भारत अमेरिकी राजनय युद्ध का नतीजा यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों को टैक्स होलीडे।
पलाश विश्वास
आज का संवाद
भारत अमेरिकी राजनय युद्ध का नतीजा यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों को टैक्स होलीडे। आज देशभर में अंबेडकर अनुयायी मनुस्मृति दहन दिवस मना रहे हैं जबकि जिस जाति उन्मूलन के एजंडे के साथ बाबासाहेब ने मनुस्मृति को जलाकार प्रतीकात्मक तौर पर जाति व्यवस्था को ध्वंस कर रहे थे,रंग बिरंगे अबंडकरी और बहुजन आंदोलन ने उस एजंडे को बहुत पहले तिलांजलि देकर अपनी अपनी जाति का वर्चस्व कायम करने में लगे है ंऔर सत्ता में भागेदारी के तहत वैश्विक कारपोरेट जायनवादी मनुस्मृति को ही मजबूत बना रहे हैं। मनुस्मृति दहन भोपाल गैस त्रासदी की बरसी में तब्दील है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों केशकंजे में छटफटाते भारत का सबसे बड़ा प्रतीक गैसपीड़ित भोपाल है।जबकि हर साल भोपाल गैस त्रासदी मनाते हुए हम निरंतर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले कर रहे हैं सारा देश,देश के सारे संसाधन देश के नागरिकों के पारमाणविक,रासायनिक, जैविक, रोबोटिर बायोमेट्रिक डिजिटल विध्वंस के लिए। अंबेडकर का नाम जापते हुए हम उन्हीं के जाति ुन्मीलन और मनुस्मृति दहन के विपरीत जाति अस्मिता को मजबूती देते हुए जाति के बाहर तमाम वंचितों शरणार्थियों, स्त्रियों, आदिवासियों,अल्पसंख्यकों और शूद्र किसान समाज,सर्वहारा स्रमिक वर्ग को बहुसंख्य बहुजन आंदोलन से जोड़नेका कार्यभार को संबोधित कर ही नहीं रहे हैं। हम दो दशक कारपोरेट राज के हो जाने के बावजूद यह समझने में अब भी असमर्थ है कि कारपोरेट राज के रहते समता और सामाजिक न्याय असंभव है।ठीक उसीतरह जैसे गैर अंबेडकरवादी यह भूल रहे हैं कि धर्मोन्माद आखिर कारपोरेट राज का वाहक है।कारपोरेट राज के विरोध के बिना धर्मनिरपेक्षता असंभव है। मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों,पर्यावरण आंदोलन असंभव है। जैसे स्त्री अस्मिता के झंडेवरदार यह समझ ही नहीं रहे हैं कि कारपोरेट राज में स्त्री की देहमुक्ति असंभव तो है ही,यहां स्त्री देह के अलावा कुछ भी नहीं है और कारपोरेट राज ही पुरुष तंत्र का अद्यतन अवतार है।दोनों पक्ष एनजीओ मीडिया प्रायोजित गृहयुद्ध में यह समझने में असमर्थ है कि युद्ध धर्मनिरपेक्षता और स्त्री अस्मिता के बीच नहीं है,बल्कि धर्मनिरपेक्षता और स्त्री अस्मिता के साझे मोर्चे की लड़ाई कारपोरेट राज के विरुद्ध है,जिसमें कामयाबी के लिए बहुसंख्य बहुजनों की भागेदारी समस्त सामाजिक शक्तियों और समस्त अस्पृश्य भौगो लिक इकाइयों की मोर्चेबंदी के साथ अनिवार्य है। हम यह विमर्श सुरुही नहीं कर पाये हैं और सारे विमर्श रंग बिरंगे अस्मिताधर्मी खेमों के परस्परविरोधी स्वार्थ पर हो रहे हैं , जो अंततः कारपोरेट हित ही साधते हैं। अंबेडकर के दो मूल मंत्रों को भूलकर अंबेडकरी रंग बिरंगे नीले झंडे के दावेदार अब सत्ता की चाबी की खोज में आपस में ही मारकाट कर रहे हैं। बहुजन बहुमजिली शापिंग मालों में बहुत भीड़ उमड़ रही है और दुकानों में खूब धंधा हो रहा है। मसीहा और दूल्हों के पीछे लामबंद बहुजन भारत आज भी मूक है और फतवों के लाउडस्पीकर की भूमिका ही निभा रहे हैं। आज ही मनुस्मृति दहन उत्सव के मध्य बामसेफ के तीन तीन राष्ट्रीय सम्मेलन लखनऊ,पटना और नागपुर में हो रही है।देश भर में दो प्रमुख बहुजन पार्टियों और दूसरी अनेक बहुजन,समता,शोषित,रिपब्लिकन पार्टियों के झंडे के नीचे बहुजनों की भगदड़ मची है। लेकिन न तो जाति उन्मीलन पर कोई चर्चा हो रही है और न अवसरों और संसाधनों के समान बंटवारे पर।बहुजन ही कारपोरेट राज के मार्फत जलजंगल जमीन आजीविका और नागरिकता से बेदखल हो रहे हैं और मानवाधिकार,नागरिक अधिकार,कानून के राज और न्याय से वंचित वे ही बहुसंख्य लोग कारपोरेट राज के शिकार हैं ।लेकिन बहुजन मेधा इसी कारपोरेट राज को स्वर्णयुग कहने से अघा नहीं रहा। विनिवेश और निजीकरण से आरक्षण बेमतलब हो गया है लेकिन बाबासाहेब के बनाये संविधान की रोज रोज हत्या के कारपोरेट उपक्रम से बेपरवाह बुजन समाज जो दरअसल जाति व्यवस्था में खंडित विखंडित भारतीय कृषि समाज है, कारपोरेट राज के खिलाफ किसी हलचल में है ही नहीं।उलट बहुजन राजनीति आर्थिक सुधारों की जनसंहार नीतियों पर अल्पमत सरकारों को बना शर्त समर्थन देते हुए पिछले दो दशकों से कारपोरेट राज को अपराजेय बनाते रहे हैं। अस्पृश्य भूगोल, संविधान जहां अभी लागू ही नहीं हुए,ऐसे तमाम आदिवासी इलाकों,अल्पसंख्यकों और मनुस्मृति से सबसे ज्यादा उत्पीड़ित स्त्रियों समेत सामाजिकशक्तियों को गोलबंद करने की कोई सोच ही नहीं है अंबेडकर अनुयायियों में।ब्राह्मणवाद के विरोध के तहत ब्राह्मणों को और असहमत बहुजनों को ब्राह्मणदलाल करार देने लवाले बहुजन वैदिकी कर्मकांड में सबसे ज्यादा निष्णात हैं।धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के सबसे बड़ी पैदल सेनाएं उन्ही की हैं और उत्तर आधुनिक कारपोरेट मनुस्मृति राज के तमाम क्षत्रप और संघ परिवार के प्रधानमंत्रित्व के दावेदार भी उन्हीं के क्षत्रप हैं। बहुजनों के लिए अंबेडकरी विचारधारा,अंबेडकरी संविधान और अंबेडकरी आंदोलन विमर्श का विषय है ही नहीं और न बहुजन समाज में सत्ता में भागेदारी और अपनी अपनी जाति,अपने अपने मसीहा और दूल्हे के प्रवचन के अलावा कोई विमर्श विषय है और न तृणमूल स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक किन्ही दो अंबेडकरी कार्यकर्ता,नेता या संगठन के बीच कोई संवाद की स्थिति है। हर कहीं तानाशाही और फंडिंग का बोलबाला,भेड़धंसान, अंधभक्ति,मूर्ति पूजा के कायदे कानून हैं। मनुस्मृति के सशक्तीकरण के तहत मनुस्मृति दहन का यह अजब वैदिकी हवन यज्ञ है जो अंततः केजरीवाल,नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी के प्रधानमंत्रित्व में ही पूर्णाहुति प्राप्त होगा। देवयानी खोपड़ागड़े के मुद्दे पर बहुजनों का जो अमेरिका विरोध का छद्म है,विडंबना यह है कि वह बहुजनों के सामूहिक वध और विध्वंस का सबसे बड़े मंच में तब्दील हो रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सीमाएँ - एक नए अध्ययन से पता चला है कि 500 बड़ीबहुराष्ट्रीय कंपनियों में से कुछ की ही वास्तव में दुनिया भर में उपस्थिति है। आज की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ही तरह डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी और अंग्रेज व्यापारियों ने ऐसी ही घुसपैठ की थी और जिसका अंतिम परिणाम गुलामी निकला था। गौरतलब है कि पिछले अप्रैल में ही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपने मुनाफे को कालेधन की पनाहगाह माने जाने वाले देशों में लगाये जाने या कर देने से बचने की प्रवृत्ति को आयकर विभाग के लिए बड़ी चुनौती बताया है। लेकिन भारत सरकार की अब सर्वोच्च प्राधमिकता बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए टैक्स होली डे सुनिश्चित करना है। संसदीय प्रणाली कैसे भारतीय जनता का कल्याण कर रही है,उसका सबूत इंफ्रा परियोजनाओं को लंबित हरीझंडी देने के लिए जयंती नटराजन को हटाकर रिलायंस मंत्री मोइळी को पर्यावरण मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया है। मोइली जो बेशर्मी से दावा करते हैं कि रिलायंस हित में गैस कीमतों की दरों में दोगुणी वृद्धि से ही विकास का रास्ता खुलेगा। मुंबई दिल्ली और कोलकाता अमृतसर सत्यानाशी गलियारे के मार्फत महासेज और महानगर जनपदों के सीने पर ठोंककर पूरे देश को बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अनंत वधस्थल बनाया जा रहा है।बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हिते के लिए ही अमेरिकी प्रिज्म योजना के तहत हर भारतीय नागरिक की खुफिया निगरानी हो रही है। नाटो और सीआईए के लिए नागरिकों के बायोमेट्रिक डिजिटल आंकड़े असंवैधानिक कारपोरेट योजना आधार के माध्यम एकत्रित किये जा रहे हैं।कारपोरेट ईश्वर अरविंद केजरीवाल और नंदन निलेकणि हमारे सबसे बड़े विकल्प के तौर पर आइकानिक मुक्त बाजार की ओर से पेश किये जा रहे हैं। कारपोरेट भ्रष्टाचार लोकपाल के दायरे से बाहर है और जांच के औजार लोकपाल के भी केंद्रीय एजंसियों को बनना है।स्टिंग और अखबारी सुनामी के दौरान जिन घोटालों का भंडाफोड़ होता है,उन्हें सीबीआई जांच के जरिये अब भी दफा रफा किया जा रहा है। संसद सत्र जारी है और तेज है कारपोरेट नीति निर्धारण।परदे के पीछे राजकाज का एकमात्र मकसद अमेरिकी हितों को साधना है जबकि परदे के सामने भारत और अमेरिका के बीच घनघोर राजनय घमासान हैं।बहुराष्य्रीयहितों की कोई चर्चा ही नहीं हो रही है।राजनयिक देवयानी को धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता का सचिनतेंदुलकर बनाया जो रहा है और उससे उन्हींके संपन्न मलाईदार रिश्तेदारों के मार्फत दलित अस्मिता नत्थी करके अगले लोकसभा चुनाव के लिए वोटबैंक समीकरण साधे जा रहे हैं।अमेरिका में जो हुआ ,उसका यथार्थ मुताबिक विश्लेषण किये बिना कांग्रेस संघी दो दलीय मुक्त बाजार की सत्ता के खेल के मुताबिक तमाम बहुजन रथी महारथी मैदान में उतर रहे हैं। अब सारे मुद्दे सिरे से गायब है। नीति निर्धारण के बारे में कोई सूचना है ही नहीं।अर्थव्यवस्था के हाल हकीकत के बारे में आम जनता को कोई सूचना है नहीं।संसद में जो सर्वदलीय समन्वय से तमाम जनविरोधी कानून बनाये जा रहे हैं,उसका खुलासा नहीं हो रहा है।अस्पृश्य भूगोल में दमन उत्पीड़न,नागरिक मानवाधिकार हनन की खबर भी नहीं है। सर्वदलीय समन्वय के पीछे कारपोरेट लाबिइंग का पर्दाफाश नहीं है।जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता से बेदखली के लिए आर्थिक सुधारों के दूसरे चरण पर चर्चा नहीं है।कृषि,देहात और जनपदों का कोई यथार्थ चित्र नहीं है । गली गली गांव गांव में मीडिया की जो पहुंच है,वहां सिर्फ मार्कटिंग एजंटों और राजनीतिक तचेहरों का कोलाज है ,बुनियादी जनसमस्य़ाएं संबोधित हैं ही नहीं।मुद्रास्फीति,मंहगाई,बेरोजगारी तक की कोई चर्चा नहीं हो रही है। सामाजिक क्षेत्रों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाले संस्थानों और बहुराष्ट्रीयकंपनियों के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से तमाम जनांदोलन फर्जी चालू हैं और कारपोरेट एकाधिकारवादी साम्राज्यवादी आक्रमण के तौर तरीके और उसके प्रतिरोध के,जनसरोकार के मुद्दे सिरे से गायब हैं । हिंदी समाज भी अब अपने मध्य रंग बिरंगी अस्मिताओं में बंटने के अलावा कहीं आम हो रहा है तो कहीं नमोमय। जो जनपक्षधरता का पक्ष है ,उसके मोर्चे पर सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी के बजाय धर्मनिरपेक्षता बनाम स्त्री अस्मिता का गृहयुद्ध छेड़ दिया गया है जो दिनंदिन तेज हो रहा है। दूसरी ओर, कारपोरेट राज के शिकंजे में फंसे देश में अमेरिका के विरुद्ध फर्जी छायायुद्ध के जरिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निर्बाध आखेट का चाकचौबंद इंतजाम है।दुनिया में सबसे हद दर्जे के अमेरिकापरस्त लोग अमेरिका के खिलाफ युद्धरत हैं और हमारे तमाम लोग हवाओं में लाठियां भांज रहे हैं। हालत यह है कि मुक्त बाजार और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निशाने पर सबसे ज्यादा सारे के सारे जनपद,समूचा देहात,समूचा कृषि समाज है। भारत रत्न समेत तमाम तरह के आइकनों के विज्ञापनी चमत्कार,बाजार की रणनीतिक युद्धक कुशलता,सामाजिक क्षेत्र में निरंकुश विदेशी पूंजी प्रवाह और बाजार के विस्तार के लिए सनियोजित तरीके से तमाम अधिकारों और सामाजिक योजनाओं के मार्फत सरकारी खर्च और नकदी प्रवाह के जरिये,मीडिया और सूचना विस्फोट,संचार क्रांति के तहत बहुजन समाज ही मुक्त बाजार का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। मसलन रोजमर्रा के उपभोक्ता सामान के बाजार में भारत इस साल आकर्षण का केंद्र रहा। वर्ष के दौरान इस क्षेत्र की अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने देश की दीर्घकालिक संभावना को देखते हुए अपनी भारतीय इकाइयों में हिस्सेदारी बढ़ाई, जबकि इसी दौरान कई भारतीय प्रोन्नत हो वैश्विक एफएमसीजी कंपनियों में शीर्ष पदों पर पहुंचे। हम सत्यानाश के बंदोबस्त से बेखबर नये ईश्वरों के स्वागत के लिए पलक पांवड़े बिछाये हुए है ं और परिवर्तन का जश्न मना रहे हैं क्योंकि अरविंद केजरीवाल शनिवार 28 दिसंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। दोपहर 12 बजे रामलीला मैदान में दिल्ली के नए मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह होगा। आम आदमी पार्टी शपथ ग्रहण समारोह के लिए अन्ना हजारे, किरण बेदी और संतोष हेगड़े को भी न्योता भेजेगी। रामलीला मैदान से ही अन्ना की अगुवाई में केजरीवाल की टीम ने जनलोकपाल आंदोलन की शुरुआत की थी। इससे पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली में सरकार के गठन को हरी झंडी दे दी। राष्ट्रपति ने उप−राज्यपाल की सिफारिश पर मुहर लगाकर अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण का रास्ता साफ कर दिया। इन्ही अरविंद केजरीवाल ने अन्ना टीम के साथ मिलकर तमाम जरुरी मुद्दों को खत्म करने में बेमिसाल कामयाबी दर्ज की है और कारपोरेट मीडिया केजरीवाल की ताजपोशी के लिए कोई कसर बारकी नहीं छोड़ रहा है।दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री बनने जा रहे अरविंद केजरीवाल ने 15 दिनों में जन लोकपाल विधेयक लाने का वादा करते हुए कहा कि वह नियम गलत है, जिसके तहत कोई कानून पारित कराने की खातिर किसी राज्य के लिए केंद्र से मंजूरी लेना अनिवार्य है। केजरीवाल ने संवाददाताओं से कहा, हम 15 दिनों के अंदर जन लोकपाल विधेयक लाएंगे...संविधान के अनुसार दिल्ली विधानसभा राज्य सूची में वर्णित कुछ मुद्दों को छोड़कर कानून बना सकती है। राज्य केंद्र के कानून का उल्लंघन कर कोई कानून नहीं बना सकते। सत्ता वर्ग के लिए यही सबसे बड़ा मुद्दा है और विडंबना है कि तमाम बुनियादी मुद्दों को दर किनार करते हुए अगला जनादेश भी शायद इसी एक मुद्दे से तय हो जायेगा। नरेंद्र मोदी को सबसे बड़ा खतरा बताने वाले धर्मनिरपेक्ष जनपक्षधर मोर्चे पर मनमोहन सिंह के इस नये अवतार के मुकाबले की कोई रणनीति ही नहीं है और न वामपंथी और बहुजनपंथी इस खतरे से निपटने की कोई तैयारी कर रहे हैं। यह भी कोई महज संजोग नहीं है कि दिल्ली के मुख्यमंत्रित्व के लिए केजरीवाल को सशर्त समर्थन देने वाली कांग्रेस की केंद्र सरकार ठीक इसी वक्त पिंजड़े में कैद बूढ़े तोते का कायाकल्प कर रही है।सीबीआई को और अधिक स्वायत्ता देने की दिशा में अहम पहल करते हुए सरकार ने एजेंसी की विधि शाखा को इसके निदेशक के कमान में दे दिया है जिससे जांच के मामलों में उनकी बात अंतिम होगी। एजेंसी की कानूनी शाखा विधि मंत्रालय को रिपोर्ट करती है। सूत्रों ने बताया कि अभियोजन महानिदेशालय को सीबीआई निदेशक के तहत रखा गया है जो न केवल पदोन्नति और नियुक्ति के मामलों को देखेंगे बल्कि गोपनीय रिपोर्ट भी तैयार करेंगे जो पहले विधि मंत्रालय करती थी। सीबीआई में अभियोजन महानिदेशालय सुनवाई, अपील और अदालतों में पुनरीक्षा के मामलों को आगे बढ़ाने और निगरानी करने के लिए जिम्मेदार होती है। यह अदालतों में अभियोजन के आचरण की निगरानी और निरीक्षण करता है तथा सामान्य एवं विशिष्ठ मामलों से जुड़ी सभी कानूनी मामलों में सीबीआई अधिकारियों को सलाह देता है। अभियोजन के निदेशक सीबीआई के अभियोजन पक्ष के मुख्य कार्यकारी रहे हैं। उन्हें अभियोजन चलाने वाले अधिकारियों को निर्देश देने और नियंत्रण का अधिकार था। अब ये अधिकार सीबीआई निदेशक को दे दिए गए हैं। समझें कि करीब 13.1 अरब डालर के भारतीय एफएमसीजी क्षेत्र को अच्छे मानसून और बंपर फसल के बावूजूद मांग में कमी की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जबकि उम्मीद थी कि अच्छी बारिश और फसल से ग्रामीण क्षेत्रों में बिक्री बढ़ेगी। यूनिलीवर, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन और पेप्सिको ने इस साल भारत में निवेश बढ़ाने की बड़ी घोषणा की। इन कंपनियों ने रणीतिक तौर पर महत्वपूर्ण और उभरते भारतीय बाजार में अपनी भूमिका बढ़ाने की योजना बनायी है। ब्रिटिश-डच उपभोक्ता उत्पाद कंपनी यूनिलीवर पीएलसी ने हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड :एचयूएल: की भारतीय शाखा में एक खुली पेशकश के जरिए 19,180 करोड़ रुपए के निवेश से अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 67.28 प्रतिशत की। कंपनी ने भारतीय सहायक कंपनी में हिस्सेदारी 75 प्रतिशत का लक्ष्य रखा था पर उसे शेयरधारकों से पर्याप्त संख्या में शेयर नहीं मिल सके। इस बायबैक पेशकश से पहले कंपनी हिंदुस्तान लीवर लि में उसकी हिस्सेदारी 52.48 प्रतिशत थी। इस लूट खसोट में बराबर की हिस्सेदार इंडिया इंक है। नीति निर्धारण और राजकाज में विश्व व्यवस्था के कारपोरेट कारिंदों,इंडिया इंक और अर्थशास्त्रियों के दश्चक्र में कारपोरेट राजनीति तो निमित्त मात्र है।कृपया गौर करें कि भारतीय कंपनियों के लिए धन जुटाने के लिहाज से यह साल अच्छा रहा और कंपनियों ने विशाल चार लाख करोड़ रुपए की पूंजी बाजार से जुटायी। बावजूद इसके प्राथमिक शेयर निर्गम और अनुवर्ती शेयर बाजार के मोर्चे पर मामला ठंडा ही रहा। इस दौरान ऋण कारोबारी जरूरत की दीर्घकालिक पूंजी हासिल करने के लिए ऋण बाजार सबसे पसंदीदा मार्ग बनकर उभरा। आईपीओ बाजार में नरमी के बीच कंपनियों ने कारपोरेट बांड के निजी नियोजन और गैर परिवर्तनीय डिबेंचर के जरिए धन जुटाने का रास्ता अपनाया। विभिन्न जरिए से जुटाए गए धन के विश्लेषण से पता चलता है कि कंपनियों ने इस साल शेयर और ऋण बाजारों के जरिए करीब 4 लाख करोड़ रुपए जुटाए। यह धन मुख्य तौर पर कारोबारी विस्तार योजना और पूंजी की जरूरत पूरी करने के लिए जुटाया गया। इसमें ऋण बाजार से सबसे अधिक 3.10 लाख करोड़ रुपए जुटाए गए। शेयरों की बिक्री से जुटाई गयी राशि करीब 87,000 करोड़ रुपए रही। इनमें प्रमोटरों और अन्य निवेशकों को वरीयता के आधार पर आवंटित शेयरों का धन भी शामिल है। कई कंपनियों ने बिक्री की पेशकाश के जरिए शेयर बाजार के माध्यम से शेयरों की बिक्री की। वर्ष के दौरान कंपनियों ने 2.65 लाख करोड़ रुपए ऋण पत्र प्लेसमेंट के जरिए तथा 23,745 करोड़ रुपए गैर परिवर्तनीय ऋण पत्रों से जुटाए। 19,650 करोड़ रुपए की पूंजी ऋण प्रतिभूतियों के सार्वजनिक निर्गम से जुटाए गए। बाजार विश्लेषकों के मुताबिक शेयर मूल्यांकन में सुधार के मद्देनजर 2014 में कंपनियां ज्यादा बिक्री कर सकती हैं, जबकि ऋण बाजार में भी नए साल में जोरदार गतिविधि रहेगी। नतीजतन बिना प्रतिरोध सर्वदलीय कारपोरेट समन्वय के तहत देश में एफडीआई नीति के लिहाज से वर्ष 2013 अहम रहा। इस दौरान नयी नियामकीय व्यवस्था के तहत जहां ब्रिटेन की सबसे बड़ी खुदरा कारोबार कंपनी टेस्को ने भारतीय बाजार में उतरने की घोषणा की, वहीं सिंगापुर एयरलाइंस और एतिहाद एयरवेज भारत के विमानन क्षेत्र में प्रवेश का निर्णय किया। संप्रग सरकार ने कई क्षेत्रों में विदेशी निवेशकों के लिए प्रवेश की शर्तें और उदार कीं है। इससे संकेत हैं कि देश में एफडीआई नीति के मामले में कुछ और बड़े फैसले जल्द हो सकते हैं। मनमोहन सरकार ने वर्ष के दौरान दूरसंचार, रक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरी कंपनियों, उपभोक्ता जिंस बाजारों, बिजली एक्सचेंज और शेयर बाजार सहित करीब एक दर्जन क्षेत्रों में एफडीआई नीति में ढील दी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि जल्द ही एक और यूरोपीय खुदरा कंपनी भारत में बहुब्रांड खुदरा कारोबार में उतरेगी। इसी प्रकार देश के विमानन क्षेत्र में सिंगापुर एयरलाइंस और मलेशिया स्थित एयर एशिया ने टाटा समूह के साथ हाथ मिलाकर दो अलग अलग संयुक्त उद्यमों के जरिए भारतीय विमानन क्षेत्र में प्रवेश की घोषणा की है। अबुधाबी स्थित एतिहाद ने भी भारत की जेट एयरवेज में 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कर 24 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने का सौदा किया है जो भारतीय विमान क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा एफडीआई निवेश है। आईपीओ बाजार में नरमी के बीच कंपनियों ने कारपोरेट बांड के निजी नियोजन और गैर परिवर्तनीय डिबेंचर के जरिए धन जुटाने का रास्ता अपनाया। विभिन्न जरिए से जुटाए गए धन के विश्लेषण से पता चलता है कि कंपनियों ने इस साल शेयर और ऋण बाजारों के जरिए करीब 4 लाख करोड़ रुपए जुटाए। यह धन मुख्य तौर पर कारोबारी विस्तार योजना और पूंजी की जरूरत पूरी करने के लिए जुटाया गया। इसमें ऋण बाजार से सबसे अधिक 3.10 लाख करोड़ रुपए जुटाए गए। शेयरों की बिक्री से जुटाई गयी राशि करीब 87,000 करोड़ रुपए रही। इनमें प्रमोटरों और अन्य निवेशकों को वरीयता के आधार पर आवंटित शेयरों का धन भी शामिल है। कई कंपनियों ने बिक्री की पेशकाश के जरिए शेयर बाजार के माध्यम से शेयरों की बिक्री की। वर्ष के दौरान कंपनियों ने 2.65 लाख करोड़ रुपए ऋण पत्र प्लेसमेंट के जरिए तथा 23,745 करोड़ रुपए गैर परिवर्तनीय ऋण पत्रों से जुटाए। 19,650 करोड़ रुपए की पूंजी ऋण प्रतिभूतियों के सार्वजनिक निर्गम से जुटाए गए। 00 मित्र विद्याभूषण रावत सही लिखते हैं कि आज बड़े दिन के अवसर पर सभी को शुभकामनायें। आज के ऐतिहासिक दिन पर १९२७ को बाबा साहेब आंबेडकर ने मनु के धार्मिक आतंकवाद को खुली चुनौती दी. ये दिन आज़ादी के दिवानो का दिन है जो धर्म की सत्ता को नहीं स्वीकारते और न ही ये मानने को तैयार हैं के धर्म के नाम पर उपलब्ध पुस्तके कोई 'आसमानी' या ऊपर से टपक कर है और उनकी लिखी बातो को हम अक्षरसः नहीं स्वीकारते। अब जरुरत है के हम मनुवाद को अपने दिलो से निकालकर दफ़न कर दे और एक मानववादी समाज का निर्माण करें। आइये मानववाद कि इस महान विरासत को अच्छे से मनाएं। लेकिन इस पर गौर तो करें कि सेवा क्षेत्र में मुनाफे की बहार उत्पादन प्रणाली,उत्पादन संबंधों,आजीविका और कृषि के ध्वंस पर आधारित है। मंदी के बावजूद बायोमेट्रिक डिजिटल उपक्रमों के जरिये आईटी क्षेत्र का सबसे तेज विकास हुआ है और आईटी ईश्वर नंदन निलेकणि ही असली भारतभाग्यविधाता हैं।और अब बीमा पॉलिसी दस्तावेज भी अगले साल से शेयरों की तरह डिजिटल तथा कागजरहित हो जाएंगे और बीमाधारकों को अपनी पॉलिसी की कागजी कॉपियों को सुरक्षित रखने की मेहनत नहीं करनी होगी। अप्रैल के बाद से सभी नई बीमा नीतियों के लिए दस्तावेज इलेक्ट्रॉनिक रूप में आएंगे। सीएएमएस रिपोजिटरी सर्विसेज लिमिटेड के सीईओ एस वी रमन ने कहा कि 25 करोड़ से अधिक पॉलिसीधारकों के पास 37 करोड़ पॉलिसी हैं, जिन्हें इनका ई-बीमा चरणबद्ध तरीके से उपलब्ध कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) इस प्रक्रिया को अनिवार्य करने के बारे में रोडमैप की घोषणा कर सकता है। इंफोसिस में उसके संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति की वापसी के बाद कंपनी का शेयर करीब 50 प्रतिशत चढ़ा है। हालांकि इस साल जून से इंफोसिस के कई बड़े अधिकारियों ने कंपनी छोड़ दी है, उसके बावजदू शेयर का भाव चढ़ा है। छह महीने पहले नारायणमूर्ति की वापसी के बाद कंपनी के आठ बड़े अधिकारी इस्तीफा दे चुके हैं। इंफोसिस के बीपीओ कारोबार के प्रमुख वी बालाकृष्णन ने इस महीने कंपनी से इस्तीफा दे दिया। वह कंपनी के निदेशक मंडल में भी शामिल थे। इंफोसिस का शेयर जून से अबतक 48.85 प्रतिशत चढ़ा है। हालांकि बालकृष्णन के इस्तीफे के बाद शेयर भाव 2 प्रतिशत से अधिक नीचे आया है। देश के 270 अरब डॉलर के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र में तेज विकास का युग 2013 में वापस लौटा है और उम्मीद है कि आने वाले वर्षो में इसमें और तेजी से विकास होगा। देश की चार शीर्ष आईटी कंपनियों -टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल- ने 2013 में 12-14 फीसदी की दर से विकास दर्ज किया, जो 2012-13 में 10 फीसदी था। क्षेत्र की एक शीर्ष प्रतिनिधि संस्था ने कहा, ''इस साल वैश्विक प्रौद्योगिकी खर्च में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई है। इससे भारतीय सॉफ्टवेयर सेवा क्षेत्र को निर्यात और घरेलू दोनों ही क्षेत्रों में दहाई अंकों में विकास करने का बेहतर अवसर मिला है।'' नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसिस कंपनी (नासकाम) के मुताबिक इस उद्योग को 2013-14 में निर्यात से 84-87 अरब डॉलर की आय हो सकती है। पिछले साल इस मद में 76 अरब डॉलर की आय हुई थी। इस उद्योग के घरेलू बाजार के साल-दर-साल आधार पर 14 फीसदी विकास के साथ वर्तमान कारोबारी वर्ष में 1,200 अरब रुपये (185 अरब डॉलर) का हो जाने का अनुमान है, जो पिछले कारोबारी वर्ष की समाप्ति पर 1,050 अरब रुपये (160 अरब डॉलर) का था। नासकाम के अध्यक्ष सोम मित्तल ने आईएएनएस से कहा, ''अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े बाजारों में सुस्त विकास के कारण विपरीत परिस्थिति के बावजूद हमने वर्तमान कारोबारी वर्ष में अपने अनुमान में बदलाव नहीं करने और 12-14 फीसदी विकास के अनुमान पर कायम रहने का फैसला किया है।'' इस साल के मुख्य घटनाक्रमों में इंफोसिस के सह-संस्थापक एन.आर. नारायणमूर्ति ने जून में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कंपनी की बागडोर फिर से संभाल ली। 67 वर्षीय मूर्ति की वापसी के साथ ही हालांकि कंपनी के आठ शीर्ष पदाधिकारियों ने कंपनी छोड़ दी, जिनमें से दो बोर्ड निदेशक थे। इस साल विप्रो लिमिटेड ने अप्रैल में अपने वैश्विक सॉफ्टवेयर सेवा और उत्पाद कारोबार से गैर आईटी (उपभोक्ता सेवा और लाइटिंग, अधोसंरचना इंजीनियरिंग और मेडिकल डायग्नोस्टिक प्रोडक्ट और सेवा) कारोबार को एक स्वतंत्र कंपनी के रूप में अलग कर दिया। मित्तल ने कहा कि घरेलू बाजार भी परिपक्व हो रहा है और विकासशील देशों के बीच इसकी विकास दर सबसे अधिक है। इस उद्योग में प्रत्यक्ष रोजगार पाने वालों की संख्या 30 लाख हो गई है। पिछले कारोबारी वर्ष में उद्योग ने 1,88,000 नए रोजगार का सृजन किया। नासकाम के अध्यक्ष और टीसीएस के मुख्य कार्यकारी एन. चंद्रशेखरन ने कहा, ''इस उद्योग ने फिर एक बार सुस्ती से बाहर निकलने की क्षमता दिखाई है। प्रौद्योगिकी आज सभी क्षेत्रों में विकास की सूत्रधार बन रही है और हम अपने ग्राहकों का रणनीतिक साझेदार बनने के लिए खुद का नए रूपों में विकास कर रहे हैं।'' 2013 संक्षेप में : - सॉफ्टवेयर निर्यात 12-14 फीसदी विकास दर के साथ 84-87 अरब डॉलर की उम्मीद। - घरेलू बाजार के भी 14 फीसदी विकास के साथ 185 अरब डॉलर का होने की उम्मीद। - एन. आर. नारायणमूर्ति की अध्यक्ष के रूप में इंफोसिस में वापसी। - छह माह में इंफोसिस ने आठ शीर्ष अधिकारियों ने दिया इस्तीफा। - विप्रो ने गैर-आईटी कारोबार को अलग कंपनी के रूप में स्थापित किया। - उद्योग ने नए सेवाओं और उत्पादों में अपना बाजार बढ़ाया। - अधिक कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने के बाद भी कैंपस से भर्ती और नई नियुक्ति घटी। Like · · Share · 5 hours ago · Edited ·
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इकानामिक टाइम्स
देवयानी मामला : भारत सख्त, अमेरिकी अफसरों के पर कतरे
Sahara Samay - 12 hours ago
देवयानी खोब्रागडे की गिरफ्तारी के बाद पैदा हुए हालात के बीच सख्त भारत ने कुछ खास श्रेणी के अमेरिकी राजनयिकों की कूटनीतिक छूट में कमी कर दी है. न्यूयार्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोब्रागडे की गिरफ्तारी के बाद पैदा हुए हालात के बीच सख्त जवाबी कार्रवाई करते हुए भारत ने मंगलवार को कुछ खास श्रेणी के अमेरिकी राजनयिकों की कूटनीतिक छूट में कमी कर दी. उनके परिजनों पर लागू छूट के प्रावधान भी वापस ले लिए गए हैं. भारत में चार वाणिज्यिक दूतावासों में तैनात अमेरिकी अधिकारियों को नए पहचान-पत्र जारी किए गए हैं जिनमें सीमित छूट का प्रावधान है. अब गंभीर अपराधों में ...
अमेरिकी राजनयिकों के पहचान पत्र रद्द, रियायत खत्म
नवभारत टाइम्स - 16 hours ago
देवयानी खोब्रागड़े मामले में अमेरिका पर दबाव बनाए रखते हुए भारत ने अमेरिकी वाणिज्य दूतावासों से जुड़े सभी राजनयिकों के पहचान पत्र रद्द कर दिए हैं। उन्हें जारी किए जा रहे नए आईडी में उनके विशेषाधिकार घटा दिए गए हैं। सूत्रों ने कहा कि नए परिचय पत्र उसी तर्ज पर हैं जिस तरह के अमेरिका में भारतीय काउंसुलेट स्टाफ को जारी किए जाते हैं। सूत्रों के मुताबिक, अमेरिकी राजनयिकों के परिवार वालों को दिए गए पहचान पत्र भी वापस ले लिए गए हैं। अब अमेरिकी वाणिज्य दूतावास कर्मचारियों को भारत में नियुक्त किए जाने के महज छह महीने तक ही अपनी जरूरत के सामान आयात करने की रियायत होगी।
भारत के साथ बातचीत में शामिल होगा घरेलू कामगारों का मुद्दा
दैनिक जागरण - 7 hours ago
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, 'मंत्रालय भारत सरकार के साथ बातचीत कर इस मसले का हल निकालने के लिए रास्ता तैयार करना चाहता है।' विदेश मंत्रालय न्यूयॉर्क स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास से संयुक्त राष्ट्र के स्थायी मिशन में देवयानी के तबादले संबंधी आवेदन की समीक्षा कर रहा है। अधिकारी ने कहा, हम बड़े मुद्दों को सुलझाने को आवश्यक मानते हैं, लेकिन आगामी सप्ताहों और महीनों में होने वाली द्विपक्षीय बातचीत में घरेलू कामगारों के मसले को भी शामिल किया जाएगा। उनकी यह प्रतिक्रिया एक दिन पहले ही भारत द्वारा खास श्रेणी के अमेरिकी राजनयिकों को दी गई ...
भारत की सख्ती: गंभीर मामलों में नहीं मिलेगी अमेरिकी राजनयिकों को छूट
दैनिक भास्कर - 15 hours ago
जयशंकर अमेरिका में भारत के नए राजदूत का पद ग्रहण करने पहुंच गए हैं। वे इससे पहले चीन में राजदूत थे। वे नए साल के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपना पहचान-पत्र सौंपेंगे। जयशंकर की भारत-अमेरिका परमाणु करार में अहम भूमिका थी। वे निरुपमा राव का स्थान लेंगे। सोनिया के वकील का भारत से अनुरोध. अमेरिकी अदालतों में कांग्रेस और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी का प्रतिनिधित्व करने वाले रवि बत्रा ने भारत से अनुरोध किया है। उन्होंने कहा है कि भारत नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में सुरक्षा इंतजाम मजबूत करे। वहां फिर से अवरोधक लगाए जाएं, जिन्हें हाल ही में हटाया गया था।
अमेरिकी राजनयिकों पर भारत हुआ सख्त
Live हिन्दुस्तान - Dec 24, 2013
न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी के बाद पैदा हुए हालात के बीच एक सख्त जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतने कुछ खास श्रेणी के अमेरिकी राजनयिकों की कूटनीतिक छूट में कमी कर दी और उनके परिजनों पर लागू छूट के प्रावधान वापस ले लिए।भारत में चार वाणिज्यिक दूतावासों में तैनात अमेरिकी अधिकारियों को नए पहचान पत्र जारी किए गए हैं जिनमें उन्हें सीमित छूट का प्रावधान है और अब गंभीर अपराधों में उन्हें किसी तरह की छूट नहीं मिल पाएगी। अमेरिका में भारतीय वाणिज्य-दूतावास के अधिकारियों को मिल रही सीमित छूट के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है। अमेरिकी ...
अमेरिकी राजनयिकों पर सख्ती
Live हिन्दुस्तान - Dec 24, 2013
अमेरिका में भारतीय वाणिज्य-दूतावास के अधिकारियों को मिल रही सीमित छूट के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है। भारत ने अमेरिकी वाणिज्य-दूतावास के सभी अधिकारियों और उनके परिजन से कहा था कि वे 23 दिसंबर तक अपने पहचान-पत्र जमा कर दें ताकि उन्हें मिल रही छूट एवं अन्य लाभों की समीक्षा की जा सके। सूत्रों ने बताया, अमेरिकी वाणिज्य-दूतावास के अधिकारियों को दिए गए सभी पहचान-पत्र अब वापस लिए जाते हैं। नए पहचान-पत्र ठीक वैसे ही होंगे जैसे अमेरिका में भारतीय वाणिज्य-दूतावास के अधिकारियों को जारी किए जाते हैं। ये पहचान-पत्र दूतावास के अधिकारियों को दिए जाएंगे, उनके परिजन ...
अमेरिकी राजनयिकों पर सख्ती, पहचान पत्र रद्द, रियायतें खत्म
khaskhabar.com हिन्दी - 8 hours ago
भारत सरकार के उच्च सूत्रों ने कहा कि यह कदम पूरी तरह वियना समझौते के अनुरूप है। गौरतलब है कि भारत ने न्यूयॉर्क में अपनी उप-वाणिज्य दूत देवयानी को वीजा धोखाधडी के आरोप में हथकडी लगाकर गिरफ्तार करने और निर्वस्त्र कर तलाशी लेने के बाद कडा एतराज जताया था। सरकार ने अमेरिका के राजनयिकों को भारत में हासिल अधिकारों की समीक्षा के तहत हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावास के सभी राजनयिकों को पहचान पत्र लौटाने को कहा था। अमेरिकी दूतावास ने परिचय पत्र सौंपने की मियाद 23 दिसंबर के बाद बढाने का आग्रह किया था और विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी ...
अमेरिकी अधिकारियों से परिचय पत्र वापस लिए
Business Standard Hindi - Dec 24, 2013
भारत सरकार ने समय सीमा समाप्त होने के साथ ही अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों को दिए परिचय पत्र मंगलवार को वापस ले लिए। सरकार ने 12 दिसंबर को न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोब्रागडे की गिरफ्तारी के मद्देनजर यह कदम उठाया है। भारत ने देश में मौजूद अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों को दिए गए परिचय पत्र लौटाने के लिए दी गई समय सीमा खत्म होने के मद्देनजर ठोस कदम उठाने का फैसला किया है। सूत्रों ने बताया किअमेरिकी अधिकारियों ने सभी परिचय पत्र वापस कर दिए हैं।
अमरीकी राजनयिकों के विशेष आईडी कार्ड निरस्त India cancels all identity cards issued to us consular
Patrika - 36 minutes ago
भारतीय राजनयिक देवयानी खेबरागडे की गिरफ्तारी और उनके साथ अमेरिकी पुलिस के दुर्व्यवहार के विरोध में अपना रवैया कड़ा करते हुए भारत ने अमेरिकी राजनयिकों को दी गयी कुछ विशेष सुविधाएं वापस लेने के अपने निर्णय पर अमल शुरू कर दिया है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि अमेरिकी वाणिज्य दूतावासों के राजनयिकों और उनके परिवारों के सदस्यों को पहचान पत्र लौटाने के लिए दी गयी समय सीमा समाप्त हो गई। अब ये पहचान पत्र वापस लिये माने जाएंगे। उन्होंने कहा कि इन पहचान पत्रों के स्थान पर नए पहचान पत्र सिर्फ राजनयिकों को दिये जाएंगे। उनके परिवारों को नहीं दिए जाएंगे, क्योंकि अमेरिका ...
देवयानी: यूएस डिप्लोमेट के आईडी कार्ड छिने
आईबीएन-7 - Dec 24, 2013
नई दिल्ली। न्यूयार्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी मामले में नई दिल्ली द्वारा भारत में नियुक्त अमेरिकीराजनयिकों के पहचान पत्र वापस लिए जाने के बाद मंगलवार को भी दोनों देशों के बीच गतिरोध बना रहा। सूत्रों ने बताया कि भारत ने मंगलवार को कहा कि यहां नियुक्त अमेरिकी वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों को पहचान पत्र वापस किए जाने के लिए दी गई अंतिम तिथि समाप्त होने के बाद सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया गया। इसके अलावा नई दिल्ली ने अमेरिकी राजनयिकों के परिवार के सदस्यों को कोई पहचान पत्र न दिए जाने का निर्णय भी लिया। देवयानी मामले में भारत ...
देवयानी मामले में भारत, अमेरिका के बीच गतिरोध का समाधान निकलने का संकेत
एनडीटीवी खबर - Dec 23, 2013
India-US close to sort out Devyani issue. close. नई दिल्ली: वरिष्ठ राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के मामले में बने गतिरोध पर भारत औरअमेरिका के बीच समाधान निकलने का पहला संकेत सोमवार को मिला जब देवयानी को न्यूयॉर्क की एक अदालत में निजी तौर पर पेशी से छूट प्रदान की गयी जो उनके खिलाफ वीजा धोखाधड़ी के मामले में सुनवाई कर रही है। उधर, देवयानी को संयुक्त राष्ट्र में उनके तबादले के बाद मान्यता मिल गई है। न्यूयार्क में 12 दिसंबर को गिरफ्तारी किये जाने और जमानत पर रिहा होने के बाद देवयानी को पूर्ण राजनयिक छूट प्रदान करने के लिए सरकार ने उनका तबादला संयुक्त राष्ट्र में भारत के मिशन में ...
देवयानी खोबरागड़े के दस्तावेज की कर रहे हैं समीक्षा : अमेरिका
एनडीटीवी खबर - Dec 23, 2013
... जब न्यूयॉर्क की एक अदालत ने वीजा जालसाजी के आरोपों के तहत उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। भारत ने देवयानी की गिरफ्तारी और उसके बाद उससे बदसलूकी का कड़ा विरोध किया। बाद में भारतीय राजनयिक ढाई लाख डॉलर के मुचलके पर रिहा कर दी गई। न्यूयॉर्क अदालत ने उनसे अपना राजनयिक पासपोर्ट जमा करने को कहा। उसके तुरंत बाद भारत सरकार ने देवयानी का तबादला संयुक्त राष्ट्र के अपने स्थाई मिशन में कर दिया ताकि उन्हें पूरी राजनयिक छूट हासिल हो सके। संयुक्त राष्ट्र ने उनका तबादला स्वीकार कर लिया और उसने अमेरिकी विदेश मंत्रालय को पहचान पत्र जारी करने के लिए आवश्यक दस्तावेज ...
देवयानी को पेशी से छूट,UN में तबादला भी मंजूर
आईबीएन-7 - Dec 23, 2013
नई दिल्ली। देवयानी से बदसलूकी के बाद भारत-अमेरिकी रिश्तों में आई तल्खी अब नरम पड़ती दिख रही है। न्यूयॉर्क की एक अदालत ने वीजा फर्जीवाड़े मामले में देवयानी को व्यक्तिगत पेशी से छूट दे दी है। इसके अलावा अमेरिका ने देवयानी को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में तैनात राजनयिक के तौर पर भी मान्यता दे दी है। उधर, दिल्ली में अमेरिकी दूतावास ने अपने अधिकारियों और भारतीय कर्मचारियों की डिटेल देने के लिए समय सीमा बढ़ाने की गुजारिश की है। हालांकि अमेरिका ने भारत की उस मांग को फिलहाल नहीं माना जिसमें बदसलूकी के लिए माफी और वीजा फर्जीवाड़े के आरोप हटाने की मांग की गई ...
देवयानी मामले पर नाराज भारत ने अमेरिकियों के आईकार्ड रद्द किए
Oneindia Hindi - 20 hours ago
नयी दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े का विवाद और गहराता जा रहा था। राजनायिक मुद्दे परअमेरिका द्वारा उठाए गए कदम से नाखुश भारत ने अमेरिका दूतावास के अधिकारियों को दी जा रही विशेष सुविधाओं को समाप्त करते हुए उतनी ही सुविधाएं देने की घोषणा की है जितनी की भारतीय राजनयिकों को अमेरिका में दी जा रही हैं। उन्होंने अमेरिकी राजनायिकों को दी जा रही थी विशेष आईकार्ड रद्द कर दिए। भारत सरकार ने अमेरिकी राजनायिक को दी जा रही है विशेष सुविधाओं के संबंध में जारी किए गए पासों को वापस करने के लिए उन्हें अंतिम तारिख जारी कर दी गई है।
देवयानी खोबरागड़े को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता, अमेरिकी कोर्ट में मिलेगी छूट
दैनिक भास्कर - Dec 23, 2013
देवयानी खोबरागड़े को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता, अमेरिकी कोर्ट में मिलेगी छूट. AGENCY | Dec 24, 2013, 13:59PM IST. आर्टिकल. देवयानी खोबरागड़े को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता, अमेरिकी कोर्ट में मिलेगी छूट. न्यूयॉर्क. संयुक्त राष्ट्र ने भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को मान्यता दे दी है। विश्व संस्था के इस निर्णय को भारतीय राजनयिक को पूर्ण राजनयिक छूट दिए जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। भारत के संयुक्त राष्ट्र स्थित स्थाई मिशन में मान्यता मिल जाने से खोबरागड़े को अमेरिकी विदेश विभाग को परिचय पत्र भी मिल जाएगा। इससे उन्हें वर्तमान समय में अपने ...
देवयानी को निजी तौर पर पेशी से मिली छूट
नवभारत टाइम्स - Dec 23, 2013
न्यू यॉर्क में इंडियन डिप्लोमैट देवयानी खोबरागड़े के मामले में भारतीय और अमेरिकी अधिकारियों ने एक दूसरे के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई रोक कर इस बात के संकेत दिए हैं कि दोनों पक्ष इस मसले को सुलझाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। देवयानी को संयुक्त राष्ट्र स्थित भारत के स्थायी मिशन में इंडियन डिप्लोमैट के तौर पर नियुक्ति और संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता मिलने के बाद न्यू यॉर्क की अदालत में सोमवार को उनकी पेशी से छूट मिल गई। मेड संगीता रिचर्ड को कम सैलरी देने और उसके वीजा आवेदन में गलत जानकारी देने के मामले में देवयानी को सोमवार को न्यूयॉर्क की ...
देवयानी मामले को लेकर भारत-अमेरिका आमने-सामने
प्रभात खबर - Dec 23, 2013
नयी दिल्ली : देवयानी खोबरागेड की गिरफ्तारी के बाद भारत की ओर से की गयी कार्रवाई के बाद से दोनों देश आमने-सामने हैं. अमेरिकाने रविवार को मुंबई में नरेंद्र मोदी की रैली को अमेरिकी दूतावास और मोदी की सुरक्षा पर चिंता जाहिर की थी. इसके बाद भारत ने बयान जारी कर कहा कि किसी राजनेता की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी है और कोई दूसरा देश यह तय नहीं कर सकता कि राजनैतिक दल अपनी सभाएं कहां आयोजित करेंगे. हाल ही में अमेरिकी दूतावास के बाहर से बैरीकेड्स हटाने के बाद भारत ने कहा कि अमेरिकी संपत्तियों की सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं हुआ है. अमेरिकी प्रशासन ने मुद्दा उठाया था कि ...
देवयानी खोबरागड़े के दस्तावेजों की होगी समीक्षा: अमेरिका
Live हिन्दुस्तान - Dec 23, 2013
... गिरफ्तार कर लिया गया जब न्यूयार्क की एक अदालत ने वीजा जालसाजी के आरोपों के तहत उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। भारत ने देवयानी की गिरफ्तारी और उसके बाद उससे बदसलूकी का कड़ा विरोध किया। बाद में भारतीय राजनयिक ढाई लाख डालर के मुचलके पर रिहा कर दी गई। न्यूयार्क अदालत ने उनसे अपना राजनयिक पासपोर्ट जमा करने को कहा। उसके तुरंत बाद भारत सरकार ने देवयानी का तबादला संयुक्त राष्ट्र के अपने स्थाई मिशन में कर दिया, ताकि उन्हें पूरी राजनयिक छूट हासिल हो सके। संयुक्त राष्ट्र ने उनका तबादला स्वीकार कर लिया और उसने अमेरिकी विदेश मंत्रालय को पहचान पत्र जारी करने के ...
अमरीकी राजनयिकों की सुविधा में कटौती
Rajasthan Patrika - 7 hours ago
... धोखाधड़ी और अपनी नौकरानी संगीता रिचर्ड को दिए जाने वाले वेतन के बारे में झूठा बयान देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। हिरासत में तलाशी के दौरान उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया गया। देवयानी को बाद में भारत ने न्यूयार्क में स्थित अपने संयुक्त राष्ट्र मिशन में स्थानांतरित कर दिया, जहां उन्हें राजनयिकों को मिलने वाले सभी प्रतिरक्षा अधिकारों का लाभ मिलेगा। भारत ने मंगलवार को यह भी कहा कि वाणिज्य दूतावास संबंधों के लिए वियना संधि के अनुसार, अब से अमेरिकी राजनयिकों को पदभार ग्रहण करने के बाद छह महीने के भीतर अपने जरूरत के सामान लाने की इजाजत दी जाएगी।
देवयानी खोबरागड़े को अमेरिकी अदालत में पेशी से मिली छूट
एनडीटीवी खबर - Dec 23, 2013
नई दिल्ली: वीजा फर्जीवाड़ा मामले में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को न्यूयॉर्क की अदालत में पेशी से छूट मिलने के साथ ही भारत औरअमेरिका इस अधिकारी को लेकर उत्पन्न गतिरोध दूर करने की ओर बढ़ते हुए जान पड़ रहे हैं। उधर, संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में उनके तबादले को मान्यता मिल गई है। न्यूयॉर्क में 12 दिसंबर को गिरफ्तारी और जमानत पर रिहा होने के बाद देवायानी को पूर्ण राजनयिक छूट प्रदान करने के लिए सरकार ने उनका संयुक्त राष्ट्र में अपने मिशन में तबादला कर दिया था। उनकी नियुक्ति को मान्यता के संबंध अमरिका के विदेश विभाग में कुछ कागजी कार्रवाई होने की संभावना है ...
देवयानी के दस्तावेजों की हो रही समीक्षा: अमेरिका
दैनिक जागरण - Dec 24, 2013
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया, 'हमें शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र से कागजात प्राप्त हुए हैं। इसकी समीक्षा की जा रही है।' हालांकि उन्होंने यह बताने से इन्कार कर दिया कि मंत्रालय कागजात की समीक्षा करने में कितना समय लगाएगा। उन्होंने इस बात की जानकारी देने से भी इन्कार किया कि देवयानी को पहचान पत्र कब दिया जाएगा। वीजा धोखाधड़ी के मामले में न्यूयॉर्क की अदालत द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी किए जाने के बाद देवयानी को 12 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था। भारत ने उनकी गिरफ्तारी और बाद में उनसे हुई बदसलूकी का कड़ा विरोध किया है। हालांकि बाद में देवयानी ...
खोबरागड़े को अमेरिकी अदालत में पेशी से मिली छूट
Live हिन्दुस्तान - Dec 23, 2013
वीजा फर्जीवाड़ा मामले में वरिष्ठ राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को न्यूयार्क की अदालत में पेशी से छूट मिलने के साथ ही भारत औरअमेरिका इस अधिकारी को लेकर उत्पन्न गतिरोध दूर करने की ओर बढ़ते हुए जान पड़ रहे हैं। उधर,संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में उनके तबादले को मान्यता मिल गयी है। न्यूयार्क में 12 दिसंबर को गिरफ्तारी और जमानत पर रिहा होने के बाद देवायानी को पूर्ण राजनयिक छूट प्रदान करने के लिए सरकार ने उनका संयुक्त राष्ट्र में अपने मिशन में तबादला कर दिया था। उनकी नियुक्ति को मान्यता के संबंध अमरिका के विदेश विभाग में कुछ कागजी कार्रवाई होने की संभावना है और भारत इस ...
जनसत्ता 24 दिसंबर, 2013 : अमेरिका भारतीय विदेश सेवा की महिला अधिकारी से बदसलूकी के लिए माफी नहीं मांगता,
Jansatta - Dec 23, 2013
भीड़ के कारण अमेरिकी वाणिज्य-दूतावास उसे खतरे में नजर आ रहा था। मोदी की रैली में अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल भी आमंत्रित थीं, जिनका न्योता भाजपा ने निरस्त कर दिया था। सुरक्षा और अपने राजनयिकों को विशेष सुविधाएं देने के सवाल पर अमेरिका आगे भी अडंगेबाजी करेगा। विएतनाम से इराक, अफगानिस्तान तक अमेरिकी कब्जे का इतिहास देखें, तो साफ पता चलता है कि इन लोगों ने सबसे अधिक औरतों-बच्चों पर जुल्म ढाए हैं, जिसका उन्हें जरा भी अफसोस नहीं है। अमेरिका ने दो टूक कह दिया कि न्यूयार्क में भारत की उप-महावाणिज्यदूत रहीं देवयानी खोबरागड़े के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले नहीं ...
देवयानी को अमेरिकी अदालत में पेशी से छूट
Live हिन्दुस्तान - Dec 23, 2013
न्यूयॉर्क में 12 दिसंबर को गिरफ्तारी और जमानत पर रिहा होने के बाद देवायानी को पूर्ण राजनयिक छूट प्रदान करने के लिए सरकार ने उनका संयुक्त राष्ट्र में अपने मिशन में तबादला कर दिया था। उनकी नियुक्ति को मान्यता के संबंध अमेरिका के विदेश विभाग में कुछ कागजी कार्रवाई होने की संभावना है औरभारत इस सिलसिले में पहले ही कागजात सौंप चुका है। अमेरिकी राजनयिकों के लिए समय सीमा खत्म: भारत में तैनात अमेरिकी राजनयिकों से राजनयिक परिचय पत्र और एयरपोर्ट पास वापस देने की समय सीमा सोमवार को खत्म हो गई। जिसके बाद भारत ने कुछ और वक्त देने के संकेत दिए हैं। दिल्ली के अमेरिकी ...
देवयानी मामले में अमेरिकी साजिश की बू
आज तक - Dec 23, 2013
भारत की सीनियर डिप्लोमेट देवयानी खोबरागड़े के मामले में कुछ ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जिनसे जाहिर होता है कि उन्हें किसी स्तर पर अमेरिकी साजिश का शिकार होना पड़ा. भारत पहले ही कह चुका है कि देवयानी मामले के पीछे साजिश मालूम पड़ती है. दरअसल, देवयानी की फरार नौकरानी के परिवार के तीन सदस्यों के विमान के टिकट का भुगतान अमेरिकी उच्चायोग ने उस समय किया था, जब पिछले सप्ताह उन्हें यहां से निकालकर न्यूयॉर्क भेजा गया था. टिकट से खुल रहा है राज... सूत्रों ने बताया कि नौकरानी के पति फिलिप रिचर्ड और उसके दो बच्चों- जेनिफर और जतिन को अमेरिकी उच्चायोग के ऑफिशियल ट्रैवेल ...
भारत ने देवयानी के लिए यूएन से मांगी राजनयिक छूट
दैनिक भास्कर - Dec 23, 2013
... मामला संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी विदेश विभाग के बीच है। राजनयिक छूट देने में संयुक्त राष्ट्र की कोई भूमिका नहीं है। क्योंकि मुख्यालय से जुड़े समझौते के तहत यह छूट अमेरिका देता है। नई दिल्ली त्नविदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने उम्मीद जाहिर की है कि भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी के बाद पैदा हुआ गतिरोध जल्दी दूर होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ हल निकालने की कोशिश चल रही है। भारत-अमेरिका संबंधों पर अपने बयान का अमेरिकी विदेश विभाग के स्वागत करने पर खुर्शीद ने कहा, 'उन्हें (अमेरिका को) कुछ करना चाहिए। स्वागत करना ही काफी नहीं है।' Previous Story.
भारत ने की देवयानी को विशेषाधिकार देने की मांग
नवभारत टाइम्स - Dec 22, 2013
एजेंसियां, संयुक्त राष्ट्र भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को लेटर लिखकर भारतीय मिशन में बतौर काउंसुलर के तौर पर ट्रांसफर हुईं देवयानी खोबरागडे को राजनयिक छूट और कूटनीतिज्ञ के सभी विशेषाधिकार देने का आग्रह किया है। संयुक्त राष्ट्र में भारतीय राजदूत अशोक मुखर्जी ने 18-19 दिसंबर के आसपास मून को लेटर लिखा, जिसके साथ उन्होंने दूसरे दस्तावेज भी भेजे। अमेरिका में वीजा फ्रॉड मामले में गिरफ्तार की गई देवयानी इससे पहले न्यू यॉर्क में भारत की डिप्टी कौंसुल थीं। मुखर्जी ने कहा, 'हमने मून को सूचित किया कि अब यहां हमारी एक नई डिप्लोमैट हैं, जिन्हें काउंसुलर ...
देवयानी मामले में अपनों ने ही अमेरिकी सरकार को घेरा
आज तक - Dec 23, 2013
याचिका में कहा गया, राजनयिक छूट के बावजूद डॉ. खोबरागड़े को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वह अपनी बेटी के स्कूल से बाहर निकलीं, उन्हें हथकड़ी लगाई गई, कपड़े उतरवाकर तलाशी ली गई और हवालात में बंद किया गया. इसमें कहा गया कि देवयानी अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लिए भारत सरकार के प्रतिनिधियों में से एक हैं. सार्वजनिक रूप से उनके अपमान से भारतीय-अमेरिकी समुदाय की भावनाएं आहत हुई हैं. इस तरह की घटनाएं भारत-अमेरिका संबंधों को चोट पहुंचाती है. हम आग्रह करते हैं कि डॉ. खोबरागड़े को पहुंचे मानसिक ठेस और सार्वजनिक अपमान के मद्देनजर उनके खिलाफ लगे आपराधिक आरोपों को ...
अमेरिका ने कहा, खोबरागड़े के दस्तावेज की कर रहे हैं समीक्षा
प्रभात खबर - Dec 23, 2013
उसके तुरंत बाद भारत सरकार ने देवयानी का तबादला संयुक्त राष्ट्र के अपने स्थाई मिशन में कर दिया ताकि उन्हें पूरी राजनयिक छूट हासिल हो सके. संयुक्त राष्ट्र ने उनका तबादला स्वीकार कर लिया और उसने अमेरिकी विदेश मंत्रालय को पहचान पत्र जारी करने के लिए आवश्यक दस्तावेज भेज दिया. पहचान पत्र से देवयानी को पूरी राजनयिक छूट हासिल हो जाएगी. अमेरिका|; कहा|; भारतीय राजनयिक|; देवयानी खोबरागड़े|; दस्तावेज की|; समीक्षा. Related Stories. संयुक्त राष्ट्र में तैनाती से मिली देवयानी को अस्थायी छूट :अमेरिकादेवयानी के खिलाफ बरकरार रहेगा वीजा फर्जीवाड़े का मामला : अमेरिकाभारत ने ...
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* देवयानी पर अड़ा अमेरिका, नरम पड़ रहा भारत!
आईबीएन-7-21-Dec-2013
नई दिल्ली। भारतीय राजनयिक देवयानी से बदसलूकी और उनके खिलाफ वीजा फर्जीवाड़ा का केस हटाने के लिए अमेरिकी सरकार तैयार नहीं है। अमेरिका ने साफ किया कि संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई मिशन में देवयानी के तबादले से उनके ...
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* भारत-अमेरिका संबंधों में प्रगति के लिए पारस्परिक ...
पंजाब केसरी-22-Dec-2013
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आज कहा कि यदि भारत औरअमेरिका के बीच संबंधों को आगे बढ़ाना है तो पारस्परिक विशेषाधिकारों को अहमियत देनी होगी तथा दोनों देशों को राजनयिक देवयानी खोबरागड़े के साथ ...
भारत में अमेरिका विरोधी लहर
खबरें l Deutsche Welle-19-Dec-2013
भारत सरकार ने पहली बार अमेरिका के प्रति जिस प्रकार का कड़ा रुख अपनाया है, वह अभूतपूर्व है. शीत युद्ध के दौरान भी जब भारत तत्कालीन सोवियत संघ का नजदीकी सहयोगी था, कभी देश भर में ऐसा अमेरिका विरोधी गुस्सा देखने को नहीं मिला.
भारत-अमेरिकी संबंधों में तनातनी के केंद्र में ...
Business Standard Hindi-20-Dec-2013
पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने 2008 में जब पाकिस्तान का दौरा किया था तो वहां के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुहम्मद मिलन सुमरू ऐसे पहले शख्स थे जिन्होंने देवयानी खोब्रागडे के बारे में उनसे पूछताछ की थी। उस समय देवयानी कम ...
* भारत मे अमेरिकी राजनयिको के साथ कोई ढिलाई नहीं
देशबन्धु-20-Dec-2013
भारत मे अमेरिका की राजदूत नैसी पावेल ने आज यहां विदेश मंत्रालय मे आकर इस कूटनीतिक गतिरोध को खत्म करने के लिये ... ऐसे संकेत है कि अगर सुश्री खोबरगडे के खिलाफ आरोप वापस नहीं लिये गये तो भारत देश मे अमेरिकी राजनयिको के साथ किये जा रहे .
* भारत अमेरिका में दो दो हाथ
खबरें l Deutsche Welle-18-Dec-2013
अमेरिका के साथ कूटनीतिक विवाद में अब भारत भी सख्त कदम उठाने लगा है. नई दिल्ली में अमेरिकी अधिकारियों को दी जा रही तमाम रियायतें बंद की गईं. चुनाव की तैयारी कर रहे भारत के इन कदमों पर अमेरिका ने प्रतिक्रिया नहीं दी है.
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* सुलह की राह पर भारत-अमेरिका
Dainiktribune-21-Dec-2013
भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े से बदसलूकी मामले के बाद तल्ख हुए भारत-अमेरिकी संबंध अब पटरी पर आते दिख रहे हैं। वाशिंगटन से संकेत आ रहे हैं कि अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद से जल्दी ...
* अमेरिकी राजनयिकों पर भारत हुआ सख्त
Live हिन्दुस्तान-24-Dec-2013
न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी के बाद पैदा हुए हालात के बीच एक सख्त जवाबी कार्रवाई करते हुए भारत ने कुछ खास श्रेणी के अमेरिकीराजनयिकों की कूटनीतिक छूट में कमी कर दी और उनके परिजनों पर लागू ...
भारत-अमेरिका के बीच गतिरोध जारी
एनडीटीवी खबर-18-Dec-2013Share
नई दिल्ली / वाशिंगटन: न्यूयॉर्क में गिरफ्तार अपनी राजनयिक के साथ दुर्व्यवहार के मामले पर भारतके अमेरिका से 'बिना शर्त' माफी की अपनी मांग से पीछे न हटने और अमेरिका के अपनी बात पर अडिग रहने के कारण दोनों देशों के बीच ...
CBI says it has found no evidence of 'crime' in Radia tapes so far
Express News Service : New Delhi, Wed Dec 25 2013, 08:46 hrs
The CBI has informed the Supreme Court that it has "so far" found no criminality in the 14 preliminary enquiries it registered on the court's directions in the Niira Radia case.
While submitting the report on December 16, the agency asked the court for another month to probe the contents of the telephonic conversations handed over to it by the Income-Tax department. This is significant because prominent journalists and the corporate manager of a media house figure among the persons whose statements have been recorded by the CBI in the two months since the PEs were registered.
Conversations of at least four journalists with Radia were among those flagged by the CBI in a status report it prepared for the apex court earlier. The court asked the agency to investigate nearly all the matters.
The apex court will take cognizance of the status report next week.
CBI officials said several big names from the print and electronic media and corporate world figured in the tapes that are still to be examined.
Indian Express reports.
CBI files closure report in Barak missile deal
Express News Service : New Delhi, Wed Dec 25 2013, 01:21 hrs
CBI files closure report in Barak missile deal
Seven years after the controversial Barak missile deal, the CBI Tuesday filed a closure report before a special CBI court citing "insufficient evidence". It was alleged by the CBI that former defence minister George Fernandes and the then Naval chief Admiral Sushil Kumar were part of the conspiracy in the Rs 1,150-crore missile deal.
The agency, in its report, said replies received from foreign countries do not substantiate the allegation of kickbacks levelled against the state-run company Israel Aircraft Industries (IAI), former Samata Party officials Jaya Jaitly and R K Jain, Fernandes and Kumar.
The CBI said judicial requests were sent to the United Kingdom, the UAE, Mauritius, Germany and Israel seeking details of financial transactions and other details of accused persons involved in the case.
They said Israel, in its reply to Letters Rogatory, denied making any payments to clinch the deal. The country also refused to give any further details citing confidentiality. The agency said replies from other countries also did not corroborate allegations levelled against IAI and other accused mentioned in the FIR. During the probe here, the CBI said it did not find any evidence on the allegations levelled during the sting operation carried out by Tehelka.
Indian Express reports.
Morgan Stanley keen to start proprietary trading in India
Indian brokerage arm of global investment banker Morgan Stanley has sought RBI's approval to start proprietary trading under which it will be able to buy and sell securities on its own account.
The application of Morgan Stanley is pending with the Reserve Bank as there is no clarity on whether foreign direct investment is permitted in proprietary trading, sources told PTI.
RBI has sought views of the Finance Ministry on allowing the Indian arm of the US-based company to undertake proprietary trading.
Morgan Stanley was permitted by the Foreign Investment Promotion Board (FIPB) in 2007 to trade in securities, act as brokers, merchant bankers and undertake corporate advisory services.
The other activities permitted by the FIPB include primary dealership, underwriting, fixed income sales and portfolio management.
However, it was not clear from the permission granted whether Morgan Stanley could undertake proprietary trading, which envisages trading on own account. The FIPB permission was for broking, which is trading on behalf of clients.
In the absence of a clarification from the FIPB, Morgan Stanley has approached RBI for specific permission to trade on proprietary account. RBI, however, has asked Morgan Stanley to seek advice from the Finance Ministry.
The ministry on its part has asked Morgan Stanley to discuss the matter again with the central bank.
As there is no clarity on FDI in proprietary trading, sources said, RBI has written to the Department of Economic Affairs in the Finance Ministry seeking its views on the matter.
In its application Morgan Stanley wants to know whether it could undertake proprietary trading, which is permitted to all Sebi registered stock brokers in India, whether or not owned by an offshore company. PTI JD CSMorgan Stanley keen to start proprietary trading in India
India Inc raises a staggering Rs 4 lakh crore funds in 2013
Quantum of funds raised by Indian companies from the markets hit a staggering Rs 4 lakh crore in 2013, with debt market emerging as the most preferred route to garner capital for their business needs.
While there was a lull in the primary stock market – where the companies raise funds through the sale of shares via instruments like IPOs and FPOs, it was private placement of corporate bonds and non-convertible debentures that was used the most to meet funding requirements of businesses in 2013.
Together, the companies have raised fresh capital worth nearly Rs 4 lakh crore from equity and debt markets this year, shows an analysis of funds raised through various routes.
These funds have been raised primarily for business expansion plans and to meet capital requirements.
A large chunk of this amount or more than Rs 3.10 lakh crore has been mopped up from debt market.
Funds raised from equity market stands at about Rs 87,000 crore, which mostly include those raised by preferential share allotments to promoters and other investors, as also promoter share sale through Offer For Sale route.
Within the debt market, the companies raised Rs 2.65 lakh crore through debt placement route, while Rs 23,745 crore has been mopped up through non-convertible debentures and another Rs 19,650 crore via public issuance of debt securities.
According to market analysts, improving stocks valuations may lead to greater share sales by the companies in 2014, while debt market is also expected to witness robust activities in the new year.
"Indian debts are costly, still companies rushed towards this route for the fund raising activity in 2013 as equity was not available and there was lack of confidence among
investors," CNI Research's Kishor Ostwal said.
Echoing similar views, Destimoney Securities' MD and CEO Sudeep Bandopadhyay said companies have opted for debt route as they were not confident of raising funds through equity this year.
Yearender: FII inflows hit $20-bn in 2013, take total to $150 bn
Reposing their faith in Indian markets, foreign investors have made net inflows of a staggering amount of Rs 1.10 lakh crore (nearly USD 20 billion) in stocks here during 2013, while taking their cumulative investments in the country's equity market to a record level of close to USD 150 billion.
The final numbers for 2013 may even exceed the level seen in 2012, when FIIs made a net infusion of Rs 1.3 lakh crore (USD 24 billion) in equities, as a few days are still left in the current calendar year.
According to experts, the inflows are expected to improve further in 2014 as the state assembly election results have brightened the chances of a BJP-led government at the Centre, on which foreign investors are said to be putting their bets.
At gross level, Foreign Institutional Investors (FIIs) purchased stocks worth about Rs 7.8 lakh crore in 2013 and sold equities to the tune of Rs 6.7 lakh crore – translating into a net inflow of Rs 1,10,792 crore (USD 19.7 billion) so far.
This was the second consecutive yearly inflows by foreign investors after pulling out a net amount of Rs 2,714 crore (USD 358 million) from the share market in 2011.
Despite their unpredictable 'hot money' investment, these overseas entities have been amongst the most important drivers of Indian stock markets.
The huge inflows came despite the number of FIIs registered in India dipping to 1,742 this year from 1,759 at the end of 2012.
Many market experts expect a BJP-led government would be more pro-reform and speed up legislative steps needed to spur economic growth.
Destimoney Securities MD and CEO Sudeep Bandhopadhyay said, "FIIs are expected to be bullish on the Indian stocks in 2014, despite the US Federal's decision on tapering."
"FIIs are looking forward to a stable government that can move reforms process faster, irrespective of which political party comes to power at the Centre next year. Besides, a strong performance by BJP in the recent assembly elections have further strengthen the chances of a stable government at the Centre," he added.
Sunil Khobragade with Rajan Dandekar and 8 others
भारतातील किमान वेतन कायद्यानुसार मोलकरणीला किमान वेतन 8 तासासाठी Rs. 6500 - 10000 या मर्यादेत आहे. त्यापुढील प्रत्येक तासासाठी Rs. 813 - 1250 आहे.यासोबतच कामगार विमा आणि भविष्य निर्वाह निधीचेही नियम मोलकरणीला लागू आहेत. गिरीश कुबेर तसेच मोलकरणीकडून काम करून घेणारे भारतातील किती लोक एवढे वेतन आपल्या मोलकरणीला देतात ?आणि त्यांना अनुज्ञेय असलेले कामगार विमा योजनेचा तसेच भविष्य निधीचा हफ्ता भरतात ?
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S.r. Darapuri
25 दिसंबर को "मनुसमृति दहन दिवस" पर विशेष . इस दिन १९२७ को डॉ. आंबेडकर ने अपने साथियों के साथ हिन्दू जाति व्यवस्था के निर्धारक ग्रन्थ को जला कर दलितों की हिन्दू धर्म से मुक्ति संग्राम का बिगुल बजाया था. इस दिन को सब जगह "मनुसमृति दहन दिवस" के रूप में मनाया जाना चाहिए.
DALIT MUKTI दलित मुक्ति: मनुस्मृति दहन दिवस एस आर दारापुरी
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Jagadish Roy shared "दुनिया मेँ कितना ग़म हो, दिल प्यार का ही मोहताज रहा करता है"'s photo.
25 दिसम्बर 1927 को अम्बेडकर जी ने सार्वजनिक तौर पर मनुस्म्रति जलाकर वर्ण व्यवस्था और जातिपाति खतम करने की ओर अपने कदम बढ़ाए थे। इस साहसिक और अतुलनीय कार्य के लिए बाबा साहब अम्बेडकर जी का हार्दिक अभिनंदन..! ...Jiddi Jeetu Like This Page... "दुनिया मेँ कितना ग़म हो, दिल प्यार का ही मोहताज रहा करता है"
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S.r. Darapuri
आज 24 दिसंबर को रामा स्वामी पेरियार का परिनिर्वाण दिवस है. इस महान क्रन्तिकारी को विनम्र श्रधान्जली!
जनपक्ष: भगत सिंह पर रामास्वामी पेरियार
धार्मिक कट्टरता के गाल पर भगत सिंह करारा तमाचा है |
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Uday Prakash
India is developing for a few and it's creating a new culture for a few. A culture which needs police, sex, sting operations, hidden cameras, liquor, drugs, sex, murder, suicide, sodomy, jargons, locks, bars, rape, guns, scams, hate campaigns, contempt, vilification, lies, rumors, mind manipulations, corruption, deceit, cruelty and so on to define itself.
Are we really part of this culture?
Or this is a culture, we now begin to look at its face from the margins and edges.. from out side ?
Like · · Share · 7 hours ago near Sahibabad ·
Blessed with solar power in abundance, rural India is now utilising it for irrigation. If manufacturing cos' are to be believed, threshing, fodder cutting, tractor, desalination and water purification, all this would soon run on solar power. How do you view this trend? http://ow.ly/s3h0z
घोषणापत्रों पर अवाम की राय जानना:एक क्रूर मजाक
एच एल दुसाध
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मित्रों आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली की सत्ता सँभालने की घोषणा 8 दिसंबर ,2013 के बाद की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है.इच्छा या अनिच्छापूर्वक उसके द्वारा सरकार चलाने का निर्णय लोकसभा-2014 के ;लिए भारी राहत की बात होगी.अगर यह पार्टी अपने घोषणापत्र पर सफलतापूर्वक अमल करके दिखा देती है,तब निश्चय देश को एक और राजनीतिक विकल्प मिल जायेगा और यदि यह अपनी घोषणाओं को पूरा करने में व्यर्थ होती है,जनता को आगे निर्णय लेने में सहूलियत होगी.बहरहाल केजरीवाल द्वारा दिल्ली की सत्ता सँभालने की घोषणा के बाद जिस तरह देश की दो प्रमुख पार्टियों,खासकर भाजपा द्वारा 'आप' पर जो नकारात्मक टीका-टिपण्णी हो रही है,वह उनके दुसाहस का सूचक माना जायेगा.उसी तरह दिल्ली के कांग्रेसियों द्वारा बिना शर्त समर्थन को सशर्त-समर्थन बताना एक घातक प्रयास माना जायेगा.अब तक आप वालों ने न सत्ता के लोभ का परिचय दिया है,और न ही सिद्धांतविरुद्ध काम किया है,किन्तु भाजपा अगर ऐसा संकेत दे रही है तो ऐसा करके शायद वह आत्मघाती कदम ही उठा रही है.कारण इस समय आप सफलता के घोड़े पर सवार है.वर्तमान में उसके खिलाफ कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया आप के समर्थकों में रोष पैदा कर सकती है.बेहतर होगा की नकारत्मक के बजाय दोनों प्रमुख पार्टियाँ 'आप'को रचनात्मक सहयोग दें ताकि केजरीवाल एंड क.को अपनी जिम्मेवारियों से भागने का कहीं से मौका न मिले.
लगता है कांग्रेस खुद को बदलना नहीं चाहती.इसका सबूत लोकसभा चुनाव -2014 के लिए पार्टी के घोषणापत्र में शामिल किये जानेवाले मुद्दों के लिए मुस्लिम सहित विभन्न अल्पसंख्यक समुदायों की राय जानने का प्रयास है.क्या कांग्रेस को नहीं पता कि देश की सबसे बड़ी समस्या लोगों के विभन्न तबकों और उनकी महिलाओं के मध्य शक्ति के स्रोतों का अत्यंत असमान बंटवारा है.देश की आज़ादी का मुख्य मकसद लोगों के विभिन्न तबकों के मध्य शक्ति का न्यायोचित बंटवारा कराना था,जो नहीं हो पाया.इसके लिए दलगत रूप से सर्वाधिक जिम्मेवार कांग्रेस पार्टी ही जिसने आजाद भारत के शुरुआती चार दशकों तक देश पर प्रायः एकछत्र राज किया.देश की भावी रूप-रेखा क्या होगी:शक्ति के स्रोतों का विभिन्न सामाजिक समूहों के मध्य कैसे वाजिब बंटवारा होगा ,इसका इकतरफा निर्णय कांग्रेस ने शुरुआती 40 सालों में लिया.उसका निर्णय कितना राष्ट्र विरोधी था इसका अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज 80-85% शक्ति के स्रोत 15%परम्परागत सुविधासंपन्न और विशेषाधिकारयुक्त तबके के हाथ में है.शक्ति के असमान बटवारे के कारण ही विश्व में सर्वाधिक आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी का साम्राज्य भारत में कायम हुआ है.चूँकि आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी से विच्छिन्तावाद,आतंकवाद,भूख ,कुपोषण इत्यादि तरह-तरह की समस्याए जन्म लेती हैं इसलिए इन समस्याओं में भारत विश्व चैम्पियन है.शक्ति के स्रोतों के अत्यंत असमान बंटवारे के कारण ही हम महिला सशक्तिकरण के मोर्चे पर बांग्लादेश और नेपाल जैसे पिछड़े राष्ट्र से भी पिछड़े हैं.इस कारण ही हम सच्चर रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय की बदहाली की तस्वीर देखकर सकते में.इस कारण ही माओवादियों ने २०५० तक बन्दुक के बलपर लोकतंत्र के मंदिर पर कब्ज़ा ज़माने का एलान कर दिया है .शक्ति के स्रोतों के असमान बंटवारे के कारण ही आज दलित-पिछड़ों से युक्त देश की विशालतम आबादी एक लाचार समूह के रूप में जीवन व्यतीत करने के लिए अभिशप्त है.अतः जिस कांग्रस के चलते विश्व में सर्वाधिक विषमता का साम्राज्य भारत में कायम हुआ है,उस पार्टी द्वारा घोषणापत्र के लिए मुद्दों हेतु विभिन्न सामाजिक समूहों की राय जानने का प्रयास बहुसंख्यकों के प्रति निष्ठुर मजाक है,एक ड्रामा है.ऐसा ड्रामा आप जैसे उभरते दल करें तो झेला जा सकता पर सारे गुनाहों की जड़ कांग्रेस को ऐसी इज़ाज़त नहीं मिल सकती.उसे तो आँख मूंदकर अपना घोषणापत्र शक्ति के स्रोतों के वाजिब बंटवारे पर केन्द्रित करना चाहिए ताकि उसकी अतीत की भूलों का कुछ प्रायश्चित हो सके.
Er Dasharath Baitha, Shrawan Kumar Paswan and 11 others like this.
Harnam Singh Verma Rajneet hai kya, Dushadh ji?
10 hours ago via mobile · Like
Shrawan Kumar Paswan बिलकुल सही है दुसाध साहब -,-लेकिन मूलनिवासी को अभीतक क्या दिया मनुवादी लोगो ने फिर जो कानून बनते हैं उसका अमल भी तो नहीं होता है ,दोयम दर्जे कि नागरिक कि तरह मूलनिवासी जीने को मजबूर हैं आप किनता अपने हीं देश में भीख कि तरह मांगते रहेंगे कि आर -पार कि ल...See More
8 hours ago · Like · 2
Ashok Dogra Agree Sir
H L Dusadh Dusadh वर्मा साहब राजनीति की अलग -अलग परिभाषाएं हो सकती हैं किन्तु मेरा मानना है कि राजनीति विभिन्न सामाजिक समूहों के शक्ति के स्रोतों के वाजिब बंटवारे के लिए कायदा कानून बनाने का जरिया है .आपकी नज़रों में राजनीति?
5 hours ago · Like · 1
Rohit Paswan Agree with you
5 hours ago via mobile · Like · 1
चन्द्रशेखर करगेती
ये किसका उत्तराखण्ड ?
सुबह से शाम हो जाती है बड़कोट से देहरादून,धारचुला से हल्द्वानी आने में, जहाँ आने पर पता चलता है कि सरकारी डाक्टर हड़ताल पर हैं l पहाड़ में कहीं भी चिकित्सा के मुकम्मल इंतजाम नहीं हैं l मुख्यमंत्री की पत्नी पांच सितारा अस्पताल में जा सकती हैं,वैसे बड़ी दुकानें देहरादून-हल्द्वानी में भी खुल गई हैं लेकिन पहाड़ से आने वाला उनकी कीमत नहीं चुका सकता l
मोदी की कसम देकर विपक्षी दल के लोग कार्यकर्ताओं को एकजुट रहने का नारा दे रहे हैं और देहरादून में काँग्रेस मुख्यालय हरीश रावत की तरफ से नए साल की बधाई के पोस्टरों से पटा हुआ है/बहुगुणा गुट हैरान है ........
कुछ लोगों को शायद याद आ जायेगा कि आज इन्द्रमणि बडोनी जी की जयंती है और रस्मी तौर पर उनको याद करते हुए वादे किये जायेंगे, कसमें खाई जायेंगी कि आन्दोलनकारियों के सपनों का राज्य बन कर रहेगा l
साभार : धनञ्जय सिंह
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S.r. Darapuri via Anand Singh
चेन्नई के सफाई कामगारों की हालत देशभर के सफाईकर्मियों का आईना है
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S.r. Darapuri
आम दलितों के मुद्दे वर्तमान दलित राजनितिक पार्टियों के एजंडा से भी गायब हैं. वे केवल आरक्षण और जाति की राजनीती करती हैं.आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने बाकी मुद्दों के साथ साथ दलितों और आदिवासियों के मुद्दों जैसे आरक्षण, ज़मीन, रोज़गार का मौलिक अधिकार आदि को भी अपने एजंडा में रखा है.
65 साल के आरक्षण से सिर्फ 1.7% दलितो को फाइदा हुआ है, इसका सीधा मतलब है 98.3% दलितो की हालत मे कोई अंतर नहीं पड़ा है, और दलितो के नेता सिर्फ और सिर्फ आरक्षण की ही बात करते है क्योकि उन्हे तो मिल चुका है और उनके बेटा/बेटी लायन मे लगे है। अब आम दलित के मुद्दे शिक्षा,स्वास्थ, रोजगार, जमीन की मांग कभी नहीं उठती क्योकि दलितो के नेताओ को इन मुद्दो से कोई फाइदा नहीं होने वाला है। क्योकि आरक्षण पाने के बाद शिक्षा, स्वास्थ, दोनों की व्यवस्था वो खुद कर सकते है सिर्फ सामाजिक न्याय जो की दूसरे देते है और रोजगार जो सरकार देती है उनके लिए मुख्य मुद्दे है।
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Sudha Raje
आधी दुनियाँ के रंगों की तसवीर बदलनी ही होगी ।
औरत ज़िल्लत है ज़ुल्मो सितम तक़दीर बदलनी ही होगी ।
उनवान बदलने ही होंगे जो जो कमतर दिखलाते है
सामान बदलना ही होगा जंज़ीर पिघलनी ही होगी ।
हर सहर खुली साँसें हर शब
मुट्ठी भर हँसी ख़ुशी हर घर ।
बाँहों भर अपना पन ज़ी भर ।तदबीर बदलनी ही होगी ।
क्यों कहे सुधा बदक़िस्मत हूँ
औरत हूँ तो क्या ज़िंन्दा शै हूँ
क्यों हमें बनाया क़ुदरत ने
ये पीर बदलनी ही होगी
©®सुधा राजे
Yashwant Singh via Bhadas4media
खुद के भाई पर रेप का आरोप लगे तो उसे बचाती है, दूसरों पर लगे तो उसे खुदकुशी के लिए उकसाती है... बोलो कौन?
मधु किश्वर के भाई पर लगा बलात्कार का आरोप, नहीं दर्ज हुई रिपोर्ट
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Sanjay Kumar shared Mediamorcha E-patrika's photo.
जल्द लॉन्च होगा दिल्ली से वंचितों का अपना चैनल
जल्द लॉन्च होगा दिल्ली से वंचितों का अपना चैनल 2013.12.25 नई दिल्ली । दलितों का हो अपना मीडिया को लेकर सवाल उठते रहते हैं। कोशिश भी हो रही है। जे के मौर्य ने सोशल मीडिया पर लिखा है...साथियों जय भीम, जिन भाई-बहनों की ये शिकायत या सलाह थी कि हमारा अपना मीडिया नहीं है, हमें अपना मीडिया खड़ा करना चाहिए, उनके लिए एक खुशखबरी है कि हम दिल्ली में अपना मीडिया हॉउस खोलने के तैयारी कर रहे हैं।…www.mediamorcha.com Read more
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Panini Anand
Abhishek Srivastava की क़लम से...
'लोकप्रिय' आंदोलन और मार्क्स का आवाहन | Pratirodh.com
Like · · Share · Yesterday at 3:55pm near New Delhi ·
Panini Anand and Ankur Jaiswal like this.
Prakash K Ray Kuchh din Marxixton ko (sabhi brandon ko) aaram se introspection karna chahiye:http://www.telegraphindia.com/.../story_17711652.jsp...
The wilting of the Left is a national tragedy
Economic and Political Weekly
The judgment of India's highest court has re-established discrimination based on sexual orientation. A close reading of the judgment upholding Section 377 of the Indian Penal Code indicates that the Supreme Court misread the Constitution and legal precedent. More worryingly, it failed to uphold the fundamental rights of Indian citizens.
Economic and Political Weekly commentary:
http://www.epw.in/commentary/struggling-reason.html
Like · · Share · 40420 · 22 hours ago ·
Jagadishwar Chaturvedi
फिलीस्तीनियों के समस्त जायज अधिकारों ,देश ,संपदा आदि का अपहरण करने में इस्रायल की जिस तरह अमेरिका-ब्रिटेन ने मदद की है और लाखों फिलिस्तीनियों को उनके देश से बेदखल किया है ,हजारों बच्चों कोअनाथ बनाया है। आज सारी ईसाइयत और साम्राज्यवादी तंत्र इस्रायल की सेवा में लगा है । सवाल यह है कि ईसाइयत ने कभी साम्राज्यवाद और खासकर अमेरिका साम्राज्यवाद के खिलाफ दो-टूक ढ़ंग से मुहिम क्यों नहीं चलायी, क्यों फिलीस्तीनी नागरिक आज तक अपने संप्रभु राष्ट्र से सभी वैध दावों के बावजूद वंचित क्यों हैं ?
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Abhiram Mallick shared Takshak Lokhande's photo.
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25 दिसंबर 1968 को तमिलनाडु में 42 दलितों को जिंदा जला दिया गया था...
December 24, 2013 at 11:54pm
ज्ञानेंद्रपति की एक कविता है, जिसमें वे कोलकाता में लौटकर अपने पुराने दिनों को याद करते हैं। चश्मा पोंछकर शहर देखने का उसमें जिक्र है, उसमें भीड़, ट्राम और बदलाव का जिक्र हैं। यह कविता पहली बार 1998 में पढ़ी थी। संभवत: राजेश जोशी को मिले "पहल सम्मान" के कार्यक्रम में भोपाल आया था, उस वक्त। अशोकनगर और गुना प्रलेसं के कई साथी भी तब साथ थे। बाद में यह कविता पशुपति भाई के निर्देशन मेंमनीष भाई के संकलित कोलाज "आधे-अंधेरे समय में" की रिहर्सल के दौरान नए अर्थों में सामने आई। रूपेश भाई इस कविता को अपने खालीपन के साथ उच्चारते थे।
इस महावन में एक गौरैये की जगह खाली है
एक छोटी चिड़िया से, एक नन्ही पत्ती से,
सूनी डाली है
महानगर के महाट्टहास में एक हँसी कम है
विराट धक-धक में एक धड़कन कम है
कोरस में एक कंठ कम है
तुम्हारे दो तलवे जितनी जगह लेते हैं- उतनी जगह खाली है
वहाँ उगी है घास
वहाँ चुई है ओस
वहाँ किसी ने निगाह तक नहीं डाली है
मुझे लगता है कि हर व्यक्ति को अपने सबसे उदास दिनों में कविता की जरूरत होती है। सबसे कमजोर दिनों में। अच्छे समय में काम आने वाली, उत्साह की कविता, शोर की कविता इसीलिए बड़ी कविता नहीं हो पाती। बल्कि दुख की कविता, अकेलेपन की कविता, अपनेपन की कविता लगती है। अपवाद होंगे, हर एक विचार के अपवादों की तरह। क्या इसीलिए कहा जाता है कि करुण रस सबसे ज्यादा घना रस होता है। खुशी के रंग में सब शामिल हों यह जरूरी नहीं, लेकिन दुख में शामिल हर कोई होता है। एक खुशी से चीखते हुए बच्चे को देखकर यह संभव है कि हम अपनी राह लें, बिना नजर डाले। लेकिन यह तकरीबन नामुमकिन है कि किसी कराह को हम झटककर आगे बढ़ सकें। बढ़ भले ही जाएं, लेकिन वह कराह बहुत देर तक पीछा करती है।
बहरहाल, आज 25 दिसंबर में है। 1968 में इसी दिन तमिलनाडु में 42 दलितों को जिंदा जला दिया गया था। वजह थी अपने वेतन में बढ़ोत्तरी की मांग। जमींदारों के गुर्गों ने उन्हें मौत के घाट उतारा था और दिलचस्प यह कि मामले में जमींदारों को सजा नहीं हुई। घटना किझावेणमणि गांव की है। समुद्री छोर पर कावेरी की गोद में बसा गांव। 2008 में वहां गया था। बरसात के दिन थे और अनायास ही ज्ञानेंद्रपति की यह कविता याद आ गई। अक्सर घटनाएं मुझे कविता की शक्ल में याद रहती हैं। सलिल और राजन भाई के साथ अचानक ही वहां जाने की जिद पाल बैठा था। बेरोजगारी के दिन थे। करीब चार घंटे गांव में रुके थे। कच्ची जमीन पर पानी ने कीचड़ बना दिया था। हम जैसे-तैसे कावेरी को पार करके पहुंचे थे। गांव में घुसते ही अजीब सी मुर्दा गंध आसपास तैरती लगी थी। चालीस साल बाद भी। अब उस घटना को 45 साल हो गए हैं। क्या अब भी वही गंध होगी? वहां किसी ने निगाह डाली है क्या?
सांप्रदायिक हिंसा की झुलसाने वाली खबरों के बीच यह बात तकरीबन भुला दी जाती है कि आजादी के बाद से दलित और गैर-दलितों के बीच हर खून-खराबे में झोपडि़यां ज्यादा जली हैं, और मातम भी दलितों के हिस्से में ज्यादा है।
तस्वीर जुलाई 1997 की है। तब मुंबई में पुलिस फायरिंग में दलित समुदाय के लोग मारे गए थे।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मतलब
Author: समयांतर डैस्क Edition : January 2013
इसको मालदीव सरकार और बेंगलूरू की इंफ्रास्ट्रक्टर कंपनी जीएमआर के संदर्भ में समझा जा सकता है। मालदीव सरकार ने जीएमआर के साथ पांच सौ मिलियन डॉलर (2, 725 करोड़ रुपए) का करार कानूनी, तकनीकी और आर्थिक मुद्दों का हवाला देकर रद्द कर दिया। समझौता रद्द होने को लेकर भारतीय मीडिया और शासक तंत्र उसी तरह की बात करने लगा है जैसी कि पश्चिमी मीडिया और शासन तंत्र किया करता है। यह सर्वविदित है कि बड़े कॉरपोरेट घराने चाहे देश में हों या विदेश में उनका मुख्य उद्देश्य राष्ट्र निर्माण या जन कल्याण नहीं होता है बल्कि किसी भी तरीके से छप्पर फाड़ मुनाफा (विंडफॉल प्रॉफिट) कमाना होता है। भारत में इस जीएमआर और मालदीव मुद्दे को इस तरह से पेश किया गया कि जैसे यह भारतीय हितों के साथ अन्याय और धोखा है। सवाल उठता है कि क्या मालदीव को अपने घरेलू हितों के अनुसार फैसला करने का हक है या नहीं? क्या वह इसलिए फैसला करने का हकदार नहीं है, क्योंकि वह भारत के मुकाबले छोटा और आर्थिक रूप से कमजोर देश है? अगर विदेशी निवेश के मामले में उसका फैसला गलत है तो उसका खामियाजा उसको भुगतना होगा। क्या भारत और भारतीय मीडिया का रुख मालदीव की चिंताओं के साथ जुड़ा हुआ है। यह प्रकरण इस बात की ओर भी संकेत करता है कि भारत अपने पड़ोस के देशों के साथ किस तरह का कारोबारी रिश्ता बनाना चाहता है।जीएमआर ने मालदीव के साथ माले के नासिर इंटरनेशनल एयरपोर्ट को आधुनिक करने और चलाने का करार 2010 में हासिल किया था। हाल के वर्षों में किसी भारतीय कंपनी को मिला यह बहुत बड़ा ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर ठेका था। जीएमआर के साथ यह समझौता मालदीव की मोहम्मद नाशिद सरकार के समय हुआ था। नाशिद सरकार द्वारा जीएमआर को ठेके देने के मामले में कथित भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों का मुद्दा भी सामने आया। उस समय एयरपोर्ट के सरकारी प्रशासकों ने जीएमआर के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से इसलिए इनकार कर दिया था क्योंकि उनका तर्क था कि यह करार मालदीव के हित के खिलाफ है। तत्कालीन नाशिद सरकार ने इन सरकारी अधिकारियों को हटाकर नए अफसरों की नियुक्ति की थी। जीएमआर पर यह आरोप भी लगे थे कि उसने इस करार को हासिल करने के लिए विभिन्न अधिकारियों को बड़े पैमाने पर घूस भी दी थी। समझौता होने के बाद जीएमआर और मालदीव सरकार के बीच असल विवाद प्रति यात्री से 25 डॉलर हवाई अड्डा विकास शुल्क (एयरपोर्ट डेवलपमेंट चार्ज- एडीसी) वसूलने को लेकर शुरू हुआ। इस शुल्क की वसूली जीएमआर ने 2012 में शुरू कर दी थी जिसे वहां की अदालतों ने निरस्त कर दिया था। जैसा कि ईपीडब्ल्यू पत्रिका ने अपने 15 दिसंबर के अंक में लिखा, "मोहम्मद नाशिद की सरकार को जीएमआर ने मना लिया था कि इस नुकसान की भरपाई उस राजस्व से कर लेंगे जो जीएमआर को मालदीव की सरकार को देनी है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार अगले तीन महीनों में मालदीव की सरकार का राजस्व वित्तीय तिमाही में 8.7 मिलियन डॉलर से गिरकर 0.5 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। अगली वित्तीय तिमाही से जीएमआर ने कुछ देने के बजाय मालदीव की सरकार से पैसे की मांग शुरू कर दी। यह राशि अंतिम तिमाही में 3.5 मिलियन डॉलर तक पहुंच गई। जीएमआर और मालदीव के बीच में हुए मूल समझौते के अनुसार अगले 25 वर्षों में मालदीव के लिए 1.0 अरब डॉलर की आय की कल्पना थी, अगर जीएमआर हवाई अड्डे को चालू करने के लिए करारबद्ध होता है तो, किन्तु इस परिवर्तन के कारण वो इस छोटे से गरीब देश के लिए राजस्व के नुकसान का मुख्य कारण बन गया। जैसा कि एक टिप्पणीकर ने समझाया था – यह मालदीव के लिए वैसा ही हो गया जैसा कि भारत के लिए 1990 के दशक में एनरॉन हो गया था।"
मालदीव के राजस्व को सबसे बड़ा हिस्सा उसे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन से मिलता है। अगर हवाई अड्डा विकास शुल्क के रूप में प्रति यात्री से 25 डॉलर वसूला जाता है तो यह निश्चित रूप से पर्यटन पर असर डालेगा। समझौता रद्द करने पर जैसा कि मालदीव सरकार का कहना था कि इसका कारण विशुद्ध रूप से वाणिज्यिक है। मालदीव की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन आधारित है। किसी को भी इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती कि वो बिना संसदीय मंजूरी के आनेवाले यात्रियों पर टैक्स लगा सके। मालदीव में पहले से ही इब्राहिम नासिर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का इस्तेमाल करने के लिए यात्री सेवा शुल्क (18 डॉलर) लिया जाता है। मालदीव के सांसदों को 25 डॉलर की अतिरिक्त लेवी उचित नहीं लगी।
मूल समझौते के अनुसार ईंधन राजस्व हिस्सेदारी मामले में जीएमआर को सरकार को 14 प्रतिशत राजस्व देना प्रस्तावित था। बाद में राजस्व साझेदारी करार को संशोधित करके इसे एक प्रतिशत तक कर दिया गया। इसने मालदीव एयरपोर्ट कंपनी लिमिटेड को आर्थिक रूप से कंगाली के स्तर तक पहुंचा दिया। इस पूरे हालात में मालदीव की वाहिद सरकार, जो कि मोहम्मद नाशिद सरकार के जाने के बाद सत्ता में आई थी, ने जीएमआर के साथ करार रद्द करते हुए उसे मालदीव छोडऩे के लिए कह दिया। सिंगापुर की अदालत ने भी मालदीव सरकार के हक में ही फैसला दिया।
पर मामला सिर्फ जीएमआर तक ही सीमित नहीं है। इस प्रवृत्ति का एक और उदाहरण जिंदल स्टील है। जिंदल स्टील को कुछ महीने पहले बोलिविया से जाना पड़ा था। वहां की सरकार ने जिंदल स्टील कंपनी पर आरोप लगाया कि वह खदानों को समझौते के अनुसार विकसित नहीं कर रही है बल्कि इस व्यापक संसाधन पर अपना नियंत्रण मात्र स्टॉक मार्केट में अपने खेल के लिए इस्तेमाल कर रही है। अगर भारत में बहुराष्ट्रीय को लेकर सवाल उठ सकते हैं तो मालदीव और बोलिविया की सरकारों और उनकी जनता को भी भारतीय कंपनियों के खिलाफ आवाज उठाने और उनके साथ करार रद्द करने का पूरा अधिकार है।
साभारःसमयान्तर
महिला उत्पीडऩ : देश का शासक कौन है जनप्रतिनिधि या सेना
Author: समयांतर डैस्क Edition : April 2013
वाल्टर फर्नांडीस
पहला सवाल जो इससे पैदा होता है : "भारत पर कौन शासन कर रहा है : चुने हुए प्रतिनिधि या सेना?" दूसरा सवाल यह है, "इस कानून को अधिक मानवीय बनाने के लिए इसमें बदलाव करने का सेना क्यों विरोध कर रही है?" जस्टिस वर्मा आयोग ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वे सुरक्षा कर्मी जो किसी महिला का बलात्कार करते हैं उन पर वही कानून लागू होना चाहिए जो कि किसी अन्य नागरिक पर लागू होता है। दूसरों ने भी यही पक्ष रखा। सन् 2005 में जीवन रेड्डी आयोग ने कहा कि एएफएसपीए को निरस्त किया जाना चाहिए और जो जरूरी धाराएं हैं उन्हें अन्य कानूनों में शामिल किया जाना चाहिए। पूर्वोत्तर के लिए खुफिया ब्यूरो के पूर्व प्रमुख आरएन रवि ने प्रमाणिक तौर पर कहा कि क्षेत्र में शांति के लिए एएफएसपीए सबसे बड़ा अवरोधक है। पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई तो खुलेआम इस कानून के खिलाफ सामने आए थे। ये वक्तव्य भावनात्मक विस्फोट नहीं हैं। ये उन लोगों के बयान हैं जो व्यवस्था का हिस्सा रह चुके हैं और कानून की गति तथा सरकार के संचालन को जानते हैं।
लेकिन सेना इस बदलाव का भी विरोध कर रही है। उनकी इस सोच का क्या तार्किक आधार है कि सुरक्षाकर्मी जो मासूम महिलाओं का बलात्कार करते हैं वो देश की सुरक्षा के नाम पर दंड से मुक्त रहें? ये कानून किसकी सुरक्षा के लिए बनाया गया है, देश के लिए या वर्दी में अपराधियों के लिए? जब भी कानून में कुछ बदलाव का सुझाव दिया जाता है तो सेना इसका विरोध करती प्रतीत होती है और नागरिक सरकार उसके दबाव में झुक जाती है। उदाहरण के लिए, मणिपुर में इंफाल की रहने वाली 30 वर्षीय मनोरमा देवी की हत्या और कथित बलात्कार के मामले की जांच के लिए जीवन रेड्डी आयोग गठित किया गया था। मनोरमा देवी को असम राइफल्स ने गिरफ्तार किया था। आयोग ने सुझाव दिया कि कानून को निरस्त कर दिया जाना चाहिए और जो धाराएं जरूरी हैं उन्हें अन्य अखिल भारतीय कानूनों के साथ जोड़ दिया जाना चाहिए। सरकार ने रिपोर्ट प्रकाशित ही नहीं की। द हिंदू अखबार ने इसे 'अवैध' रूप से प्राप्त किया और अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया। वर्मा आयोग की रिपोर्ट के बाद, जिसमें कहा गया है कि जिन सुरक्षाकर्मियों ने महिलाओं का बलात्कार किया है उन पर नागरिक कानून के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए, केंद्रीय कानून मंत्री ने एनडीटीवी से एक साक्षात्कार में कहा कि इन सुझावों को लागू करने में दिक्कतें हैं। टीवी पर एक बहस के दौरान एक अन्य केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसकी धीमी कानूनी प्रक्रिया के कारण जनता नहीं जान पाती कि सेना द्वारा क्या सजा दी गई है। वे लगाए गए प्रतिबंधों या उठाए गए कानूनी कदम को स्पष्ट नहीं करते। रिकॉर्डों की छानबीन से पता चला है कि चंद ही मामलों की सुनवाई हुई है, किसी प्रकार की सजा तो बहुत दूर की बात है। उदाहरण के लिए, मनोरमा देवी के केस में कोई कदम नहीं उठाया गया। कोकराझार, असम में 23 दिसंबर 2005 को विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का एक दल एक ट्रेन के कंपार्टमेंट में चढ़ गया। उन्हें मालूम नहीं था कि इसमें हरियाणा के सशस्त्र सुरक्षा जवान यात्रा कर रहे थे। जवानों ने दरवाजा बंद किया और छेड़छाड़ करने की कोशिश की। विद्यार्थियों के शोर मचाने के कारण सतर्क हुए बोडो छात्र संघ ने रेलगाड़ी रुकवा दी और जवानों के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की। पुलिस ने छात्रों पर फायरिंग शुरू कर दी और चार छात्रों की मृत्यु हो गई। आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई। ऐसी कितनी ही घटनाओं के उदाहरण दिए जा सकते हैं जिनमें या तो रिपोर्ट ही दर्ज नहीं हुई या फिर मामला रफा-दफा कर दिया गया। असम में हाल में हुए एक मामले में स्थानीय लोगों ने एक जवान को पकड़ा और सेना ने वादा किया कि उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उसे तीन महीने जेल में डाला गया। जम्मू -कश्मीर में लोग बहुत-सी महिलाओं के विषय में बताते हैं जिन्हें सशस्त्र बलों ने शीलभंग किया, किंतु किसी को सजा नहीं मिली। इसलिए वे महिलाएं शर्मिंदगी के भाव के साथ जी रही हैं। उनमें से कुछ ने वर्मा आयोग के सम्मुख प्रमाण प्रस्तुत किए। वर्मा आयोग के सुझाव उनके प्रमाणों पर ही आधारित हैं। यह भी बताया गया कि इसमें सेना का सम्मान शामिल है और देश की सुरक्षा को इस कानून की आवश्यकता है। बलात्कार के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करना सेना के सम्मान को कैसे बचा सकता है?
यहां तक कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी एएफएसपीए पर सवाल किया जा सकता है। इस कानून को पूर्वोत्तर में 'आतंकवादी' समूहों के खिलाफ उपाय के तौर पर छह महीनों के लिए प्रयोगात्मक रूप में 1958 में बनाया गया था। सबसे पहले इसे नागालैंड में लागू किया गया। सन् 1980 में मणिपुर में, इसके बाद जम्मू-कश्मीर में और इन दशकों के दौरान पूर्वोत्तर के बहुत सारे क्षेत्रों में। जिसे छह महीनों के लिए बनाया गया था वह पांच दशकों से भी अधिक समय से बना हुआ है। सन् 1958 में पूर्वोत्तर में एक 'आतंकवादी' समूह था। मणिपुर में दो समूह थे जब राज्य को इस कानून के तहत लाया गया। आज मणिपुर में इस तरह के बीस समूह हैं। असम में पंद्रह से कम नहीं हैं। मेघालय में पांच हैं और अन्य राज्यों में बहुत सारे समूह हैं। कानून के बावजूद उग्रवादी समूहों के इस प्रसार की सेना क्या सफाई देगी? क्या उसने अपने उद्देश्य को पूरा किया?
यह भी बताया गया कि अगर इस कानून को निरस्त किया गया तो सेना पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर में नहीं रह पाएगी। यह एक झूठ है। सेना पूरे भारत में इस कानून के बिना ही तैनात है। जो इस कानून को रद्द करना चाहते हैं वे सेना को किसी क्षेत्र को छोडऩे के लिए नहीं कह रहे हैं। वे बस इतना चाहते हैं कि सशस्त्र बल देश की सेवा इस कानून के बिना, जो कि दुव्र्यवहार को बिना दंड के अनुमति प्रदान करता है, संविधान के तहत रहकर करें। यह कोई कारण तो नहीं है कि एक बलात्कारी या खूनी के लिए मात्र इस वजह से अलग कानून होना चाहिए क्योंकि वह सशस्त्र बलों से है। एक क्षण को मान लीजिए कि उन्होंने जितनी भी महिलाओं का बलात्कार किया है वे सब आतंकवादी हैं, तो उनका बलात्कार क्यों होना चाहिए? उनके साथ देश के कानून के तहत व्यवहार क्यों नहीं किया जा सकता? यह बर्ताव किसी भी प्रकार से सशस्त्र बलों के सम्मान या भारत की सुरक्षा में कोई इजाफा नहीं करता। वे केवल लोगों के सम्मान से जीने के अधिकार को खत्म करते हैं और इनको (ऐसे बर्तावों को) एक लोकतांत्रिक देश में किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
देश के शासन के लिए नागरिकों का चुनाव किया जाता है। यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि सुरक्षा बल संविधान के तहत काम करें। पूर्वोत्तर और कश्मीर में जो समस्याएं हैं उनका समाधान राजनीतिक प्रक्रिया के जरिए ढूंढा जाना चाहिए, न कि एक ऐसे कानून के जरिए जो कि लोगों के जीवन और सम्मान के अधिकार का हनन करता है और फिर भी दंड से बचा रहता है। उन्हें विश्वास बहाली के उपायों (सीबीएम) को अपनाने की आवश्यकता है ताकि शांति और न्याय की ओर बढ़ा जा सके। और एएफएसपीए को निरस्त करने से अधिक उत्तम कौन-सा विश्वास बहाली का उपाय हो सकता है?
अनु.: उषा चौहान
साभारःसमयान्तर
दवा का जहर : पश्चिमी दवा कंपनियों का तांडव और उसे रोकने का संघर्ष क्या जारी रह पाएगा?
Author: कृष्ण सिंह Edition : April 2013
उदाहरण के लिए, गुर्दे और यकृत के कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली नेक्सवर दवा का वैश्विक पेटेंट जर्मनी की बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी बेयर कॉरपोरेशन के पास है। भारत में नेक्सवर के एक पैकेट (120 कैप्सूल) की कीमत 2.8 लाख रुपए है। दवा की यह खुराक एक माह के लिए होती है। लेकिन इस दवा की इतनी अधिक कीमत भारत जैसे विकासशील देशों में मध्य वर्गीय तो क्या उच्च मध्य वर्गीय पृष्ठभूमि से आने वाला मरीज भी वहन नहीं कर सकता है। ऐसे में यदि मरीज को बचाना है या उसकी जीवन-प्रत्याशा बढ़ानी है तो उसके परिवार को इतनी महंगी जीवन रक्षक दवा के लिए अपनी घर-संपत्ति तक को बेचना पड़ेगा। फिर भी कहना मुश्किल है कि इलाज कराने में वह सक्षम हो भी पाएगा या नहीं। वैसे भी विकासशील देशों में कैंसर से पीडि़त मरीजों के इलाज के संसाधनों की उपलब्धता बहुत ही कम है। भारत में दस हजार कैंसर पीडि़तों के लिए केवल एक डॉक्टर है। यह हाल तब है जब भारत को तेजी से उभरती हुई एक ताकतवर अर्थव्यवस्था के रूप में पेश किया जा रहा है। ऐसे में तीसरी दुनिया के अन्य गरीब देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं का क्या हाल होगा इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में हर साल दस लाख से ज्यादा लोग कैंसर की बीमारी से प्रभावित होते हैं। इनमें से एक तिहाई लोग हर साल मर जाते हैं। वर्ष 2025 तक भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या में पांच गुना वृद्धि होगी। भारत में तीन प्रतिशत आबादी किसी न किसी तरह के कैंसर से पीडि़त है। वर्ष 2012 में भारत में कैंसर के कारण पांच लाख 55 हजार लाख लोगों की मौत हुई थी।
यह सिर्फ कैंसर की जीवन रक्षक दवाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि एचआईवी/एड्स की पेटेंट वाली दवाओं की कीमतों का भी यही हाल है। पश्चिमी दवा कंपनियों की दवाओं, एकाधिकार और कपट की कहानी को सामने लाने वाली फिल्म 'फायर इन द ब्लड' के निर्देशक डिलन ग्रे ने पिछले दिनों लंदन के द गार्डियन अखबार के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित लेख में कहा, "बहुत साल पहले मैंने वह जानना शुरू किया जिसे मैं मानव इतिहास में सबसे बड़ा गुनाह मानता हूं। अफ्रीका और अन्य स्थानों पर लाखों लोग बड़ी निर्दयता से एड्स से मरने के लिए छोड़ दिए गए, जबकि पश्चिमी देशों की सरकारों और फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने लोगों तक कम कीमत वाली दवाओं को पहुंचने नहीं दिया। …विकासशील देशों में जहां लोग दवाओं के लिए अपनी सामथ्र्य से बाहर खर्च करते हैं, स्थिति इससे भी बदतर है। फार्मास्यूटिकल कंपनियों के प्रतिनिधियों ने मुझे बताया कि (तुलनात्मक रूप से समृद्ध) दक्षिण अफ्रीका में वे अपने उत्पादों की कीमत बाजार के सबसे ऊपरी हिस्से श्रेष्ठ पांच प्रतिशत के हिसाब से लगाते हैं, जबकि भारत में उपभोक्ता आधार मात्र ऊपरी हिस्सा 1.5 प्रतिशत ही होगा। बाकी की जनसंख्या का कोई महत्त्व नहीं है। साथ ही दूसरी तरफ दवा कंपनियां दिन-रात मेहनत कर रही हैं कि वह भारत, ब्राजील और थाईलैंड जैसे देशों में बनाई जा रही कम कीमत की जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति को काट सकें ताकि वे यह सुनिश्चित कर लें कि वे एक भी ऐसा उपभोक्ता नहीं खो रहे हैं जो उनकी गगनचुंबी कीमतों को अदा कर सकता है। "
पेटेंट को पश्चिम की दवा कंपनियां सबसे बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। ये कंपनियां अपनी सरकारों की मदद के जरिए अपने उत्पादों का बड़ा हिस्सा विकासशील और तीसरी दुनिया के गरीब मुल्कों में खपाती हैं। दवाओं के एकाधिकार के सहारे बहुराष्ट्रीय कंपनियां ऐसा दुष्चक्र तैयार कर चुकी हैं जिसमें यदि आप (मरीज) नहीं फंसते हैं तो भी मारे जाएंगे और फंसते हैं तो भी आपका बच पाना असंभव है। उदाहरण के लिए, गुर्दे और यकृत के कैंसर के इलाज की नेक्सवर नामक दवा का वैश्विक पेटेंट जर्मनी की बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी बेयर कॉरपोरेशन के पास है। भारत में नेक्सवर के एक पैकेट (120 गोलियां) की कीमत दो लाख 80 हजार रुपए है। यह एक माह की खुराक है। यही हाल एचआईवी/एड्स और कैंसर की पेटेंट वाली दवाओं की कीमतों का है।
फिलहाल, जेनेरिक (ऐसी दवाएं जिनके पेटेंट नहीं होते) दवा निर्माता कंपनियों और बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के बीच कानूनी लड़ाइयों का बड़ा अखाड़ा अभी भारत बना हुआ है। हालांकि इन कानूनी लड़ाइयों में फिलहाल जेनेरिक दवा कंपनियां जीतती दिखाई दे रही हैं, लेकिन नव उदारीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में बनने वाली नीतियों के इस दौर में आगे क्या होगा यह कहना मुश्किल है। अभी जो चल रहा है उसकी गाथा कुछ इस तरह से है। बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी बेयर कॉरपोरेशन की जिस पेटेंटयुक्त कैंसर रोधी दवा नेक्सवर की कीमत भारत में दो लाख 80हजार रुपए है, जबकि उसी दवा के जेनेरिक संस्करण के एक पैक की कीमत 8800 रुपए है। भारतीय पेटेंट कार्यालय ने पिछले साल नौ मार्च को हैदराबाद की कंपनी नेटको फार्मा को नेक्सवर के जेनेरिक संस्करण को भारत में बनाने और बेचने का अनिवार्य लाइसेंस दिया। भारतीय कानून में अनिवार्य लाइसेंसिंग की अनुमति विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप ही है। इसके मुताबिक कोई भी स्थानीय कंपनी राष्ट्रीय गैर व्यावसायिक वजहों से किसी दवा को स्थानीय स्तर पर बना और बेच सकती है। बेहद आपात परिस्थितियों में ऐसा पेटेंट धारक की इच्छा के खिलाफ जाकर भी किया जा सकता है। जब कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स यह सुनिश्चित कर लेता है कि जनता की जरूरत पेटेंट धारक के अधिकारों से ज्यादा बड़ी है तो वह इस तरह का अनिवार्य लाइसेंस जारी करता है। यही बेयर के मामले में भी हुआ। कंट्रोलर जनरल ने अनिवार्य लाइसेंस के लिए जो शर्तें लगाईं उसके मुताबिक नेटको को जेनेरिक दवा नेक्सवर की बिक्री से छह प्रतिशत की रॉयल्टी बेयर को देनी होगी।
बेयर ने इस आदेश को बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) में चुनौती दी थी। चार मार्च 2013 को बोर्ड ने भारतीय पेटेंट कार्यालय के फैसले पर मुहर लगाते हुए बेयर की अपील ठुकरा दी और काफी महंगी जीवन रक्षक दवाओं के कम दामों में मिलने का रास्ता खोल दिया। बोर्ड की अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रभा श्रीदेवन और सदस्य डीपीएस परमार ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संधिपत्रों और भारतीय कानूनों को आधार बनाकर कहा कि सदस्य देशों को ऐसे अनिवार्य लाइसेंस देने की इजाजत है ताकि दवाएं लोगों तक सस्ते दामों में पहुंचाई जा सकें। बोर्ड का कहना था कि पेटेंट हासिल करने के बाद भी बेयर ने एक तय समय के भीतर बड़े पैमाने पर और वहन करने योग्य कीमत पर दवा उपलब्ध नहीं कराई। बेयर की ओर से दाखिल शपथपत्रों और निवेदनों को देखने के बाद बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उसकी (दवा) 2.8 लाख की कीमत वहन करने योग्य नहीं थी। बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड का कहना था कि पेटेंट आविष्कार से जनता को लाभ के लिए दिया जाता है। हालांकि बोर्ड ने रॉयल्टी के मामले में संशोधन करते हुए नेटको को बेयर को सात प्रतिशत रॉयल्टी देने का निर्देश दिया है।
बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड का यह फैसला ऐतिहासिक है। जैसा कि यूनिवर्सिटी ऑफ ओकलाहोमा कॉलेज ऑफ लॉ में प्रोफेसर श्रीविद्या राघवन ने कहा, "यह राय इससे बेहतर समय पर नहीं आ सकती थी, क्योंकि सात दिन पहले समाचारपत्रों ने यह खबर दी थी कि डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल्स ने सुझाया है कि अनिवार्य लाइसेंसिंग पर अब विराम लगा देना चाहिए। मुझे वह रिपोर्ट आज भी याद है जब दोहा घोषणापत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में ट्रिप्स समझौते के लिए मुरासोली मारन ने अगुवाई की थी, जिसे व्यापक रूप से विकासशील देशों की एक बड़ी जीत माना जाता है। जो समझौता हमने इतने विचार करके हासिल किया कितनी शर्म की बात होती अगर भारत उसे रद्द करने के लिए पहला कदम उठाता।" प्रोफेसर राघवन का कहना था, "इस फैसले का सबसे अहम हिस्सा है 'रीजनेबल' (तर्कसंगत) शब्द की लोगों की क्रय की क्षमता के संदर्भ में विवेचना। कुल मिलाकर फैसला बहुत ही हिम्मत भरा था- क्योंकि यह जनहित को भारत में पेटेंट मुद्दों के केंद्र में लाकर रख देता है। अगर समस्या है, तो वह सरकार के लिए है कि वह ऐसे काबिल व्यक्ति को ढूंढ ले जो न्यायमूर्ति श्रीदेवन की जिम्मेदारी और हिम्मत का, उनके रिटायर होने के बाद भी वहन कर सके। "
बोर्ड का फैसला इस मायने में भी दूरगामी असर डालने वाला हो सकता है क्योंकि बेयर का नेटको के साथ ही विवाद नहीं चल रहा था, बल्कि वह एक और भारतीय जेनेरिक दवा निर्माता कंपनी सिप्ला के साथ भी कानूनी लड़ाई लड़ रही है। बेयर ने सिप्ला पर भी उसके पेटेंट के उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। यह मामला अभी दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है। सिप्ला ने जेनेरिक नेक्सवर (सोराफेनिब टोसीलेट) का 120 कैप्सूल का पैक करीब 30 हजार रुपए की कीमत पर बाजार में उतारा था। अभी जब नेटको बनाम बेयर के मामले में बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड का मत सामने आया तो उस समय सिप्ला 5400 रुपए की कीमत पर इस दवा को बेच रही थी। हैरान करने वाली बात यह है कि पेटेंट के उल्लंघन के आरोपों और नेटको को अनिवार्य लाइसेंस देने से पहले वर्ष 2008 से 2010 के बीच बेयर ने सोराफेनिब टोसीलेट दवा का भारत में नाममात्र के लिए ही आयात किया। वर्ष 2008 में तो बेयर ने इसका आयात ही नहीं किया, जबकि उस साल बेयर ने दुनिया के बाकी हिस्से से जो लाभ कमाया वह 67 करोड़ 80 लाख डॉलर था। जबकि यह दवा लीवर और किडनी के कैंसर के पूरे फैल जाने की स्थिति (एडवांस स्टेज) में इस्तेमाल होती है। भारत और अमेरिका दोनों में इसका पेटेंट बेयर के पास है। बेयर का इस मामले में यह शर्मनाक रुख दर्शाता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां पेटेंट को हथियार बनाकर अपनी सुविधा के हिसाब से उसका इस्तेमाल करती हैं।
कैंसर और एड्स के इलाज में काम आने वाली अधिकतर दवाओं पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है, क्योंकि उनके पास इन दवाओं का पेटेंट है। लेकिन पिछले कुछ सालों से जेनेरिक दवा कंपनियों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए चुनौती पेश की है। इसका एक और उदाहरण नोवार्टिस का है। नोवार्टिस स्विट्जरलैंड की बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी है। नोवार्टिस को ग्लेविक दवा के लिए भारत में विशेष मार्केटिंग अधिकार प्राप्त थे। ग्लेविक इमाटिनिब मैसेलेट का बीटा क्रिस्टल रूप है। ग्लेविक क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकिमिया के लिए निर्धारित औषधि है। नोवार्टिस की दवा की कीमत प्रति माह एक लाख बीस रुपए बैठती है। जबकि भारतीय जेनेरिक निर्माता इसी जीवन रक्षक दवा को दस हजार रुपए प्रति माह की कीमत पर मरीजों को उपलब्ध कराते हैं। बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड ने ग्लेविक के पेटेंट नवीकरण करने से इनकार कर दिया। इसके पीछे बोर्ड का आधार यह था कि इसकी कीमत बहुत ही अधिक है। नोवार्टिस यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ले गई है। इसके अलावा भारत फाइजर कंपनी की कैंसर की दवा सूटंट, रॉश होल्डिंग एजी की हेपेटाइटिस सी की दवा पैग्सिस और मर्क एंड कंपनी की अस्थमा के इलाज की एयरोसोल सस्पेंशन फॉम्र्यूलेशन के मंजूर पेटेंटों को रद्द कर चुका है।
देखा जाए तो जेनेरिक दवा निर्माता कंपनियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार का विकल्प बन सकती हैं। खासकर एचआईवी/एड्स के इलाज में इस्तेमाल में लाई जाने वाली एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं के मामले में यह देखने को मिला है। एचआईवी-एड्स के एक मरीज को एक साल के इलाज के लिए 12 हजार से 15 हजार डॉलर खर्च करने पड़ते थे। भारत की बड़ी जेनेरिक दवा निर्माता कंपनियों में से एक सिप्ला ने उच्च गुणवत्ता वाली एचआईवी-एड्स एंटीरेट्रोवाइरल दवाएं सस्ते में उपलब्ध कराकर विकासशील देशों, विशेषकर अफ्रीका में मरीजों में एक नई आशा जगाई। सिप्ला ने तीन एंटीरेट्रोवाइरल को मिलाकर एक गोली बनाई जिसका नाम ट्राइओम्यून है। इसके लिए मरीज को एक साल के इलाज के लिए 350 डॉलर देने पड़ते हैं। अफ्रीका और अन्य विकासशील देशों में 85 प्रतिशत दवाएं भारतीय कंपनियों से जाती हैं। इन जेनेरिक दवाओं ने बहुत सारे लोगों का जीवन बचाया और बहुत सारे मरीजों की जीवन-प्रत्याशा को बढ़ाया। पूरी दुनिया में चार करोड़ लोग एड्स से पीडि़त हैं। इन मरीजों को सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाएं उपलब्ध होना जरूरी है, क्योंकि इन मरीजों में से अधिसंख्य के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दवाएं खरीदना असंभव है।
दवाओं की इतनी अधिक कीमत के मामले में बहुष्ट्रीय कंपनियों का तर्क है कि वह दवा की खोज और उसके विकास में बहुत अधिक निवेश करते हैं और अपने फार्मूले पर वह इसलिए भी अधिकार चाहते हैं ताकि वे आने वाले समय में अपनी गुणवत्ता को बढ़ा सकें। पर शोध और विकास में बहुत अधिक धन खर्च करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का तर्क पूरी तरह निराधार है। इस मामले में हुए अध्ययन बताते हैं कि दवा अनुसंधान के लिए जो वैश्विक फंडिंग है उसमें से 84 फीसदी पूंजी सरकारों और सार्वजनिक स्रोतों से आती है। जबकि फार्मास्यूटिकल कंपनियां 12 प्रतिशत ही पूंजी लगाती हैं। उल्टा ये कंपनियां औसतन 19 गुना अधिक पैसा मार्केटिंग पर खर्च करती हैं। अपने राजस्व का 1.3 प्रतिशत पैसा ही ये कंपनियां मूल अनुसंधान पर खर्च करती हैं।
दरअसल, व्यापार संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रसार के बाद पेटेंट बड़ा मुनाफा कमाने का एक खतरनाक हथियार बन गया है। जबकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्राकृतिक दुनिया से संबंधित ज्ञान का एक बहुत बड़ा हिस्सा जो आज मानव के पास है उसमें कई सदियों के दौरान देशज और स्थानीय लोगों के प्रयासों का योगदान रहा है। देशज लोगों ने जो आविष्कार और खोजें की उन पर स्वामित्व का दावा नहीं किया। हालांकि हाल के दशकों में व्यापार संबंधी बौद्धिक संपदा के अधिकारों (ट्रिप्स) के परिणामस्वरूप देशज और स्थानीय लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। ट्रिप्स जीव रूपों और ट्रांस नेशनल कॉरपोरेशनों की गतिविधियों, जो जैविक संसाधनों (इस प्रक्रिया को जैव संभावना के नाम से जाना जाता है) पर आधारित उत्पादों के व्यावसायीकरण में शामिल हैं, को पेटेंट करने की इजाजत देता है। ट्रांस नेशनल कॉरपोरेशन जिन बहुत सारे 'आविष्कारों' को करने का दावा करते हैं, वह ज्ञान पहले से मौजूद रहा है, लेकिन जिसका दस्तावेजीकरण नहीं किया गया था। यह मौखिक तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा है। यह सामूहिक ज्ञान है, इस पर स्वामित्व का अधिकार नहीं किया गया। देशज लोग इस तरह के ज्ञान के व्यावसायीकरण को पसंद नहीं करते थे। असली आविष्कारक इसे लोकहित में इस्तेमाल करते थे। बौद्धिक संपदा दौर के प्रसार के साथ पिछले कुछ सालों में देशज और स्थानीय लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। ट्रिप्स समझौते, जो जीवाणु, सूक्ष्म जीव विज्ञान प्रक्रियाओं और साथ ही वनस्पतियों की किस्मों के पेटेंट के लिए रास्ता उपलब्ध कराता है, ने पिछले कुछ वर्षों में पेटेंट के प्रसार के लिए अवसर उपलब्ध कराया है। ट्रांस नेशनल कॉरपोरेशनों ने देशज और स्थानीय लोगों के परंपरागत ज्ञान को स्वयं द्वारा किए गए 'आविष्कारों' का दावा करके पेटेंट कराने की कोशिश की है।
सवाल यही है कि दवाओं के अनुसंधान और विकास का लाभ किसको मिल रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां जिस तरह से मनमाना मुनाफा वसूल रही हैं उसे क्या चिकित्सा विज्ञान के मानदंडों से उचित कहा जा सकता है ? जैसे, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पेटेंट युक्त इंजेक्शन के दाम डेढ़ लाख रुपए तक हैं। वैश्विक संदर्भ में बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के एकाधिकार को देखते हुए यह जरूरी है कि पेटेंट युक्त दवाओं के जेनेरिक संस्करण के लिए अनिवार्य लाइसेंस देने की नीति को ज्यादा सक्रिय तरीके से लागू किया जाना चाहिए। जेनेरिक दवा निर्माण और अनिवार्य लाइसेंसिंग के मामले में भारत और अन्य विकासशील देश यदि कमजोर रुख अपनाएंगे तो इसके परिणाम तीसरी दुनिया के लिए बहुत ही घातक होंगे। लेकिन इसके साथ ही जेनेरिक दवा निर्माता कंपनियों की दवाओं की कीमतों के निर्धारण की ऐसी नीति होनी चाहिए जो आम जनता की पहुंच के अंदर हो। भारत जैसे देश में ऐसे लोगों की काफी बड़ी संख्या है जो जेनेरिक दवा निर्माता कंपनियों की जीवन रक्षक दवाओं को भी खरीदने में सक्षम नहीं हैं। अगर जिस व्यक्ति की प्रति माह आमदनी पांच हजार से सात हजार रुपए के बीच है वह इलाज के लिए दस हजार रुपए के कीमत वाली जेनेरिक दवा भी नहीं खरीद सकता है। भारत में इस तरह की कम आय वाले परिवारों की संख्या करोड़ों में है। "
संदर्भ:
1. आर. राघवन, 'नेटको फार्मा विंस कैंसर ड्रग द हिंदू, 5 मार्च 2013।
2. श्रीविद्या राघवन, 'पेशंट्स विन ओवर पेटेंट्स ; द हिंदू, 7 मार्च 2013।
3. देबोश्री रॉय, 'ऑफ ग्लेविक एंड नोवार्टिस ; फ्रंटियर, 9-15 दिसंबर 2012।
4. रोहिणी पाडुरंगी, 'पेटेंटिंग ट्रेडिशनल नॉलेज ; फ्रंटियर, 9-15 दिसंबर 2012।
5. मार्टिन खोर, 'फार्मा इंडस्ट्री फॉर द वल्र्डस् पूअर ; डेक्कन हेराल्ड, 20 मार्च 2013।
साभारःसमयान्तर
देश की नदियों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा!
Author:
डॉ. महेश परिमल
Source:
डॉ. महेश परिमल ब्लॉग, 20 फरवरी 2012
जल योजना के तहत अभी इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों पर अपना कब्जा जमा लिया है। हमारी सरकार निजीकरण के लालच में बदहवाश हो गई है। अब जल वितरण व्यवस्था के तहत ये कंपनियाँ अधिक कमाई के चक्कर में पानी की कीमत इतना अधिक बढ़ा देंगी कि गरीबों की जीना ही मुश्किल हो जाएगा। वह फिर गंदा पानी पीने लगेगा और बीमारी से मरेगा। क्योंकि ये कंपनियाँ नागरिकों को शुद्ध पानी देने की कोई गारंटी नहीं देती।
अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हुए आतंकवादी हमले में जितने लोग मारे गए, उतने इंसान तो रोज गंदा पानी पीने से मर जाते हैं। हमारे देश में 20 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो अशुद्ध पानी पीते हैं। पानी के लिए झगड़े, फसाद होते रहे हैं, पर अब जल्द ही युद्ध भी होने लगेंगे। इस क्षेत्र में दबे पाँव बहुराष्ट्रीय कंपनियां आ रही हैं, जिससे हालात और भी खराब होने वाले हैं। सरकार इस दिशा में इन्हीं विदेशी कंपनियों के अधीन होती जा रही है। इस कार्य में विश्व बैंक की अहम भूमिका है। कुछ समय पहले ही जर्मनी की राजधानी बोन में पानी की समस्या को लेकर गंभीर विचार-विमर्श हुआ। इस अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में 130 देशों के करीब 3 हजार प्रतिनीधि उपस्थित थे। इस सम्मेलन में चौंकाने वाली जानकारी यह दी गई कि 21वीं सदी में जिस तरह से टैंकर और पाइप लाइनों से क्रूड आयल का वितरण किया जा रहा है, ठीक उसी तरह पानी का भी वितरण किया जाएगा। बहुत ही जल्द पानी के लिए युद्ध होंगे। विश्व में 1.30 अरब लोग ऐसे हैं, जिन्हें पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है। अशुद्ध पानी से विश्व में रोज 6 हजार मौतें हो रहीं हैं। हालात ऐसे ही रहे, तो पूरे विश्व में पानी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाएगा।
हमारी पृथ्वी में जितना पानी है, उसका 97 प्रतिशत समुद्र के खारे पानी के रूप में है। केवल 3 प्रतिशत पानी ही मीठा और पीने लायक है। इसमें से 25 प्रतिशत हिमनदियों में बर्फ के रूप में जमा हुआ है। इस तरह से कुल 5 प्रतिशत पानी ही हमारे लिए उपलब्ध है। इसमें से भी अधिकांश भाग अमेरिका और केनेडा की सीमाओं पर स्थित बड़े-बड़े तालाबों में है। शेष विश्व में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, औद्योगीकरण और प्रदूषण के कारण पानी के ज्ञात स्रोतों में लगातार कमी आ रही है। देश के कई राज्यों में पानी के लिए दंगे होना शुरू हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया में प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष 3 हजार घनफीट जितना पानी ही लोगों को मिल पाएगा। इसमें भी भारत की आवश्यकता औसतन 2,500 घनमीटर ही है। उत्तर प्रदेश में यह परंपरा है कि कन्या द्वारा जब कुएँ की पूजा की जाती है, तभी लग्न विधि पूर्ण मानी जाती है। अब तो कुओं की संख्या लगातार घट रही है, इसलिए गाँवों में कुएँ के बदले टैंकर की ही पूजा करवाकर लग्नविधि पूर्ण कर ली जाती है।
लोगों ने समय की जरूरत को समझा और ऐसा करना शुरू किया। पर पानी की बचत करनी चाहिए, इस तरह का संदेश देने के लिए कोई परंपरा अभी तक शुरू नहीं हो पाई है, यदि शुरू हो भी गई हो, तो उसे अमल में नहीं लाया गया है। जब तक हमें पानी सहजता से मिल रहा है, तब तक हम इसकी अहमियत नहीं समझ पाएँगे। हमारे देश में पानी की समस्या दिनों-दिन गंभीर रूप लेती जा रही है। देश में कुल 20 करोड़ ऐसे लोग हैं, जिन्हें पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। पेयजल के जितने भी स्रोत हैं, उसमें से 80 प्रतिशत स्रोत उद्योगों द्वारा छोड़ा गया रसायनयुक्त गंदा पानी मिल जाने के कारण प्रदूषित हो गए हैं। इसके बावजूद किसानों को यह सलाह दी जाती है कि वे ऐसी फसलों का उत्पादन करें, जिसका दाम अधिक मिलता हो। किसानों को राजनैतिक दलों द्वारा वोट की खातिर मुफ्त में बिजली दी जाती है, जिससे वे अपने बोरवेल में पंप लगाकर दिन-रात पानी निकालते रहते हैं। इससे भूगर्भ का जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। इससे हजारों कुएँ नाकारा हो जाते हैं। पानी की कमी के कारण भारत का कृषि उत्पादन भी लगातार घट रहा है। यही कारण है कि हम अब अनाज का आयात करने लगे हैं।
देश को जब आजादी मिली, तब एक-एक गाँवों में पीने के पानी का कम से कम एक स्रोत तो ऐसा था ही, जिससे पूरे गाँव की पेयजल समस्या दूर हो जाती थी। जहाँ पेयजल समस्या होती थी, सरकारी भाषा में इन गाँवों को 'नो सोर्स विलेज' कहा जाता है। सन् 1964 में 'नो सोर्स विलेज' की संख्या 750 थी, जो 1995 में बढ़कर 64 हजार से ऊपर पहुँच गई। इसका आशय यही हुआ कि आजादी के पहले जिन 64 हजार गाँवों के पास अपने पेयजल के स्रोत थे, वे सूख गए। या फिर औद्योगिकरण की भेंट चढ़ गए। बड़ी नदियों पर जब बाँध बनाए जाते हैं, तब नदी के किनारे रहने वालों के लिए मुश्किल हो जाती है, उन्हें पीने के लिए पानी नहीं मिल पाता। शहरों की नगर पालिकाएँ नदी के किनारे बहने वाले नालों में गटर का पानी डालने लगती है, इससे सैकड़ों गाँवों में पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। उद्योग भी नदी के किनारे ही लगाए जाते हैं। इससे निकलने वाला प्रदूषणयुक्त पानी नदी के पानी को और भी प्रदूषित बनाता है। इस पानी को पीने वाले अनेक बीमारियों का शिकार होते हैं। पानी को इस तरह से प्रदूषित करने वाले उद्योगपतियों को आज तक किसी प्रकार की सजा नहीं हुई। नगर पालिकाएँ भी गटर के पानी को बिना शुद्ध किए नदियों में बहा देने के लिए आखिर क्यों छूट मिली हुई है। इस दिशा में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड खामोश है।
देश को जब आजादी मिली, तब देश की जल वितरण व्यवस्था पूरी तरह से प्रजा के हाथ में थी। हरेक गाँव की ग्राम पंचायत तालाबों एवं कुओं की देखभाल करती थी, ग्रामीण नदियों को प्रकृति का वरदान समझते थे, इसलिए उसे गंदा करने की सोचते भी नहीं थे। आजादी क्या मिली, सभी नदियों पर बाँध बनाने का काम शुरू हो गया। लोगों ने इसे विकास की दिशा में कदम माना, पर यह कदम अनियमितताओं के चलते तानाशाहीपूर्ण रवैए में बदल गया। नदियाँ प्रदूषित होती गई। अब इन नदियों को प्रदूषण मुक्त करने की योजना बनाई जा रही है। इसकी जवाबदारी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दी जा रही है। देश की प्रजा का अरबों रुपए अब इन कंपनियों के पास चला जाएगा। कुछ संपन्न देशों में नदियों की देखभाल निजी कंपनियाँ कर रही हैं। विश्व की दस बड़ी कंपनियों में से चार कंपनियाँ तो पानी का ही व्यापार कर रही हैं। इन कंपनियों में जर्मनी की आरडब्ल्यूई, फ्रांस की विवाल्डो और स्वेज लियोन और अमेरिक की एनरॉन कार्पोरेशन का समावेश होता है। एनरॉन तो अब दीवालिया हो चुकी है, पर इसके पहले उसने विभिन्न देशों में पानी का ही धंधा कर करीब 80 अरब डॉलर की कमाई कर चुकी है। माइक्रोसॉफ्ट कंपनी द्वारा जो वार्षिक बिक्री की जाती है, उससे चार गुना व्यापार एनरॉन कंपनी ही करती थी।
हमारी नदियों पर अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जाहमारे देश में पानी की तंगी होती है, लोग पानी के लिए तरसते हैं, उसमें भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का स्वार्थ है। देश के दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में जल वितरण व्यवस्था की जिम्मेदारी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देने की पूरी तैयारी हो चुकी है। इन कंपनियों के एजेंट की भूमिका विश्व बैंक निभा रहा है। किसी भी शहर की म्युनिसिपलिटी अपनी जल योजना के लिए विश्व बैंक के पास कर्ज माँगने जाती है, तो विश्व बैंक की यही शर्त होती है कि इस योजना में जल वितरण व्यवस्था की जवाबदारी निजी कंपनियों को सौंपनी होगी। विश्व बैंक के अनुसार निजी कंपनी का आशय बहुराष्ट्रीय कंपनी ही होता है। इन्हीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इशारे पर ही हमारे देश की जल नीति तैयार की जाती है। इस नीति के तहत धीरे-धीरे सिंचाई के लिए तमाम बाँधों और नदियों को भी इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौंप दिया जाएगा। यह भी एक तरह की गुलामी ही होगी, क्योंकि एक बार यदि सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनी को पेयजल वितरण व्यवस्था की जिम्मेदारी दे दी गई, तो फिर पानी की गुणवत्ता और आपूर्ति की नियमितता पर सरकार को कोई अंकुश नहीं रहता।
पानी का व्यापार करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों को अरबों रुपए की रिश्वत देकर यह ठेका प्राप्त करती हैं। पानी का व्यापार करने वाली इन कंपनियों पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लग चुके हैं। महानगरों की जल वितरण व्यवस्था को भी इन कंपनियों ने भ्रष्टाचार के सहारे ही अपने हाथ में लिया है। महाराष्ट्र सरकार ने 2003 में एक आदेश के तहत अपनी नई जल नीति की घोषणा की थी। इस नीति के अनुसार सभी जल परियोजनाएँ निजी कंपनियों को देने का निर्णय लिया गया है। विधानसभा में इस विधेयक को पारित भी कर दिया गया। इस विधेयक के अनुसार महाराष्ट्र स्टेट वॉटर रेग्युलेटरी अथॉरिटी की रचना की गई, इसका कार्य नदियों के बेचे जाने वाले पानी का भाव तय करना है। इस तरह से पिछले 5 वर्षों से सरकार राज्य की नदियाँ बेचने के मामले में कानूनी रूप से कार्यवाही कर रही है। देर से ही सही, प्रजा को सरकार की इस चालाकी की जानकारी हो गई है। फिर भी वह लाचार है।
यह तो तय है कि महाराष्ट्र की नदियों का निजीकरण करने की योजनाओं के पीछे विश्व बैंक और पानी का अरबों डॉलर का व्यापार करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ही हाथ है। विश्व बैंक ने 5 साल पहले महाराष्ट्र सरकार को पानी के क्षेत्र में सुधार के लिए 32.5 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया था। कर्ज के साथ यह शर्त भी जुड़ी थी कि महाराष्ट्र सरकार अपनी-अपनी नदियों और जल परियोजनाओं का निजीकरण और व्यापारीकरण करेगी। इस शर्त के बंधन में बँधकर सरकार ने नई जल नीति तैयार की। इस नीति के तहत पुणे और मुम्बई में जल वितरण योजनाएँ विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौंपने की तैयारी है। दूसरी ओर नदियों को बेचने की योजनाएँ शुरू हो गई हैं। जल योजना के तहत अभी इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों पर अपना कब्जा जमा लिया है। हमारी सरकार निजीकरण के लालच में बदहवाश हो गई है। अब जल वितरण व्यवस्था के तहत ये कंपनियाँ अधिक कमाई के चक्कर में पानी की कीमत इतना अधिक बढ़ा देंगी कि गरीबों की जीना ही मुश्किल हो जाएगा। वह फिर गंदा पानी पीने लगेगा और बीमारी से मरेगा। क्योंकि ये कंपनियाँ नागरिकों को शुद्ध पानी देने की कोई गारंटी नहीं देती।
इस खबर के स्रोत का लिंक:
http://dr-mahesh-parimal.blogspot.in
साभारःइंडियन वाटर पोर्टल
हरित क्रांति से कैंसरग्रस्त हुए पंजाबी पुत्तर
लेखक:
डॉ. महेश परिमलक्या आपको पता है कि हमारे देश में एक ट्रेन ऐसी भी चलती है, जिसका नाम 'कैंसर एक्सप्रेस' है? सुनने में यह बात हतप्रभ करने वाली है, पर यह सच है, भले ही इस ट्रेन का नाम कुछ और हो, पर लोग उसे इसी नाम से जानते हैं। यह ट्रेन कैंसर बेल्ट से होकर गुजरती है। यह ट्रेन भटिंडा से बीकानेर तक चलती है। इसमें हर रोज कैंसर के करीब 70 यात्री सफर करते हैं। जानते हैं यह यात्री कहाँ के होते हैं? पंजाब का नाम तो सुना ही होगा आपने? इस नाम के साथ वहाँ के गबरु जवानों के चित्र आँखों के सामने आने लगते हैं। पर इसी पंजाब के गबरु जवानों को हमारे रासायनिक खादों की नजर लग गई। जिस पंजाब की धरती ने लहलहाते खेतों को अपने सीने से लगाया है, आज वही धरती शर्मसार है, क्योंकि यही धरती आज अपने रणबाँकुरों को कृशकाय रूप में देख रही है। जी हाँ, जंतुनाशकों और रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग यहाँ के किसानों को कैंसरग्रस्त कर रहा है। लोग यहाँ से अपना इलाज करवाने बीकानेर स्थित 'आचार्य तुलसी कैंसर ट्रीटमेंट एंड रिसर्च सेंटर' आते हैं।
पूर्व में किये गये अध्ययनों के अनुसार मालवा इलाके में खेती के लिये कीटनाशकों, उर्वरकों तथा एग्रोकेमिकल्स के अंधाधुंध उपयोग के कारण मानव जीवन पर कैंसर के खतरे की पुष्टि हुई थी, और अब इन्हीं संकेतों के मद्देनज़र किये गये अध्ययन से पता चला है कि पंजाब के मालवा इलाके के पानी, मिट्टी और अन्न-सब्जियों में यूरेनियम तथा रेडॉन के तत्व पाये गये हैं। कुछ अध्ययनों के अनुसार आर्सेनिक, फ़्लोराइड और नाईट्रेट की उपस्थिति भी दर्ज की गई है, जिसकी वजह से हालत बद से बदतर होती जा रही है। इस इलाके के भटिण्डा जिले और इसके आसपास का इलाका 'कॉटन बेल्ट' के रूप में जाना जाता है, तथा राज्य के उर्वरक और कीटनाशकों की कुल खपत का 80 प्रतिशत इसी क्षेत्र में जाता है। पिछले कुछ वषों से इस इलाके में कैंसर से होने वाली मौतों तथा अत्यधिक कृषि ण के कारण किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आते रहे हैं। इस इलाके के लगभग 93 किसान औसतन प्रत्येक 2.85 लाख रुपए के कर्ज तले दबे हुए हैं। पहले किये गये अध्ययनों से अनुमान लगाया गया था कि क्षेत्र में बढ़ते कैंसर की वजह बेतहाशा उपयोग किये जा रहे एग्रोकेमिकल्स हैं, जो पानी के साथ भूजल में पैठते जाते हैं और भूजल को प्रदूषित कर देते हैं। हाल ही में कुछ अन्य शोधों से पता चला है कि भूजल के नमूनों में प्रदूषित केमिकल्स के अलावा यूरेनियम, रेडियम और रेडॉन भी पाये जा रहे हैं, जिसके कारण मामला और भी गम्भीर हो चला है।
रासायनिक खादों एवं जंतुनाशकों से पंजाब की उपजाऊ धरती आज बंजर होने लगी है। यही हाल वहाँ के किसानों का है, जो लगातार कैंसरग्रस्त होने लगे हैं। उनके शरीर पर कैंसर के बजबजाते कीड़े अपना असर दिखाने लगे हैं। कभी अपनी दिलेरी को लेकर विख्यात यहाँ के किसान शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बन रहे हैं। इतना कुछ होने पर भी न तो पंजाब सरकार और न ही केंद्र सरकार ने इस दिशा में ध्यान दिया। रोज सैकड़ों मरीज पंजाब से बीकानेर आते हैं, इनमें से कितने स्वस्थ हो पाते हैं और कितने काल कलवित होते हैं, यह जानने की फुरसत किसी को नहीं है। पंजाब बहुत ही समृद्ध राज्य है। ऐसा माना जा सकता है, पर दबे पाँव वहाँ गरीबी अपने पैर पसार रही है। यह भी सच है। राज्य के बीस में से 11 जिले और 60 प्रतिशत आबादी मालवा अंचल के किसान कैंसर जैसी बीमारी का शिकार हो रहे हैं। अधिकांश की हालत जोगिंदर की तरह ही है। निजी अस्पतालों में लाखों रुपए खर्च करने के बाद कई लोग सरकारी अस्पताल में आकर अपना इलाज करवाने के लिए विवश हैं।
चंडीगढ़ की 'पोस्ट ग्रेज्युएट इंस्टीटच्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च' (पीजीआईएमईआर) द्वारा किए गए एक शोध में पता चला कि उक्त कैंसर एक्सप्रेस से रोज औसतन 70 मरीज बीकानेर जाते हैं। जहाँ से ये मरीज आते हैं, उसे क्षेत्र को कैंसर बेल्ट कहते हैं। पूरे राज्य से इसी क्षेत्र से कैंसर के मरीज बीकानेर जाते हैं। यहाँ हर साल एक लाख लोगों में से 51 लोग कैंसर के कारण मौत के मुँह में चले जाते हैं। यहाँ से आने वाले मरीजों को डॉक्टर यही सलाह देते हैं कि वे कुएँ या बोरवेल का पानी पीने के बजाए पेक किया हुआ पानी पीएँ। 1970 में आई हरित क्रांति ने किसानों को समृद्ध बना दिया। कालांतर में यही हरित क्रांति उनके लिए अभिशाप बन गई। यहाँ हरित क्रांति के दौरान उपयोग में लाई गई रासायनिक खाद और जंतुनाशक के कारण भूगर्भ जल दूषित हो गया। यह जल इतना प्रदूषित हो गया कि इसका सेवन करने वाला रोगग्रस्त हो गया।
सन् 2007 में राज्य की पर्यावरण रिपोर्ट के अनुसार पूरे पंजाब में उपयोग में लाए जाने वाले पेस्टीसाइड्स का 75 प्रतिशत तो केवल मालवा में ही खप गया। इसके दुष्परिणाम बहुत ही जल्द सामने आ गए। वास्तव में रासायनिक खाद एवं जंतुनाशकों का अधिक बेइंतहा इस्तेमाल ही आज कैंसर के रूप में सामने आया है। यहाँ एक हेक्टेयर जमीन पर 177 किलो रासायनिक खाद उपयोग में लाया जाता रहा, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इसका उपयोग प्रति हेक्टेयर 90 किलो है। इनमें शामिल नाइट्रेट का सबसे अधिक असर बच्चों पर पड़ा है। अधिक खाद और जंतुनाशकों से केवल किसान ही सबसे अधिक प्रभावित हुए हों, ऐसा नहीं है। भटिंडा की आदेश मेडिकल कॉलेज के डॉ. जी.पी.आई. सिंह बताते हैं कि 3,500 की आबादी वाला गाँव जज्जर की महिलाओं को अधूरे महीने में ही प्रसूति हो जाती है। नवजात शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग होते हैं। ये नवजात इतने कमजोर पैदा होते हैं कि अपना सर तक नहीं सँभाल पाते हैं। इस गाँव में ऐसे 20 बच्चे हैं। अभी तक इसका सुबूत नहीं मिला है कि इन क्षेत्रों में पैदा होने वाली ऐसी संतानों की बीमारी के पीछे यही जंतुनाशक और रासायनिक खाद ही जिम्मेदार है। पर इतना तो तय है कि जंतुनाशक और कैंसर के बीच कुछ तो संबंध है।
भटिंडा की अस्पताल से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सन् 2004-2008 के बीच खेतों में जंतुनाशकों का छिड़काव करते समय साँस के साथ शरीर में गई दवाओं से 61 लोगों की मौत हो चुकी है। यहाँ के किसानों के खून में हेप्टाक्लोर और इथिऑन जैसे रसायन पाए गए, जो कैंसर का कारण बनते हैं। यह रसायन पशुओं के चारे, सब्जियों के साथ-साथ गाय और माताओं के दूध में भी पाए जाते हैं। सबसे दु:खद बात यह है कि पंजाब में रासायनिक खाद और जंतुनाशकों से इतना कुछ होने के बाद भी किसान जैविक खाद का इस्तेमाल नहीं करना चाहते। जंतुनाशकों के साथ पर गोबर खाद का भी इस्तेमाल करने में कोताही करते हैं। इस संबंध में उनका कहना है कि गोबर खाद महँगी पड़ती है, लेकिन क्या उनके स्वास्थ्य से भी महँगी है? कैंसर के इलाज में जब लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं, कई मौतें हो जाती हैं, फिर जो हालात सामने आते हैं, वे तो इतने महँगे नहीं होते? पूरे मालवा क्षेत्र से हरियाणी गायब हो रही है, पशु-पक्षी अपना बसेरा छोड़ने लगे हैं, महिलाओं के बाल अकारण ही सफेद होने लगे हैं, यही नहीं, यहाँ के युवाओं को कोई अपनी बेटी देने को तैयार नहीं है। इसके बाद भी यदि किसान या सरकार इस दिशा में नहीं सोचते, तो फिर कौन देखेगा पंजाबी पुत्तरों को? हृष्ट-पुष्ट जवानों की पूरी कौम ही बरबाद हो रही है, आज तक रासायनिक खादों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगा। अभी कितनी मौतें और होनी हैं, बता सकता है कोई?
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http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/
साभारःइंडियन वाटर पोर्टल
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