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Wednesday, July 8, 2015

अफसोस मदन डुकलाण जी बि इंटरनेट से परहेज करदन

अफसोस मदन डुकलाण जी   बि इंटरनेट से परहेज करदन 

इंटरनेट का पाठकुंक  मिजाज अर गढ़वळि साहित्यकार  8   
आलेख --- भीष्म कुकरेती 

 इंटरनेट एक इन माध्यम च जु गढ़वळि अर कुमाउनी साहित्य , भाषा रक्षण का वास्ता वरदान च किन्तु सबसे बड़ो आश्चर्य या च कि हमारा साहित्यकार अबि बि सियां छन। 
भौत सा गढ़वळि साहित्यकार इन छन जौंमा इंटरनेट सुविधा उन नी च जाँसे वु इंटरनेट मा ऐ साकन। 
 इंटरनेट माध्यम मा गढ़वळि पाठक छन किन्तु साहित्य कम पोस्ट हूण से पाठकोंकी ज्वा बिज्वाड़  लगण चयेंद छे वा साहित्यकारों की उदासीनता का वजै से पाठक वृद्धि नि ह्वे सकणी च अर जुम्मेवार हमारा ही साहित्यकार छन। 
कुछ बुजुर्ग साहित्यकारों मादे डा अचलानन्द जी जखमोला चैका बि ये माध्यम तैं नि अपनाणा छन वो  उमर अर ढब का वास्ता दींदन।  किन्तु जरा 85 वर्षका डा बलबीर सिंह रावत जी तै द्याखदि तो सब ताबो (Tabo ) अफिक धराशाई ह्वे  जांदन कि दाना सयाणा साहित्यकार इंटरनेट से दु दु हाथ नि ह्वे सक्यांद। 
वरिष्ठ साहित्यकार डा नन्द किशोर ढौंडियाल जीसे मीन प्रार्थना कार कि डा साब इंटरनेट थौळ मा आवो किन्तु ऊन ब्वाल बल बस रिटायर ह्वेका अवश्य इंटरनेट माध्यम मा औलु।  मुंगरी पाक्ली पर तब तक म्यार समधी भुको चली जालो ! 
अपना वरिष्ठ साहित्यकार पूरण पंत जीकी तारीफ़ हुणि चयेंद कि ऊंन शुरू कार।  अर जोर शोर से शुरू कार।  जरा स्वास्थ्य ठीक ह्वे जालो तो पंत जी मैदान मारी सकदन। 
अपणा वरिष्ठ साहित्यकार नेत्र सिंह असवाल जी जब फेसबुक मा ऐन अर थ्वड़ा दिनुं मा इ सितारा बणि गेन।  इंटरनेट तकनीक आधारित माध्यम च तो तकनीक से हाथपाई नि करिल्या तो आप नेत्र सिंह असवाल नि बण सकदां। 
 संदीप रावत या वीरेंद्र पंवार जी का पास  इंटरनेट ह्वेका बि तकनीक से डरणा सि छन , जब तक आप लग्यां नि रैल्या आप तकनीक से फायदा नि उठै सकदां। सतीश बलोदी जी बि तकनीक से डरदा छन। 
कुछ साहित्यकार अळगसी छन।  यूँ मादे हरीश जुयाल छन।  युवा ह्वेका यूंसे आसा छे कि यी अपणी कविता इंटरनेट मा फैलाला।  हरीश जुयाल की कवितौं मा इंटरनेट पाठक वर्ग बढ़ाणो पूरी तागत च किन्तु जुयाल  जिकी अळगस बीच मा आणि च। 
मीन सबसे पैल चार पांच साल pail नरेंद्र कठैत जी से गुजारिस बि करी छे कि इंटरनेट माध्यम मा आवो किन्तु कुछ दिन ऐका  बि कठैत जी राजकपूर जन स्नबिस ह्वे गेन।  राजकपूर जिन बोलि छौ कि टेलीविजन माध्यम बेकार च तो नरेंद्र कठैत जीन बोली छौ (तब अब तो हम द्वी अबच्यळ छंवां ) कि इंटरनेट माध्यम बकबास च (शब्द यी न पर अर्थ यो ही ). आज भी फेसबुक मा छन पर क्वी कविताया   व्यंग्य कुछ ना।  
मधुसूदन थपलियाल जी बि लाइक बटन दबाण तक सीमित छन बस।  थपलियाल जी से गुजारिस च कि एकाद गजल फेसबुक , इंटरनेट मा डाळल तो पाठ्कुं की फसल जामलि। इनि  हाल हटवाल जीक छन।  अब तोताराम जी से उम्मीद च कि कुछ काम बढाला अर इंटरनेट मा पाठक वृद्धि कराण मा सहयोग द्याला।   

ओम प्रकाश  सेमवाल जी , दिनेश ध्यानी जी , डिमरी 'बादल' जी  सरीखा साहित्यकारों से उम्मीद छे कि यि साहित्य पोस्ट कारल किन्तु अफ़सोस यी तो न्यूज पर इ बिल्कयां रौंदन।  ठीक च आज इंटरनेट मा गढ़वळि कथा नि पढ़े जांद किन्तु यदि आप किंडल का विज्ञापन दिखिल्या तो किंडल कथा , उपन्यास पढ़णो ढब दिलाणो बान जोर मारणु च याने आज कथा पोस्ट कारो तो भोळ अवश्य ही पाठक हमारी कथा बाँचल। 
सबसे बड़ो अफ़सोस च कि मदन डुकलाण जी सरीखा  साधन सम्पन जौंमा कम्प्यूटर ज्ञान बि च अर जाणदा बि छन कि ऊंकी कविता पाठक पढ़दा छन अर सवाद से पढ़दन किन्तु मदन जी बि अळगसी परिवार का ही छन। इनि श्रीमती नीता कुकरेती  बि च साधन सम्पन ह्वेका बि गीत -कविता पोस्ट नि करदन।  किलै ? पता नी। 
विजय कुमार मधुर , विजय गौड़, बृजेन्द्र नेगी जी से बड़ी उम्मीद ह्वे गे छे किन्तु पता नि यि तिनी कख से गेन धौं ? कखि मील जावन तो म्यार रैबार दे दियां बल आपकी पोस्ट का सार लग्यां छौं। 
जब तक दिन मा बीस पचीस गढ़वाली साहित्यौ पोस्ट इंटरनेट मा नि होलु तो पाठक वृद्धि नि ह्वे सकदी।  तो मदन डुकलाण जी गंभीरता से कब बिटेन पोस्ट करिल्या ? 
 ये भै गीतेश नेगी  जी कख होला ?
बकै गौड़ जी , जयाड़ा जी , बालकृष्ण ध्यानी जी, सुनीता शर्मा तो लग्यां इ रौंदन अर यी इ इंटरनेटी पाठक बढ़ाना छन जी। 

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