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Sunday, July 5, 2015

For Immediate publication as updates to follow!जिस नीली झील की रोशनियों में नहाती मछलियों की फिक्र थी हमें आज फिर वह लहूलुहान है।

जिस नीली झील की रोशनियों में नहाती मछलियों की फिक्र थी हमें आज फिर वह लहूलुहान है।

राजीव दाज्यू ने लिखा हैः

आज सुबह 5.30 बजे नैनीताल की प्रख्यात मालरोड के ये हाल थे....भारत चीन सीमा की कोई सड़क हो मानो। छिटपुट टूटफूट और पेड़ गिरने से एक व्यक्ति के मरने का समाचार है। अभी ऊँचाई वाले इलाकों की ही स्थिति साफ नहीं है कि कितना नुकसान हुआ, आख़िर यह दर्जनों ट्रक मलबा आसमान से तो नहीं ही गिरा. दूरस्थ क्षेत्रों के न जाने क्या हाल हैं ?

अंग्रेज़ बेवकूफ थे क्या ?

हे माँ नयना....माँ नन्दा-सुनन्दा 1880 की पुनरावृत्ति न करना माता !


पलाश विश्वास


हम जब नैनीताल के डीएसबी में पढ़ते थे तो किंवदंती यह थी कि जब कहीं किसी की मौत होती है तो नीली झील का जल का रंग गाढ़ा लाल हो जाता है।वह गाढ़ा लाल रंग हम खूब दखते रहे हैं।अब चूंकि वह नीली झील केसरिया है तो कहना मुश्किल है कि मर रहे हिमालय के नासूर बनते जख्मों के सिसलिसे में कभी वह लाल गंग में तब्दील होने वाली नीली झील है या नहीं अब।


इस नीली झील की रोशनियों में हमराे हसीन ख्वाबों का कारोबार रहा है और हमारा सेनसेक्स और निफ्टी उन्ही लहरों में है।


सुबह जनसत्ता मुंबई में हमारे पुराने साथी पुण्य प्रसूण वाजपेयी की टिप्पणी सत्ता के आतंक बाबत पढ़ने के बाद बाकी कतरनों और जूठन से तोबा करके पीसी के मुखातिब था तो दिल लहूलुहान था पहले से।


ख्वाबों पर पहरा का लिंक शेयर करने चला तो वज्रपात सर पर।


जिस नीली झील की रोशनियों में नहाती मछलियों की फिक्र थी हमें आज फिर वह लहूलुहान है।


राजीव दाज्यू ने लिखा हैः

आज सुबह 5.30 बजे नैनीताल की प्रख्यात मालरोड के ये हाल थे....भारत चीन सीमा की कोई सड़क हो मानो। छिटपुट टूटफूट और पेड़ गिरने से एक व्यक्ति के मरने का समाचार है। अभी ऊँचाई वाले इलाकों की ही स्थिति साफ नहीं है कि कितना नुकसान हुआ, आख़िर यह दर्जनों ट्रक मलबा आसमान से तो नहीं ही गिरा. दूरस्थ क्षेत्रों के न जाने क्या हाल हैं ?


कल देर रात अमलेंदु को फोन किया था कि मीडिया पर अंग्रेजी में लिखा मंतव्य दोबारा भेज रहा हूं,उसे देख लें कि इस पर गौर जरुर करें कि कैसे नंगे राजा के शूट बूट पर लिखने सोचने की मनाही है।


फिर उससे कहा कि नेपाल में फिर आया भूकंप,नेपाल के अपडेट हम देते रहे हैं रियल टाइम में।मूसलाधार जब बरसे हो मानसून जो इस महादेश के किसानों के लिए नियामतों और बरकतों की फसल हो और प्यारभरे आशियाना में दिलों में जो आग लगा दें,वे हमेसा हानीमून की बरसात नही होती और न किसी नरगिस के छाते के नीचे होता है समूचा हिमालय और हिमालयी लोग,इसकी तमीज हमें रही है।


पिता होंगे राजीव नयन बहुगुणा के सुंदरलाल बहुगुणा,लेकिन वे हमारे बी बहुत कुछ है,जो हिमालयी ग्लेशियरों की सेहत की फिक्र है अब उनकी बाकी बची जिंदगी,वहीं से बनता है मेरे वजूद का खून यकीनन।


हम जानते हैं कि केदार जलआपदा और नेपाल का महाभूकंप कोई आखिरी भूकंप नहीं है।अभी अभी चीन में हुए भूकंप के चार चार हजार झटके हुए।वहां जान माल का नुकसान हो या न हो,पूरा हिमालय बाहर भीतर टूटता है हर झटके के बाद और हर झटके के साथ किरचों की तरह बिखरता है हमारा दिल क्योंकि हम किसी हिंदूराष्ट्र में कैद नहीं है।


फतवा हमारे खिलाफ जो हो ,सच है कि हम इस महादेश के नागरिक हुए।


हम चीन से लेकर अफगानिस्तान,म्यामार से लेकर सिंगारपुर सुमात्रा जावा से लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश,नेपाल से लेकर मालदीव श्रीलंका में पसरी अपने स्वजनों के भूगोल में लगातार लगातार लहूलुहान हो रही इंसानियत और कायनात पर बरपती कयामतोें के सिलसिले में सचमुचो अब्दुल्ला दीवाना है।


इस बरसात में भाबर के रामनगर में जो भूस्खलन की तस्वीरें आयीं,जैसे दार्जिलिगं के मिरिक और कालिंपोंग के इर्द गिर्द भूस्खलन से टूटते हिमालय की गोद छोड़कर कहीं और सुरक्षित स्थान ले जाने की आवाजें परेशां करती रही हमें,तबाही का वह मंजर मेरी आंखों के दरम्यान एक खौफनाक लहूलुहान इंद्रधनुष बन गया।


हम झेलम की कगारों के टूटने से डूब में शामिल कशमीर घाटी के दर्द में उतने ही शरीक है,जितने सीमेंट के जंगल में कैद सिक्किम की बेचैन जिस्म के लिए,उतना ही महादेश के पहरुए गोरखों के लिए,फिर हिंदू राष्ट्र बनने को बेताब नेपाल के चप्पे चप्पे की खबर है हमें इन दिनों और जिस देवभूमि में आस्था नहीं रही कभी हमारी ,जिसके चारधामों के आगे सर हमने कभी नहीं नवाये और न किसी नदी में कभी पुण्यस्नान किया,उस हिमालय के एक एक इंच जमीन की धंसान पर हर आपदा के साथ मौत हमारी भी होती है और फिर कौन क्या मरेगा हमें,मरे हुओ को जो मारे ऐसे बुरबक भी कौन।


जिस नीली झील से मुहब्बत की है टूटकर अब तलक जो मुहब्बत पूंजी है,उसी के जिस्म पर इतने जख्म और इतना दुर्मुख मैं भी कि इन दिनों जो लिख रहा हूं जो चेता रहा हूं लगातार,वही हकीकत बनकर कहर बरपा रहा है मेरे हिमालय के चप्पे चप्पे में।इससे बेहतर तो यह कि हम मर जायें कि कितनी कयामतों के हम फिर चश्मदीद बनकर जीते रहे नपुंसक जिंदगी इसतरह।


राजीव लोचन साह ज्यू ने लिखा है फेसबुक वाल परः

आज सुबह 5.30 बजे नैनीताल की प्रख्यात मालरोड के ये हाल थे....भारत चीन सीमा की कोई सड़क हो मानो। छिटपुट टूटफूट और पेड़ गिरने से एक व्यक्ति के मरने का समाचार है। अभी ऊँचाई वाले इलाकों की ही स्थिति साफ नहीं है कि कितना नुकसान हुआ, आख़िर यह दर्जनों ट्रक मलबा आसमान से तो नहीं ही गिरा. दूरस्थ क्षेत्रों के न जाने क्या हाल हैं ?

पुनश्च :

पहाड़ खोद कर दानवाकार निर्माण कर डाले, मलबे को बहने के लिये खुला छोड़ दिया, अंग्रेजों के बनाये सवा सौ साल पुराने गधेरों की साफ़-सफाई तो नहीं ही की, खड़े पनकट्टे वाली पैदल और घोडिया सड़कों को भी वाहनयोग्य बनाने के लिये कंक्रीट कर खतरनाक विशाल गधेरों में तब्दील कर डाला. यह तो होना ही था.

अंग्रेज़ बेवकूफ थे क्या ?

हे माँ नयना....माँ नन्दा-सुनन्दा 1880 की पुनरावृत्ति न करना माता !

मुझे विकास के उन पैरोकारों से डर लग रहा है माता, जो अब फण्ड लाने के लिये एडीबी की शरण में भागेंगे!

Rajiv Lochan Sah's photo.



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