ग्राहकों के मत्थे मढ़ी जाएगी," क्रेडिट रेटिंग और शोध एजेसीं, इंडिया रेटिंग ऐंड रिसर्च के निदेशक सलिल गर्ग ने कहा।दूसरे विश्लेषकों ने कहा कि हालिया हफ्तों में डॉलर के मुकाबले रूपए में गिरावट, कोयले के आयात लागत के बोझ को और बढ़ाएगी, हालांकि पिछले वर्ष कोयले के अंतर्राष्ट्रीय दामों में 12 फीसदी तक की गिरावट देखी गई थी।


ताजा स्थिति यह है कि अकेले ताप बिजलीघरों को सालाना साठ करोड़ टन कोयले की जरुरत होती है। लेकिन आपूर्ति में कमी होने की वजह से बीस फीसद कोयले का,करीब 12 करोड़ टन का आयात किया जाता है। कोयला उत्पादन में कमी 492 टन बतायी जाती है। इन परिस्थितियों में भारत के वित्त प्रबंधन की युक्ति यह है कि कोल इंडिया अपनी छह अरब डालर की नकदी विदेशी कोयला क्षेत्र में खपा दें ताकि कोयला संकट का हल किया जाये। देशी कोयला ब्लाक कोल इंडिया को सौंपने की सरकार की कोई योजना है नहीं।जबकि रुपये में गिरावट की वजह से आयातित कोयले की लागत काफी बढ़ गई है।आयात बिल में बढ़ोतरी न सिर्फ चालू खाते के घाटे का असंतुलन बढ़ाएगा बल्कि राजकोषीय घाटे की स्थिति को भी कमजोर करेगी।  सरकार ने हाल ही में ऊर्जा कंपनियों को महंगे आयातित कोयले की लागत को आगे बिजली वितरण कंपनियों की तरफ सरकाने की स्वीकृति दे दी है, जिसके फलस्वरूप बिजली वितरण कंपनियां उपभोक्ताओं से ज्यादा लागत वसूलेगीं। निश्चित तौर पर आने वाले महीनों में बिजली के दाम बढ़ सकते हैं।



1976 में राष्ट्रीयकरण के बाद कोयला उत्पादन और कोयला कारोबार में कोलइंडिया का  एकछत्र एकाधिकार है, सरकार उसे तोड़ने के लिए कोयला नियामक बनाने के अलावा हर संभव तिकड़म लगा रही है।


दुनिया की सबसे बड़ी कोयला कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की अपनी प्रमुख खानों में अगले साल मार्च तक जीपीएस आधारित प्रणाली लगाने की योजना है ताकि कोयले की ढुलाई पर निगरानी रखी जा सके।


कोयला मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, कोल इंडिया लिमिटेड 31 मार्च 2014 तक कोयले की ढुलाई पर निगरानी के लिए जीपीएस प्रणाली स्थापित कर सकती है। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली लगाने के लिए निविदा जारी कर दी गई है। सूत्रों ने कहा कि कोयला मंत्रालय से प्रोत्साहन पाकर कंपनी ने अपनी सभी प्रमुख खानों में यह प्रणाली लगाने का विचार किया है।


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