Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Saturday, February 28, 2015

भूमि अधिग्रहण का प्रलाप


भूमि अधिग्रहण का प्रलाप
________________________
क्यों टीन टपरिया छीन रहे
क्यों फूस छपरिया छीन रहे

सब चोर छिनैतों के साए हैं
आज जो हम पर छाए हैं

कैसे इनसे बच पाएंगे
अब कैसे हम जी पाएंगे

पूंजी का बुलडोजर है
नीचे कितने ही घर है

कब तक जीना डर डरकर
धरती कांपे रह रहकर

निकले हैं जन रस्तों पर
भूमि बचाएंगे लड़कर

मुझको कवियों से कहना है
बोलो कब तक ढहना है

जिसमें अपने लोग नहीं हैं
सोज़ नहीं है सोग नहीं है

जो खुद में घुटकर रह जाएगी
वह कविता अब मर जाएगी

जंगल छीने नदियां छीनीं
फ़सलें छीनीं बगिया छीनी

धरती लेकिन नहीं मिलेगी
फूल जले तो आग खिलेगी
________
शब्द रचनाकार के लिए सार्थक तभी होते हैं जब वह उनकी सतर्क सुधि लेता है. उन्हें उलटता – पुलटता है, बेज़ान और घिस गए शब्दों की जगह नए शब्द तलाशता और तराशता है. जीवन – कर्म से शब्दों की संगति बैठाता है. कर्म के आलोक में ही शब्द रौशन होते हैं. शब्दों के अलाव के पास हमें सम्बन्धों और संवेदना की ऊष्मा मिलती है. पर जब हर जगह प्रलाप और विलाप हो तब एक कवि को लगता है कि यह आखिर हुआ क्या? जीवन और जीने के सरोकार सब इस प्रलाप के भंवर में डूबते जा रहे हैं. घर और घर वापसी जैसे मूल्य किस तरह एक खाई में गिरने जैसा लगने लगता है. और आकाश में उड़ना खुद कवि के शब्दों में – 'उड़ते हुए चंद लोगों द्वारा न उड़ पानेवालों के कोमल पंखों को मसल देने का है. और जन्म वह तो मां के गर्भ और पिता के गर्व के बीच उलझ गया है. भूमि अधिग्रहण का प्रलाप दरअसल 'क्यों टीन टपरिया छीन रहे/ क्यों फूस छपरिया छीन रहे' की वास्तविकता है.

शिरीष कुमार मौर्य की ग्यारह नई कविताएँ आपके लिए. सार्थक, सृजनात्मक और समृद्ध अनुभव से लबरेज़.

_________________

जीवन जो कुछ प्रलापमय है 
शिरीष कुमार मौर्य
http://samalochan.blogspot.in/2015/03/blog-post.html

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...