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Wednesday, September 18, 2013

बाबागीरी का बाजार

बाबागीरी का बाजार

Wednesday, 18 September 2013 09:26

हेमंत शर्मा
जनसत्ता 18 सितंबर, 2013 : जीवन में संन्यास का भाव एक न एक बार जरूर जन्मता है। मैं पचास साल का हुआ तभी बाबा बनना चाहता था। लेकिन पत्नी ने ऐसा नहीं करने दिया। इधर इस इच्छा ने दुबारा जन्म लिया है। जीवन से आनंद तत्त्व गायब हो रहा है। नौकरीपेशा जीवन मुश्किल हो गया है। प्याज-टमाटर भी पहुंच से बाहर है। इस उत्तर-आधुनिक दौर में धर्म का धंधा सबसे चंगा है। इस पर न सेंसेक्स गिरने का असर पड़ता है, न रुपए के लुढ़कने का। मजा यह कि आयकर के बड़े-बड़े अफसर आकर आपके पैरों पर गिरेंगे। सीबीआइ वाले आपके शिष्य होंगे। बड़े-बड़े धन्नासेठ धन मुहैया कराने को तैयार होंगे। यानी बिना हर्र-फिटकरी के रंग चोखा! 
धर्म का हजारों करोड़ का कारोबार है। करोड़ों साधक झांसे में रहते हैं। ये लोग सब कुछ धर्म के साथ बेचते हैं। धर्म बेचने के लिए इनकी वेबसाइट होती है। नेट के जरिए समागम की अग्रिम बुकिंग होती है। कइयों के पास अपने जहाज हैं। टीवी पर कोला कंपनियों की तरह ये बाबा अपना विज्ञापन भी करते हैं। जरीदार गाउन पहन कर व्यास पीठ पर ऐसे विराजते हैं मानो साक्षात भगवान हों। इनके प्रवचन के लिए वातानुकूलित पंडाल बनते हैं। वह दिन दूर नहीं, जब ये बाबा लोग अपने प्रवचनों के लिए चीयर गर्ल रख लें! 
इन बाबाओं में कोई संत, कोई बापू, भगवान, महाराज, महामंडलेश्वर, तो कोई जगद्गुरु के नाम से जनता को उल्लू बना रहा है। इनका संतई से कोई लेना-देना नहीं है। इनकी तुलना कबीर, नानक, तुकाराम, नामदेव, मीरा, पल्टू, रैदास, बोधा, आलम, पीपा से नहीं की जा सकती। ये सभी संत श्रम कर पेट पालते थे। गरीबों और वंचितों के बीच रह कर समाज को रास्ता दिखाते थे। कभी आपने उनके नाम के आगे संत, भगवान, जगद्गुरु, महामंडलेश्वर लगा देखा है? न तो इन कथित बाबाओं के पास निजामुद्दीन औलिया, तैलंग स्वामी, लाहिड़ी महाशय जैसी आध्यात्मिक चेतना है, न ये धर्म का दार्शनिक पक्ष जानते हैं। केवल धर्म का अर्थशास्त्र इनके समझ पड़ता है। बाबागीरी के इस 'बिग बाजार' में आप धर्म, पाखंड, कृपा, योग, ज्योतिष, भविष्य और न जाने क्या-क्या खरीद सकते हैं। कोई समोसे की चटनी के साथ कृपा बांट रहा है, तो कोई एकांत में युवतियों का इलाज करता है। कोई बाबा शरीर के एक छेद से हवा खींचने और दूसरे से छोड़ने का इलाज बता कर तो कोई जीवन जीने की 'कला' बता कर करोड़ों की कमाई कर रहा है। 
सोचता हूं कि धर्म, दर्शन और कुतर्क तो मैं भी इनसे ज्यादा जानता हूं! मैंने बचपन में कचहरी के सामने ताकत की दवाई और दूसरे सामान बेचने वाले शब्दों के कई जादूगर देखे थे, जो बाद में बाबा बन गए। मेरे साथ पतंग उड़ाने वाले एक मित्र भी आजकल बड़े रसूख वाले बाबा हैं। कॉलेज में साथ पढ़े एक मित्र तो अचानक सामाजिक जीवन से गायब हो गए। पिछले दिनों वे मुझे विएना में मिले। बड़े भारी कथावाचक बाबा बन गए हैं। आगे-पीछे देशी-विदेशी अनुचर, शिष्याएं और हजारों की भीड़। मेरी आंखें चौंधिया गर्इं। धर्म की राजनीति जबसे परवान चढ़ी है, बाबा उद्योग दिन दूना रात चौगुना बढ़ा है। 

भारत की जनता धर्मप्राण है। इसलिए हर आदमी का एक देवता और एक गुरु या बाबा है। इसी वजह से हमारे यहां ढेर सारे बाबा और तैंतीस करोड़ देवता हैं। जब देश आजाद हुआ था तो आबादी तीस करोड़ थी और देवता तैंतीस करोड़। सबके हिस्से 1.10 देवता आए। इसी माहौल का फायदा उठा कर ढेर सारे असामाजिक लोग बाबा बन जाते हैं। अयोध्या में तो बाबा बनने का अलग किस्सा है। अलग-अलग जगहों से भगोड़े आश्रमों में आते हैं, महंत के पांव दबाते हैं और संत बन जाते हैं। फिर एक रोज वही संत महंतजी का गला दबा कर महंत बन जाते हैं। यानी पांव दबा कर संत बने, गला दबा कर महंत! 
बहरहाल, एक 'बापू' जेल की हवा खा रहे हैं। कई और बाबाओं पर बलात्कार के आरोप हैं। दक्षिण के एक बाबा की तो तमिल अभिनेत्री के साथ हरकतों की सीडी पिछले दिनों जारी हुई थी। दिल्ली में एक 'इच्छाधारी बाबा' पकड़ा गया। दिल्ली पुलिस का आरोप था कि यह इच्छाधारी देह व्यापार का अड्डा चलाता था। यह तो सुना था कि बाबा धर्म की दुकान चलाते हैं, बाबा राजनीति करते हैं। पर बाबा सेक्स रैकेट चलाते हैं। बाबा रे बाबा! पाखंड और कपट देखिए कि जो बाबा ईश्वर की सीधी एजेंसी लिए भक्तों को झांसा देते हैं, वेदांत सिखाते हैं, वे खुद कितने लाचार हैं कि जब कुकर्म में पकड़े जाते हैं तो खुद को 'नामर्द' बताने लगते हैं। वे चाहे आसाराम हों या नित्यानंद! 
कबीर कहते हैं- 'साधो ये मुरदों का गांव। पीर मरे पैगंबर मरिहैं, मरिहैं जिंदा जोगी। राजा मरिहैं परजा मरिहैं, मरिहैं बैद और रोगी!' तो 'संतो', धर्म का यह कारोबार, जमीन पर कब्जा, महिलाओं के साथ लीला क्यों? कभी सोचा है कि आपका यह यश किस रूप में सुरक्षित रहेगा?

 

 

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