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Saturday, July 6, 2013

शीर्ष नेताओं में अगर शत्रुता का स्थाईभाव बना रहे तो समर्थकों की उग्रता पर अंकुश पाना अदालती हस्तक्षेप और सुरक्षा इंतजाम के बूते नामुमकिन है।

शीर्ष नेताओं में अगर शत्रुता का स्थाईभाव बना रहे तो समर्थकों की उग्रता पर अंकुश पाना अदालती हस्तक्षेप और सुरक्षा इंतजाम के बूते नामुमकिन है।


नये सिरे से माओवादी हिंसा की दस्तक के मध्य आर्थिक बदहाली और ठप उद्योग कारोबार के माहौल में सुधार की कोई संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आती।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल में पंचायत चुनाव का नतीजा चाहे कुछ हो, अखबारी समीक्षा के मुताबिक सत्तादल की जीत हो या पराजित पक्ष की वापसी की दस्तक हो, बंगाल के आम नागरिकों को शायद कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। अराजक आत्मघाती हिंसा की चपेट  में गांव गांव घर घर जो कुरुक्षेत्र का मैदान बना है, उसके मद्देनजर अदालती हस्तक्षेप हो या चाहे केंद्रीय वाहिनी की सुरक्षा, हिंसा की यह सुनामी थमने वाली नहीं है। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के लिए मतदान 11, 15, 19, 22 और 25 जुलाई को होना है।पंचायत चुनावों को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) की तरफ से आयोजित सर्वदलीय बैठक में तृणमूल कांग्रेस ने शिरकत नहीं की जिसके बाद विपक्षी दल कांग्रेस और माकपा ने सत्तारूढ़ दल पर संवैधानिक संस्था के अपमान का आरोप लगाया।


मतदान के वक्त या नतीजे आने तक सुरक्षा इंतजाम हो भी तो खून की नदियों का बहाव थम जायेगा, ऐसी उम्मीद बहुत कम ही है। पूरे बंगाल को केंद्रीय वाहिनी या सेना के हवाले करके अनिश्चित काल तक आम जनता में घर कर गयी दहशत और असुरक्षा का माहौल खत्म करना अब असंभव है।


नये सिरे से माओवादी हिंसा की दस्तक के मध्य आर्थिक बदहाली और ठप उद्योग कारोबार के माहौल में सुधार की कोई संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आती। पंचायत चुनाव में हार जीत से राजनीतिक समीकरण बदलेंगे नहीं, लेकिन इन चुनावों के बहाने राज्य की जनता के बीच जो अभूतपूर्व वैमनस्य का परिवेश बनने लगा है, उसमें सांसें लेना भी मुश्किल हो रहा है।


प्रगतिशील उदार बंगाल में अल्पसंक्यकों और बहुसंख्यकों के बीच जो अमन चैन का माहौल है, उसके बंटाधार होने काखतरा पैदा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी जिस तरह रमजान में चुनाव को मुद्दा बनाकर अल्पसख्यक वोटबैंक पर कब्जे के लिए धुआंधार राजनीति सभी पक्षों की ओर से हो रही है और जिसतरह रमजान में वोट के लिए एक दूसरे को जिम्मेवार ठहराने की प्रतियोगिता चल रही और जिस तरह बदला लेने का खुला आह्वान किया जा रहा है, उसके परिणाम बेहद घातक होंगे। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार को पंचायत चुनाव में देरी करने के लिए आड़े हाथ लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई से प्रस्तावित पांच चरणों के चुनाव कार्यक्रम में किसी प्रकार का बदलाव करने से इंकार कर दिया। न्यायालय ने पिछले हफ्ते ही पंचायत चुनाव पांच चरणों में 11,15,19,22 और 25 जुलाई को कराने का निर्देश दिया था।


न्यायमूर्ति ए के पटनायक और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने रमजान की अवधि के मद्देनजर पंचायत चुनाव 10 जुलाई से पहले या फिर नौ अगस्त के बाद निर्धारित करने की पश्चिम बंगाल सरकार और कुछ गैर सरकारी संगठनों का अनुरोध ठुकरा दिया।न्यायालय ने कहा कि वह मुस्लिम समुदाय की भावनाओं का सम्मान करता है लेकिन पंचायतों का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इनके चुनाव कराने के सांविधानिक प्रावधानों की अनदेखी नहीं की जा सकती है।


लेकिन रमजान के अवसर पर मतदान को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाकर धार्मिक ध्रूवीकरण करने के अपने प्रयासों में पक्ष विपक्ष की राजनीति सुप्रीम कोर्ट केफैसले की ही धज्जियां उड़ाने में लगे हैं।


गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट  ने कहा कि इससे पहले चुनाव की तारीखें निर्धारित नहीं की जा सकती हैं क्योंकि केंद्र सरकार दस जुलाई से पहले सुरक्षा बल मुहैया कराने में असमर्थता व्यक्त कर चुकी है।न्यायाधीशों ने राज्य सरकार और गैर सरकारी संगठनों से जानना चाहा, ''क्या हमें (तारीखों में बदलाव करके) संविधान का उल्लंघन करना चाहिया या फिर बगैर सुरक्षा के ही चुनाव की अनुमति देनी चाहिए।''


सीधी सी बात है कि राजनीतिकदलों के शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर संवाद और बधुंत्व का माहौल बनाने के लिए अभी से पहल नहीं हुई तो राजकाज भी अनचाहे व्यवधान से बाधित होता रहेगा और इससे सबसे ज्यादा नुकसान निवेश के माहौल पर होगा।


निवेशकों की आस्था अगर टूट गयी, तो राज्य में उद्योग और कारोबार का माहौल हमेशा के लिए खत्म होगा। कोई पैकेज बंगाल को बदहाली से निकाल पायेगा , इसकी संभावना नहीं है।राजनीतिक सहमति के बिना विकास की संभावना शून्य है।


शीर्ष नेताओं में अगर शत्रुता का स्थाईभाव बना रहे तो समर्थकों की उग्रता पर अंकुश पाना अदालती हस्तक्षेप और सुरक्षा इंतजाम के बूते नामुमकिन है।इसका खामियाजा बाधित विकास परियोजनाओं के मार्फत राज्यवासी भुगत रहे हैं।


पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग पर एकतरफा निर्णय लेने का आरोप लगाते हुए राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने आयोग की ओर से शनिवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में हिस्सा नहीं लिया। तृणमूल के महासचिव और राज्य के संसदीय मामलों के मंत्री पार्था चटर्जी ने संवाददाताओं से कहा, "हमने शुक्रवार को ही राज्य निर्वाचन आयुक्त मीरा पांडे को फैक्स कर दिया था कि हम बैठक में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। वह चुनाव को लेकर एकतरफा निर्णय ले रही हैं। उनका रवैया शिष्टाचार के खिलाफ है।"


चटर्जी ने कहा, "उन्होंने अपनी मर्जी से मतगणना की तिथि 29 जुलाई निर्धारित की। यदि हमने आयोग की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेता तो यह उनके एकतरफा निर्णयों को हमारी मंजूरी होती।" चटर्जी ने हालांकि कहा कि उनकी पार्टी शांतिपूर्ण चुनाव के पक्ष में है। उन्होंने कहा, "हम सभी पक्षों से शांतिपूर्ण चुनाव सुनिश्चित कराने की अपील करते हैं।" सर्वदलीय बैठक में हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया, लेकिन वामपंथी दलों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसमें शामिल हुई। तृणमूल कांग्रेस के बैठक में नहीं पहुंचने के कारण यह आधे घंटे की देरी से शुरू हुई।


बैठक में शामिल होने वाले विपक्षी दल कांग्रेस और माकपा ने तृणमूल कांग्रेस की अनुपस्थिति पर आश्चर्य जताया और इसे अभूतपूर्व बताया। बैठक के बाद कांग्रेस नेता मानस भूइयां ने कहा, 'यह अभूतपूर्व है। मेरे राजनीतिक जीवन के 40 साल में हमने सर्वदलीय बैठक में सत्तारूढ़ दल को अनुपस्थित नहीं देखा है। यह एसईसी जैसे संवैधानिक संस्था का अपमान है।'


मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार पर पंचायत चुनाव को लेकर लोगों को डराने-धमकाने और चुनावी व्यवस्था को चुनौती देने का आरोप लगाया।


माकपा के राज्यव सचिव राबिन देब ने पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ कांग्रेस पर माकपा के कार्यकर्ताओं की हत्या करवाने का आरोप भी लगाया। देब ने कहा, "हमने राज्य निर्वाचन आयोग से मांग की है कि मोटरसाइकिल से घूम-घूमकर गांवों में लोगों को डराने वाले तृणमूल कांग्रेस के निष्ठावान अराजक तत्वों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए।"


राज्य में पंचायत चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेने के बाद देब ने संवाददाताओं से कहा, "पंचायत चुनाव की घोषणा होने के बाद से अब तक वामपंथी दलों के 18 कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है। अन्य दलों के कार्यकर्ता भी मारे जा रहे हैं।"


उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है। देब ने कहा, "राज्य सरकार चुनाव व्यवस्था तथा राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारों को चुनौती दे रही है। सरकार का रवैया तानाशाहीभरा है। वह सर्वोच्च न्यायालय तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णयों को भी मानने के लिए तैयार नहीं है।"


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