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Saturday, May 18, 2013

‘गढ़वाली’ को याद करते हुए की सिविल नाफरमानी की घोषणा

'गढ़वाली' को याद करते हुए की सिविल नाफरमानी की घोषणा

andolankari-at-jageshwarवीर चंद्र सिंह गढ़वाली के पेशावर कांड की स्मृति में जागेश्वर (अल्मोड़ा) में आयोजित सम्मेलन में देशभर के विभिन्न हिस्सों से जुटे आंदोलनकारियों ने गढ़वाली से ही प्रेरणा लेते हुए जनविराधी नीतियों और कानूनों की सिविल नाफरमानी का प्रण लिया।

इस अवसर पर स्थानीय आयोजक उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष शमशेर सिंह बिष्ट ने आयोजन के मकसद को बताते हुए कहा कि पूरे देश में सरकारें जनता के हितों का दमन करते हुए कॉरपोरेटों को फायदा पहुँचाने में जुटी हैं। जल, जंगल, जमीन और खनिजों पर जनता के संविधान प्रदत्त अधिकारों को छीनते हुए लगातार इन्हें बड़ी कंपनियों को खुली लूट के लिए दिया जा रहा है। उन्होंने उत्तराखंड में सरकार द्वारा कोकाकोला को दी गई जमीन और यमुना के पानी को भी इसी लूट का एक हिस्सा बताते हुए कहा कि इसी लूट के खिलाफ जनता को आज जनविरोधी नियम कानूनों की नाफरमानी करनी होगी। इसी के लिए देशभर से आंदोलनकारी यहाँ जुटे हैं और इस संदर्भ में प्रण लेंगे।

दिल्ली से आए प्राध्यापक और आजादी बचाओ आंदोलन से जुड़े विष्णु प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि आज पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर दोनों ही जनता के पक्ष में नहीं हैं। दोनों ही जगह भयंकर भ्रष्टाचार फैला हुआ है। ऐसे में जनता को खुद ही कम्युनिटी सेक्टर को विकसित करने की जरूरत है। इसके लिए लोगों को अपने संसाधनों पर अपने हक को समझना होगा। आजादी बचाओ आंदोलन के संयोजक मनोज त्यागी ने कहा कि सरकारें कोकाकोला और पेप्सी के खिलाफ पर्याप्त अकाट्य सबूत होने के बावजूद भी कोई कदम नहीं उठा रही है। उलटा उनसे अपने यहाँ निवेश कराने के लिए राज्य सरकारें लालायित हैं। फलिंडा में सरकार, कंपनी और ग्रामीणों के लिखित समझौते का कंपनी द्वारा उल्लंघन करने के बाद भी कंपनी के पक्ष में ही खड़ी रहती है। ये दो उदाहरण सिविल नाफरमानी की जरूरत को समझने के लिए काफी हैं।

चेतना आंदोलन के त्रेपन सिंह चौहान ने टिहरी जिले के फलिंडा बाँध से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस आंदोलन में सरकार और न्यायपालिका का कंपनी के हितों को बचाए रखने के लिए भयंकर गठजोड़ फलिंडा की जनता ने देखा है। फलिंडा के प्रत्येक ग्रामीण को अपनी जमीनों, अपने पानी पर अधिकार के लिए तीन-तीन बार बच्चों समेत जेल जाना पड़ा। सरकारें खुद जनता के खिलाफ संविधान का उल्लंघन कर रही हैं। ऐसे में सिविल नाफरमानी ही जनता के पास एकमात्र रास्ता बचता है।

महिला मंच की संयोजक कमला पंत ने कहा कि जिस तरह उत्तराखंड के हर आंदोलन में महिलाओं की सक्रिय भूमिका रही है इस आंदोलन में भी महिलाओं को सक्रिय रूप से भागीदारी करनी होगी। सरकार और माफिया हर आंदोलन में भटकाव लाने के लिए शराब को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने सिविल नाफरमानी के आंदोलन में शराब के खिलाफ चल रहे आंदोलनों को भी जोड़ने की अपील की।

छत्तीसगढ़ से आए आंदोलनकारी मिथिलेश डांगी ने वहाँ किए जा रहे सिविल नाफरमानी के प्रयोगों के बारे में बताते हुए कहा कि ग्रामीणों ने सरकार की इजाजत के बिना ही कोयला निकालकर विद्युत उत्पादन शुरू किया है। ग्राम पंचायत ने स्वयं ही 10 किलावाट का थर्मल पावर प्लांट बनाकर वहाँ विद्युत उत्पादन शुरू किया है। जनता सरकार को कोयले की निजी कंपनियों के रेट के हिसाब से 40 से 170 रुपए प्रति टन के हिसाब से रॉयल्टी भी देने को तैयार है।

फतेहाबाद में परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने वाले यशवीर आर्या ने कहा कि वर्तमान दानवीय सभ्यता के खिलाफ सिविल नाफरमानी एक आवश्यकता बन गई है। इसके लिए कोई एक निश्चित कार्यदिशा तय हो और बदलती परिस्थितियों के अनुरूप इसकी कार्यदिशा बनानी होगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता सुमन शर्मा ने की तथा संचालन वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह ने किया। कार्यक्रम में प्रदीप कुमार, एस के रॉय, स्मृति श्रीवास्तव, विश्वेश्वर प्रसाद जोशी, विनोद बडोनी, श्रुति आदि दर्जनों

आंदोलनकारी उपस्थित रहे।

अंत में सर्वसंमति से प्रस्ताव पारित कर निर्णय लिया गया कि-

  1. उत्तराखंड सरकार ने कुख्यात कोकाकोला का यहाँ यमुना के पानी को लूटने के लिए जिस तरह स्वागत किया है ये ना ही उत्तराखंड की जनता के हित में है और ना ही नदी के डाउनस्ट्रीम में इसके किनारे बसी जनता के हित में। इस तरह यमुना नदी को कोकाकोला को लूट के लिए दे दिया जाना इसके किनारे बसी जनता के पानी पर प्राकृतिक और संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है। हम आन्दोलनकारी उत्तराखंड में कोकाकोला का प्लांट लगाए जाने का विरोध करते हैं और इसे ना लगने देने के लिए स्थानीय जनता के साथ जल्द ही एक जबरदस्त आन्दोलन छेड़ंगे।
  2. हम उत्तराखंड में बड़े बाँधों के खिलाफ जनता की मिलकियत में बनने वाले माइक्रो हाइड्रोपावर प्रोजेक्टों के लिए रजिस्टर कराई गई दो कम्पनियों के काम में तीव्रता लाने का प्रयास करेंगे। कुमाऊँ के पनार क्षेत्र की सरयू नदी पर और दूसरी गढ़वाल क्षेत्र के छतियारा में बालगंगा नदी पर परियोजना बनाने के लिए क्रमशः सरयू हाईड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोड्यूसर्स लिमिटेड और संगमन हाईड्रो इलैक्ट्रॉनिक्स पावर प्रोड्यूसर्स लिमिटेड नाम से कम्पनियाँ रजिस्टर कराई गई हैं। इनके लिए यथासंभव पर्यावरणीय क्लीयरेंस, सरकार पर प्रोड्यूसर्स कम्पनी की लोनिंग की गारंटी का दबाव आदि कार्य किये जायेंगे। और यदि सरकार इसमें मदद नहीं करती है तो पर्यावरणीय क्लियरेंस के सम्बन्ध में सिविल नाफरमानी करते हुए परियोजनाओं का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
  3. वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के पेशावर कांड का स्मरण करते हुए उत्तराखंड और देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए हम सभी आन्दोलनकारी यह महसूस करते हैं कि जनता के संघर्ष और बलिदान से प्राप्त होने के बावजूद उत्तराखंड की सभी सरकारें जनता की आकांक्षायें पूरी करने में न सिर्फ असफल रही हैं, बल्कि इसके उलट यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों को बड़ी-बड़ी कम्पनियों को लुटाने की एजेंट बन गई हैं। सारे नियम, नीतियाँ और निर्णय इन शोषक ताकतों के हित में किये जा रहे हैं।
  4. हम घोषणा करते हैं कि सरकार के जनविरोधी निर्णयों और नियमों को कतई नहीं मानेंगे और 1994 के राज्य आन्दोलन की तरह अब संविधान में प्रदत्त प्राकृतिक संसाधनों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिये नये सिरे से आन्दोलन छेड़ेंगे। संविधान के अनुच्छेद 39बी और 73वें-74वें संशोधन कानून के अन्तर्गत हमें जल, जंगल, जमीन और खनिज आदि प्राकृतिक संसाधनों पर पूरा अधिकार मिलना चाहिये। चूँकि सरकार जनता की आवाज को अनसुना कर ये संविधानसम्मत अधिकार हमें नहीं दे रही है, अतः हम भी किसी जनविरोधी कानून को न मान कर सिविल नाफरमानी की घोषणा करते हैं। लोकसत्ता की स्थापना के लिये अब यही एकमात्र रास्ता बचा है। लोगों को संचालित करने वाला नहीं, बल्कि लोगों द्वारा संचालित तंत्र बनाने के लिये हम एक निर्णायक लड़ाई लड़ेंगे।
  5. http://www.nainitalsamachar.in/civil-disobedience-by-andolankaris-at-jageshwar/

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