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Wednesday, May 15, 2013

त्रिपुरा के वित्तमंत्री ने चिटफंड घोटाले के लिए सरकारी क्षेत्र के बैंको को दोषी ठहराया!

त्रिपुरा के वित्तमंत्री ने चिटफंड घोटाले के लिए सरकारी क्षेत्र के बैंको को दोषी ठहराया!


​​एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


​चिटफंड प्रकरण में घिर गयी है त्रिपुरा की वाम सरकार।वहां के मंत्री भी आरोपों के घेरे में हैं । विधानसभा में भारी हंगामा हो गया। पहले ही र्जाय सरकार ने सीबीआई जांच के लिए आवेदन किया हुआ है। लेकिन अब इस फर्जीवाड़े से जनरोष जिस तरह से फैल रहा है, तो इस संकट के राजनीतिक मुकाबले के लिए त्रिपुरा सरकार को भी मैदान में उतरना पड़ा है। मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने इस आत्मरक्षा अभियान की कमान बादल चौधरी को सौंपी है, जो वित्तमंत्री हैं और जिनका गृह इलाका बिलोनिया से गोमती और उदयपुर होकर आगरतला तक पूरा इलाका चिटफंड की मार से त्राहि त्राहि कर रहा है।​त्रिपुरा के वित्तमंत्री ने चिटफंड घोटाले के लिए सरकारी क्षेत्र के बैंको को दोषी ठहराया हैं।


बादल चौधरी की शिकायत है कि बाकी देश में जहां बैंकों में जमा के मुकाबले ऋण दिये जाने का अनुपात ७८ प्रतिशत है, वहीं पूर्वोत्तर राज्यों में कहीं भी यह अनुपात ३४ प्रतिशत से ज्यादा नहीं है।


गौरतलब है कि त्रिपुरा में मुख्यमंत्री माणिक सरकार नीत मंत्रिमंडल ने गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के खिलाफ पुलिस में दर्ज 15 मामलो को अब केद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का निर्णय किया है।मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में पिछले कुछ महीनों में 27 गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों ने अपना कारोबार बंद कर दिया है जबकि अन्य 90 अभी भी संचालित हैं। उन्होंने सीबीआई को सौंपे जाने वाले 15 संस्थानों के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं बाताया।90 संचालित संस्थानों में से 68 कंपनी अधिनियम के तहत दर्ज हैं। 4 को भारतीय रिजर्व बैंक से लाइसेंस प्राप्त है। 7 को बीमा नियामक प्राधिकरण और 1 को सेबी से स्वीकृति प्राप्त है। इनके अलावा 10 अन्य को-ऑपरेटिव सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत माइक्रो फाइनेंसिंग संस्थान के रूप में पंजीकृत है।


मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने केंद्र सरकार पर पूरे देश में ऐसे संस्थानों को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि विभिन्न राज्यों ने इसके लिए एक समान कानून लागू करने की मांग की थी लेकिन केंद्र ने हालांकि इसे नजरअंदाज करके एक तरह से इन संस्थानों को बढ़ावा दिया। त्रिपुरा में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कार्यालयों पर छापा मारा गया और कई दस्तावेज और संपत्तियां जब्त की गईं। इस सिलसिले में लोगों को गिरफ्तार किया गया है।पूरे त्रिपुरा में छापेमारी और जब्ती की कार्रवाई तब तक जारी रहेगी, जब तक कि एनबीएफसी की अवैध गतिविधियां बंद नहीं हो जाती हैं।


बादल चौधरी लेकिन इस संकट से निकलने के लिए राजनीतिक भाषा का प्रयोग करने से बच रहे हैं। उन्होंने सीधे चिटफंड कारोबार में आम लोगों के इतने बड़े पैमाने पर शिकार हो जाने के लिए सरकारी क्षेत्र के बैकों को दोषी ठहरा दिया। उनके मुताबिक ब्याज कम होने के बावजूद जिस पैमाने पर आम लोगों की आस्था अब भी बैंकों में बनी हुई है, बैंकों से उस तुलना में रिटर्न भी नीं मिलता है। जमा राशि की तुलना में बैंकों सेदिये जाने वाला ऋण नाकाफी है। आम लोगों की वित्तीय जरुरतें चूंकि सरकारी बैंकों के जरिये पूरी नहीं हो पाती इसलिए वे बड़ी आसानी से चिटफंड कंपनियों के चंगुल में फंस जाते हैं।


बादल चौधरी ने कहा कि वे इस सिलसिले में केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और तमाम सरकारी क्षेत्रों के बैंकों से लगातार संवाद कायम किये हुए हैं, पर राज्य सरकार की मांग के मुताबिक त्रिपुरा की उनुसूचित बहुल जनसंख्या को बैंकिंग के दायरे में शामिल कराने की प्रक्रिया अभी ठीक से शुरु नहीं हो पायी है।


उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के गवर्नर ने २०११ में त्रिपुरा सरकार से सीडी रेशियो यानी जमा के मुकाबले ऋण का अनुपात बढ़ाने का वायदा किया था। अब २००३ में राज्य में सीडी रेशियो ३३ फीसद तक समित है। ​

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