पढ़ रहा था हबीब जालिब की गजल का वो मिसरा है जिसमें ज़ुल्म की रात के बाद का नया सवेरा होगा नहीं इन मुल्कों में अमरीका का कोई डेरा फ़क़्र से कहेगे हिंदुस्तान भी मेरा पाकिस्तान भी मेरा गहन अंधेरे ने लेकिन फिर से हम सबको घेरा है पूरी दुनिया मे अब तो अमरीका का ही डेरा है अाया है जब से भूमंडलीकरण का दौर तीसरी दुनिया बन गया साम्राज्यवादी ठौर लॉर्ड क्लाइव की नहीं है अब कोई दरकार सिराज्जुदौली भी निभाता मीरज़ाफरी किरदार खत्म होना ही है सबको है जिसका भी वजूद ये घना अंधेरा भी रहेगा न सदा मौजूद आयोगा ही धरती पर इक नया सवेरा स्वतंत्रता समानता का बनेगा बसेरा अपनी ही चालों में फंस रहा जब पूंजीवाद हिंद-ओ-पाक में फैला रहा है वो फासीवाद जगेगा जमीर जब दोनों मुल्कों का आवाम का समझेगा वह हकीकत विश्वबैंक के पैगाम का भूमंडलीय पूंजी की साजिश नाकाम कर देगा फासीवाद को उसके अंजाम तक ले जायेगा हिंद-पाक मिल साथ हिंदुस्तान बन जायेगा बचेंगी न बंटवारे की कड़वी स्मृतियां शेष हिंदुकुश से अरबसागर तक होगा एक ही देश (ईमिः12.07.2014) |
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