हावड़ा में जलयुद्ध, एचआरबीसी में जलापूर्ति बाधित करने की माकपाई कोशिश कहीं उनके लिए भारी न पड़ जाये!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल में कामरेड ज्योति बसु के शासनकाल में ग्राम बांग्ला को प्रथमिकता देने का रिवाज रहा है।पहली वाम मोर्चा सरकार ने भूमिसुधार के जो कार्यक्रम लागू किये,उसकी नींव पर देहात में अभेद्य वाम दुर्ग बन गये। जिसके तहत बंगाल में लगातार 35 साल का वाम राजकाज संभव हुआ।विडंबना यह है कि ज्योति बसु के मुख्यमंत्री पद छोड़ते ही वाम मोर्चे की प्राथमिकताएं बदल गयी। माकपा अचानक कोलकाता केंद्रित हो गयी। कोलकाता को जीतने के लिए ही भद्रजनों के विकास का कारयक्रम तेज करने के फिराक में वामपंथियों नें पूंजी के सुपरहाईवे पर अंधी दौड़ शुरु कर दी। नंदीग्राम और सिंगुर में भूमि सुधार के झंडेवरदार माकपाइयों के लिए भूमि आंदोलन के जरिये ही वाटरलू का चक्रव्यूह रच दिया ममता बनर्जी ने।
दीदी की ताकत को नजरअंदाज करना जारी
वाम नेतृत्व ने ममता बनर्जी की ताकत और जनता में उनकी पैठ को हमेशा नजरअंदाज किया।यह परंपरा जारी है। लोकसभा, विधानसभा, पंचायतचुनावों के बाद पालिका चुनाव में भी करारी शिकस्त के मुहाने पर खड़े माकपायों को अभी अंदाजा ही नही है कि दीदी ने कैसे ग्राम बांग्ला जीत लिया और उनके सारे अजेय किले ताश के पत्ते की तरह ढह गये।मजे की बात है कि वामपंथियों से सख्त नफरत करने वाली दीदी ने नये राइटर्स को नवान्न नाम दिया है, जो बंगाल में गण नाट्य आंदोलन की धरोहर है।
कोलकाता का वर्चस्व तोड़ने के पक्ष में नहीं माकपा
बंगाल के वामपंथी अब भी कोलकाता के सर्वव्यापी वर्चस्व को तोड़ने के पक्ष में नहीं है। नहीं मालूम कि उन्होंने कोलकाता से हावड़ा में राजधानी स्थानांतरण के पक्ष में जो तर्क विख्यात साहित्यकार शंकर ने दिये हैं,उनपर गौर फरमाया है या नहीं। दीदी के इस क्रांतिकारी फैसले को वामपंथी कोई तरजीह ही नहीं दे रहे हैं। वामपंथियों ने न तो इस मामले में कोई सार्वजनिक बयान दिया है और न
तुगलकी सनक नहीं यकीनन
कोलकाता से राइटर्स के हावड़ा में स्थानांतरित होने के फलस्वरुरप होने वाले आर्थिक और राजनीतिक परिणामों पर गौर किया है। वे दीदी की इस रणनीति को जनपदों में उनकी आस्था बतौर देखने के बजाय तुगलकी फैसला मान रहे हैं
और इस उम्मीद में हैं कि सनकी दीदी की सनक से लोगों का आखिर मोहभंग होगा और उनका खोया हुआ जनाधार उन्हें बिना किसी मशक्कत वापस मिल जायेगा। संगठन में फेरबदल के बजाय बंगाल माकपा हर कीमत पर फिर कांग्रेस के साथ टांका जोड़ने के फिराक में हैं। हल्दिया उनसे जैसे बेदखल हो गया,उसी तरह हावड़ा और दूसरे जनपदों से वे बहुत तेजी से बेदखल हो रहे हैं,इसका अहसास तक नहीं है।
दीदी की सनक में ही जनता की आस्था
दरअसल फिलाहाल हकीकत यह है कि जिसे माकपाई दीदी की सनक,बहक और जुनून मानते हैं, बंगाल की जनता की आस्था उसीमें है।वैसे भी हावड़ा में राजधानी स्थानांतरण कोई तुगलकी सनक नहीं है,बुनियादी परिवर्तन है,माकपाई इसे समझने से साफ इकार कर रहे हैं।
मजाक नहीं एचआरबीसी राइटर्स नवान्न
रोजाना विकास परियोजनाएं घोषित करने के जुनून से दीदी लोगों में यह भरोसा पैदा करने में कामयाब जरुर हो गयी हैं कि वे यकीनन बंगाल का कायकल्प करना चाहती हैं।माकपाई इसे भी मानने को कतई तैयार नहीं है।एचआरबीसी में राइटर्स माकपा के लिए मजाक हो सकती है लेकिन यह हावड़ा के वाशिंदों के लिए पूरे पांच सौ साल बाद भाग्यदेवी की मीठी मुस्कान है।
हावड़ा के वाशिंदों की भावनाओं की परवाह नहीं निगम को
अगले नगरनिगम चुनाव में हावड़ा में वामपंथी मेयर के फिर दर्शन होंगे या नहीं, इस पर बहस की जा सकती है। लेकिन मौजूदा मेयर को शिवपुर के मंदिरतला में राइटर्स के स्थानांतरण से हावड़ा के वाशिंदे कैसे आस बंधे बेसब्र इंतजार में हैं,इसकी तनिक परवाह नहीं है।
नतीजतन एचआरबीसी में जलापूर्ति बंदोबस्त में नगरनिगम ने अड़गा लगा दिया है। दमकल विभाग ने अग्नि शमन व्यवस्था को लेकर जो तकनीकी ऐतराज किया है,खामियां सुधारकर राज्य सरकार उसे खारिज कर ही देगी,इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन एचआरबीसी में जलापूर्ति बाधित करने की माकपाई कोशिश कहीं उनके लिए भारी न पड़ जाये।
माकपाई रणनीति समझ से परे
समझने वाली बात है कि राज्य सरकार का यह उपक्रम अब थमने वाला नहीं है। कोलकाता और हावड़ा के बीच सुचारु यातायात के लिए धर्मतल्ला बस स्टैंड एछआरबीसी बस अड्डा बनने जा रहा है। जलपथ यात्रा को सुगम बनाने के लिएजेटियों का जीर्णोद्धार करके फेरियां बढ़ाई जा रहीं हैं कईगुणा। यहां तक कि ईस्ट वेस्ट मेट्रो तक को शालीमार होकर मंदिरतला ले जाने की योजना है। सुरक्षा संबंधी समस्या के हल के लिए एचआरबीसी की छत पर हैली पैड बनाने की भी तैयारी है। ऐसे में जलापूर्ति रोककर राजधानी स्थानांतरण में अड़ंगा डालकर माकपा आखिर क्या हासिल करना चाहती है ,समझ से परे है।
दमकल की आपत्ति
एचआरबीसी राइटर्स में जलापूर्ति को लेकर नगर निगम की राज्य सरकार से ठन गयी है तो दमकल विभाग एचआरबीसी को राइटर्स के बराबर ही जतुगृह मान रहा है। क्योंकि इस भवन में प्रवेश और निकासी के रास्ते बेहद संकरे हैं और आपात स्थिति में अपर्याप्त हैं।आगामी 4 अक्तूबर को नये राइटर्स का उद्घाटन करेंगी दीदी और पांच तारीक से राइटर्स का पता होगा मंदिरतला एचआरबीसी।भवन में मात्र तीन लिफ्ट हैं, जो नाकाफी हैं।पिछले हफ्ते आग बुझाने के रिहर्सल के दौरान ये खामियां सामने आयीं।अग्निकांड की स्थिति में नवान्न में सीढ़ी लगाना भी असंभव है, जिसके मद्देनजर वहां राइटर्स के स्थानांतरण पर दमदल ने ऐतराज दर्ज किया है। इन खामियों को दूर करने की जरुरत भी है।
विशुद्ध अड़ंगाबाजी
लेकिन हावड़ा नगर निगम ने कोई राइटर्स स्थानांतरण पर आपत्ति नहीं जतायी है और न किसी खामी की ओर इशारा किया।उसकी तरफ से विशुद्ध अड़ंगाबाजी है।
16 सितंबर को हावड़ा के जिला शासक शुभांजन दास ने हावड़ा नगरनिगम को सात दिन में नवान्न में जलापूर्ति शुरु करने के लिए पत्र लिखा।इस पर माकपा संचालित नगर निगम ने टका सा जवाब दे दिया है कि उसके लिए जलापूर्ति करना संभव नहीं है।
ममता जायसवाल की हास्यास्पद दलील
हावड़ा की माकपाई मेयर ममता जायसवाल की दलील है कि हावड़ा नगरनिगम इलाकों में दो पंपों से जलापूर्ति होती है। अब एचआरबीसी में जलापूर्ति करें तो दक्षिण हावड़ा जलशून्य हो जायेगा। सात वार्डों के लोगों को बूंद बूद पेयजल का महताज होना पड़ेगा।
पानी दो य फिर गद्दी छोड़ो
मेयर ममता जायसवाल के इस बयान के बादमंत्री और हावड़ा तृणमूल सभापति अरुप राय ने नारा दे दिया, या तो नवान्न को तुरंत जलापूर्ति की जाये वरना मेयर अपनी गद्दी छोड़ दें। हावड़ा के वाशिंदों की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए हावड़ा में बाकायदा जलयुद्ध शुरु हो गया है।
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