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Thursday, July 18, 2013

कोलकाता में निरंकुश स्मृति कारोबार, बेलुड़ मठ से मां शारदा के बाल, दांत और उनकी रुद्रक्ष माला की चोरी हो गयी!

कोलकाता में निरंकुश स्मृति कारोबार, बेलुड़ मठ से मां शारदा के बाल, दांत और उनकी रुद्रक्ष माला की चोरी हो गयी!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


आपको याद होगा कि महाबोधि मंदिर में धमाके के बाद हमने इन्हीं पन्नों में बंगाल के धर्मस्थलों के अरक्षित होने के बारे में लिखा था।लिखा था खास कोलकाता के कालीघाट,दक्षिणेश्वर ,बेलुड़मठ और विभिन्न धर्मस्थलों के लावारिश हालात पर।गनीमत है कि कोई धमाका नहीं हुआ और न कोई लहूलुहान हुआ। लेकिन बंगाल,भारतदेश और दुनियाभर से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था पर गहरा जख्म हो गया। बेलुड़ मठ से मां शारदा के बाल, दांत और उनकी रुद्रक्ष माला की चोरी हो गयी। कुछ दूसरी सामग्रियों की चोरी हो जाने की खबर भी है।बेलुड़संग्रहालय से यह चोरी हुई,जहां दर्शकों का तांता लगा रहता है। इससे पहले शांतिनिकेतन से कविगुरु रवींद्रनाथ का नोबेल पदक चुरा लिया गया,जिसपर मिथुनदा की फिल्म नोबेल चोरी भी चल निकली,पर चोरों का अता पता नहीं है।


शारदा देवी (बांग्ला : সারদা দেবী ) भारत के सुप्रसिद्ध संत स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक सहधर्मिणी थीं। रामकृष्ण संघ में वे 'श्रीमाँ' के नाम से परिचित है ।21 जुलाई 1920 को शारदा देवी ने नश्वर शरीर त्याग किया। बेलुड़ मठ मेँ उनके समाधि स्थल पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है ।


जाहिर है कि रामकृष्म मिशन इस चोरी से सदमे की हालत में है। वहां इस तरह के हादसे की कोई नजीर नहीं है।चोरी भी पहली दफा हुई। बुधवार सुबह मिशन पदाधिकारियों ने बाली थाने में इस प्रकरण की रपट लिखा दी। लेकिन पुलिस को किसी सुराग लगने की खबर फिलहाल नहीं है।पुलिस ने बल्कि सीआईडी को सूचना दे दी है और सीआईडी जांच भी शुरु हो गयी है। भाली थाना के ओसी ने मौके पर पहुंचकर तफतीश की और मिशन कर्मचारियों से पूछताछ भी की।सीआईडी को खबर हुई तो उनके जासूस भी मौके पर चले आये।बुधवार की सुबह रोज की तरह संग्रहालय के उस कक्ष का दरवाजा कोलने पर कर्मचारियों ने मां की स्मृतियों को गायब पाया और तभी मिशन में कोहराम मच गया।संन्याशियों ने बी खूब खोज खबर ली। पर कहां कोई सुराग नहीं मिला।


मठ के मुख्य प्रवेश द्वार से दाखिल होते ही यह संग्रहालय है।चोरों के लिए वारदात को अंजाम देकर भाग लिकलने में कोई दिक्कत होने की बात  नहीं है।सुबह नौ बजे से लेकर दोपहर बारह बजे तक और फिर अपरान्ह चार बजे से संध्या छह बजे तक संग्रहालय दर्शकों के लिए खुला रहता है। आशंका है कि इसी अवधि में मंगलवार को चोरी की वारदात को अंजाम दिया गया होगा।


गौरतलब है कि इस संग्रहालय में मां शारदा के अलावा स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्म परमहंस की स्मृतियां भी सहेजकर रखी गयी हैं।तलाशी के बाद संग्रहालय दर्शकों के लिए फिर खोल दिया गया।


कोलकाता में स्मृति कारोबार बहुत धड़ल्ले से चलता है।विदेशी बाजार में हमारे अत्यंत आददरणीय मनीषियों या आस्था के केंद्रों की स्मृति सामग्रियां जब नीलामी पर चढ़ती हैं, तब सुर्खियां नजर आती है। पर इस कारोबार को रोकने का कोई इंतजाम देशभर में नहीं हुआ आज तक। बापू से लेकर कविगुरु तक आसान शिकार हो गये।अब मां शारदा की बारी है। क्या भारत सरकार और बंगाल सरकार मानव तस्करी के गढ़ में स्मृति तस्करी के विरुद्ध अंततः कोई कदम उठायेगी?


इन आस्था के केंद्रों पर आम श्रद्धालुओं को हाशिये पर वीवीआईपी दर्शन की परंपरा भी है। क्या ये अति महत्वपूर्ण लोग अंधे हैं जो उन्हें अपने अति विकट सुरक्षाकवच के आरपार वहां सुरक्षा इंतजामात की कोई खामी नजर नहीं आती?


रामकृष्ण मिशन अति सम्मानीय संस्था है और वहां स्वायत्त व्यवस्था भी अति उच्चकोटि की है। बेलुड़ मठ ही नहीं, रामकृष्ण मिशन के देश विदेश स्थित तमाम प्रतिष्ठानों में मिशन के स्वयंसेवक ही सीरी व्यवस्था का संचालन करते हैं और आजतक कोई अव्यवस्था नहीं हुई।ऐसे प्रतिष्ठान से सर्वोच्च सम्मान की अधिष्ठात्री मां शारदा की स्मृतियों का इस तरह चोरी चला जाना न सिर्फ रामकृष्ण मिशन की अपूरणीय क्षति है,बल्कि यह बंग संस्कृति की एक बड़ी त्रासदी है।


क्या इसके बाद अपनी स्मृतियां सहेजने के कुछ और पुख्ता इंतजामात के बारे में कोई कदम उठाया जायेगा? शांतिनिकेतन त्रासदी के बाद ही कदम उठाये गये होते तो आज इस सवाल की नौबत नहीं आती। कब तक यह सिलसिला चलेगा?


शारदा देवी

मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से
शारदा देवी
সারদা দেবী

शारदा देवी
जन्मसारदामणि मुखोपाध्धाय
22 दिसम्बर 1853
जयरामबाटी,बंगाल
मृत्यु20 जुलाई 1920 (उम्र 66)
कोलकाता
गुरु/शिक्षकरामकृष्ण परमहंस

शारदा देवी (बांग्ला : সারদা দেবী ) भारत के सुप्रसिद्ध संत स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक सहधर्मिणी थीं। रामकृष्ण संघ में वे 'श्रीमाँ' के नाम से परिचित है ।

अनुक्रम

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जीवनी[संपादित करें]

जन्म और परिवार[संपादित करें]

जयरामबाटी मेँ शारदा देवी का निवास

शारदा देवी का जन्म 22 ड़िसम्वर 1853 को बंगाल प्रान्त स्थित जयरामबाटी नामक ग्राम के एक गरीव ब्राह्मण परिवार मेँ हूआ। उनके पिता रामचन्द्र मुखोपाध्याय और माता श्यामासुन्दरी देवी कठोर परिश्रमी थे।

विवाह[संपादित करें]

केवल 6 वर्ष की उम्र मेँ इनका विवाह श्री रामकृष्ण से कर दिया गया था।

दक्षिणेश्वर मेँ[संपादित करें]

दक्षिणेश्वर स्थित नहबत का दक्षिणी भाग, शारदा देवी यहाँ एक छोटी सी कमरे मेँ रहती थीँ

अठारह वर्ष की उम्र मेँ वह अपने पति रामकृष्ण से मिलने दक्षिणेश्वर पहुचीँ। रामकृष्ण इस समय कठिन आध्यात्मिक साधना मेँ बारह बर्ष से ज्यादा समय व्यतीत कर चुके थे और आत्मसाक्षातकार के सर्बोच्च स्तर को प्राप्त कर लिए थे। वे बड़े प्यार से शारदा को ग्रहण किये और गृहस्थी के साथ साथ आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने की शिक्षा भी दिये। शारदा पवित्र जीवन व्यतीत करते हुए, रामकृष्ण की शिष्या बन गई। रामकृष्ण शारदा को जगन्माता के रुप मेँ देखते थे।1872 ई. के फलाहारीणी काली पूजा की रात को वे शारदा को जगन्माता के रुप मेँ पूजा किये। दक्षिणेश्वर मेँ आनेबाले भक्तोँ को शारदा देवी बच्चोँ के रुप मेँ देखती थी और उनकी सेवा करती थी।

संघ माता के रुप मेँ[संपादित करें]

1886 ई. मेँ रामकृष्ण के देहान्त के वाद शारदा देवी तीर्थ दर्शन करने चली गयी। वहाँ से लौटने के बाद वे अत्यन्त संकट की स्थिति में कामारपुकुर मेँ रहने लगी। उनकी यह दशा को देखते हुए रामकृष्ण के भक्त उन्हेँ कलकत्ता लेकर आ गये। कलकत्ता आने के बाद उनके जीवन मेँ परिवर्तन आया और वे दीक्षा देकर शिष्य बनाने लगी। प्रारंभिक वर्षोँ मेँस्वामी योगानन्द ने उनकी सेवा का दायित्व लिये थे।बाद मेँ स्वामी सारदानन्द ने उनके रहने के लिए कलकत्ता मेँ उद्वोधन भवन का निर्माण करबाया था।

सवकी माँ[संपादित करें]

voh sabki maa jaisi thin. kiski baat nahi talti thi. kisi ka bura na dekh, na sun, na bol sakti thin. kisi ko bhi koi bhi mushkil me padhte dekh kar use bachati thin. voh sabko apne dil ke pas rakha karti thin. sab unse bahut pyar karte thein.

आदर्श नारी[संपादित करें]

अन्तिम जीवन[संपादित करें]

शारदा देवी उद्वोधन भवन के पूजाघर मेँ

कठिन परिश्रम की दवाब और बारबार मलेरिया के संक्रमण के कारण उनका तवीयत बिगड़ता गया। 21 जुलाई 1920 को शारदा देवी ने नश्वर शरीर त्याग किया। बेलुड़ मठ मेँ उनके समाधि स्थल पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है ।

उपदेश और वाणी[संपादित करें]

Unke updesh tatha vaniyan kafi achche, labhdayak aur sahi then.

आगे अध्ययन के लिए[संपादित करें]

बाह्य सुत्र[संपादित करें]



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