बाजार में बिकते हुए
बामसेफ भवन को नये अध्यक्ष की तलाश और गांधी जैसे हश्र की चेतावनी भी जारी
सिर्फ नाम टांके लायक नामवा चाहि तो कपड़ा उपड़ा बाजार मा मस्त ह,देह त घुसलल के नाही घुसलल,का फर्क पैंदा के हम्माम में नंगो का कार्निवाल है।
पलाश विश्वास
हम तमाम चेतावनियों के बावजूद अपने इस बयान पर कायम हैं कि इस देश में राजनीति बेनकाब बेवफा है चूंकि तो साम्राज्यवादविरोधी आवाम का मोर्चा अनिवार्य है।
साम्राज्यवादविरोधी आवाम का मोर्चा अनिवार्य अस्मिताओं के आर पार।
साम्राज्यवादविरोधी आवाम का मोर्चा अनिवार्य विचारधाराओं के आर पार।
साम्राज्यवादविरोधी आवाम का मोर्चा अनिवार्य भूगोल के आर पार।
चाहे हमारे अंबेडकरी मित्र अंबेडकरी आंदोलन से मुझे वैसे ही खारिज कर दें जैसे बहुत पहले हमारे वामपंथी मित्र कर चुके हैं।
हालांकि वामपंथियों से अब भी मित्रता बनी हुई है।
अंबेडकरी आंदोलन का सबसे बड़ा सामाजिक यथार्थ लोकतंत्र का निषेध है।
अंबेडकरी आंदोलन का सबसे बड़ा सामाजिक यथार्थ विचार,संवाद और विमर्श का निषेध है।
अंबेडकरी आंदोलन का कुल जमा किस्सा फतवाबाज खाप पंचायत है,मुझे अब कहना ही होगा।
मुझे अब कहना ही होगा कि अंबेडकरी आंदोलन ने न आदिवासियों की,न उनके जल जंगल जमीन की और न उनकी बेदखली की परवाह की है और न पुरुष वर्चस्व को तोड़ने की कोई पहल की है।मुझे अब कहना ही होगा।
मुक्त बाजार,निजीकरण,विनिवेश,विनियमन,अबाध पूंजी प्रवाह के खिलाफ अंबेडकरी आंदोलन में सन्नाटा है।
अंबेडकरी आंदोलन जनसंहारी केसरिया कारपोरेट राजकाज के खिलाफ न सिर्फ खामोस है,बल्कि उसमें साझेदार बनने के लिए बहुजन समाज के सारे संसाधन झोंक रहे हैं और बहुजनों के सारे राम हनुमान हैं।
अंबेडकरी आंदोलन में भी फिर वही स्त्री उत्पीड़न है निरंतर।किस न्याय और समता की बात कर रहे हैं अपेन घर,परिवार और समाज में स्त्री को देह तक सीमाबद्ध बनाकर.यह मुझे अब पूछना ही होगा।
इसी बीच लिखते लिखते चैटिंग के मार्फत महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय में एम फिल कर रही हमारी युवा मित्र उपासना गौतम से बातचीत जो है,वह हूबहू पेश है।
lekin thik iske viprit communism mai bhi dalitvad ko lekar aisi istithi bani hui hai ve bhi jati ke sawal par mon rahte hain ar natratv ki jabbat ati hai to savarn hi age hote tab ap kya kahenge mujhe lagta hai ap bios nhi honge hai n
ISILIYE HUM VAMPANTH KO BHI MUKTI MARG NAHI MAANTE.HUM AAPSE SAHAMAT HAI.hUM JANPAKSH NAYE SIRE SE GADHNE KI BAAT KAR RAHE HAI JO AMBEDKAR KE VOICHARO KE MUTABIK HO AUR JISME GANDHI KA WAH MORCHA BHI HO AUR BAAM CADRE BASE BHI HO
halat khin bhi puri tarah se thik nhin hain to usme improve karna padega
EKADAM SAHAMAT
hUM TO CHATE RAHE HAIN KI BAHUJAN SAMAJ SE BADLAV KI PAHAL HO LEKIN HUM BAHUJAN SAMAJ KO SADAK PAR UTAR NAHI PAA RAHE HAI KI WE SATTA KE DUKAVDARON KE KABJE MEIN HAIN
bahral badlave ki is muhim mai mai apke sath hun
SAAT NAHI,HUMEIN AAPKA NETRITVA CHAHIE,SAAT BAHUT DE CHUKI HAIN AB NETRITVA KARO
iT IS VERY VERY IMPORTANT,MY DEAREST YOUNG FRIEND AND i AM USING THIS CHATTING TO HIGHLIGHT THE ISSUE LIVE
अगर अंबेडकरी मित्र गांधी की प्रासंगिकता पर हमारी चर्चा से इतने नाराज हैं कि हमसे नाता तोड़ लेना बेहतर समझते हों तो तोड़ लें नाता।
हम जो कहत रहे सो कहत रहे कि गांधी भारतीय जनता के संयुक्त मोर्चा के नेता रहे हैं।और उनकी इस भूमिका का नये सिरे से मूल्यांकन होना चाहिए।
देश विभाजन के असली खलना.कों का किस्सा हमने खूब लिखा है चाहे तो अंग्रेजी बांग्ला या हिंदी में मेरा पुराना तमाम लिखा पढ़ लें।
अब हम पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे।
देश जब बिक रहा है,जब हमारे लोग बेमौत मारे जा रहे हैं,जब अश्वमेध के घोड़े हमारे दिलो दिमाग को रौंद रहे हैं,जब हत्यारो के मंदिर बन रहे हैं।जब खेत खलिहान कत्लगाहों में तब्दील हैं।हम हरगिज चुप नहीं रहेंगे।
हम पार्टीबद्ध कभी नहीं रहे हैं और न होंगे।
न हम सत्ता की राजनीति में हैं और न सत्ता के समीकरण में हैं हम।
एक साल तीन महीने रिटायर करने को है,फिर बिना छत सड़क पर होंगे हम,इसीके मध्य कोई हमारी गर्दन छह इंच छटा कर दें तो बड़ी कृपा हो जाई कि मुक्त बाजारे बिना बिके जीने का झंजटे खत्म हो जाई चैतू।
सिर्फ नाम टांके लायक नामवा चाहि तो कपड़ा उपड़ा बाजार मा मस्त ह,देह त घुसलल के नाही घुसलल,का फर्क पैंदा के हम्माम में नंगो का कार्निवाल है।
छत्तीसगढ़ से रंगकर्मी निसार अली ने मुक्तिबोध को उद्धृत करके मेरी दिनचर्या की शुरुआत कर दी आज।
पीसी पर बैठते न बैठते यह मुक्तिबोधी धमाका हो गइल।
का चैतू,मोर बाप, जान लिबो का।
दस लाख का सूट जौन ह,उकर खातिर मुक्तिबोध की कविता किस काम की बै चैतू,सोच।
करोड़पति अरबपति मालिक मलकियान फैशन स्टेटमेंट दिमाग मा घुसड़ल बानि। हमउ तो हैवो नाट आहे।
अापण गांव बसंतीपुर मा पीटर इंग्लैंड,रिबोक,नाइके का धूम रहिस।
सुसरे बाजार में बिकल जो आदमी,वही आगरा बाजार जइसन आदमी नाही कि नजीर साहेब कोई नज्म लिक्ख मारे।
जेल जात वानी सगरे नेता,उकर फैशन स्टेटमेंटवा देखिके दिमाग का भुरता बन जायी।
जौन जनता बाकीर उहे जो करोड़पति अरबपति बिरादरी बाहर,उनर मा धर्मांध सगरे जो हैव आउर हैवनाट होइखे,उनर नाही कोई प्राब्लम।
सिर्फ नाम टांके लायक नामवा चाहि तो कपड़ा उपड़ा बाजार मा मस्त ह,देह त घुसलल के नाही घुसलल,का फर्क पैंदा के हम्माम में नंगो का कार्निवाल है।
बामसेफ भवन,पुणे में हमारे पुराने मित्र हैं अमित खांडेकर।बेहद गउ इंसान।बेहद प्रतिबद्ध।उनने एक सर्वेक्षण जारी किया हैः
Amit Khandekar
हम सोशल मीडिया में बामसेफ भवन के मूलनिवासी प्रकाशन से जुड़े अमित यह सर्वे देखकर चौंके हैं कि अमित खंडेकर के सवाल से बेहद चौके हैं कि साथियों,अगर भविष्य में आपको सक्षम राष्ट्रीय अध्यक्ष की जरुरत पेड़े तो आप किसको पंसद करोगेः1अड राहुल मखरे 2 मा .कुमार काले 3 मा.प्रो विलास खरात 4 मा.प्रदीप आंबेडकर
राष्ट्रीय अध्यक्ष और चारों विकल्प मराठी।
का हुई गवा बामसेफवा मा।बिना साहेब की इजाजत के कोी होलटाइमर बामसेफ भवन से यह सर्वे करा रहा है अगर तो इस लोकतंत्र का स्वागत है।
हम अस्मिता को तोड़ने की बात कर रहे हैं और हम जाति उन्मूलन के एजंडे पर कायम हैं और हम जनसंहारी मुक्तबाजार के खिलाफ भी है और इसीलिए हम बामसेफ से बाहर भी हैं।जाहिर है कि बामसेफ के मामले में टांग फंसाना उचित नहीं होगा।
बामसेफ में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है और हम साम्राज्यवादी मुक्तबाजारु जनसंहारी नस्ली व्यवस्था के खिलाफ बेवफा राजनीति से अलग जनता को संयुक्त मोर्चा बनाना चाहते हैं,जिसमें अंबेडकरियों के साथ बाकी विचारधाराों के लोग भी शामिल हों।इसलिए बहुजनसमाज से हमारा संवाद तो जारी रहना है ,जिसके बिना हम न आंदोलन के बारे में सोच सकते हैं और न प्रतिरोध के बारे में।
जाहिर है के बहुजन समाज के खून पसीने और उसके संसाधनों से गढ़े हुए बामसेफ के मामले में हम लोग तमाशबीन भी बने नहीं रह सकते जबकि बामसेफ भवन अब सार्वजनिक तौर पर नेतृत्व बदल के लिए सर्वे कराने लगा है तो यह समझना ही होगा कि किस दिशा को जा रहा है बामसेफ।
हम पहले से जान रहे थे कि गांधी की भूमिका और भारतीय जनता के साम्राज्यवाद विरोधी मोर्चे के सिलसिले में गाधी की प्रासंगिकता की चर्चा अंबेडकरी विचारधारा से लैस हमारे मित्रों को नागवर लग रही होगी और वामपंथियों को भी।
हमारे रिफ्यूजी लोग भी आयं बायं प्रतिक्रिया दे रहे हैं जैसे नाथूराम ने बड़ा पुण्यकर्म किया है ,जैसे भारत के विभाजन के जिम्मेदार गांधी हैं,जैसे नाथूराम ने बारत विभाजन से पहले गाधी की हत्या कर दी होती तो भारत का विभाजन ही नहीं होता।
हम विभाजन पीड़ित शरणार्थियों का यह दर्द समझते रहे हैं और बचपन में गुरुदत्त की देश की हत्या समेत तमाम रचनाएं इस दर्द में पढ़ भी चुके हैं।
हमारे ताउजी तो सौ साल की उम्र तक जीते हुए संघ परिवार के ही साथ बने रहे सिर्फ इसलिए कि उनने भारत विभाजन के लिए गांधी और जवाहर को कभी माफ नहीं किया।
कल हमने हस्तक्षेप में छपे अपने रोजनामचा हे राम!वैष्णव जन तेने कहिये…के साथ नवभारत टाइम्स की खबर पोस्ट कीः
अब देशभर के मंदिरों में गोडसे की मूर्तियां लगाने की तैयारी
हिंदू महासभा देशभर के मंदिरों में गोडसे की मूर्तियां लगाने की प्लानिंग कर रही है...
NAVBHARATTIMES.INDIATIMES.COM
इस पर हमारे पुराने मित्र अमित खांडेकर जो अत्यंत भद्र हैं जैसा हम उन्हे पिछले दस साल से जानते रहे हैं,उनने जो टिप्पणी की वह भयानक है।ऐसी टिप्पणी चूंकि बामसेफ भवन,बामसेफ मुख्यालय पुणे में रह रहे एक होल टाइमर ने की है तो उसका तात्पर्य समझना मेरे लिए मुश्किल है।
वे मराठीभाषी हैं और उनने लिखा हैः
Amit Khandekar ऐसा लगता है कि फिर किसी को गांधीजी कि तरह मारणा चाहते है और इसके लिये कोई नथुराम गोडसे कि तरह आगे आये और इनका काम करे …. इसीलिये नथुराम नथुराम कर रहे है
विभाजन के हकीकत के बारे में हमने सिलसिलेवार लिखा है।
अब अंबेडकरी आंदोलन की दशा दिशा यह है कि देश काल परिस्थिति से भिन्न उऩका अंध भक्ति है या फिर अंध आक्रोश।
कोई चिंतन मनन विचार विमर्श की गुंजाइश भी नहीं है।
संघ परिवार के बजरंगी चाहे जो बोले संघ परिवार के स्यंसेवक बेहद मीठे बोलते हैं।
बामसेफ प्रकाशन का कामकाज संभाल रहे अमित जी के इस मंतव्य के बाद मुझे गंभीरता पूर्वक सोचना पड़ेगी कि आखिर अंबेडकरी जनता के साथ कोई संवाद की गुंजाइश है या नहीं जो विचार विनिमय से कहीं ज्यादा गाली गलौच की भाषा में बात करके अंबेडकर विचारधारा और अंबेडकरी आंदोलन जय भीम,नमो बुद्धाय और जय मूलनिवासी कहकर सारा मामला ,सारी समस्याओं का निपटारा कर देते हैं और फेसबुक पर बाबासाहेब और भगवान बुद्ध का फोटो और कोटेशन पोस्ट करके समझते हैं कि समता और न्याय की स्थापना हो गयी और ब्राह्मणवाद का अंत हो गया।
खैर,अमितजी पुराने मित्र हैं और बाहैसियत पाठक उनकी यह टिप्पणी हमारे सर माथे।लेकिन सक्षम बामसेफ अध्यक्ष के लिए वे जो चार नाम सुझा रहे हैं,इसका मतलब समझ में नहीं आ रहा।
दयाशंकर जी उत्तर प्रदेश में बामसेफ के प्रभारी रहे हैं।
चमनलाल के बाद वे भी हाशिये पर धकेल दिये गये।
एकीकरण प्रक्रिया के दौरान हमने उनसे कई दफा बात करने की कोशिश की तो वे टालते रहे।
अरसे बाद 24 जनवरी को पुणे में देशभर के बामसेफ कार्यकर्ताओं की बैठक के बाद दयाशंकर जी ने फोन किया कि वे उत्तराखंड से बोल रहे हैं।उत्तराखंड बोलते ही अपनी माटी की खुशबू से महमहा गया मैं और पूछा कि कहां से बोल रहे हैं,वे बोले रुड़की से।
फिर वे बोले,मैं बामसेफ अध्यक्ष बोल रहा हूं।
अब ताराराम मेहना एक बामसेफ अध्यक्ष हैं।
बोरकर साहेब ने बिहार के शिवाजी राय को बामसेफ अध्यक्ष बनाया हुआ है।
माननीय वामन मेश्राम जी तो दिशा दिशा में प्रबल विद्रोह और खास पुणे में बवंडर के बावजूद बामसेफ अध्यक्ष पुणे के बामसेफ भवन में विराजमान हैं और रोजाना उनके विचार मूलनिवासी नायक में प्रकाशित हो रहे हैं।
इस नयके बामसेफ और नयका अध्यक्ष का मामला कुछ समझ में नहीं आया।
उनने कहा कि पुणे में बड़ा बवंडर हुई रहा कहत ह।
हम बोले ,नइखे जानत।
हमने कहा कि हमें बुलाया गया था लेकिन हमारी अब इन बैठे ठाले लोगों की सामाजिक सक्रियता में दलचस्पी बची नहीं रही है।
सभाओं और भाषण से अलावा कोई बात लेकिन बनती नहीं है।
सो,हमने अंबेडरकी मित्रों से कह दिया है कि हम बेमतलब की सभाओं में अब हर्गिज नहीं जायेंगे।
उनने फोन उठाकर रख दिया।
अब हमारे लिए पहेली है कि हमें गांधी के जइसन नतीजा भुगतने की चेतावनी खास बामसेफ भवन से जारी होने के मध्य़ वामन मेश्राम जैसे सक्षम अध्यक्ष के होने के बावजूद बामसेफ को सक्षम अध्यक्ष की तलाश क्यों है।
क्या वामन मेश्राम जी संन्यास ले रहे हैं,पहली चिंता यह है।
हमारे रास्ते अलग भले हो,लेकिन समसामयिक मसलों के विश्लेषण और और उनके धनवर्षासंभव करिश्माई भाषणों का मैं प्रशंंसक हूं और समझने वाली बात है कि बामसेफ का खर्चा पानी निकालने के लिए इतना कमाऊ दूसरा कोई अध्यक्ष नहीं हो सकता जो रोजाना लाखों की फंडिंग कर 365 दिन।बिना विश्राम के।365 दिन।
हम लोग तो बस हिसाब ही मांग रहे थे।
उनकी काबिलियत पर हमें कोई शक रहा नहीं है।
वे चाहे तो राष्ट्रीय आंदोलन भी कर सकते हैं,हमने हमेशा ऐसा ही माना है।
हमारी शिकायत तो बस इतनी है कि वे आंदोलन की दिशा में एक कदम भी नहीं बढ़ें।बहुजन समाज लुटता पिटता रहा और बामसेफ ने फंडिग के अलावा कुछ भी नहीं किया।और हम दूसरों की तरह खामोश न रहे।हम लगातार राष्ट्रीय आंदोलन के वामन मेश्राम के भाषण को अमल में लाने पर जोर देते रहे।
जिन चार विकल्पों में से किसी एक को चुनने का बामसेफ भवन से यह संदेश आया है,वे चारों पुराने आजमाये हुए होल टाइमर हैं।मराठी हैं।
काले साहेब पूरब पश्चिम उत्तर दक्किन सर्वत्र प्रचारक रहे हैं राष्ट्रीय।राष्ट्रीय प्रचारक मातंग भाई बहुजनमुक्ति पार्टी के अध्यक्ष हैं तो उनका नाम नहीं होगा।
चारों वामन मेश्राम साहेब के खासमखास हैं।
वीएम कांबले का नाम क्यों नदारद है समझ में नहीं आया। फिर विलास खरात अगर अध्यक्ष बना दिये जाते हैं तो मूलनिवासी नायक कौन संभालेगा।
क्या वामन मेश्राम साहेब इस बार कुछ ज्यादा अवधि के लिए विदेश यात्रा पर जाने वाले हैं,कौण जाणे हैं।
365 दिनों तक करीब पंद्रह साल से लगातार यात्रा करते रहने,चौबीसों घंटे भाषण देते रहने के बाद उनकी सेहत की हमें चिंता है और मुश्किल यह हे कि उनकी सेहत के बावत हम पूछ नहीं सकते हैं।
क्या वामन मेश्राम साहेब गंभीर तौर पर अस्वस्थ हैं,क्या पता।
सन्यास,विदेश यात्रा या फिर बिगड़ती सेहत के अलावा बामसेफ भवन से नये सक्षम अध्यक्ष की तलाश हमें दाल में कुछ काला नजर आ रहा है।
वैसे चारों दावेदार हमारे पुराण मित्र हैं।
वैसे चारों खांटी मराठी हैं।
बामसेफ अब महाराष्ट्र में सिमट गया है और मुंबई और नागपुर के अध्यक्ष समेत महाराष्ट्र के अध्यक्ष भी बामसेफ बाहर हैं।
खास मेश्राम साहेब के गृहजिला अमरावती,अकोला से लेकर जलगांव और नासिक तो माराठवाडा़,सोलापुर कोल्हापुर के कार्यकर्ता हमारे संपर्क में हैं।
बामसेफ भवन के लिए महाराष्ट्र में अपना घर संभालने की पहली प्राथमिकता होगी फिर तो छह लाख गांवों और छह हजार जातियों में भौगोलिक और सोशल नेटवर्किग मेश्राम साहेब ने कर ही दी है।
हमउ बामसेफ मा नइखे। 2010 से ही हमारी राह अलग है।
पहले पहल तो हम बामसेफ एकीकरण में लगे रहे तो देखा कि जिस वामन मेश्राम के नेतृतृत्व व्यक्तित्व कृतित्व की वजह से आंदोलन की सिर्फ राष्ट्रीय घोषणा है,,उ वामन मेश्राम बनने केफिराक में है सगरे लोग।ससुर,सब साहब बन गयो।साहेबो बन तन गयो।
तो नयका देवता बनाने में हमार कोई दिलचस्पी ना रही।
पुणे मुंबई नागपुर मा ,फिर भोपाल भुवनेश्वरर,कोलकाता में दफा दफा बैठक हुई तो कांशीराम जी के पुरनका सहोयोगी और बामसेफ से निकाले गये तमामो होलटाइमर,ताम राज्यों में सक्रिय बहुजन कार्यकर्ताओं ने मिल बैठे फैसला कर लिया कि इस दुकानदारी से अब हमारा कोई नाता नहीं और न हम बामसेफ नाम का इस्तेमाल करेंगे।न हम भविष्य में अस्मिता में कैद रहेगे और न बामसेफ की भाषा बोलेंगे।ह देश जोड़ेगे।जनत के हक हकूक के लिए लड़ेंगे।हमारा कोई अध्यक्ष नइखे बाड़न।
हम बेदखली के खिलाफ लड़ेंगे।
हम जल जंगल जमीन के लिए लड़ेंगे।हम हवाओं पानियों और आजाद आसमान के लिए लड़ेेंगे।
हम मजदूरों, किसानों कामगारों कर्मचारियों के लिए लड़ेंगे।
हम स्त्री को शूद्र और दासी बनाने वाले पितृतंत्र के खिलाफ लड़ेंगे।
हम हिंदू साम्राज्यवाद और मुक्त बाजार के खिलाफ लड़ेंगे।
हम अपने पहाड़ों,घाटियों और नदियों के लिए लड़ेंगे।
हम लड़ेंगे सलवा जुड़ुम के खिलाफ और सैन्य शासन के खिलाफ भी।
हम लडेंगे दंगा संस्कृति,बेदखली अभियान के खिलाफ।
हम लड़ेंगे हर गुलाब की हर पंखुड़ी की सेहत के लिए।हर उड़नेवाली तितली के सकुशल परों की उड़ान के लिए लड़ेंगे हम साथी।
हम अबाध पूंजी के खिलाफ लड़ेंगे।
हम साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ेंगे।
हमारी लड़ाई में अस्मिता बाधा नहीं है।
भूगोल बाधा नहीं है।
भाषा बाधा नहीं है।
हमारा नेतृत्व करें गांव देहात के लोग कि नेतृत्व बना तो बनेगा जड़ों से कि आसमान लसे कभी नहीं उतरता कोई मसीहा।
हमें किसी अध्यक्ष की जरुरत नइखे।
मैंने काफी पहले साफ कर दिया है कि बामसेफ जिनका है,वे चलायें बामसेफ,हम उनके कामकाज में दखल ना देंगे।
अब हमारे लोगों में फंडिंग की आदत खूब लगी है।बाबासाहेब की कृपा से पइसा वइसा गाड़ी बाडी़ हैसियत रुतबा खूबै है।दो दस हजार का कहि लाख दस लाख फटाक से झोली में भरके दे देंगे और भूलकर भी हिसाब ना मांगेंगे कि मिशन का का हुई गवा।
अंबेडकरी आंदोलन रंग बिरंगा कुल मिलाकर यही है।
जो एक दफा कुर्सी में बइठ गइलन,वो कुर्सी ना छोड़ैं हैं।वही साहेब,वही मेमसाहेब।
वामन मेश्राम साहेब का भारी योगदान रहा बामसेफ के पुनर्गठन में।बामसेफ अबहुं जिंदा है तो यह वामन मेश्राम साहेब ता चमत्कार है,इसमें दुई राय नहीं।
इस बीच बोरकर साहेब ने अलग होकर लोकतांत्रिक तरीके से बामसेफ का संगठन चलाया जहां हर दो साल में अद्यक्ष तो बदलता है लेकिन कोई आंदोलन होता वोता नहीं है।
टीका राम मेहना ने एक अलग बामसेफ बना ली जो संविधान बचाने में लगा है तो विजय मानकर का बामसेफ एक और है जो बौद्धमय बारत बनाने खातिर धर्म दीक्षा अभियान चला रहा है।
कांशीराम जी ने जो बामसेफ का विसर्जन सत्ता में भागेदारी के लिए कर दिया तो इन्हीं वामन मेस्राम जी ने खार्पडे साहेब के साथ मिलकर बोरकर साहेब को लेकर बामसेफ को अबतक जिंदा रखा और देश विदेश राष्ट्रीय जनांदोलन हर समस्या का इलाज बताते रहे।
जाहिर है कि फंडिंग भी हो गयी भारी तो शुरु हो गयी मारामारी।सब अपना अपना बामसेफ लेकर बैठ गये अलग अलग दुकान सजाकर।
राष्ट्रीय आंदोलन तो दूर मोहल्ला लेवेल का आंदोलन तक न हुआ क्योंकि जो जनता आंदोलन करेंगी वो फडिंग वाली जनता नइखे।
और फंडिंग करने वाले फंडिंग करेंगे और आंदोलन नहीं करेंगे।
अंबेडकरी आंदोलन बाबासाहेब के बाद कुल मिलाकर यहीच फंडिंग है।
वामन मेश्राम जादुगर हैं कि उनने इतनी फंडिंग कर दी कि देश भर में अलग अलग भाषाओं में मूलनिवासी बामसेफ का मुखपत्र मूलनिवासी नायक छप रहा है और उनकी हर कहीं प्रेस है चल अचल संपत्ति है।लेकिन इस अखबार के मुखपन्ने में भी मेश्राम साहेब का भाषण के सिवाय जनांदोलन या जनता के मुद्दे नहीं हैं।इस अखबार के प्रधान संपादक प्रोफेसर विलास खरात हैं।
वामन साहेब से आखेर मुंबई वालों ने फंडिंग का हिसाब मांगा तो पूरी मुंबई यूनिट एक बार नहीं,तीन तीन बार भंग कर दी गयी।
एक के बाद एक कार्यकर्ता देश के कोने कोने से निकाल बाहर किये गये।
जस्टिस अकोदिया की अध्यक्षता में बहुजन मुक्ति पार्टी बनी तो वे भी निकाल बाहर किये गये।अपने मातंग भाई अध्यक्ष बना दिये गये।
अब खास पुणे में महाराष्ट्र बामसेफ के अध्यक्ष हासनात साहेब समेत तमाम कार्यकर्ता निकाल दिये गये।24 जनवरी को मुंबई में उनने देशभर के कार्यकर्याओं की मीटिंग ली है।
इसी घटना के बाद अध्यक्षीय विकल्प की तलाश शुरु हो गयी है,संजोग बस यहीच है।
अबकी दफा बामसेफ भवन पुणे के दरवज्जे पर दस्तक भारी है।
संजोग बस यही है।
तो नयका देवता बनाने में हमार कोई दिलचस्पी ना रही।
पुणे मुंबई नागपुर मा ,फिर भोपाल भुवनेश्वरर,कोलकाता में दफा दफा बैठक हुई तो कांशीराम जी के पुरनका सहोयोगी और बामसेफ से निकाले गये तमामो होलटाइमर,ताम राज्यों में सक्रिय बहुजन कार्यकर्ताओं ने मिल बैठे फैसला कर लिया कि इस दुकानदारी से अब हमारा कोई नाता नहीं और न हम बामसेफ नाम का इस्तेमाल करेंगे।न हम भविष्य में अस्मिता में कैद रहेगे और न बामसेफ की भाषा बोलेंगे।ह देश जोड़ेगे।जनत के हक हकूक के लिए लड़ेंगे।हमारा कोई अध्यक्ष नइखे बाड़न।
हम बेदखली के खिलाफ लड़ेंगे।
हम जल जंगल जमीन के लिए लड़ेंगे।हम हवाओं पानियों और आजाद आसमान के लिए लड़ेेंगे।
हम मजदूरों, किसानों कामगारों कर्मचारियों के लिए लड़ेंगे।
हम स्त्री को शूद्र और दासी बनाने वाले पितृतंत्र के खिलाफ लड़ेंगे।
हम हिंदू साम्राज्यवाद और मुक्त बाजार के खिलाफ लड़ेंगे।
हम अपने पहाड़ों,घाटियों और नदियों के लिए लड़ेंगे।
हम लड़ेंगे सलवा जुड़ुम के खिलाफ और सैन्य शासन के खिलाफ भी।
हम लडेंगे दंगा संस्कृति,बेदखली अभियान के खिलाफ।
हम लड़ेंगे हर गुलाब की हर पंखुड़ी की सेहत के लिए।हर उड़नेवाली तितली के सकुशल परों की उड़ान के लिए लड़ेंगे हम साथी।
हम अबाध पूंजी के खिलाफ लड़ेंगे।
हम साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ेंगे।
हमारी लड़ाई में अस्मिता बाधा नहीं है।
भूगोल बाधा नहीं है।
भाषा बाधा नहीं है।
हमारा नेतृत्व करें गांव देहात के लोग कि नेतृत्व बना तो बनेगा जड़ों से कि आसमान लसे कभी नहीं उतरता कोई मसीहा।
हमें किसी अध्यक्ष की जरुरत नइखे।
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