Amitabh Bachchan at the opening ceremony of "Festival De Cannes -- 2013"
क्या अमिताभ बच्चन को कायदे की हिंदी नहीं आती है?
इन कुछ दिनों में तमाम सोशल नेटवर्किंग जगहों पर अमिताभ बच्चन के प्रति भारतीय जनमानस की कृतज्ञता देखी जा सकती है। लोगों ने लिखा है कि सिर उठाने का मौका दिया है अमिताभ बच्चन ने। कई अखबारों ने हिंदी को लेकर अमिताभ बच्चन की सदाशयता पर संपादकीय भी प्रकाशित किये हैं। गर्व और उत्सव के इस माहौल में यह कहना कि Festival De Cannes 2013 में अमिताभ बच्चन ने हिंदी में बोलकर हिंदी की थोड़ी फजीहत भी करवायी है, आफत मोल लेना होगा। और-और की वजह से वाक्य को लंबा करने पर उन्हें बरी भी कर दिया जाए, लेकिन लिंग की जो गड़़बड़ी उन्होंने कर दी, उस पर उन्हें कैसे बरी किया जा सकता है। आखिर वो हिंदी सिनेमा के अप्रतिम अभिनेता हैं और मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन के सुपुत्र भी। अगर आप गौर से उनके संक्षिप्त अभिवादन वक्तव्य सुनें, तो आप पाएंगे कि उन्होंने सौ साल का हिंदी सिनेमा को सौ साल की हिंदी सिनेमा कर दिया है। आमतौर पर अमिताभ बच्चन ऐसी गड़बड़ियां नहीं करते, लेकिन कांस में उन्होंने सिनेमा को स्त्रीलिंग बना दिया। क्या वे नर्वस थे और उनका आत्मविश्वास हिल गया था? या उन्हें कायदे की हिंदी नहीं आती है? सुन कर आप ही फैसला लें, तो बेहतर!
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