नागरिक सेवाओं के बिना असुरक्षित तेज शहरीकरण से तबाह लोग!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल में उद्योग और कारोबार का हाल जो भी हो, शहरीकरण बहुत तेज हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन नागरिक सेवाओं के बिना असुरक्षित शहरीकरण से तबाह हैं लोग, इसमें भी दो राय नहीं हो सकती। बंद कल कारखानों की जमीन पर आवासीय कालोनियां बन गयी हैं तो खेती की जमीन पर महानगर कोलकाता और हावड़ा, दुर्गापुर, मालदह, सिलीगुड़ी,आसनसोल जैसे बड़े शहरों के साथ साथ छोटे शहरों और कस्बों का बहुत तेज विस्तार हुआ है।
जमीन और आवासीय परिसर की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। कोलकाता का भूगोल उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम चारों तरफ विस्तृत हुआ है। कोलकाता से जुड़े हावड़ा, बारासात, बारुईपुर, सोनारपुर से लेकर कल्याणी तक अंधाधुंध शहरीकरण हुआ है। राजमार्गों के किनारे कहीं एक इंच जमीन खाली नहीं है। सर्वत्र निर्माण और विस्तार की धूम मच गयी है। यही हालत दुर्गापुर,मालदह, मुर्शिदाबाद, सिलीगुड़ी, शांतिनिकेतन और आसनसोल की है। लेकिन नगर निगमों और पालिकाओं की ओर से नये आवासीय इलाकों की बात तो रही दूर साल्टलेक, राजारहाट और लेकटाउन जैसे आवासीय इलाकों में जनसुविधाओं का पर्याप्त इंतजाम नहीं किया गया है।
सबसे ज्यादा दिक्कत कानून व्यवस्था की है। इन इलाकों में लोग नागरिक सुविधाओं से वंचित तो होते ही हैं, उनकी सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम ही नहीं होते। शहरीकरण के साश साथ पुलिस इंतजाम हुआ नहीं है। थानों में न जवान है और न गाड़ियां। बाजार तो है नहीं, इसलिए आवासीय परिसरों और कालोनियों के आसपास सड़कें अमूमन सुनसान रहती हैं। गश्त लगती ही नहीं।न वारदात होने पर पुलिस तत्काल पहुंच पाती है। इन कालोनियों में अपराधकर्म सबसे आसान कर्म है।
कालोनी के भीतर और सड़कों पर दिनदहाड़े अपराध बन जाने के बाद सुर्खियां तो बन जाती हैं, लेकिन मामला ठंडा हो जाने के बाद फिर सन्नाटा। ऐसा कोलकाता ,हावड़ा, बारासात से लेकर दुर्गपुर और सिलीगुड़ी तक में खूब हो रहा है, जिसका कोई इलाज नहीं है।
कोलकाता में साल्टलेक, लेक टाउन और राजारहाट सबसे ज्यादा असुरक्षित इलाके हैं। विधाननगर कमिश्नरेट बन जानेके बावजूद पुलिस की जरुरतें पूरी नहीं हुई हैं।
बैरकपुर कमिश्नरेट बन जाने के बावजूद बैरकपुर शिल्पांचल और बारासात में अपराधकर्म न कम हुए हैं और न नागरिक सुरक्षित हैं।इन्हीं इलाकों में शहरीकरण की सबसे ज्यादा धूम है। बढ़ती आबादी के मुताबिक न सुरक्षा इंतजाम हैं और न नागरिक सुविधाएं।
बारासात इलाका तो अपराधकर्मियों का मुक्तांचल बन गया है।
साल्टलेक में तमाम सरकारी कार्यालय स्थांतरित हो जाने, अस्पातालों में भारी आवाजाही, युवाभारती खेल का मैदान और सेक्टर फाइव होने के बावजूद उसी मुताबिक न सुरक्षा इंतजाम बढ़ा है, न यातायात के साधन बढ़े हैं, न बिजली पानी निकासी की व्यवस्था ठीक हुई है और न दूसरी नागरिक सुविधाएं हैं।
विडंबना तो यह है कि अतिमहत्वपूर्ण लोगों के इलाका साल्टलेक का यह हाल है। बाकी जगह लोग कैसे जीते है, अंदाजा लगाया जा सकता है।
हावड़ा जिले में कोलकाता पश्चिम इंटरनेसनल सिटी के अंधेरे में डूबे अधूरे आवासीय नगर को बंगाल के शहरीकरण का प्रतीक बतौर देखें तो तमाम नये आवासीय इलाकों में जहां अब तीस चालीस लाख के फ्लैट आम दर हैं, वहां भी वाशिंदो को कब्जा मिलने के बावजूद न सड़कें हैं और न पेयजल का इंतजाम।
इन शहरों को आपस में जोड़ने वाली सड़कों का काम भी लटका हुआ है। गति नदारद है। रेल परियोजनाओं के पिछड़ जाने और जमीन संकट की वजह से सड़कों के विकास का लटक जाने से हालत और खराब हुई है। मेट्रो लाइन बन जाने से राजारहाट, साल्ट लेक , लेकटाउन से लेकर दक्षिणेश्वर बैरकपुर और बारासात में यातायात की भारी प्रगति हो सकती थी। कोलकाता ईस्ट वेस्ट रेललाइन बनने पर हावड़ा की कच्छप चाल भी तेज हो सकती थी। यह मामला लटक गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार की आठ सौ करोड़ की दो दो परियोजनाएं अटकी हुई हैं। जिसपर वित्तमंत्री चिदंबरम में चिंता जता गये है।
आवास संकट तेज होने की वजह से खासतौर पर कोलकाता में राजारहाट, साल्टलेक और लेकटाउन में सरकारी कार्यालयों तक पहुंचने के मद्देनजर बहुत तेजी से आवासीय कालोनियां बनी है।
उत्तर व दक्षिण के उपनगरों में भी बहुत तेज है आवासीय कालोनियों का निर्माण। लेकिन इन कालोनियों क मुख्य सड़क से जोड़ने वाली सड़कें बनाये बिना फ्लैट्स हस्तांतरित हो रहे हैं।
यही कथा कमोबेश आसनसोल, दुर्गापुर, मालदह और सिलीगुड़ी की भी है।
ज्यादातर इलाकों में पेयजल का कोई इंतजाम है ही नहीं। कोलकाता नगर निगम, हावड़ा नगरनिगम समेत नगरनिगम और पालिकाओं के मौजूदा ढांचे में इतने तेजी से बन रही आवासीय कालोनियों के लिए पेयजल की व्यवस्था करना लगभग असंभव है, जबकि पुराने इलाकों में वर्षों से पेयजल की समस्या बनी हुई है।
नये जलाधार बन नहीं रहे हैं और पुराने जलाधारों की आपूर्ति क्षमता मांग पूरी नहीं कर सकती।
सबसे विकट है निकासी की समस्या। बरसात होते न होते जगह जगह पानी औरगंदगी का सैलाब उमड़ रहा है। ऩयी आवासीय कालोनियों में निकासी व्यवस्था नहीं के बराबर है। प्रोमोटर के सब ठीक हो जाने का आश्वासन के बाद एकबार फ्लैट में घुस जाने के बाद फिर प्रोमोटर के दर्सन ही नहीं होते। हालत कभी ठीक होती ही नहीं है।
तमाम आवासीय कालोनियों के विज्ञापनों में खेल के मैदान, जिम, पार्क, स्कूल, चिकित्सालय, यातायात और आपातसेवाओं के सब्जबाग दिखाये तो जरुर जाते हैं , पर वे अक्सर हकीकत की जमीन पर नहीं होते।
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