मि अधिग्रहण नहीं धरती माता की जय भूमि अधिकार चाहिए
शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव अमर रहें
वक़्त आने पे बता देगें तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताए क्या हमारे दिल में है......
शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव शहीद दिवस
के मौके पर भूमि, वनाधिकार एवं श्रमाधिकार रैली, अमवार, दुद्धी सोनभद्र, उ0प्र0
23 मार्च 2015
प्रिय साथियों,
आज शहीद दिवस है, आज से 84 साल पहले तीन क्रांतिकारी नौजवानों भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव ने शहादत प्राप्त की थी। शहादत से पहले इन क्रांतिकारी साथीयों ने कहा था कि'' अंग्रेज़ों की जड़े हिल चुकी है ये 15-20 साल में यहां से चले जाएगें, समझौता हो जाएगा, पर इससे जनता को कोई लाभ नहीं होगा, काफी साल अफरा तफरी में बीतेंगें इसके बाद लोगों को हमारी याद आएगी।'' साथीयों आज सच में वह समय आ गया है जब हमें इन शहीदों की बाते याद आ रही है। उनकी शहादत कोई जज्बाती मामला नहीं था बल्कि उन्होंने आज़ादी का एक क्रांतिकारी राजनैतिक कार्यक्रम बनाया था जिसमें मुख्य बिन्दु था जमींदारी प्रथा को समाप्त करना और ब्रिटिश हुकुमत का प्राकृतिक संसाधनों पर एकाधिकार मउपदमदज कवउंपद को समाप्त करना जिसके तहत उन्होंने साम्राज्यवाद पर हमला बोला था। आज 84 साल बाद भी इस देश के मेहनतकश, काश्तकार, ग़रीब किसान, खेतीहर मज़दूर, भूमिहीन व जल-जंगल-जमींन पर निर्भरशील महिलाए साम्राज्यवाद का हमला वैश्विक पूंजीवाद के रूप में झेल रही है। हमारे राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री ने भूमि अध्यादेश को पारित कर हमें उपनिवेशिक काल की एक बार फिर से याद दिला दी है जिसमें भूमि और जंगल को कम्पनियों को लूटने का भरपूर मौका दिया जा रहा है। 24 फरवरी 2015 को संसद मार्ग नई दिल्ली में संसद भवन के सामने प्रस्तावित भूमि अधिकार संशोधित (बिल) कानून के विरोध में लगभग 350 आंदोलनकारी जनसंगठनों के हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। जिसकी संसद के दोनों सदनों में आवाज बुंलद होकर गूंजी और विपक्षी दलों ने वाक आउट किया। इस बिल के खिलाफ पूरे देश में अब विरोध प्रदर्शन चल रहा हंै। जबकि संसद में इसके ऊपर इस सत्र में बहस भी जारी है। इस विरोध प्रदर्शन के आयोजक संगठनों के प्रतिनिधियों की एक विशेष बैठक 13 मार्च 2015 को नई दिल्ली में हुई, जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि अब यह आन्दोलन केवल भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ही नहीं बल्कि किसी भी परियोजना के अधिग्रहण के खिलाफ, भूमिहीन, बेघर, किसान, मजदूरों और शहर में झुग्गी-झोपडि़यों में रहने वाले करोडों गरीब व महिलाओं के भूमि पर मालिकाना हक के लिए एक अभियान के रूप में जारी रहेगा व 23 मार्च का शहीद दिवस देश के कोने-कोने में भूमि, वनाधिकार एवं श्रम अधिकार दिवस के रूप में मनाया जायेगा और इस काले कानून के विरोध में संगठित प्रदर्शन और सम्मेलन किये जायंेगे। इसके साथ ही कई वामदलों एवं स्वतंत्र श्रमिक संगठनों के नवर्निमित अखिल भारतीय लोक मंच ।प्च्थ् ने 16 मार्च को जंतर मंतर पर भी यहीं निर्णय लिया है।
साथीयों कनहर नदी पर जो बांध गैरकानूनी ढंग से बांधा जा रहा है उसे हमें मजबूती से विरोध करना है। यह हमारे आस्तित्व की लड़ाई है हमारे भविष्य हमारी पीढ़ीयों की सुरक्षा है जिसे हम किसी भी सूरत में सौदा नहीं कर सकते। हमें ध्यान रखना होगा कि हम सरकार और इनके दलालों के बहकावे में न आए व केवल मुआवज़े के रूप में अपने संघर्ष को न देखें। यह संघर्ष केवल और केवल गांव, जमींन, जंगल व अपनी आगे आने पीढ़ीयों को बचाने का संघर्ष है इसलिए इस मुददे पर हमें अपनी समझ साफ करनी है व अपने आप को विस्थापित, डूब क्षेत्र में आने वाले एवं मुआवज़ा पाने वाले जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना है। पूर्व में अगर कोई मुवाअज़ा सरकार द्वारा दिया भी गया है तो वो अब मान्य नहीं है व उसकी बात हमें नहीं करनी है। हमें केवल अपनी धरती मां को बचाने की मुहिम को तेज़ कर छतीसगढ़ व झाड़खंड़ के सभी प्रभावित गांवों में संपर्क कर ज्यादा से ज्यादा महिला शक्ति को एकजुट कर इस गैरकानूनी बांध को बनने से रोकने का काम करना है।
साथीयों एक मिथक प्रचार चल रहा है कि '' कनहर बांध बनाओ और हरियाली लाओ'' यह प्रचार सरकार, सपा पार्टी के विधायकों, सांमत यहां तक की मानवाधिकार पर काम करने वाली उ0प्र0 यूनिट के पी0यू0सी0एल तक यह प्रचार किया जा रहा है। जरा इनसे कोई ये पूछे कि क्या इन्हें मालूम है कि कैमूर क्षेत्र सबसे प्राचीनतम पर्वत श्रखंला का हिस्सा है व यहा पर अति दुलर्भ वनस्पति की प्रजातियां पाई जाती है जो कि प्रदेश के सबसे घने जंगल व सबसे बड़े वनसम्पदा के रूप में आंकड़ों में दिखाया जाता है। इसलिए ये लोग किस हरियाली की बात कर रहे हैं ये सवाल इनसे पूछा जाना चाहिए? गैरकानूनी कनहर बांध परियोजना एक बहुत बड़ा घोटाला है जिसकों बनाने के लिए सरकार के पास किसी भी प्रकार का फंड़ नहीं है। सरकार व इस क्षेत्र के विधायकों को यह बताना होगा कि यह '' हरियाली लाओ'' का नारा है या '' कैमूर क्षेत्र को रेगिस्तान बनाओ'' का नारा है। 10 मार्च 2015 को राष्ट्रीय महिला दिवस क्रांतिज्याति सावित्री बाई फूले के परिनिर्वाण दिवस पर हम लोग 2500 की संख्या में पैदल चल कर अमवार धरना स्थल से दु़द्धी नगर तक आए व सरकार को चेतावनी देने का काम किया कि वह काम रोके अन्यथा इस काम को स्वयं संघर्षशील जनता द्वारा रोका जाएगा। ज्ञापन मुख्यमंत्री के नाम सौंपा गया था व तुरंत इसके बाद 12 मार्च को रार्बटसगंज विधायक अविनाश कुशवाहा हमारे धरना स्तल पर पहुंचे। दो महीने में यह पहला अवसर था जब सरकार के एक विधायक आंदोलनकारीयों से बातचीत करने के लिए धरने पर पहुंचे। लेकिन इस समस्या का हल नहीं बल्कि उन्होंने आंदोलनकारीयों को धरना समाप्त करने की गुहार की व जनसंगठनों के बहकावे में न आने को कहा। यह भी कहा कि वे जल्द ही मुख्यमंत्री से आंदोलनकारीयों की भेंट कराएगें। लेकिन आज तक वे अपने वादे पर खरे नहीं उतरे। वैसे भी इतने दिनों में सपा के विधायकों द्वारा जनता के पक्ष को जानने तक की कोशिश नहीं की गई व प्रशासन द्वारा 23 दिसम्बर 2014 को किए गए आक्रमण में आंदोलनकारीयों पर जो फर्जी मुकदमें लादे गए उसपर आज तक जांच तक नहीं बिठाई गई। बल्कि सरकार द्वारा प्रशासन का ही समर्थन किया जाता रहा व कनहर नदी के किनारे बसे तमाम गांवों को झूठा ठहरा दिया गया।
साथीयों जिस साम्राज्यवाद से लड़ते हुए क्रांतिकारी नौजवानों ने आज से 84 साल पहले शहादत दी थी उसी अभियान को हमें ज़ारी रखना होगा। क्योंकि यह सरकारें फिर से साम्राज्यवादी ताकतों को हमारे उपर राज करने के लिए हम पर थोप रही है। वैसे भी इस क्षेत्र में रिहंद बांध से विस्थापित लोग कई बार विस्थपित किए जा चुके हैं ऐसे में विस्थापन की त्रासदी झेल चुके इस क्षेत्र में एक और गैरकानूनी बांध परियोजना का अखिर औचित्य क्या है? कनहर बांध परियोजना के गैरकानूनी कार्यो को भी रोकना होगा जो कि प्रदेश सरकार मनमाने ढंग से ग्राम पंचायतों की अनुमति के बिना भूअधिग्रहण करने पर आमादा है। यह परियोजना 1984 में त्याग दी गई थी इस परियोजना के लिए उस समय जो भी फंड आए थे उन्हें दिल्ली के एशियन खेल में स्थांनतरित कर दिया गया था। इस परियोजना के तहत जो भी भूमि अधिग्रहण उस समय हुआ वह संविधान व 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 24(2) के मंशा के विपरित है। जिसमें कहा गया है कि अगर भूअधिग्रहण परियोजना कार्यो के लिए उपयोग नहीं किया गया तो उस भूमि को उसके वास्तिविक काश्तकारों को लौटाना होगा। कनहर सिंचाई परियोजना सरासर गैरकानूनी व अवैध परियोजना है जो कि एक बहुत बड़ा घोटाला है व और कुछ नहीं। इस परियोजना को चालू करने की मियाद तक खत्म हो चुकी है, उ0प्र0 की अखिलेश यादव सरकार द्वारा इस परियोजना की शुरूआत करना कानून सम्मत नहीं है जबकि इस परियोजना को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अुनमति नहीं है व राष्ट्रीय ग्रीन टीब्यूनल ने भी इस पर रोक लगा रखी है व अभी भी यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है। वहीं वनाधिकार कानून 2006 के तहत भी यह परियोजना अब बिना ग्राम सभा की सहमति के लागू नहीं हो सकती। इस के बारे में मुख्यमंत्री महोदय को हमारे बीच में आ कर हमसे सीधे बात करनी होगी।
इसलिए एक बार फिर हमें नई आज़ादी के लिए अपने संघर्षो को तेज़ करना है व सरकार के नापाक इरादों को अमर शहीदों को याद करते हुए नई क्रांति की शुरूआत करनी है। इसी मौके पर हमारे सभी साथी जो कनहर बांध से प्रभावित है या नहीं है सब 23 मार्च 2015 को सुबह 11 बजे अमवार बाज़ार में एकत्रित हो कर अमर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए सरकार से पूछेगें कि अभी तक हमसे बातचीत क्यों नहीं की गई। इस मौके पर हमें धरना स्थल से बाज़ार तक एक विशाल रैली भी निकालनी है इसलिए ज्यादा से ज्यादा संख्या में शामिल हों।
इंकलाब जिन्दाबाद!
शहीदों की मज़ारों पर लगेंगेे हर बरस मेले
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा
-शहीद रामप्रसाद बिस्मिल
कनहर बांध विरोधी संघर्ष समिति, कैमूर क्षेत्र मज़दूर महिला किसान संघर्ष समिति,
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन
Ms. Roma ( Adv)
Dy. Gen Sec, All India Union of Forest Working People(AIUFWP) /
Secretary, New Trade Union Initiative (NTUI)
Coordinator, Human Rights Law Center
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press,
Tagore Nagar
Robertsganj,
District Sonbhadra 231216
Uttar Pradesh
Tel : 91-9415233583,
Email : romasnb@gmail.com
http://jansangarsh.blogspot.com
Coordinator, Human Rights Law Center
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press,
Tagore Nagar
Robertsganj,
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