अपने अग्रज मित्र कृष्ण कुमार पुरोहित Krishan Kumar Purohit के वाल से पता चला कि आज वरिष्ठ पत्रकार श्याम आचार्य जी का जन्म दिन है । मैं भी उनके साथ वर्षों काम कर चुका । उनके संस्मरण सहज ही तैर रहे हैं ।
पिछली सदी की नवीं दहाई में मैं पटना से ट्रान्सफर होकर नव भारत टाइम्स जयपुर पंहुचा , तो वहां सम्पादक की कुर्सी पर श्याम सूंदर आचार्य के रूप में एक अग्रज तुल्य घरेलू अधेड़ को बैठा पाया । वह छूटते ही बोले - तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूँ । तुम्हारा हर लेख पढ़ता हूँ । लेकिन कुछ ही समय बाद मुझ पर यह भेद खुल गया कि वह मेरे लेख तो क्या , गीता प्रेस गोरखपुर के प्रकाशनों के सिवा कुछ भी नहीं पढ़ते । अगले ही दिन उन्होंने मुझे अपने घर भोजन पर बुलाया । यह एक बॉस की सदाशयता ही थी । अन्यथा अपने जूनियर को यूँ ही कौन मुंह लगाता है । भोजन शुद्ध शाकाहारी और पारम्परिक था । बिलकुल उन्ही की तरह । कालांतर में उनकी शख्शियत के कई रंग मुझ पर खुले । कार्मिक विभाग द्वारा मेरे इन्क्रीमेंट सम्बंधित गड़बड़ी को लेकर मैं उनके चेम्बर में जा घुसा । वह तुरन्त ही इंटर कॉम पर कार्मिक प्रबन्धक को अंग्रेजी मिश्रित हिंदी में डांटने लगे- क्यों परेशान किया मेरे सब एडिटर को । आई विल टेक एक्शन अगेंस्ट यु । वह डांट फटकार कर ही रहे थे कि इतने में सम्बंधित मऐनेजर किसी काम से उनके कक्ष में आ घुसा । बगैर हिचक के आचार्य जी बोले - अरे मैं आपसे ही बात कर रहा था । बाद में मुझे विदित हुआ कि वह इंटरकॉम तो महीनों से खराब पड़ा है ।
मैंने उन्हें कभी लाठी और निकर में कवायद करते नहीं देखा , लेकिन विदित हुआ कि वह दीक्षित और जघन्य संघी हैं । .... काश हर संघी उन्ही की तरह सरल , स्नेही , अहिंसक और मदद गार होता ।
पिछली सदी की नवीं दहाई में मैं पटना से ट्रान्सफर होकर नव भारत टाइम्स जयपुर पंहुचा , तो वहां सम्पादक की कुर्सी पर श्याम सूंदर आचार्य के रूप में एक अग्रज तुल्य घरेलू अधेड़ को बैठा पाया । वह छूटते ही बोले - तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूँ । तुम्हारा हर लेख पढ़ता हूँ । लेकिन कुछ ही समय बाद मुझ पर यह भेद खुल गया कि वह मेरे लेख तो क्या , गीता प्रेस गोरखपुर के प्रकाशनों के सिवा कुछ भी नहीं पढ़ते । अगले ही दिन उन्होंने मुझे अपने घर भोजन पर बुलाया । यह एक बॉस की सदाशयता ही थी । अन्यथा अपने जूनियर को यूँ ही कौन मुंह लगाता है । भोजन शुद्ध शाकाहारी और पारम्परिक था । बिलकुल उन्ही की तरह । कालांतर में उनकी शख्शियत के कई रंग मुझ पर खुले । कार्मिक विभाग द्वारा मेरे इन्क्रीमेंट सम्बंधित गड़बड़ी को लेकर मैं उनके चेम्बर में जा घुसा । वह तुरन्त ही इंटर कॉम पर कार्मिक प्रबन्धक को अंग्रेजी मिश्रित हिंदी में डांटने लगे- क्यों परेशान किया मेरे सब एडिटर को । आई विल टेक एक्शन अगेंस्ट यु । वह डांट फटकार कर ही रहे थे कि इतने में सम्बंधित मऐनेजर किसी काम से उनके कक्ष में आ घुसा । बगैर हिचक के आचार्य जी बोले - अरे मैं आपसे ही बात कर रहा था । बाद में मुझे विदित हुआ कि वह इंटरकॉम तो महीनों से खराब पड़ा है ।
मैंने उन्हें कभी लाठी और निकर में कवायद करते नहीं देखा , लेकिन विदित हुआ कि वह दीक्षित और जघन्य संघी हैं । .... काश हर संघी उन्ही की तरह सरल , स्नेही , अहिंसक और मदद गार होता ।
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