सरकार! आपकी मंशा क्या है
बडवानी देश का पहला ऐसा जिला बना था, जहाँ मनरेगा में माधुरी की पहल और आंदोलन के बाद आदिवासियों में बेरोजगारी भत्ता बंटा, क्योंकि प्रशासन ने लोगों को काम नहीं दिया था. उसके बाद हीमनरेगा में इन कारनामों को अंजाम देने वाले कई अफसरों को निलंबित किया गया...
संदीप नाइक
माधुरी बहन को मध्य प्रदेश शासन के नुमाइंदों ने गिरफ्तार किया है। बडवानी में मनरेगा का बदला लेने के लिए बेताब जिलाधीश और शासन को आखिरकार एक ऐसा मौका मिल ही गया कि वे माधुरी बहन को गिरफ्तार कर लें. यह बात समझ से परे है कि एक झूठे मामले में उनकी गिरफ्तारी करके डरा हुआ प्रशासन आखिर क्या साबित करना चाहता है. मध्य प्रदेश में जननी सुरक्षा के इतने बुरे हाल हैं कि सड़कों पर रोज प्रसूतियाँ रोज हो रही हैं और सरकारी अस्पताल कुछ नहीं कर रहे.
उल्लेखनीय है यह वही माधुरी बहन हैं, जिन्होंने इसी जिले के पाटी ब्लाक में सरकारी पीएचसी की काली कमाई की परतें खोली थी और स्वास्थ्य विभाग के ढीलपोल की रपट सार्वजनिक की थी। उनके संगठन ने जब अध्ययन करना शुरू किया तो पता चला कि अस्पताल और डॉक्टर मरीजों को वह दवाएं नहीं देते जिस बीमारी से वो पीड़ित हों, सबको अस्पताल में उपलब्ध दवाओं के हिसाब से वितरण होता था। लगभग 70 प्रतिशत मामलों में बीमारी के मुताबिक दवाएं नहीं दी गयी हैं, इसीलिए लोग ठीक नहीं होते. इसीलिए सरकारी अस्पताल में जाना छोड़कर लोग निजी डॉक्टर के पास जाते हैं.
इसके अलावा बडवानी देश का पहला ऐसा जिला बना था, जहाँ मनरेगा में माधुरी की पहल और आंदोलन के बाद आदिवासियों में बेरोजगारी भत्ता बंटा, क्योंकि प्रशासन ने लोगों को काम नहीं दिया. उसके बाद मनरेगा में काले कारनामों को अंजाम देने वाले कई अफसरों को निलंबित किया गया है और करोड़ों का घपला पकड़ा गया है. यह सब मुद्दे हैं जिनके चलते माधुरी बहन को सुनियोजित तरीके से गिरफ्तार किया गया है। इसमें स्पष्ट साजिश की बू आती है। वर्ष 2008-09 का प्रकरण मात्र एक बहाना है, असली उद्देश्य जागृत आदिवासी मुक्ति संगठन की गतिविधियों को ठप्प करना है क्योंकि इस संगठन के माध्यम से आदिवासियों में चेतना जाग रही है.
हाल ही में एक अध्ययन करने पर पता चला कि नगद राशि के प्रलोभनों की स्थिति बहुत खराब है। खासकरके स्वास्थ्य विभाग मे. अध्ययन के दौरान ही सागर के जच्चा वार्ड मे दो नवजातों की मृत्यु हो गई थी। दोनों सद्य प्रसूताओं ने बताया था कि अस्पताल मे डॉक्टर ड्यूटी पर होते हुए भी नहीं पहुंचे थे वार्ड में। जब मैंने सम्बंधित अधिकारी और ड्यूटी डाक्टर से कहा और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के नियमों का हवाला देते हुए "डेथ आडिट" का पूछा तो बताया गया कि जब वो नवजात बीमार था, तो सम्बंधित महिला डॉक्टर आपरेशन वार्ड मे तीन महिलाओं के आपरेशन कर रही थी और शिशु रोग विशेषज्ञ अपनी सीट पर नहीं थे.
जच्चा वार्डों की हालत बहुत खराब है, आपरेशन टेबल पर एक साथ दो-दो महिलायें मुँह उलटाकर लेटी रहती हैं। इसी हालत में उनकी डिलेवरी करवायी जाती है। जिला स्तर के अस्पतालों मे जहाँ तीन डेढ़ सौ से लेकर दो सौ पचास तक की डिलेवरी रोज हो रही है उनमें से पचास-साठ आपरेशन होते है सीजेरियन के, वहाँ इस हालत के बारे में सोचकर रूह भी काँप जाती है। एड्स, सेप्टिक, एक्स्क्लेमाशियाया मिर्गी की महिला पेशेंट भी सामान्य महिला वार्ड में रह रही हैं। उनके लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।
ऑपरेशन थियेटर में मूल सुविधाएँ मसलन डिस्पोसेबल चीजें नहीं हैं। आटोक्लेव, गर्म पानी की सुविधा, वजन मशीन, स्वच्छ चादरें, एम्ब्यु बेग, डस्टबीन, जनरेटर, पीने का पानी, सफाई, आक्सीजन सिलेंडर या ऐसी अन्य जरूरी जैसी सुविधाएँ तक खरीदने के लिए विदेशी एजेंसियों का मुँह ताकना पड़ रहा है। बावजूद इसके कि एनआरएचएम में इफरात रूपया है. इन्दौर का एमवाय हो या देवास, सीहोर, सागर, सतना, मंडला हो या डिंडौरी सभी जगह के अस्पतालों की एक ही कहानी है.
आये दिन ड्यूटी डॉक्टरों द्वारा नाजायज रूपयों की मांग करना आम बात है। हाल ही में देवास मे ऐसा मामला पकड़ में आया है. डॉक्टरों की कमी से जूझते प्रदेश में जहाँ महिला डॉक्टर नहीं के बराबर हैं, सिर्फ एक, दो या ज्यादा से ज्यादा तीन महिला डॉक्टर अस्पताल चला रही हैं। डिंडौरी में एक ही महिला डॉक्टर सब काम करती हैं। इसमें भी यदि जिला कलेक्टर की बीबी डॉक्टर हो तो वो आती भी नहीं। डॉक्टर घर बैठे तनख्वाह लेती है, तो जननी सुरक्षा के हालत आसानी से समझे जा सकते हैं। जननी वाहन का जितना प्रचार किया जाता है, वह भी शोचनीय है।
कॉल सेंटर पर बैठे संविदा के बेचारे कर्मचारी जननी वाहन से डॉक्टरों और स्टाफ को घर से लाते-ले जाते हैं और फर्जी इंट्री करते हैं कि प्रसूता को लाया गया. ऐसे में मूल सवालों पर ध्यान देने के बजाय प्रशासन की यह एक तरफा कार्यवाही कई प्रकार के शक पैदा करती है. इन सब हकीकतों को सामने लेन के कारन बडवानी जिले में प्रशासन जागृत आदिवासी मुक्ति संगठन से नाराज है। यहाँ के शेखीखोर अफसर पहले भी इस संगठन से जुडी माधुरी बहन को जिला बदर की कार्यवाही में फंसा चुके हैं जिसमें उनको सफलता नहीं मिली. अब झूठे मामले में उनकी गिरफ्तारी कर प्रशासन बहुत ही घृणित तरीके से उनसे बदला लेना चाह रहा है.
सरकार को चाहिए कि इस जिले मे काम कर रही एजेंसियों को सख्ती से पहले पूछे कि उनका क्या योगदान है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर से मोटा रूपया उगाकर यहाँ पसारा फैलाकर बैठे हैं और बडवानी की गरीबी बेचकर अपना भला कर रहे हैं। दूसरा जिले में सड़क पर हुई डिलेवरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को घेरे मे लेकर उन्हें निलंबित करे। फ़िर अपने तंत्र को मजबूत करे और अविलम्ब माधुरी बहन को छोड़ दे, वरना जिले मे आदिवासियों के लिए और उनके भले के लिए काम करने वाला कोई नहीं रहेगा.
हाल ही में एम्स दिल्ली के डॉ. हीरा और उनके मित्रों ने आदिवासी युवाओं को 16 मई को इकठ्ठा किया था, पर प्रशासन ने उन्हें भी बहुत परेशान किया कि वे युवाओं का सम्मलेन कर रहे हैं. चुनावों के करीब आते ही यह सब होना लाजिमी है, क्योंकि कोई भी पार्टी जनचेतना नहीं चाहती और हर इस तरह की गतिविधि को खत्म कर अपना 'सुशासन' लागू करना चाहती है.
संदीप नाइक सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं.
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