Status Update
By चन्द्रशेखर करगेती
युवाओं की लड़ाई कौन लड़ेगा ?
यह मेरे स्वयं के लिए भी आत्म मंथन का समय हो गया है कि क्या उपरोक्त पोस्ट को मैंने सही समय पर सही लोगो के बीच चर्चा के लिए प्रस्तुत किया है ? जो विषय मैंने खाँटी आन्दोंलनकारियों और विभिन्न राजनैतिक दलों के कर्ताधर्ताओं के बीच चर्चा के लिए प्रस्तुत किया था, अब तक की प्राप्त प्रतिक्रियाओं से जो स्वत: समझ में आया है, वह यह कि अभी इस राज्य को और बहुत से दुर्दिन देखने बाकी है ! अभी और भी बहुत से लोगो का शमशान घाट तक पहुंचना अभी बाकी है तब जाकर कहीं जनपक्षीय होने का दावा करने वाले मूर्धन्य लोगो के समझ में आएगा कि उन्हें कांधा देने वाला तो कोई और बचा ही नहीं है, वे किसके सहारे जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने की बात कर रहें है ?
उत्तराखण्ड राज्य बने बारह साल बीत गयें हैं लेकिन इन बारह सालों में मैंने या और किसी ने कभी यह ना सूना और ना प्रत्यक्षत: देखा कि राज्य आन्दोलन के अगुवा रहें लोगो ने कभी इस राज्य के नौनिहालों के भविष्य की कभी बात की हो ? कभी राज्य के भीतर ही उनके लिए रोजगार उपलब्ध हो, इस विषय को कभी लड़ाई का मुद्दा बनाया हो, राज्य में उच्च एवं स्कूली शिक्षा व्यवस्था के दिनों दिन बदहाल होती व्यवस्था को कभी लड़ाई का मुद्दा बनाया हो ? राज्य की बदहाल चिकित्सा व्यवस्था को कभी लड़ाई का मुद्दा बनाया हो ? क्या कभी ऐसा हुआ ? अगर नहीं तो फिर नवयुवक इन आन्दोलनकारी शक्तियों के साथ किस उम्मीद से आयें ?
मैं पुरुषोत्तम शर्मा जी एवं पी.सी.तिवारी जी, राजा बहुगुणा जी, शमशेर बिष्ट जी तथा राजीव लोचन शाह जी, समर भंडारी जी, विजय रावत जी, प्रेम सुन्द्रियाल जी , सुरेश नौटियाल जी, मुजीब नैथानी, ओ.पी. पांडे जी, चारु तिवारी जी, नरेन्द्र सिंह नेगी जी, हीरा सिंह राणा जी, बल्ली सिंह चीमा जी जैसे अग्रजों से निवेदन करता हूँ कि आज उत्तराखण्ड के युवाओं के लिए जल-जंगल-जमीन के मुद्दे इतने अहम नहीं है, उनकी प्राथमिकता आज सुलभ शिक्षा के साथ ही उन्हें राज्य में रोजगार उपलब्ध हो यह है, अगर यह यक्ष प्रश्न आप मूर्धन्य अग्रजों के मंचों और पार्टियों की प्राथमिकता में नहीं है तो आप यह मानकर चलें कि आपकी विचारधारा का भविष्य भी इस राज्य में आने वाले सौ सालों में नहीं हैं l
आप भले ही जल-जंगल-जमीन की अपनी ढपली अपने मंचों पर बजाते रहें और आपके अपने कैडर के मुट्ठी भर बचे लोगों के बीच उसे सुनाते रहें राज्य के युवाओं का उससे कोई इत्तेफाक नहीं है, और ना ही वे इस मुद्दे पर आपके साथ आने को तैयार है, इससे ज्यादा की उम्मीद आप इस राज्य के निवासियों से रखें भी ना ! यदि आप सभी मूर्धन्य लोग चाहते है कि आपके हाथो को, आपके इरादों को मजबूती मिले, आपके साथ इस राज्य के युवा एक बार फिर से कंधे से कंधा मिलाकर जन संघर्षो में खडा हो तो उनके मुद्दे यथा "रोजगार-शिक्षा-चिकित्सा" को आज नहीं अभी से प्राथमिकता दें, आपको उस युवा वर्ग के हित की बात करनी होगी जो आपसे विमुख है, आपको उन युवाओं को विस्वास दिलाना होगा कि उनके हित और भविष्य की बात करने वाले, उनकी लड़ाई लड़ने वाले आप लोग ही हैं कांग्रेस-भाजपा नहीं ! तब जाकर कहीं इस राज्य की दशा-दिशा परिवर्तित होती है, अन्यथा नहीं !
क्या कर पाओगे ऐसा, क्या ऐसा हो पायेगा ?
यह मेरे स्वयं के लिए भी आत्म मंथन का समय हो गया है कि क्या उपरोक्त पोस्ट को मैंने सही समय पर सही लोगो के बीच चर्चा के लिए प्रस्तुत किया है ? जो विषय मैंने खाँटी आन्दोंलनकारियों और विभिन्न राजनैतिक दलों के कर्ताधर्ताओं के बीच चर्चा के लिए प्रस्तुत किया था, अब तक की प्राप्त प्रतिक्रियाओं से जो स्वत: समझ में आया है, वह यह कि अभी इस राज्य को और बहुत से दुर्दिन देखने बाकी है ! अभी और भी बहुत से लोगो का शमशान घाट तक पहुंचना अभी बाकी है तब जाकर कहीं जनपक्षीय होने का दावा करने वाले मूर्धन्य लोगो के समझ में आएगा कि उन्हें कांधा देने वाला तो कोई और बचा ही नहीं है, वे किसके सहारे जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने की बात कर रहें है ?
उत्तराखण्ड राज्य बने बारह साल बीत गयें हैं लेकिन इन बारह सालों में मैंने या और किसी ने कभी यह ना सूना और ना प्रत्यक्षत: देखा कि राज्य आन्दोलन के अगुवा रहें लोगो ने कभी इस राज्य के नौनिहालों के भविष्य की कभी बात की हो ? कभी राज्य के भीतर ही उनके लिए रोजगार उपलब्ध हो, इस विषय को कभी लड़ाई का मुद्दा बनाया हो, राज्य में उच्च एवं स्कूली शिक्षा व्यवस्था के दिनों दिन बदहाल होती व्यवस्था को कभी लड़ाई का मुद्दा बनाया हो ? राज्य की बदहाल चिकित्सा व्यवस्था को कभी लड़ाई का मुद्दा बनाया हो ? क्या कभी ऐसा हुआ ? अगर नहीं तो फिर नवयुवक इन आन्दोलनकारी शक्तियों के साथ किस उम्मीद से आयें ?
मैं पुरुषोत्तम शर्मा जी एवं पी.सी.तिवारी जी, राजा बहुगुणा जी, शमशेर बिष्ट जी तथा राजीव लोचन शाह जी, समर भंडारी जी, विजय रावत जी, प्रेम सुन्द्रियाल जी , सुरेश नौटियाल जी, मुजीब नैथानी, ओ.पी. पांडे जी, चारु तिवारी जी, नरेन्द्र सिंह नेगी जी, हीरा सिंह राणा जी, बल्ली सिंह चीमा जी जैसे अग्रजों से निवेदन करता हूँ कि आज उत्तराखण्ड के युवाओं के लिए जल-जंगल-जमीन के मुद्दे इतने अहम नहीं है, उनकी प्राथमिकता आज सुलभ शिक्षा के साथ ही उन्हें राज्य में रोजगार उपलब्ध हो यह है, अगर यह यक्ष प्रश्न आप मूर्धन्य अग्रजों के मंचों और पार्टियों की प्राथमिकता में नहीं है तो आप यह मानकर चलें कि आपकी विचारधारा का भविष्य भी इस राज्य में आने वाले सौ सालों में नहीं हैं l
आप भले ही जल-जंगल-जमीन की अपनी ढपली अपने मंचों पर बजाते रहें और आपके अपने कैडर के मुट्ठी भर बचे लोगों के बीच उसे सुनाते रहें राज्य के युवाओं का उससे कोई इत्तेफाक नहीं है, और ना ही वे इस मुद्दे पर आपके साथ आने को तैयार है, इससे ज्यादा की उम्मीद आप इस राज्य के निवासियों से रखें भी ना ! यदि आप सभी मूर्धन्य लोग चाहते है कि आपके हाथो को, आपके इरादों को मजबूती मिले, आपके साथ इस राज्य के युवा एक बार फिर से कंधे से कंधा मिलाकर जन संघर्षो में खडा हो तो उनके मुद्दे यथा "रोजगार-शिक्षा-चिकित्सा" को आज नहीं अभी से प्राथमिकता दें, आपको उस युवा वर्ग के हित की बात करनी होगी जो आपसे विमुख है, आपको उन युवाओं को विस्वास दिलाना होगा कि उनके हित और भविष्य की बात करने वाले, उनकी लड़ाई लड़ने वाले आप लोग ही हैं कांग्रेस-भाजपा नहीं ! तब जाकर कहीं इस राज्य की दशा-दिशा परिवर्तित होती है, अन्यथा नहीं !
क्या कर पाओगे ऐसा, क्या ऐसा हो पायेगा ?
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