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Sunday, July 21, 2013

माकपा भी कारपोरेट चंदे के भरोसे!

माकपा भी कारपोरेट चंदे के भरोसे!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


अब तक माकपा का दावा रहा है कि उसकी राजनीति कारपोरेट चंदे से नहीं चलती।गौरतलब है कि माकपा नेता एवं तत्कालीन  राज्यसभा सदस्य सीताराम येचुरी ने कभी मांग की थी  कि केवल लोकपाल विधेयक लाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि कारपोरेट जगत से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर भी रोक लगाई जानी चाहिए।लेकिन बंगाल में पार्टी का बैंक खाता विमान बोस और निरुपम सेन के नाम होने और उसमें 16 करोड़ के खुलास के बाद ममता बनर्जी के जबर्दस्त आक्रमण से बचाव के लिए पार्टी ने लेन देन का जो ब्यौरा सार्वजनिक किया है उससे यही साबित होती है कि कामरेडों की राजनीति भी कारपोरेट कृपा से चलती है।दूसरी बुर्जुआ पार्टियों की तरह भारत में क्रांति की झंडेवरवरदार मेहनतकश जनता की संसदीय राजनीति कारपोरेट चंदे से ही चलती है।इस चंदे की आवक नियमित है ,जिससे पार्टी अभी आर्थिक संकट में नहीं है। जाहिर है कि बंगाल, केरल और त्रिपुरा में सत्ता की फसल काटने में कोई कोताही नहीं की कामरेडों ने।


नई दिल्ली स्थित गोपलन भवन के मुख्यालय से जो आधिकारिक खुलासा हुआ है,उसके मुताबिक  माकपा को 2011-12 वित्तीय वर्ष के दौरान बीस हजार या उससे अधिक चंदा देने वालों की सूची में कम से कम दो दर्जन कारपोरेट नाम हैं। जिनमें रियल्टी, दवा, सीमेंट, इंजीनियरंग संस्थाओं के साथ साथ मालाबार गोल्ड लिमिटेड कंपनी भी है,जिन्होंने भारत में क्रांति के लिए लाखों रुपये चंदे में दिये।ऐसा चंदा देने वालों में आभूषण कंपनी, बड़े आलीशान होटल,रियल स्टेटेकंपनी और निजी अस्पताल भी शामिल हैं।यह सूची आंध्रप्रदेश इकाई की ओर से लिये गये चंदे की है।बंगाल,केरल और त्रिपुरा की सूची अभी जारी नहीं हुई है।इन सूचियों की अब बेसब्री से प्रतीक्षा की जा रही है।


माकपा ने  पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर आरोप लगाया कि उन्होंने पार्टी की राज्य इकाई के बैंक खाते के आधार पर उसके खिलाफ 'मानहानि अभियान' चलाया है।माकपा पोलितब्यूरो ने एक बयान में कहा कि वरिष्ठ नेताओं बिमान बसु और निरूपम सेन के नाम पर खुला एसबीआई खाता 'उनका निजी खाता नहीं हैं बल्कि माकपा की पश्चिम बंगाल राज्य समिति का खाता है।'


पंचायत चुनाव की एक रैली को संबोधित करते हुए तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने इन खातों की जांच की मांग करते हुए पूछा था, 'अब, चोर कौन है?' माकपा के राज्य नेताओं ने तब कहा था कि खातों के बारे में कुछ भी गोपनीय नहीं है।


राज्य के वरिष्ठ नेता माकपा रोबिन देब ने कहा, 'यह सब जानते ही हैं कि हमारी पार्टी के फंड में पार्टी के सांसदों, पार्षदों, काउंसिलरों और यहां तक कि कार्यकर्ताओं द्वारा भी धन जमा किया जाता है। इससे हमारी पार्टी को चलाने में मदद मिलती है।'


इस बीच मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की पश्चिम बंगाल इकाई के सचिव बिमान बोस ने माना कि पार्टी ने उनके और एक अन्य पोलितब्यूरो सदस्य के नाम पर बैंक खातों में धनराशि रखकर गलती की है। बोस ने कहा, 'खातों में पूरी पारदर्शिता है और अतीत में हमने जब भी रिटर्न फाइल किया हमने इस बात की जानकारी चुनाव आयोग को दी।' वह अपने और निरूपम सेन के नाम पर बैंक में खातों 16 करोड़ रुपए होने और उनमें पारदर्शिता नहीं होने पर सफाई दे रहे थे। उन्होंने कहा, 'ये खाते माकपा की प्रदेश समिति के हैं न कि हमारे।' उन्होंने इन खातों पर सवाल नहीं खड़े करने के लिए बैंक को दोषी ठहराते हुए कहा, 'वर्ष 2001 में जब शैलेन दासगुप्ता का निधन हुआ तब हमने बैंक को भेजे पार्टी के लेटर पैड में निरूपम सेन का नाम लिया था। बैंक को यह मुद्दा उठाना चाहिए और आपत्ति करनी चाहिए थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।' इससे पहले ममता बनर्जी ने केंद्र पर राष्ट्रीयकृत बैंक में प्रदेश के दो शीर्ष माकपा नेताओं के खातों में 16 करोड़ रुपए की धनराशि होने पर आंखें बंद रखने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था, 'क्या केंद्र देख नहीं सकता। क्या उसे मोतियाबिंद हो गया। (या फिर) माकपा के लिए उसका गहरा प्यार है?' उन्होंने उत्तरी 24 परगना जिले में पंचायत चुनाव बैठक में कहा, 'यदि कोई अन्य व्यक्ति घर में एक लाख रुपया रखता तो आयकर और सीबीआई ने धमकी के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया होता। आपका और हमारा क्या होता।'


पिछले साल एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स और नेशनल इलेक्शन वाच ने 23 बड़ी पार्टियों के आय की रिपोर्ट जारी की !जिसके मुताबिक  आश्चर्यजनक तौर पर, माकपा की कमाई 2004-2011 के बीच 417 करोड़ रुपये रही जिनमें ज्यादातर योगदान 20 हजार रुपये से कम का योगदान देने वाले व्यक्तियों का रहा।माकपा बसपा की 484 करोड़ रुपये की कमाई के थोड़ा ही पीछे रही जबकि अन्य बड़े वाम दल भाकपा ने केवल 6.7 करोड़ रुपये कमाए।


इसके विपरीत देश के राजनीतिक दलों ने 2004 के बाद से चंदा और अन्य स्रेतों से 4,662 करोड़ रुपये की कमाई की है। दो एनजीओ ने दावा किया कि 2,008 करोड़ रुपये की कमाई के साथ सत्तारूढ़ कांग्रेस सूची में शीर्ष पर है जबकि मुख्य विपक्षी दल भाजपा 994 करोड़ रुपये की कमाई के साथ दूसरे पायदान पर है।


आयकर रिटर्न और 2004-2011 के दौरान चुनाव आयोग को दानकर्ताओं की दी गई सूची के आधार पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स और नेशनल इलेक्शन वाच ने 23 बड़ी पार्टियों के आय की रिपोर्ट जारी की।उन्होंने कहा कि 2004 के बाद राजनीतिक दलों की आय में लगातार बढ़ोतरी देखी गई। इन आंकड़ों में कहा गया कि कांग्रेस की आय 2,008 करोड़ रुपये है जो कि 2004 से 2011 के दौरान केंद्र की सत्ता संभालने के बीच मुख्यत: 'कूपनों' की बिक्री के माध्यम से आई। दानकर्ताओं से कमाई का अंश महज 14.42 फीसदी रहा। कांग्रेस के दानकर्ता अडानी इंटरप्राइजेज, जिंदल स्टील और वीडियोकोन एपलाएंसेंस भी रहे।


एनजीओ ने कहा कि इसके उलट, भाजपा की कुल 994 करोड़ रुपये की कमाई का 81.47 फीसदी हिस्सा कारपोरेट घरानों और लंदन स्थित वेदांता सहित बड़ी कंपनियों के मालिकाना हक वाले ट्रस्टों से आया।एनजीओ ने कहा कि अधिकतर राजनीतिक दलों की आय का मुख्य स्रेत चंदा और स्वैच्छिक योगदान रहा। उन्होंने कारपोरेट घरानों द्वारा संचालित चुनावी न्यासों के कामकाज में और पारदर्शिता की मांग की। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को लोक प्राधिकार घोषित किया जाना चाहिए। एडीआर ने कहा, यह राजनीतिक दलों का ब्लैक बॉक्स है। इस देश में भ्रष्टाचार का मूल स्रेत राजनीतिक चंदा है। राजनीतिक चंदे का नियमन कर हम भ्रष्टाचार को खत्म तो नहीं कर सकते लेकिन बहुत हद तक कम कर सकते हैं।


दिलचस्प यह रहा कि टोरेंट पावर लिमिटेड और आदित्य बिरला समूह के जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को चंदा दिया। जीईटी ने कांग्रेस को 36.4 करोड़ रुपये दिए जबकि भाजपा को उसने 26 करोड़ रुपये का चंदा दिया। पब्लिक एंड पोलिटिकल अवेयरनेस सेंटर ने भी भाजपा को 9.5 करोड़ रुपये दिए। एनजीओ ने इस सेंटर के वेदांता से जुड़े होने का दावा किया।कांग्रेस और भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों को जहां बड़े कारपोरेट घरानों और न्यासों से चंदा मिला, द्रमुक जैसे क्षेत्रीय दलों ने अपने पार्टी समर्थकों से लाखों रुपये का चंदा पाया।


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