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Thursday, August 29, 2013

हजारों आदिवासियों ने किया माता मरियम के आदिवासी रूप का विरोध

हजारों आदिवासियों ने किया माता मरियम के आदिवासी रूप का विरोध

सरना आदिवासियों ने माता मरियम की वेषभूषा को आदिवासी रूप में दिखाने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा माता मरियम के स्वरूप को असली रूप में नहीं दिखाने से सौ साल बाद हमारे लोग यही समझेंगे कि मरियम का स्वरूप ऐसा ही था...

राजीव

'सरना एकता जिंदाबाद', 'धर्मांतरण की नयी नीति वापस लो' के नारे के साथ राजधानी रांची के धुर्वा से लेकर सिंगपुर ग्राम का माहौल 25 अगस्त को धार्मिक क्रांति में बदल गया. सरना धर्म रक्षा यात्रा में झारखंड के कोने-कोने से आए सरना धर्मावलंबियों ने अपनी धर्म की रक्षा के लिए आवाज बुलंद की.

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लगभग 15 हजार सरना आदिवासी द्रविड़ आश्रम सीठियो, धुर्वा से चलकर सिंगपुर पहुंचे. इस यात्रा में हजारों-हजार की संख्या में महिलाएं, बच्चे एवं वृद्ध महिला-पुरूष भी शामिल थे. सिंगपुर पहुंच कर सभी यात्री एक सभा में तब्दील हो गए जिसका नेतृत्व बंधन गुरू, प्रोफेसर प्रवीण उरांव, मेघा उरांव, प्रेमषाही मुंड़ा तथा कई अन्य कर रहे थे.

उल्लेखनीय है कि सिंगपुर चर्च में स्थापित मदर मरियम की विवादित लाल पाड़ की साड़ी पहने शिशु यीशु को लिये प्रतिमा को हटाकर दूसरी प्रतिमा को स्थापित करने की मांग आदिवासियों के 27 संगठनों ने सामूहिक रूप से की है. सभा में माता मरियम की असली प्रतिमा हाथों में थामे हुए लोग मांग कर रहे थे कि माता मरियम के इसी स्वरूप के अनुसार सिंगपुर चर्च की प्रतिमा हो.

यात्रा में शामिल भारी संख्या में आदिवासी संयमित होकर पैदल चर्च की ओर बढ़ते रहे, लेकिन नया नचियातू सीठियो के पास प्रशासन ने यात्रा को रोक दिया. बाद में इन आदिवासियों की भीड़ खाली मैदान में सभा के रूप में तब्दील हो गयी.

सभा की शुरूआत जय सरना, जय चाला मांच जय सिंगबोंगा एवं जय धर्मेश की उदघोषणा के साथ की गयी. धर्मगुरु बंधन तिग्गा ने सभा को संबोधित करते हुए इस लड़ाई को सरना धर्म बनाम वेटिकन बताते हुए कार्डिनल तेलस्फोर की आलोचना की. कहा कि वे वेटिकन से संचालित हैं और हमारी लड़ाई वेटिकन से है. हमारा संघर्ष लंबा है जिसे हम शांतिपूर्ण तरीके से सड़क से सदन तक ले जायेंगे.

अपने संबोधन में उन्होंने सरना धर्म कोड के लिए लड़ाई पर भी एकजुट होने का आह्वान किया. इस विरोध सभा में कई प्रस्ताव जैसे आदिवासियों का धर्मातंरण बंद हो, आदिवासियों के धार्मिक-सामाजिक भूमि सरना मसना, हड़गड़ी, देशवली, पहनई, महतौई, पइनभौरा, डालीकतरी को धर्मांतरित ईसाई स्वतः छोड़ें, ईसाई मिशनरी चर्च में करमा, सरहुल पर्व मनाना बंद करें और पारम्परिक विधि-विधान से छेड़छाड़ बंद करें.

आदिवासी से ईसाई में धर्मांतरित लोग सरना धर्म में वापस आयें, अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से हटाकर ईसाईयों को अल्पसंख्यक घोषित करें. जाति प्रमाणपत्र निर्गत करने में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अक्षरशः पालन हो आदि पारित किया गया.

विरोध सभा के नेतृत्वकर्ताओं ने कहा कि यदि सरकार सरना धर्मावलंबियों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर रही ईसाई मिशनरियों पर अंकुश नहीं लगाती है, तो विधि व्यवस्था की समस्या पैदा होगी. उसके लिए शतप्रतिशत ईसाई मिशनरी, सरकार एवं प्रशासन जिम्मेवार होगा. कार्यक्रम में सामूहिक रूप से कहा गया कि समस्त बिन्दुओं का अनुपालन नहीं होने पर ईसाईयों को मानकी मुंडा, डोकलो सोहोर, मांझी परगनैत, पड़हा राजा जैसी सामाजिक व्यवस्था के अंतगर्त जात बाहर कर दिया जाएगा. सभा की समाप्ति अनादि प्रार्थना से की गयी.

केन्द्रीय सरना समिति के अजय तिर्की ने कहा कि माता मरियम की वेशभूषा बदली नहीं जाने की सूरत में 25 दिसंबर को विरोध का नया शंखनाद फूंका जाएगा. इसमें एक लाख की संख्या में आदिवासियों को शामिल किया जाएगा. झारखंड सरना समिति अध्यक्ष मेघा उरांव ने आदिवासियों को भरमाने वाले चालबाजों को सबक सिखाने की बात कही.

बी सागर करकेट्टा ने माता मरियम की वेषभूषा को आदिवासी रूप में दिखाने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि माता मरियम के स्वरूप को असली रूप में नहीं दिखाने से सौ साल बाद हमारे लोग यही समझेंगे कि मरियम का स्वरूप ऐसा ही था. आदिवासी छात्र संघ के प्रोफेसर सतीश भगत ने राज्य के सभी सरना आदिवासियों से धर्मक्रांति के लिए तैयार रहने का आह्वान किया.

rajiv.jharkhand@janjwar.com

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