जरुर बिकेगी कोल इंडिया, कोयला मंत्रालय के विरोध से क्या होता है?
अत्यंत पिछड़े और आदिवासी बहुल इन इलाकों की सुधि लेते हुए अब तक किसी राज्य सरकार ने कोल इंडिया के विनिवेश का विरोध नहीं किया है। जबकि इन राज्य सरकारों से जुड़े राजनीतिक दल कोयला घटालों पर सबसे ज्यादा शोर मचा रहे हैं। इसका मतलब क्या है?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोयला मंत्रालय ने कोल इंडिया केविनिवेश का विरोध किया है और कोयला मंत्रालय ने कहा है कि फिलहाल कोल इंडिया के विनिवेश पर कोई फैसला नहीं किया गया है। मंत्रालय का कहना है कि इस मामले में अभी सिर्फ चर्चा शुरू की गई है। कोयला मंत्रालय का कहना है कि बिजली इकाइयों पर 9,000 करोड़ रुपये के बकाये जैसे विवादों को सुलझने तक कंपनी की शेयर बिक्री नहीं की जानी चाहिए। इससे क्या होता है? कोलला मंत्रालय कोई स्वायत्त इकाई तो है नहीं। होता तो कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम कैसे आता? विनिवेश विभाग के मुताबिक कोल इंडिया के 10 फीसदी विनिवेश को लेकर जल्द ही आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी को नोट भेजा जा सकता है और 15 मई के बाद इस मामले में कैबिनेट कमेटी अपना फैसला ले सकती है।अगले हफ्ते कैबिनेट को कोल इंडिया के विनिवेश पर विचार करने के लिए सिफारिश भेजी जा सकती है। वहीं अक्टूबर में राष्ट्रीय इस्पात के 10 फीसदी शेयरों की बिक्री संभव है। आरआईएनएल के आईपीओ के लिए जून अंत अर्जी दी जा सकती है। जून-जुलाई तक हिंदुस्तान कॉपर के विनिवेश का दूसरा चरण पूरा किया जा सकता है।सरकार कोल इंडिया में 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचकर करीब 20,000 करोड़ जुटाने की तैयारी में है। उसने वित्तीय वर्ष 2014 में विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है।
जिन राज्यों में कोयला खनन होता है, वे बंगाल ,झारखंड, बिहार, उड़ीशा, असम, उत्तर प्रदेश,छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों ने कोल इंडिया के विनिवेश का विरोध किया हो, ऐसी कोई खबर नहीं है। इन राज्यों में सिर्फ महाराष्ट्र और असम में कांग्रेस की सरकारे हैं। जहां कोयला उत्पादन अन्य उन राज्यों के मुकाबले काफी कम हैं, जो गैर कांग्रेसी सरकारों द्वारा शासित है।इन राज्य सरकारों पर कांग्रेस का असर भी नहीं है और वे कांग्रेस के विरोध में हैं। वे क्यों विरोध नहीं कर रही हैं? गौरतलब है कि इन सभी राज्यों में कोयलांचल का विकास कोलइंडिया की सेहत पर निर्भर हैं। फिरभी अत्यंत पिछड़े और आदिवासी बहुल इन इलाकों की सुधि लेते हुए अब तक किसी राज्य सरकार ने कोल इंडिया के विनिवेश का विरोध नहीं किया है। जबकि इन राज्य सरकारों से जुड़े राजनीतिक दल कोयला घटालों पर सबसे ज्यादा शोर मचा रहे हैं। इसका मतलब क्या है?
सरकार ने विनिवेश का खाका बनाकर इसे अमलीजामा पहनाने की तैयारी शुरू कर दी है। वित्त मंत्रालय ने एनएचपीसी के विनिवेश के लिए कैबिनेट नोट जारी कर दिया है। माना जा रहा है कि ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) के जरिए एनएचपीसी में 11.36 फीसदी हिस्सेदारी बेची जाएगी।सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय ने इंडियन ऑयल के विनिवेश के लिए भी कैबिनेट नोट जारी किया है। वहीं इसी साल जून और जुलाई में आईटीडीसी, एमएमटीसी, एसटीसी और एनएफएल में विनिवेश संभव है।
सूत्रों की मानें तो 10 फीसदी से कम सार्वजनिक हिस्सेदारी वाली घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों को डीलिस्ट किया जा सकता है। वहीं वित्त वर्ष 2014 में कोल इंडिया, हिंदुस्तान कॉपर और एचएएल में भी विनिवेश करने की योजना है।
कोल इंडिया की समस्याएं सुलझाने में राज्य सरकारों की ओर से अब तक किसी पहल की खबर नहीं है। जबकि पिछले कुछ महीनों में डीजल भावों में किए गए इजाफे से कंपनी पर चालू वित्त वर्ष के दौरान 2,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। इसके अलावा कोल इंडिया ने हाल में अपने कर्मचारियों का वेतन भी बढ़ाया है, जिससे उस पर सालाना 250 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। कुल मिलाकर ईंधन आपूर्ति करार के तहत कोयला सप्लाई करने पर कंपनी की लागत में 4-5 फीसदी का इजाफा हुआ है। फिलहाल कंपनी की यह लागत 1,232 रुपये प्रति टन आती है।
चालू वित्त वर्ष के दौरान कंपनी की आय की विकास दर महज 6-7 फीसदी रहने का अनुमान जताया जा रहा है। लेकिन आय बढऩे की इतनी कम दर पर भी कंपनी परिचालन से 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाई करेगी, जो कंपनी के कुल बाजार पूंजीकरण का 13 फीसदी है। यही वजह है कि बाजार को कंपनी के शेयर भाव में और गिरावट नहीं आने का पूरा यकीन है।हालत तो यह है कि माइनिंग कंपनियों की मुश्किल बढ़ने वाली है। संसद की स्थाई समिति ने माइन्स एंड मिनरल एक्ट में भारी बदलाव की सिफारिश कर प्रभावित लोगों के मुआवजे के तरीके में बदलाव की सिफारिश की है। सिफारिश के तहत माइनिंग कंपनियों को खनन से प्रभावित लोगों को रॉयल्टी के बराबर मुआवजा देने को कहा गया है।हालांकि सरकार ने कंपनियों के मुनाफे का 26 फीसदी प्रभावित लोगों को देने का प्रवाधान किया था। अगर सरकार सिफारिश मानती है तो कोल इंडिया, टाटा स्टील, सेल, जेएसपीएल पर भारी बोझ पड़ेगा। साथ ही नाल्को, हिंडाल्को पर असर मुमकिन है।एक अनुमान के मुताबिक नए बदलाव से कोल इंडिया पर सालाना 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। रॉयल्टी की वजह से कोल इंडिया को कोयले के दाम 12 फीसदी तक बढ़ाने पड़ सकते हैं। यानि इसके चलते आपकी बिजली महंगी भी हो सकती है।
पिछले एक हफ्ते के दौरान कोल इंडिया लिमिटेड के शेयर में 5 फीसदी की गिरावट आई है। यह गिरावट कंपनी में सरकार की 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की खबरों के कारण आई है। निवेशकों और कारोबारियों की नजर विनिवेश के दौरान सस्ते भाव पर कंपनी के शेयर खरीदने पर है। यही वजह है कि शेयर पर बिकवाली का दबाव आया। मगर विश्लेषकों का कहना है कि बाजार को सरकारी हिस्सेदारी बेचने की खबर का अंदाजा पहले ही था। इसलिए मौजूदा शेयर भाव में इस खबर का असर पहले ही शामिल है। अगर इसके भाव में और गिरावट आती है तो फिर शेयर खरीदने पर दांव लगाया जाना चाहिए।
मौजूदा भाव पर शेयरों की बिक्री करके सरकार करीब 19,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है। मौजूदा स्तर पर कोल इंडिया का शेयर वित्त वर्ष 2014 की अनुमानित आय के 11 गुना पर कारोबार कर रहा है, जहां इसकी कीमतों को समर्थन मिल सकता है खासतौर पर इसके अच्छे कारोबारी मॉडल को देखते हुए। देश की कुल कोयला जरूरत की 80 फीसदी आपूर्ति करने वाली कोल इंडिया पर किसी तरह का ऋण नहीं है, इकिवटी पर निवेशकों को 33 फीसदी प्रतिफल मिल रहा है और इसके पास करीब 65,000 करोड़ रुपये की नकदी है, जो कुल बाजार पूंजीकरण का 34 फीसदी है।
सरकार निजी कोयला खदानों (कैप्टिव माइंस) में उत्पादित सरप्लस कोयले को नियामक के दायरे में लाने की तैयारी कर रही है। प्रस्तावित कोयला नियामक (जो कीमत व कोयला खदान के संचालन में पारदर्शिता लाएगा) कोल इंडिया के लिंकेज कोल की कीमतों के अलावा निजी खदानों में उत्पादित कोयले की कीमतों की व्यवस्था का फैसला करेगा।
वित्त मंत्री पी चिदंबरम की अगुआई वाली नौ सदस्यीय समिति की बैठक में कोल रेग्युलेटरी अथॉरिटी बिल पर विस्तृत चर्चा के बाद कोयला मंत्रालय ने निजी खदानों को शामिल करने के लिए मसौदे में एक अलग धारा जोड़ी है। एक साल पहले सासन अल्ट्रा पावर परियोजना के लिए आवंटित खदान से उत्पादित सरप्लस कोयले का इस्तेमाल इसके चित्रांगी पावर प्लांट करने की अनुमति आर पावर को दी गई थी।मौजूदा व्यवस्था के तहत कैप्टिव कोल माइंस का संचालन करने वाली निजी कंपनियों के लिए अनिवार्य है कि वह सरप्लस उत्पादन नजदीकी कोल इंडिया की सहायक कंपनी के साथ सरकार द्वारा तय ट्रांसफर प्राइस के हिसाब से साझा करे। कोयला मंत्रालय ने सरप्लस कोल पॉलिसी के मसौदे में प्रस्ताव रखा था कि निजी खदान मालिकों को अपने सरप्लस उत्पादन सीआईएल को उत्पादन लागत से कम या फिर अधिसूचित कीमत पर बेचनी चाहिए। बाद में यह नीति त्याग दी गई।साथ ही कैप्टिव कोल माइनिंग कंपनियां मौजूदा समय में नजदीकी कोल इंडिया की सहायक कंपनी में लागू रॉयल्टी की दर के बराबर ही रॉयल्टी का भुगतान करती है।
कोयला मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, अगर नई धारा पर अमल हुआ तो इससे नियामक की जद में टाटा पावर, रिलायंस पावर, जिंदल स्टील ऐंड पावर समेत कई और निजी कंपनियां शामिल हो जाएंगी। निजी खदानों से उत्पादित कोयले की कीमत का फैसला सिद्धांतों और नियामक की तरफ से कीमत तय करने के तरीके के आधार पर होगा और यह यह सरप्लस कोयले की कीमतें तय करने का आधार बनेगा। उन्होंने यह भी कहा कि निजी खदानों से उत्पादित कोयले की कीमतों को राज्य सरकारों के लिए रॉयल्टी के आकलन का आधार बनाया जाएगा।
1 comment:
Goyal Energy Solution (GES) is a leading name in the coal trading, coal mines, steel grade coal in north east India.
Coal Trader
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