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Thursday, July 18, 2013

इतने सालों बाद इशरत मामले में अपराधियों को सजा होती है तो हमें तो प्रेरित और उत्साहित ही होना चाहिये कि शायद हम भी मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को दण्डित करवा कर अपने ज़ख्मों पर मलहम लगाने में सफल हों...

ध्यानी जी, आपने बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज पोस्ट किया है. नैनीताल हाई कोर्ट की पी.सी. वर्मा और मदन मोहन घिल्डियाल की बेंच द्वारा अनंत कुमार सिंह को दोषमुक्त करने के बाद जबर्दस्त प्रतिरोध हुआ था. प्रदेश भर में धरना-प्रदर्शन बंद का सिलसिला चलने के बाद इसी बेंच ने अपना फैसला वापस ले लिया, लेकिन इसके बावजूद १ सितम्बर २००३ को उत्तराखंड भर से आये हुए आन्दोलनकारियों ने न्यायपालिका के खिलाफ नैनीताल में जैसा प्रदर्शन किया, उसकी मिसाल स्वान्त्रोयात्तर भारत में नहीं मिलती. उस वक़्त तक भी सारे आन्दोलनकारी कहते थे कि जब तक मुजफ्फरनगर के अपराधियों को सज़ा नहीं मिलती, इस राज्य का बनना-न बनना बेमतलब है. अब कोई मुजफ्फरनगर कांड को याद नहीं करता. सारे आन्दोलनकारी भी पस्त पड़ गए हैं. यह सचमुच पीड़ादायक है. मगर इस प्रकरण को इशरत जहाँ मामले से अलग करके ही देखें तो बेहतर रहेगा. इससे सन्दर्भ बिगड़ता है. यदि इतने सालों बाद इशरत मामले में अपराधियों को सजा होती है तो हमें तो प्रेरित और उत्साहित ही होना चाहिये कि शायद हम भी मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को दण्डित करवा कर अपने ज़ख्मों पर मलहम लगाने में सफल हों...
इशरत जहाँ पर पूरा राष्ट्र उद्देलित है, तमाम कोर्ट/आई.बी./सी.बी.आई./एन.ए.सी./, राजनितिक दल, भारतीय मीडिया को एक ही अत्याचार नज़र आ रहा है. उन्हें यह तक सवाल नहीं करना कि कौन थे वह मारे जाने वाले...उनकी एक मंशा है कि किसी तरह इशरत के कातिलों को जेलों के भीतर ठूंसा जाये...एन-केन-प्रकरेण...ठीक भी है न्याय तो न्याय है मिलना भी चाहिए...आज से लगभग १८ बरस पूर्व उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग के लिए किये गए आन्दोलन के इतिहास में ०२ अक्टूबर १९९४ "राष्ट्रपिता बापू की जयंती" एक काला दिवस रही है...! दिल्ली में आयोजित होने जा रही उत्तराखंड प्रदेश की मांग के लिए जाती रैली पर जो हमला किया गया उसमे १८ आन्दोलनकारियों को भोर संध्या काल में भून दिया गया...०७ महिलाओं की आबरू तार-२ कर दी गयी...दर्जनों महिलाओं के साथ अभद्रता की गयी...सैकड़ों घायल कर दिए गए...उत्तराखंड राज्य निर्माण आन्दोलन में रामपुर तिराहा (मुज़फरनगर, उ०प्र०) को उस दिवस को पुलिस/पी.ए.सी./और सा.पा./बा.स.पा. के गुंडों द्वारा किये गए उत्तराखंडियों पर हमले में गोली लगने से घायल होने की घटना आज भी उतनी ही हरी है जितनी कि उस दिन थी.......बतौर उस गोली काण्ड के घायल आन्दोलनकारी के रूप में मुझे अफ़सोस है कि जिनको 'गाँधी जयंती' पर किये गए अनाचार, व्यभिचार, बलात्कार, हत्याओं और मानव अधिकारों की खुली धज्जियाँ उड़ाने के लिए सजा मिलनी चाहिए थी...उन्हें इशरत जहाँ पर गले फाड़ रही व्यवस्था के अंगों ने साफ़ बचा लिया...सवाल है की क्यूँ?....आखिर रामपुर तिराहा (मुज़फरनगर, उ०प्र०) काण्ड की जांच का दायित्व क्या हमारी इसी सी.बी.आई. द्वारा नहीं किया गया...क्या हमारी इसी सी.बी.आई. की अदालत ने सभी अपराधियों को बरी नहीं कर दिया...क्या यही राजनीतक दल हमारे ऊपर हुए अत्याचार पर खामोश नहीं बने हुए हैं.....क्या इशरत जहाँ के बनस्पत हम राष्ट्र भक्त 'उत्तराखंडियों' के खून की कोई कीमत नहीं है....क्यूँ है क्या किसी के पास जवाब है इन सवालों का...?

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